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लेखक-अजय बोकिल |
शायद
ही किसी ने सोचा होगा कि दुनिया के सबसे बड़े खेल अनुष्ठान ओलिम्पिक के ध्येय
वाक्य ‘और
तेज, और
ऊंचा, और
ताकतवर’ को
हमारे देश का एक ओलम्पिक आईकान इस रूप में भी लेगा कि वह अपनी ताकत दिखाने अपने ही
शिष्य की जान लेने में भी नहीं हिचकेगा। बीजिंग और लंदन ओलम्पिक में भारत को
कुश्ती में क्रमश: कांस्य और रजत पदक दिलाने वाले और कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं
में अपने कुश्ती कौशल से प्रतिद्वंद्वी पहलवानों को धूल चटाने वाले सुशील कुमार को
इस तरह हत्या के आरोप में सींखचों के पीछे और आरोप साबित हुआ तो शायद आजीवन जेल की
सजा भुगतते हुए भी देखेंगे, यह
कल्पना भी मुश्किल है। आखिर कोई भी ओलम्पिक पदक विजेता समूचे खेल जगत के लिए ‘भगवान’ के समान होता है। एक बेहद कठिन और पवित्र भाव से
आयोजित खेल आयोजन का वह सम्मानित हीरो होता है। और सुशील कुमार ने तो यह कारनामा
दो बार करके दिखाया, जो
किसी भी भारतीय खिलाड़ी के विरल सपने की
तरह है। ऐसे में सवाल यह है कि वही ‘आदर्श’ खिलाड़ी इस तरह ‘अंडरवर्ल्ड का पहलवान’
कैसे और क्यों बन गया?
भरपूर मान-सम्मान,
पद, प्रतिष्ठा और पैसा क्या नहीं मिला उसे ?
फिर ऐसी क्या मजबूरी थी,
जिसने सुशील कुमार को ‘कु-शील कुमार’ में तब्दील कर दिया।
38 वर्षीय सुशील कुमार की यह कहानी अपने आप में ‘केस हिस्ट्री’ है। या यूं कहें कि बालीवुड जिस शख्सियत पर
बायोपिक बना सकता था, वह
अब शायद उसी पर कोई क्राइम पिक्चर बनाने पर सोचेगा। सुशील कुमार की कहानी हरियाणा
के एक साधारण से परिवार में पलकर खेल की दुनिया में आकाश की ऊंचाइयों को छूने और
फिर फर्श पर धड़ाम से गिरने की है। बचपन से ही कुश्ती में रूचि रखने वाले सुशील
कुमार को मशहूर पहलवान सतपाल ने तराशा। नतीजा यह रहा कि सुशील ने 2010 के काॅमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड दिलाया।
इस उपलब्धि से अभिभूत सतपाल ने सुशील को अपनी बेटी ब्याह दी। सुशील शोहरत के
आसमान में चमकने लगे। उन्होंने दो ओलम्पिक मेडल और कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धाअों
मे पदक जीते। रेलवे ने उन्हें बढि़या सरकारी नौकरी दी। सुशील बाद में खुद भी बड़े
कुश्ती कोच बने। पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार मिले। खेल जगत का सर्वाधिक
प्रतिष्ठित राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया। और भी कई इनाम मिले। आज वो करोड़ों की
दौलत के मालिक हैं और कल तक युवा पहलवानों
के रोल माॅडल रहे हैं।
यह
कहानी और नए आयामों को छूती, अगर
4 मई 2021 की तारीख सुशील कुमार की जिंदगी में न आती।
सुशील पर आरोप है कि दिल्ली में अपने एक फ्लैोट का किराया न देने के कारण उन्होंने
साथियों के साथ अपने ही एक युवा शिष्य की
मार-मार कर हत्या कर दी। इसके पहले एक और पहलवान प्रवीण राणा ने पूर्व में सुशील पर
उसे पिटवाने का आरोप लगाया था। उसकी एफआईआर
भी हुई थी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सुशील अभी भी अपने अंडरवर्ल्ड
रिश्तों को छुपा रहा है। लेकिन पूछताछ में जो उजागर हुआ है,
उसके मुताबिक सुशील के संगी-साथी
रियल इस्टेट, बैड
लोन की वसूली और प्राॅपर्टी खाली कराने और टोल प्लाजा से वसूली का धंधा करते थे।
पुलिस कुख्यात गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जेठडी से सुशील के रिश्तों को खंगाल
रही है। यहां तक कि सुशील ने अपने साथी पहलवानों से भी पंगा लिया। पूरी अपराध कथा
जिस दिशा में बढ़ती दिख रही है, वहां
सुशील का बचना मुश्किल लगता है।
ऐसा
नहीं है कि सुशील कुमार ऐसे पहले
अोलम्पियन हैं, जो
अपराध की दुनिया से जुड़े हैं। और भी कुछ ऐसे नामी नाम हैं,
जिन्होने खेल की जुझारू दुनिया से
अपराध की दुनिया में कदम रखा और सजाएं भी भुगतीं। एक जुर्म ने उनके जिंदगी भर के
किए कराए पर पानी फेर दिया। उदाहरण के लिए प्रोफेशनल गोताखोर ब्रूस किमबाल ने लाॅस
