साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, December 13, 2021

आंदोलन खत्म-संघर्ष और संवैधानिक मूल्यों की जीत-नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

आम-जन की बात में आज की चर्चा, किसान बनाम सरकार-चुनावी हिसाब-किताब अभी बाकी है
N.L.Verma Asst Pro.

            केंद्र सरकार द्वारा कथित किसानों के हित में पारित तीन कृषि कानूनों के विरोध से उपजा और एक साल से अधिक चला इतिहास में दर्ज हो चुका किसान आंदोलन सरकार से बनी सहमति के बाद सत्ता को आंदोलन का पाठ पढ़ाने और घुटनों के बल लाकर अब किसानों की घर वापसी शुरू हो गयी है। एक साल बाद मोदी को ये कानून माफी के साथ वापस लेने पड़े। मेरे विचार से यह एक विश्व रिकॉर्ड हो सकता है कि किसी सरकार द्वारा पारित कानून एक दिन भी लागू नही हो पाया और सरकार को क़ानून रद्द करने पड़े हों। साहित्य की भाषा मे यदि कहा जाए तो यह आंदोलन या लड़ाई दीये और तूफान के बीच थी जिसमे दीये की जीत हुई है। दीयों द्वारा तूफान को पराजित करने जैसी स्थिति दिखाई दी है। जो कृषि क़ानून किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के नाम पर थोपने के प्रयास किये जा रहे थे और उनको न हटाने की कसमें खायी जा रही थीं। जागरूक किसानों और उनके संगठनों ने सामूहिक शक्ति और सूझ से इन कानूनों की गंभीरता और हक़ीक़त समझकर घर-परिवार छोड़कर आन्दोलन करते हुये जब सड़कों पर विरोध कर रहे थे तो तो सरकार के प्रतिनिधियों ने उन्हें मवाली,विद्रोही,राजनीतिक विपक्षियों की साजिश, आतंकवादी, राष्ट्र द्रोही,आढ़तियों के दलाल और न जाने क्या- क्या कहकर किसानों और उनके नेताओं के चरित्र पर कीचड़ उछालने के अनगिनत राजनीतिक प्रयास और प्रयोग किये गए। फिर भी देश का अन्नदाता सड़कों पर डटा रहा और अंततः तानाशाही का रवैया अपनाने वाली सरकार को झुककर माफी मांगने के लिए विवश होना पड़ा। क़ानून रद्द होने की खबर देश के किसानों के लिए एक बेहद रोमांचकारी और राहतभरी हो सकती है। मोदी सरकार द्वारा एक साल बाद तीनों क़ानूनों को आखिर,अचानक रद्द क्यों करना पड़ा ? क्या केंद्र सरकार को पांच राज्यों की चुनावी आहट और संभावित खतरे को भांपते हुए डैमेज कंट्रोल करने की रणनीति के तहत यह कदम उठाना पड़ा है? राजनीतिक गलियारों और विश्लेषकों में चर्चा है कि बीजेपी नही चाहती थी कि किसान आंदोलन के चलते पांच राज्यों के विधान  सभाओं के चुनाव हों। बीजेपी रणनीतिकारों का मानना था कि उस स्थिति में अधिकतम नुकसान होने की संभावना थी। कानूनों की वापसी से खत्म हुए आंदोलन से अब बीजेपी उस संभावित हानि को कम करने या डैमेज कंट्रोल करने की स्थिति में आती महसूस कर रही है।
 

          
            किसानों के इस आंदोलन से जो कुछ हासिल हुआ है, वह सब किसानों को ही हासिल हुआ और बीजेपी को कुछ भी हासिल नही हुआ है, बल्कि यह कह सकते हैं कि बीजेपी ने किसान आंदोलन पर अपनाए गए अपने तानाशाही रवैये से वश खोया ही खोया है। किसानों के इस आंदोलन की शक्ति के सामने झुकती नजर आयी सरकार के चाल- चलन से संवैधानिक व्यवस्थाओं की स्थितियां और अधिक जीवंत व शक्तिशाली उभरती नज़र आई हैं और लोकतांत्रिक तानाशाही सरकारों को एक बड़ी नसीहत मिली है कि अब देश में सामान्य जनमानस को प्रभावित करने वाले निर्णयों से पहले जनता की राय भी लेना जरूरी है। लोकतंत्र में जनता की असहमति और विरोध-प्रदर्शनों की अहमियत का दुःखद एहसास भी सरकार को हो गया होगा! इस प्रकार के आंदोलनों से आम आदमी और सरकारों को व्यापक सीख लेनी चाहिए। इस किसान आंदोलन की लम्बी अवधि और सफलता का आंकलन और विश्लेषण किया जाए तो मेरे अनुसार इसको शुरू से लेकर अंत तक गैरराजनीतिक बनाये रखा जाना सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। किसी भी पक्ष या विपक्ष को मंच साझा करने नही दिया गया,क्योकि पूर्व में किये गए आंदोलनों में विपक्ष के नेता मंच पर किसानों की हमदर्दी लूटकर राजनीतिक फायदा उठा लिया करते थे और किसान ठगा सा रह जाता था। विपक्षी राजनीतिक फायदा उठाकर सत्ता का लाभ उठाते रहे और किसानों के मुद्दे भूलाते चले जाने की संस्कृति के अभ्यस्त होते गए और किसानों के दर्द कम करने के बजाय उनके दर्द बढ़ाते चले गए। सरकार को किसानों के प्रति यदि कोई सम्मान या सहानुभूति है तो सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को मद्देनजर अविलंब एक स्पष्ट किसान नीति बनाकर उसकी घोषणा करे। भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत के किसानों को " किसान सम्मान राशि " के बजाय उसके खून-पसीने से कमाई गयी फसलों की सम्मानजनक राशि (मूल्य) कानूनी गारंटी के साथ मिलने की व्यवस्था सुनिश्चित हो। एक साल से अधिक चले इस शांतिपूर्ण किसान आंदोलन में शामिल किसान और उनके संगठनों की सामूहिक रूप से बेहद सूझबूझ भरे नेतृत्व की जितनी प्रशंसा की जाए,वह कम ही होगी!

