साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, December 17, 2021

अशोक दास और दलित-दस्तक (मासिक-पत्रिका) बनाम दरकिनार किये गए लोग-अखिलेश कुमार अरुण

जन्मदिन विशेष

अशोक दास (संपादक)
दलित-दस्तक, दास पब्लिकेशन
न्यूज-दलित दस्तक (यूट्यूब)
       आज अशोक दास का जन्मदिन है। उन्हें बहुत-बहुत हार्दिक बधाइयाँ और असीम मंगलकामनाएँ बिहार के एक छोटे से गाँव से दिल्ली पहुँचकर IIMC जैसी महत्वपूर्ण संस्था से अशोक ने पत्रकारिता की पढ़ाई की। अशोक निजी करियर के लिए मीडिया के चकाचौंध में नहीं फँसे, बल्कि वंचित जमात के लिए अपना मीडिया शुरू करने का साहस दिखाया। यह आसान काम नहीं था। लेकिन अशोक के पास वैचारिक चेतना थी और 'पे बैक टू सोसाइटी' का जज़्बा भी। पहले 'दलित मत' की ऑनलाइन शुरुआत की, फिर 'दलित दस्तक' पत्रिका छापना शुरू किया, जो आज भी नियमित रूप से निकल रही है और बहुजन वैचारिकी की लोकप्रिय पत्रिका बन चुकी है। फिर 'नेशनल दस्तक' यू-ट्यूब चैनल शुरू करके बहुजन मीडिया के क्षेत्र में एक बड़ी कमी को पूरा किया। आज अशोक 'दलित दस्तक' का अपना यू-ट्यूब चैनल बेहतर तरीके से संचालित कर रहे हैं। तमाम सारी विपरीत आर्थिक परिस्थितियों से जूझते-लड़ते हुए अशोक बिना रुके, बिना थके अपने रास्ते में डटे हुए हैं। असहमति की हिम्मत भी रखते हैं और सच कहने का माद्दा भी। 'दास पब्लिकेशन' की शुरुआत करके अशोक ने बहुजन समाज में पुस्तक-कल्चर को बढ़ाने का संकल्प लिया है। हमारी शुभकामनाएँ हैं कि अशोक दास ऐसे ही वैचारिकी प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ अंबेडकरी कारवां को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहें.
-डॉ.सुनील कुमार 'सुमन'
(असिस्टेंट प्रोफेसर)
वर्धा विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र)
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        आज 17 दिसम्बर है सम्पादक महोदय आपके जन्मदिन पर आपको बहुत-बहुत मंगलकामनाएं, आप दीर्घायु और स्वस्थ रहें तथा समाज की आवाज को मुखर करते रहें। अशोकदास जी (संपादक-दलित दस्तक) एक नाम है आज के दौर में दरकिनार किए लोगों की आवाज का, आपके अदम्य साहस और दृढ़ आत्मविश्वास की हम खुले दिल से जितनी प्रशंसा करें वह कम है।

        विषम से विषम परिस्थितियों में आप डिगे नहीं दलित पत्रकारिता को आपने एक नया आयाम दिया है। जन की बात को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रिन्ट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर बिना एक दिन क्या एक पल नागा किए सक्रीय रहते हैं और देश-दुनिया की उन खबरों को लोगों तक पहुंचाते हैं जिनको आज कि पत्तलकार मिडिया सिरे से ख़ारिज कर देती है, ऐसा कोई दिन हमें याद नहीं कि जब आपका व्हाट्सएप पर मैसेज न मिला हो, लेखन आदि से सम्बन्धित गाहे-बगाहे चर्चा भी हो जाती है आपका लेखकीय मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है किंतु दुःख इस बात का है कि हम अभी समय नहीं दे पा रहे हैं.. एकदिवसीय परीक्षाओं ने जीना हराम कर रखा है भविष्य अधर में लटका हुआ है इसलिए हम लेखन पर भी ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।


        अपने समाज के सक्षम लोगों से अपील है कि आप जैसे जुझारू और कर्मठ अपने कर्म के प्रति कर्तव्यनिष्ठ जो वंचित समाज की आवाज बनकर उनकी समस्याओं को जगजाहिर कर रहे हैं उनका सहयोग तन-मन-धन से करें क्योंकि उत्कृष्ट साहित्य ही समाज का गौरवशाली इतिहास होता है और जिस कौम इतिहास नहीं होता उस समाज का आधार नहीं होता। दलित पत्रकारिता के आधार स्तंभों में गिनती की जाए तो आप #अशोकदास {दलित दस्तक (मासिक-पत्रिका), यूट्यूब चैनल (न्यूज चैनल) } दिल्ली से तो डी०के०भास्कर (डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मासिक पत्रिका) मथुरा से प्रकाशित कर रहे हैं कोरोना काल में जहां कादम्बिनी जैसी पत्रिकाएं बन्द हो गई वहां यह दोनों पत्रिकाएं सम्पादित हो रही हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिस समाज के लिए यह पत्रिकाएं छपती हैं वह पत्र-पत्रिका पढ़ने से दूर रहता है पत्रिकाओं के आर्थिक सहयोग की बात ही अलग है। हमारे अभी कई मित्र सरकारी नौकरी पेशे में आए हैं किंतु साहित्य के नाम 50/60 रुपए खर्चने को कह दीजिए तो उनका साल का बजट गड़बड़ा जाता है पर एक बैठकी में हजार-पांच सौ का मदिरा-हवन हो जाएगा, गुटखा चबन सम्भव है। पत्र-पत्रिका नहीं पढ़ना है मत पढ़ो खरीद लो महिने की महिने और नाते-रिश्तेदारों, गली-मोहल्लों में बांट दो इतना तो किया जा सकता है न, नौकरी में आने के बाद वैसे भी कहां पढ़ाई-लिखाई होती है और गर्व से लोग कहते भी हैं कि अब पढ़ने में मन नहीं लगता का करेंगे पत्र-पत्रिका और उसकी सदस्यता और तो और पत्रिका के लिए विज्ञापन भी।

        ऐसी परिस्थिति में किसी पत्रिका का सम्पादन करना अपने आप में एक बहुत बड़ा और जिम्मेदारी का काम है मने केकरा पर करी सिंगार पुरुष मोर आन्हर!!! आपको पुनः जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई और मंगलकामनाएं।
जय भीम नमो बुद्धाय
अखिलेश कुमार अरुण
लखीमपुर-खीरी उप्र।


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