लघुकथा
हिंदी मिलाप के दैनिक अंक में हैदराबाद से प्रकाशित (१४ अक्टूबर २०२१ ), इदौर समाचार पत्र में २६-१२-२०२१
एक महिना बाद बहु जब दूसरी बार
ससुराल आई तो दो-तीन दिन तक सब ठीक रहा किन्तु अब सास को उसका व्यवहार कुछ
बदला-बदला सा लगा। अब बहू देर से सोकर उठती है, घर के काम-काज भी मन से नहीं
करती, बात-बात पर तुनक जाती है। सास आज सुबह इसी बात लेकर बैठ
गई, बहु आंखें मलते हुए अपने कमरे से बाहर आई। तभी सास ने तुनक
कर बोला,"बहू, यह कोई समय है उठने का....चाय-पानी का बेला हुआ सुरुज देवता
पेड़ों कि झुरमुट से ऊपर निकल आये हैं.....।"
बहू उल्टे पैर बिना कुछ बोले अपने कमरे में गई और लौटते हुए एक चिट लेकर आई सास के हाथों में रखकर बोली, "देख लीजिए, इसमें वह सब कुछ है जो आपने दहेज़ में मांगा था...... कामकाजी और संस्कारी बहू का इसमें जिक्र तक नहीं है!"