एजेंल्स ओलम्पिक में 1984
में सिल्वर मेडल जीता था। लेकिन बाद में शराब की लत ने उन्हें अपराधी बना दिया।
ब्रूस को अपनी कार से दो किशोरों को कुचलकर मारने के आरोप में 17 साल की जेल हुई। ट्रेक एंड फील्ड स्पर्द्धाओं
में 1996
के अटलांटा अोलम्पिक में सिल्वर तथा 2000 के सिडनी ओलम्पिक में गोल्ड जीतने वाले टिम
मांटगोमरी को बैंक फ्राॅड करने पर पांच साल की जेल की सजा हुई। रियो ओलम्पिक में
अमेरिकी तैराक रायन लोचे ने स्वर्ण पदक जीता था। लेकिन बाद में खुद को लूटे जाने
की फर्जी रिपोर्ट लिखाने की उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। गोल्ड मेडल तो छिना
ही, बहुत
सी डील और व्हाइट हाउस का प्रतिष्ठित न्यौता भी हाथ से गया। दुनिया में ‘ब्लेड रनर’ के नाम से मशहूर आॅस्कर पिस्टोरियस की कहानी तो
और हैरान करने वाली है। साउथ अफ्रीका के इस पैरालिम्पिक हीरो ने अपनी ही गर्ल
फ्रेंड रीवा स्टीनकैम्प की हत्या कर दी। आॅस्कर को 13 साल की जेल हुई। तैराकी में एक और मशहूर नाम
रहा है माइकल फेल्प्स का। इस अमेरिकी तैराक ने कई ओलम्पिक में कुल 28 मेडल अपने नाम किए थे। यह खिलाड़ी नशाखोरी और
अवसाद की गिरफ्तक में चला गया। यह सूची और भी लंबी हो सकती है।
दरअसल
सुशील की पहलवानी की चमकती जिंदगी में उतार तभी शुरू हो गया था,
जब वो अपना ‘प्रभाव’ और ‘दादागिरी’ जमाने के लिए अंडरवर्ल्ड के संपर्क में आए। सब
कुछ अर्जित करने के बाद भी खुद को ‘दादा’ साबित करने का मोह ही शायद सुशील कुमार को ले
डूबा। वरना कोई कारण नहीं था कि कीर्तिमानों से रचे सुशील के हाथों को खंजर उठाना
पड़ता। जो कहानी सामने आ रही है, उसके
मुताबिक बकाया किराए की वसूली के लिए एक
युवा पहलवान सागर धनखड़ की जानलेवा पिटाई के बाद घबराए सुशील ने हरिद्वार के एक ‘बड़े बाबा’ जिनका सरकार में रसूख है,
से बचाने की अपील की। लेकिन या तो
बाबा ने मदद नहीं की या फिर उनकी नहीं चली। अंतत: दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने
हत्या के आरोपी सुशील कुमार को गिरफ्ताेर कर लिया। कोर्ट ने सुशील की अग्रिम जमानत
की याचिका को खारिज कर उसे सात दिन की
पुलिस रिमांड पर भेज दिया। कभी पोडियम पर शान से तिरंगा लहराने वाले सुशील कुमार
के हाथ पुलिस के घेरे में तौलिए से अपना मुंह छिपाते दिखे। अब सुशील के वकील की
कोशिश है कि उस पर कमजोर धाराएं लगाई जाएं। कहा जा रहा है कि जो हुआ,
गैर इरादतन था। लेकिन जो तथ्यो
सामने आ रहे हैं, उससे
तो लगता है कि ‘ओलम्पिक
के हीरो’ में ‘अपराध की दुनिया का डाॅन’
भी बनने की तमन्ना जोर मारने लगी
थी। वह छत्रसाल स्टेडियम में बतौर कोच यही बर्ताव करने लगा था। हमारे यहां लोक चर्चाओं
में पहलवानी का रिश्ता सामाजिक दंबगई और अल्प बुद्धि से जोड़ा जाता रहा है। लेकिन
अब देश में पहलवानी का खेल भी एक सुसंगठित अंडरवर्ल्ड में तब्दील हो रहा है या फिर
उसका अंडरवर्ल्ड से गहरा रिश्ता बन गया है तो यह सभी के लिए बेहद चिंता और शर्म की
बात है। इस देश में राजनीति, बाॅलीवुड
और कारपोरेट के अंडरवर्ल्ड से रिश्ते तो सर्वज्ञात थे,
लेकिन अब खेल के अखाड़ों का विस्तार
भी अपराध की दुनिया तक हो रहा है। और इस अनैतिक दुनिया में परचम लहराने के लोभ में
खिलाडि़यों को अपने चेहरे पर कालिख पुत जाने की भी चिंता नहीं है। वरना एक नामी
खिलाड़ी देशवासियों के लिए किसी विजयी सेनापति की माफिक होता है। लोग उस पर जान
छिड़कते हैं। लेकिन यही शोहरत कुछ लोगो को उस रास्ते पर ले जाती है,
जहां हाथ आया सब गंवाना पड़ता है।
सुशील से भी तमाम मान सम्मान और ओलम्पिक मेडल तक छिन सकते हैं। तब क्या बचेगा ?
दरअसल महत्वाकांक्षा का मारा
व्यक्ति जीतने की जिद की आराधना करते करते नैतिक मूल्यों की बलि देने लगता है।
बिना यह सोचे कि इसका अंजाम क्या होगा? वह समाज को क्या मुंह दिखाएगा ?
सुशील कुमार की कहानी भी यही कुछ
कहती है।
(लेखक सुबह-सवेरे के वरिष्ठ संपादक हैं )
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 27 मई 2021 को प्रकाशित)