साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, May 24, 2021

महंगाई की मार


 

 

महंगाई की मार

बढ़ती महंगाई पर कविता - कुछ कम कर दो

अच्छे  दिन  के  इंतज़ार में

मां गंगा की   धार  मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई  की मार  मिली ।।


नाही   पंद्रह   लाख   मिला

नाही कोई रोजगार मिला ।

नाही आक्सीजन मिल पाया

नाही कोई उपचार मिला ।।

 

आधी  से  ज्यादा  आबादी

ला-इलाज  बीमार  मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई  की   मार  मिली ।।


एक   महामारी   के  आगे

सारा  सिस्टम   फेल  हुआ ।

अंगों की  तस्करी  हुई और

भ्रष्टाचार  का  खेल   हुआ ।।

 

छप्पन  इंच  की  सारी  सेवा

असफल और लाचार मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई की मार  मिली ।।

 

जहां  प्रजा  बेचैन हो राजा

फिर भी  मनकी  बात करे ।

धनवानों  पर कृपा करें और

निर्धन  पर   आघात  करे ।।

 

वहां प्रजा की सुनने को बस

केवल चीख  पुकार  मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई  की  मार  मिली ।।

 

श्यामकिशोर बेचैन 
कवि-श्याम किशोर बेचैन

संकटा देवी बैण्ड मार्केट

लखीमपुर खीरी 262701

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