साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, December 23, 2021

संस्कारी बहू-अखिलेश कुमार अरुण

 लघुकथा 

हिंदी मिलाप के दैनिक अंक में हैदराबाद से प्रकाशित (१४ अक्टूबर २०२१ ), इदौर समाचार पत्र में २६-१२-२०२१

    र में तीन-चार दिन से चारों तरफ खुशियां ही खुशियां थी। चहल-पहल था, सारे नाते रिश्तेदार आए हुए थे आज शादी का दूसरा दिन है। बहू को आए हुए 2 दिन हो गए हैं। उसकी खूबसूरती और नैनक्स देखते ही बनता है। साक्षात सुंदरता की देवी लगती है। महल्ले की महिलाओं के बीच बैठी उसकी सास तारीफों के पुल बांधते जा रही थी, "हमारी बहू, खूबसूरत ही नहीं गुणवती भी है, बहिन हमने जैसा चाहा था भगवान ने उससे बढ़कर दिया है।"

    एक महिना बाद बहु जब दूसरी बार ससुराल आई तो दो-तीन दिन तक सब ठीक रहा किन्तु अब सास को उसका व्यवहार कुछ बदला-बदला सा लगा। अब बहू देर से सोकर उठती है, घर के काम-काज भी मन से नहीं करती, बात-बात पर तुनक जाती है। सास आज सुबह इसी बात लेकर बैठ गई, बहु आंखें मलते हुए अपने कमरे से बाहर आई। तभी सास ने तुनक कर बोला,"बहू, यह कोई समय है उठने का....चाय-पानी का बेला हुआ सुरुज देवता पेड़ों कि झुरमुट से ऊपर निकल आये हैं.....।"

    बहू उल्टे पैर बिना कुछ बोले अपने कमरे में गई और लौटते हुए एक चिट लेकर आई सास के हाथों में रखकर बोली, "देख लीजिए, इसमें वह सब कुछ है जो आपने दहेज़ में मांगा था...... कामकाजी और संस्कारी बहू का इसमें जिक्र तक नहीं है!"


पता-ग्राम हजरतपुर पोस्ट-मगदापुर
जिला लखीमपुर-खीरी २६२८०४
8127698147

 

 

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