साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, September 24, 2016

एक सैनिक (कविता)

एक सैनिक 

बागी सैनिक से कुछ यों बोला

हम दोनों छोड़ चले

अपने देश में रोने-धोने को 

बूढी-माता बाप हमारे,

बाट जोहती प्रियतमा अपनी 

आँखों में ले आँसू को.

अब्बा-पापा कहने को,

तरसेंगे तेरे-मेरे, अपने लाल हमारे

अंतर बस इतना होगा-

तेरा पाकिस्तान, तो मेरा हिंदुस्तान होगा.

                                                                     (मेरी कविता के कुछ अंश) -अरुण

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.