            सर्दी,गर्मी,बरसात और फिर सर्दी, सरकार द्वारा खड़ी की गयी तरह-तरह बाधाओं और दी गयी संज्ञाओं की मार झेलते हुए एक साल से अधिक अनवरत संशय और आशंकाओं के बीच ढीठ और जिद्दी सरकार के खिलाफ डटकर मुकाबला करना किसी युद्ध से कम नही आंका जा सकता है। निःसंदेह, आज देश का किसान विजयी भाव से आह्लादित होगा और होना भी चाहिए! आज देश के किसानों ने यह अहसास करा दिया है कि जनता द्वारा चुनी गई लोकतांत्रिक सरकारों का अराजकता,निरंकुशता और तानाशाही भरा रवैया भविष्य में बर्दाश्त नही किया जाएगा और किसानों से पंगा न लेने की परोक्ष रूप से धमकी भी नज़र आती दिखी। इस आंदोलन और तानाशाह सरकार से एक बड़ा संदेश निकलकर बाहर आया कि भले ही देश की अर्थव्यवस्था के हिसाब से कृषि का योगदान छोटा हो, किंतु देश की राजनीति में किसानों और उनके सरोकारों को नज़रअंदाज़ या दरकिनार करना किसी भी सरकार के लिए अब आसान नही होगा और यह भी आभास करा दिया कि सत्ता या सरकार की उम्र निश्चित होती है किंतु आंदोलनों की कोई उम्र नही होती है। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह किसान आंदोलन उसी इतिहास के संदर्भ मे देखा जाएगा जैसा किसान आंदोलन सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ हुआ था।
         

यूपी के लखीमपुर खीरी के तिकुनियां कांड की आग की राख अभी ठंडी नही हुई है। बीजेपी के चुनावी रथ को इस सुलगती आग की राख  की झुलस से भी बचना मुश्किल होगा! लखीमपुर खीरी में बजाज ग्रुप की चीनी मिलों पर किसानों के बकाये गन्ना भुगतान की समस्या और उसके खिलाफ संघर्षरत क्षेत्रीय किसानों की आवाज भी आग में घी डालने का काम करती नज़र आ रही है।

         अब देखना यह होगा कि बीजेपी देश-विदेश से काला धन निकालने के लिए की गई नोटबन्दी, कोरोना काल मे की गई अचानक लॉक डाउन और उससे उपजी आम जनता बेवशी ,कृषि कानूनों,कॉरपोरेट घरानों के लिए बेहताशा निजीकरण व्यवस्था  और सरकारी नौकरियों में ओबीसी और एससी-एसटी के संवैधानिक आरक्षण की हकमारी, कोरोना काल में स्वास्थ्य-चिकित्सा की अव्यवस्थाओं से हुई बेहिसाब मौतों-बेरोजगारी,महंगाई और किसानों की फसल की एमएसपी पर हुई खरीदारी और उसके भुगतान की दुर्गति के जरिये अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन और विश्वास की कितनी भरपाई करने में सफल होती है? यह भी आंकलन करने का विषय होगा कि राम मंदिर,कश्मीर का अनुच्छेद 370 और 35ए,प्रलोभनकारी मुफ्त राशन-किसान सम्मान निधि,सबका विकास-सबका साथ और सबका विश्वास, हिन्दू राष्ट्रवादी-धार्मिक राजनीति,स्वच्छता मिशन,महिला सशक्तिकरण,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के मुद्दे जनता के ऊपर कितने समय और सीमा तक प्रभावकारी साबित होते हैं ?
पता-लखीमपुर-खीरी...9415461224

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