साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, May 26, 2023

सत्ता खोने के डर से वर्तमान लोकसभा अपने निर्धारित कार्यकाल से पहले भंग होने की आशंका-नन्दलाल वर्मा (सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)

राजनैतिक मुद्दा

नंदलाल वर्मा (सेवानिवृत्त ए0 प्रो0)
युवराज दत्त महाविद्यालय, खीरी 
बड़ी-बड़ी चुनावी प्रलोभनकारी लोक कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा के बाद वर्तमान लोकसभा अपने निर्धारित कार्यकाल से पहले भंग हो सकती है,ऐसी सम्भावना राजनीतिक पंडितों द्वारा व्यक्त की जा रही है। पेट्रोल-डीजल-घरेलू गैस के दामों में भारी कटौती के साथ किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी,सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना की बहाली और कोरोना महामारी मे स्थगित की गई महंगाई भत्ते (डी ए) की तीन किश्तों की अवशेष राशि के भुगतान की घोषणा कर भोली भाली जनता को एक बार फिर चुनावी फंदे में फंसाने का षडयंत्र रचने की चर्चा जोर पकड़ रही है। मुफ़्त राशन, शौचालय,किसान सम्मान निधि और उज्ज्वला योजनाओं की तरह अन्य नई प्रलोभनकारी योजनाओं की अनवरत खोज और उनकी घोषणा पर बीजेपी और आरएसएस में गहन मंथन चल रहा है जिनके बल पर 2024 में राजनीतिक किले को एक बार फिर फतह किया जा सके। नगर निकायों में आशानुकूल सफलता न मिलने से घबराई बीजेपी-आरएसएस ने एक राजनीतिक रणनीति के तहत अपने पांव गांवों में पसारना शुरू कर दिये हैं। शहरी क्षेत्रों अर्थात नगरों को बीजेपी-आरएसएस का गढ़ माना जाता रहा है और वहीं हाल में सम्पन्न हुए नगर निकाय चुनावों में वह बुरी तरह बिखरी और बंटी हुई नज़र आयी जिसकी वजह से बुरी तरह परास्त होती नज़र आई है जिसकी वज़ह से बीजेपी-आरएसएस और उनके आनुषंगिक संगठन मिशन 2024 को लेकर बुरी तरह चिंतित और सशंकित नज़र आ रहे हैं। राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिल रही लगातार हार,पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा पुलवामा कांड पर मोदी की सारी कलाकारी का धुंआ उड़ाना, किसान आंदोलन खत्म करने पर किसान संगठनों से किये वादों पर केंद्र सरकार की वादाखिलाफी, कांग्रेस की राजनीति और सत्ता के प्रति जनता का पुनर्स्थापित होता विश्वास और विपक्षी एकता की संभावना से कई आगामी राज्य विधानसभा चुनावों के संभावित नतीजों से बीजेपी-आरएसएस पूरी तरह सशंकित और भयभीत है। इसलिए आगामी कुछ राज्य विधानसभा चुनावों के साथ या अक्टूबर/नवंबर में लोकसभा चुनाव कराने पर बीजेपी-आरएसएस में चल रहे मंथन से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी शासित राज्यों की सरकार और संगठनों में विशेषकर यूपी में फेरबदल किये जाने की सूचनाएं आ रही हैं। लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत आरएसएस की गोपनीय रिपोर्ट/सिफारिश पर यूपी में बीजेपी संगठन और सरकार में ओबीसी और एससी वर्ग को क्षेत्रीय आधार पर ज्यादा तरजीह दी जा सकती है। विपक्षी एकता से घबराई मोदी सरकार विपक्ष के बड़े और प्रभावशाली नेताओं पर लोकसभा चुनाव से पहले सरकारी जांच एजेंसियों के माध्यम से नकेल कसने की कोई कोर कसर न छोड़ने की भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वर्तमान राजनीतिक सत्ता प्रमुख मोदी के तानाशाही और अहंकारी चरित्र का परिचय उनके हर निर्णय में नज़र आ रहा है। चुनी हुई लोकतांत्रिक दिल्ली सरकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ लाया गया अध्यादेश और नई संसद भवन-सेंट्रल विस्टा के शिलान्यास से लेकर उद्धघाटन तक संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति को नज़रअंदाज़ कर आमंत्रित तक न करना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तानाशाही और अहंकारी रवैये का इससे बेहतर नमूना और क्या हो सकता है? संविधान के अनुच्छेद 79 में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि संसद से आशय: राष्ट्रपति और दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा) होता है और उसी संसद के शिलान्यास से लेकर उद्धघाटन में संसद के ही एक अभिन्न अंग राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या पीएम मोदी द्वारा उनको आमन्त्रित न करना लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद की घोर अवमानना है। संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के अपमान को बहुजन समाज विशेषकर दलित समाज आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनावों में वोट करते समय याद रखेगा। सेंट्रल विस्टा के शिलान्यास से लेकर उद्धघाटन तक दलित राष्ट्रपति की लगातार उपेक्षा से अब उसके उद्धघाटन समारोह पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में जंग जारी है और देश के प्रथम संवैधानिक नागरिक राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में विपक्षी दलों के प्रमुखों द्वारा उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की लगातार घोषणाएं की जा रही हैं।

