साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, December 31, 2021

तेरा क्या होगा कालीचरण-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य)
सुरेश सौरभ
   मुझे कायदे से याद है कि बचपन में, मेरे गाँव में, जब भी किसी के यहाँ शादी-ब्याह, मुन्डन या यहाँ दवात-ए-वलीमा होता था, तब इसकी खुशी में लप्पो हरामी की नौटंकी जरूर बंधाई जाती थी।हम सब लौड़ो-लपाड़ो को बड़ा मजा आता था। जब पांच-पांच रूपये देकर हमारे बाप-दादा मनचाहा गाना नचनियों से सुनते थे और नचनिये भी सब के कलमबंद ईनाम पर शुक्रिया ठुमका लगा-लगा कर अदा कर दिया करते थे।

    मेरे युवा अवस्था आते-आते नौटंकी का चलन धीरे-धीरे कम होता चला गया और धीरे-धीरे टीवी हर घर में महामारी की तरह फैलती चली गई और टीवी के बाद फिर यह स्मार्ट फोन की माया का साया घर-घर में ‘फेंकू फोटोजीवी’ की तरह फैलता चला गया। कहते हैं, बचपन का प्यार, बचपन में टीचर से खायी मार, और बचपन के शौक जवानी से लेकर बुढापे तक चर्राते रहते हंै। जब भी मौका मिल जाये तो उसे पूरा करने के लिए मन कुलबुलाने ही लगता है।

    स्मार्ट फोन की दुनिया में टहलते हुए मुझे आभासी दुनिया में लप्पो हरामी के बेटे रम्मन हरामी की नौटंकी जब नजर आ गई तो मेरी बांछंे खिल र्गइं।मुँह से लार टपकने लगी। तभी मेरा हाथ मारे जोश के अपनी जेब पर चला गया। दस रूपैया नचनिये पे लुटाना चाह रहा था। उसका फ्लाइंग किस दिल को घायल कर गया था। अपने दिये जाने वाले कलमबंद ईनाम से शुक्रिया भी चाह रहा था। तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली, अरे! ये तो डिजिटल नौटंकी है। यहाँ तो बस लाइक कमेन्ट और सब्सक्राइब से ही ईनाम लुटाया जा सकता है और इस पातेे ही डिजिटल प्लेटफार्म के सारे नचैया फ्लाइंग किस फेंक कर नाजो अदा से शुक्रिया अदा करतंे हैं अथवा करतीं हैं। खैर अब तो डिजिटल प्लेटफार्म पर नौटंकी देखना रोज मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था, पर एक दिन मैंने कालीचरण नाम के एक नौटंकी बाज की नौटंकी देखी तो मुझे मजा आने के बजाय बहुत गुस्सा आ गया। दिल में तूफान उठ गया। मन कर रहा था कि जेब से दस रूपैया नहीं बल्कि पाँव से जूता निकालूँ। पर वह  आभासी दुनिया थी, सामने अगर वह होता तो मेरे साथ मेरे जैसे तमाम लोग उसे तमाम जूता दान कर देते। युगपुरूष गाँधी को गाली देने वाला यह कथित नौटंकीबाज उस फेंकू पार्टी से पोषित परजीवी है, जो अपने पैरों में उसी पार्टी के घुघरूँ बांध कर संसद जाने के ऐसे सपने देख रहा है,जैसे बिल्ली सपने में छिछड़े देखती है। अब मुझे किसी भी नौटंकीबाज की नौटंकी अच्छी नहीं लगती जब से एक नौटंकीबाज ने गांधी को अपना घिनौना मुँह फाड़ कर गाली दी है।

मो-निर्मल नगर
लखीमपुर-खीरी
मो-7376236066

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.