साहित्य

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Tuesday, May 25, 2021

किसान आंदोलन और सरकार की हठधर्मिता

किसान आंदोलन और सरकार की हठधर्मिता
✎नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

“किसान छः माह से हांड  कंपाने वाली कड़कड़ाती सर्दी, बरसात और गर्मी की तपती धूप में अपनी जिंदगी की परवाह किये बगैर, उसी दृढ़ इच्छाशक्ति ,संकल्प और विश्वास के साथ आज भी डटा हुआ नजर आता है जैसा आंदोलन की शुरूआत में नज़र आता था। धरनास्थल पर सैकड़ों किसानों की मौतें होने और सरकार द्वारा पैदा की गई अराजकता के बावजूद वह टस से मस नही हुआ है। उनकी लगातार छः महीने से मनाही के बावजूद सरकार क्यों   हठधर्मिता अपनाए हुए है? अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है।”

          

kisan Andolan 2020: किसानों की खुली चेतावनी! मांगें पूरी न हुईं तो  Delhi-Ghazipur Border पर तेज होगा प्रदर्शन - Kisan andolan updates farmers  to intensify protest on delhi ghazipur border if demands 

    कोरोना काल में 26 मई को किसानों द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन की खबरें सम्पूर्ण देश के लिए खतरनाक, चिंताजनक और दुःखद हैं।दिल्ली के सीमावर्ती राज्यों से बड़ी तादाद में देश का अन्नदाता देश की राजधानी की ओर कूच करने के मूड में दिख रहा है। तीन कृषि कानूनों की वापसी के लिए देश का किसान छः माह से हांड  कंपाने वाली कड़कड़ाती सर्दी, बरसात और गर्मी की तपती धूप में अपनी जिंदगी की परवाह किये बगैर, उसी दृढ़ इच्छाशक्ति ,संकल्प और विश्वास के साथ आज भी डटा हुआ नजर आता है जैसा आंदोलन की शुरूआत में नज़र आता था। धरनास्थल पर सैकड़ों किसानों की मौतें होने और सरकार द्वारा पैदा की गई अराजकता के बावजूद वह टस से मस नही हुआ है। शुरुआती दौर से ही सरकार के प्रतिनिधियों से हुई सभी दौर की वार्ताओं में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा " तीनों बिलों की पूर्ण वापसी और एमएसपी की गारंटी के कानून" के बगैर आंदोलन खत्म करने या घर वापसी की लगातार मनाही की जाती रही है। सरकार द्वारा जिसके लाभ के लिए कृषि बिल बनाये गए हैं, उनकी लगातार छः महीने से मनाही के बावजूद सरकार क्यों हठधर्मिता अपनाए हुए है?अब यह स्पष्ट होने या समझने में कोई अंदेशा नही रह जाता है कि इन बिलों के पीछे देश के बड़े कॉर्पोरेट घराने के पूंजीपतियों के साथ हुई भारीभरकम आर्थिक या वित्तीय डील आड़े नज़र आ रही है।विगत छः महीनों से डटे किसानों के साहसिक आत्मबल, निडरता और एकजुटता से यह तो पक्का हो चुका है कि किसान अब अपने घर अपनी शर्तों पर ही जाने को तैयार होगे।

Kisan Andolan: Railway alert in Madhya Pradesh due to farmer agitation in  Punjab and Haryana           

        56 इंच सीने की झूठी शान की नेतृत्व वाली सरकार को संक्रमण काल मे बेहद संवेदनशीलता और उदारता का परिचय देते हुए व्यापक हित में पीछे हटने में संकोच,शर्म या बेइज़्ज़ती क्यो लग रही है? लोकतंत्र में सरकार तो जनता की और जनता के लिए ही होती है। हमारे देश मे किसान उस जनता का एक बहुत बड़ा निर्णायक हिस्सा है। सरकार को नही भूलना चाहिए कि किसान बड़े-बड़े दलों और नेताओं को राजनैतिक धूल चटाने की क़ुव्वत रखते हैं। बिना हिचकिचाहट के केंद्र सरकार को किसानों के साथ आत्मीय और सौहार्दपूर्ण वातावरण पैदाकर उनकी वाज़िब दो मांगों के संबंध में तानाशाही और तनावपूर्ण रवैया अपनाने से बचना चाहिए। यह लोकतांत्रिक देश है। इतिहास गवाह है कि तानाशाही तो दूर, इस देश की जनता ने सरकार की अतिवादी नीतियों पर असहमति का ठप्पा लगाकर समय-समय पर सरकारें तक बदल डाली हैं।
       

    मेरे विचार से कोरोना संकट के संक्रमण की भयावहता को दृष्टिगत रखते हुए सरकार अपनी अनाबश्यक हठधर्मिता और अदृश्य अपमान जैसी ग्रंथि से मुक्त होकर एक आदर्श लोकतांत्रिक सरकार जैसा आचरण/ संस्कृति और दरियादिली का उदाहरण पेशकर "तीनों बिलों की वापसी और एमएसपी पर कानून" का आश्वासन/विश्वास देकर किसान आन्दोलन खत्म करवाकर सरकार, किसान और आम आदमी के व्यापक हितों को तरज़ीह दे।इससे सरकार के प्रति  लोगों के खोये हुये भरोसे और सम्मान की कुछ सीमा तक भरपाई या पुनर्स्थापित किया जा सकता है।

एन० एल० वर्मा


नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

लखीमपुर-खीरी.

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