राष्ट्रपति का वर्णव्यवस्था के सबसे नीचे पायदान पर स्थित एक जाति/वर्ण विशेष से ताल्लुक होने की वजह से मोदी द्वारा लोकतंत्र के सबसे बड़े और पवित्र मंदिर नए संसद भवन के शिलान्यास और उद्धघाटन जैसे समारोहों से दूरी बनाए रखने की मंशा के पीछे हिन्दू धार्मिक मंदिरों की तरह संसद के भी अपवित्र और अपशकुन होने की मानसिकता से इनकार नहीं किया जा सकता है। हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना और वकालत करने वाले सावरकर की जयंती पर उद्धघाटन और शिलान्यास - उद्धघाटन समारोहों में दोनों दलित राष्ट्रपतियों की सहभागिता न कराना आरएसएस नियंत्रित और संचालित मोदी नेतृत्व बीजेपी सरकार की वर्ण व्यवस्था के परिमार्जित रूप की स्थापना की मंशा की ओर संकेत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 

जंतर-मंतर पर धरना दे रहे अंतराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध पहलवानों और उनका साथ दे रहे सामाजिक-राजनीतिक और किसान संगठनों के लोगों ने नई संसद भवन के उद्धघाटन के मौके पर संसद भवन की ओर कूच करने की घोषणा कर दी है जिससे इस जनांदोलन की एक नई दिशा और दशा तय हो सकती है। आत्ममुग्धता में डूबे मोदी की तानाशाही और वर्णवादी मानसिकता वाली सरकार संविधान और लोकतंत्र की सारी हदें पार करती हुई नज़र आ रही है। अंग्रेजों से माफी मांगने वाले संविधान विरोधी सावरकर की जन्म तिथि 28 मई को होने वाले नए संसद भवन के उद्धघाटन समारोह में यदि महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू को शामिल नहीं किया जाता है तो भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह घटना काले अक्षरों में " राष्ट्रीय शर्म " के दिवस के रूप में दर्ज हो जाएगी। छपास और दिखास रोग (फोटोफोबिया) से भयंकर रूप से पीड़ित पीएम नरेंद्र मोदी का तानाशाही चरित्र और रवैया पूरी तरह खुलकर सामने आ चुका है और इसी चरित्र के चलते संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल्यों और मर्यादाओं की लगातार अवहेलना की राजनीतिक कीमत मोदी और केंद्र सरकार को आगामी विधान सभा और लोकसभा चुनावों में चुकानी पड़ सकती हैं। 

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