साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, December 06, 2021

विनोद दुआ ...सत्ता की आंखों में आंखे डालकर सवाल पूछने वाला पत्रकार-नन्दलाल वर्मा (एशोसिएट प्रोफेसर)

विनम्र श्रद्धांजलि!
!एक युग का अंत....
नन्दलाल वर्मा 
         प्रख्यात टीवी एंकर विनोद दुआ का जाना टीवी पत्रकारिता के एक युग का अंत कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। टीवी पर हिंदी पत्रकारिता के ध्रुवतारा थे, वह! दरअसल, विनोद दुआ  का अपना एक विशिष्ट अंदाज़ था। प्रणय रॉय के साथ उनकी पत्रकारिता का जादू सिर चढ़कर बोला और उनके चुनावी जीवंत विश्लेषण ने उनको शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचाने का काम किया। अपनी बेबाक,दुस्साहसी और बेलागपन पत्रकारिता के लिए वह हमेशा याद किये जाते रहेंगे। मंत्रियों के साथ अपने कार्यक्रमों में जिस अंदाज में वह सवाल या टिप्पणियां करते थे, तब उनकी कल्पना करना तक संभव नही था और आज की पत्रकारिता में तो वे असंभव सी हो चुकी हैं। सरकार नियंत्रित दूरदर्शन पर सरकार या मंत्री के कामकाज का मूल्यांकन कर दस में तीन अंक देने की बात कह देना, उनके बड़े साहस और निर्भीकता का परिचायक है।
       पत्रकारिता जगत में आये उतार- चढ़ाव के बावजूद विनोद दुआ ने अपना विशिष्ट अंदाज़ कभी नही छोड़ा। आज के दौर में जब पत्रकारिता का एक बहुत बड़ा हिस्सा सत्ता- सरकार की चाटुकारिता और विज्ञापन करती नज़र आती है। दुआ जी सत्ता -सरकार से टकराने में कभी पीछे नही हटे। उन्हें कभी भी सत्ता का डर नही रहा। कोरोना काल मे केंद्र सरकार के फैसलों और नीतियों-कामकाजों की आलोचना करते हुए उन्होंने इसे सरकार का निकम्मापन करार देते हुए टिप्पणी की थी जिससे बौखलाई सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने उनके ऊपर राजद्रोह का आरोप लगाकर फंसाने की कोशिश की, किंतु उन्होंने  साहस दिखाते हुए अपनी लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट से जीत हासिल की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहते हुए कि:"सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नही है" और सुप्रीम कोर्ट ने 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार के केस में दिये गए अपने ही आदेश: " सरकार की आलोचना के लिए एक नागरिक के खिलाफ राजद्रोह के आरोप नही लगाए जा सकते हैं, क्योंकि यह भाषण और अभिव्यक्ति  की संवैधानिक आज़ादी के अनुरूप नहीं है। राजद्रोह का केस तभी बनेगा जब कोई भी वक्तव्य ऐसा हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या हिंसा बढ़ाने का तत्व मौजूद हो " का हवाला देते हुए सरकार द्वारा दायर मुकदमें को खारिज़ कर दिया था। विनोद दुआ का यह कदम सम्पूर्ण मीडिया जगत के लिए भी एक बड़ी राहत देता हुआ दिखाई दिया। वह देश-दुनिया की सभी प्रकार की हलचलों के प्रति बहुत सजग रहते थे। समाचारों की बारीक समझ उनके सवालों में नुकीलापन और तेवरों में साफ दिखाई पड़ता था। उन्हें प्रकाशित खबरों की समीक्षा करने में बेमिसाल महारथ हासिल थी।
      बहरहाल, विनोद दुआ का ऐसे समय जाना पत्रकारिता जगत के लिए ही नही, अपितु देश के संविधान और लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ी क्षति के रूप में देखी और आंकी जा रही है। उनकी उपस्थिति मात्र ही बहुत से पत्रकारों के लिए प्रेरणा बनी हुई थी। उन युवा पत्रकारों को सत्ता से लड़ने और टकराने की हिम्मत देती थी जो भारत के लोकतंत्र और उसकी साझी संस्कृति- विरासत को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।
      आज की पीढ़ी के कितने लोग विनोद दुआ को जानते हैं और किस रूप में पहचानते हैं? व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान और ट्रॉलिंग के इस दौर में किसी के अपरिमित व्यक्तित्व और योगदान को पल भर में नष्ट-भ्रष्ट कर लांछित और कलंकित करने की प्रवृत्ति  जोरों पर है,लेकिन जब कभी विनोद दुआ के व्यापक व्यक्तित्व का संपूर्णता में मूल्यांकन होगा तो उन्हें एक साहसी पत्रकार योद्धा के रूप में जरूर देखा जाएगा। आने वाली नस्लें तब जान पाएंगी कि विनोद दुआ नाम का भी कोई टीवी एंकर- पत्रकार हुआ था। दुआ जी को मेरा शत-शत नमन!
लखीमपुर -खीरी यू०पी०

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