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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Sunday, December 19, 2021

तिकुनियां हत्याकांड: एक राजनीतिक विश्लेषण और संभावनाएं-नन्द लाल वर्मा (एशोसिएट प्रोफेसर)

राजनीतिक विश्लेषण

तिकुनिया कांड लखीमपुर खीरी

एन.एल.वर्मा (एशो.प्रोफेसर)
             सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में लखीमपुर-खीरी के तिकुनियां हत्याकांड की जांच करने वाली एसआइटी के खुलासे और स्थानीय मीडिया के साथ सार्वजनिक रूप से बदसलूकी और अमर्यादित भाषा-शैली अपनाने के बावजूद केंद्र सरकार आरोपी के पिता गृह राज्य मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाने में क्यों देरी कर या डर रही है? ऐसा तो नही है, कि देश मे दिल्ली के बॉर्डरों पर एक साल से अधिक चले किसान आंदोलन की तरह राजनीतिक विपक्षी पार्टियों, पत्रकारों और स्थानीय किसान संगठनों के दबाव में सरकार अपने मंत्री को बर्खास्त करने में राजनैतिक बेइज्जती या हार समझती हो और एक साल बाद अचानक मोदी जी नोटबन्दी और लॉक डाउन की तर्ज़ पर देश के किसानों के लिए गये अपने त्याग और तपस्या की कमी की दुहाई देते हुए सिख समाज के पावन पर्व पर तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा कर सिख समाज की धार्मिक भावनाओं से राजनैतिक फ़ायदा उठाने का उपक्रम करते दिखाई पड़ जाते हैं। कहीं, मोदी जी ऐसे ही अवसर की तलाश में तो नहीं हैं? और उपयुक्त अवसर मिलते ही मंत्री जी की बर्खास्तगी की घोषणा करते हुए अचानक एक दिन टीवी पर दिखाई पड़ जाएं!देश का सर्वश्रेष्ठ राजनैतिक मदारी किसी भी समय कोई भी चमत्कार कर सकता है। लेकिन एक बात समझ से परे है कि एक गृह राज्य मंत्री केंद्र सरकार के लिए किस मजबूरी का सबब बना हुआ है?

            एक साल से अधिक चले किसान आंदोलन से उपजे जनाक्रोश से बीजेपी को भारी राजनैतिक नुकसान होता दिख रहा था, लखीमपुर खीरी के तिकुनियां हत्याकांड में उनके गृह राज्य मंत्री के बेटे और उनकी संलिप्तता की खबरें गोदी मीडिया को छोड़कर सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनलों के माध्यम से पूरे देश में छायी रहीं और निष्पक्ष जांच के लिए मोदी सरकार से मांग की जाती रही कि निष्पक्ष जांच के लिए आरोपी के पिता गृह राज्य मंत्री को तत्काल पद से बर्खास्त किया जाए। लेकिन, सब तरफ से उठते भारी विरोध-आक्रोश,मांग और विधानसभा-लोकसभा में शोर-शराबे के बावजूद मोदी सरकार मंत्री को अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त नही कर पा रहे हैं। तिकुनियां कांड से हो रहे सियासी नुकसान का अनुमान और आँकलन करने में शीर्ष नेतृत्व विफल हो सकता है किंतु,स्थानीय बीजेपी संगठन और उसके आनुषंगिक संगठन तो इस कांड की असलियत,भयावहता और राजनैतिक संवेदनशीलता की गंभीरता को तो अच्छी तरह से समझते होंगे ? मंत्री जी की बर्खास्तगी के मुद्दे पर स्थानीय मीडिया भी जनपेक्षाओं पर उतना खरा उतर नही पा रहा था जितना आम आदमी को मीडिया से उम्मीद होती है। संयोग या दुर्योग से मंत्री जी का स्थानीय मीडिया कर्मियों के साथ किए गए अमर्यादित आचरण ने वह कमी भी पूरी कर दी। मंत्री के इस दुर्व्यवहार से आक्रोशित स्थानीय मीडिया भी मंत्री जी की बर्खास्तगी की मुहिम में अब सक्रिय होता दिख रहा है। मंत्री द्वारा मीडिया कर्मियों के साथ किया गया दुर्व्यवहार आम आदमी के लिए सोने में सुहागा सिद्ध हो सकता है। अब देखना यह है कि स्थानीय मीडिया के साथ हुई बदसलूकी राष्ट्रीय स्तर पर कितना जोर पकड़ पाती है? तिकुनियां कांड में मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी और एसआइटी की जांच आने के बाद मंत्री जी की बौखलाहट से उनकी अपनी राजनीतिक फजीहत होने के साथ साथ पार्टी की भी लगातार फ़ज़ीहत और छीछालेदर हो रही है। भारी राजनैतिक नुकसान की अनदेखी कर आख़िर, वे कौन से कारण और परिस्थितियां हैं जिनके अदृश्य भय से स्थानीय और शीर्ष राजनीतिक संगठन के जिम्मेदार मौन धारण किए हुए हैं? अपवाद स्वरूप, कुछेक को छोड़कर तिकुनियां हत्याकांड पर गृह राज्य मंत्री से बीजेपी के स्थानीय लोगों और संगठनों द्वारा बनाई गई दूरी एक राहत भरा राजनैतिक संदेश जरूर देता हुआ नजर आ रहा है। कहीं ,उन्हें यह डर तो नही सता रहा है कि तिकुनियां कांड की लपटों से वे भी राजनैतिक रूप से झुलस न जाएं? एक स्थानीय बीजेपी विधायक जी उस सभा मे मौजूद थे जिसमें अपने संबोधन के दौरान मंत्री जी ने विधायक, सांसद और मंत्री बनने से पूर्व अपनी..... पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए किसानों को सुधर जाने की धमकी दी थी और विरोध स्वरूप किसानों द्वारा काले झंडे दिखाने पर कार में सफर करते हुए किसानों को ठेंगा दिखाकर चिढ़ाते हुए नज़र आये थे। तिकुनियां कांड की  तपिश के डर से वही विधायक जी सार्वजनिक रूप से अब पूरी तरह मंत्री जी से दूरी बनाये हुए दिख रहे हैं। लखीमपुर खीरी स्थित बजाज चीनी मिलों पर किसानों का बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान कराने के लिए घड़ियाली आंसू बहाते हुए योगी जी से हाथ जोड़कर अनुरोध करने का सोशल मीडिया पर अपना वीडियो वायरल करते हुए मा. विधायक जी जनता की राजनैतिक संवेदनाओं को बटोरते हुए दिखाई दिए थे और उससे पूर्व देश मे एक साल से अधिक चले किसान आंदोलन की कठिनाइयों-दुश्वारियों को झेलने वाले किसानों और आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के परिवारों के प्रति संवेदनाएं प्रकट करने के लिए दो शब्द तक जुटाने में विधायक जी कहीं नही दिख रहे थे।

