साहित्य

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Friday, May 28, 2021

झर रही फुहार

झर रही फुहार


 

-डॉ. सतीश चन्द्र भगत

उमड़- घुमड़

मेघ रह- रह बरसे

हवा के झोंके से

आम के डंडी से

बिछुड़- बिछुड़ कच्चे ही

आम गिरे ढप- ढप |

 

गाँव के बच्चे

चुन रहे हैं आम टप- टप

भींग रहे बरखा में

कूद रहे छप- छप |

 

उमंगो से झूम - झूम

नाचें हैं बरखा में

बौरा गई हवा भी

उड़ रहे बादल

बरसे बरखा रह- रह

आज सबके मन में

भर रहे हैं उल्लास  |

 

बौखलायी गर्मी की लपटें

हो गई चुपचाप

धरती की आंचल

हरियाली में हवा के संग

लहराने लगे गाने लगे

निज- निज पंख फैलाने लगे |

 

सुनाए स्वर हवा

बरखा के संग

रूनझुन- रूनझुन

कर दिया मौसम सुहाने

मची सबके दिलों में

हलचल -हलचल |

 

झर रही फुहारें

सड़क पर बह रही दरिया

बच्चे कर रहे चहलकदमी

कागज की नांव रहे

कूद रहे छप- छप |


लेखक-हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान के निदेशक हैं, 

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

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