          तिकुनियां कांड में मंत्री जी  के बेटे की संलिप्तता की खबरें आते ही यदि मंत्री जी नैतिकता के आधार पर स्वयं इस्तीफा की पेशकश कर देते या शीर्ष नेतृत्व इस्तीफ़ा ले लेता तो उस स्थिति में एक जन संदेश तो यह जा ही सकता था कि अब कांड की जांच निष्पक्ष होने की संभावना है और मीडिया-विपक्षी दलों द्वारा इस्तीफे की मांग और जांच प्रभावित होने जैसे विषय अनाबश्यक तूल पकड़ने से बचा जा सकता था। इससे मंत्री जी की सामाजिक -राजनीतिक छबि धूमिल होने को कम किया जा सकता था और  राजनीति में आने से पूर्व उनकी सामाजिक और..... पृष्ठभूमि या इतिहास के अनाबश्यक खुलासे से भी बचा जा सकता था। समय रहते यदि ऐसा हो गया होता तो व्यक्तिगत और पार्टीगत राजनीतिक नुकसान को कम अबश्य किया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान और हस्तक्षेप की वजह से अब यह केस प्रशासनिक और न्यायिक स्तर पर अत्यंत गम्भीर और संवेदनशील बन चुका है,दोनों स्तर के जिम्मेदारों द्वारा फूंक फूंक कर कदम रखने के साथ पूरी सावधानी बरती जा रही है। किसी भी स्तर पर हुई चूक या लापरवाही के गम्भीर परिणाम आने की पूरी संभावनाएं भी हैं। मीडिया स्तर पर तो पहले ही यह हाई प्रोफाइल केस बन चुका था।

         तिकुनियां हत्याकांड से एक शालीन और सुशिक्षित स्थानीय विधायक की विरासत में मिली राजनीतिक फसल तात्कालिक रूप से जरूर नष्ट होती नज़र आ रही है ,लेकिन उसके लिए सबसे राहत भरी स्थिति यह हो सकती है कि विरासत में मिली राजनीतिक जमीन भविष्य में पूर्ण रूप से बंजर और वंचित होने से बच सकती है। तिकुनियां कांड निघासन समेत पूरे लखीमपुर खीरी की बीजेपी की राजनीतिक सफलता के लिए मट्ठा भी साबित हो सकता है।

          स्थानीय राजनैतिक गलियारों,बुद्धिजीवियों और आम जनता में यह चर्चा जोरों से सुनी जा सकती है कि मंत्री जी को हटाने में मोदी जी जितनी देर करेंगे, राजनैतिक नुकसान उतना ही अधिक होने की संभावना हैं। स्थानीय स्तर पर ऐसा भी अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में लखीमपुर-खीरी की आठ विधान सभा क्षेत्रों में बीजेपी की सबसे ज्यादा दुर्गति निघासन विधानसभा क्षेत्र में ही होने की स्थिति नज़र आ रही है। एक आंकड़ा यह भी बताया जा रहा है कि लखीमपुर,गोला-गोकर्णनाथ,मोहम्मदी, निघासन और पलिया विधान सभा क्षेत्रों में सिख समाज की संख्या राजनैतिक रूप से निर्णायक भूमिका अदा करने की स्थिति में है।किसान आंदोलन और तिकुनियां कांड से सिख समाज बीजेपी से खाफी ख़फ़ा है और आगामी विधानसभा चुनाव में सामूहिक रूप से एकजुट होने की भी प्रबल संभावना जताई जा रही है। बीजेपी के शीर्ष और स्थानीय नेतृत्व को ज़मीनी स्तर की हकीकत को नजरअंदाज करना आगामी विधानसभा चुनाव में भारी पड़ सकता है। राजनीतिक गलियारों में एक यह भी सुगबुगाहट है कि राज्य स्तर पर बीजेपी के सहयोगी दल भी अब बीजेपी से कन्नी काटने की बाट जोह रहे हैं।  बीजेपी के कई स्थानीय विधायकगण समाजवादी पार्टी के स्थानीय और शीर्ष नेतृत्व से पाला बदलने के लिए संपर्क साध चुके हैं और आज भी संपर्क साधने के लिये हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, ऐसी भी राजनैतिक गलियारों में चर्चा जोर शोर से है।

पता-लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश 262701

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