साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, July 12, 2024

बड़े चोरों के भरोसे-सुरेश सौरभ

  (व्यंग्य)   
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

बाढ़ के पानी से तमाम गांव लबालब भर चुके थे। बाढ़ सब बहा ले गयी, अब सिर्फ लोगों की आंखों में पानी ही पानी बचा था। रात का वक्त है-भूख से कुत्तों का रुदन राग बज रहा है। वहीं पास में बैठे कुछ चोर अपने-अपने दुःख का राग अलाप रहे हैं।
एक चोर बोला-सारा धंधा चौपट कर दिया इस पानी ने, सोचा था दिवाली आने वाली है कहीं लम्बा हाथ मारूंगा, पर अब तो भूखों मरने की नौबत आ गई। 
दूसरा चोर लम्बी आह भर कर बोला-लग रहा, आकाश से पानी नहीं मिसाइलें बरसीं हैं, हर तरफ पानी बारूद की तरह फैला हुआ नजर आ रहा है। 
उनके तीसरे मुखिया चोर ने चिंता व्यक्त की-हम टटपूंजिये चोरों के दिन गये। अब तो बड़े-बड़े चोरों के दिन बहुरने वाले हैं। कल गांव में टहल रहा था। बाढ़ में फंसे लोग आपस में बातें कर रहे थे कि सरकार ऊपर से राहत सामग्री बहुत भेज रही है, पर नीचे वाले  बंदर, बंदरबांट में लगे हैं, यही आपदा में अवसर, अफसरों का माना जाता है।
चौथा चोर दार्शनिक भाव में बोला-अब हम बाढ़ में फंसे पीड़ित, परेशान लोगों को क्या लूटें? चलो सुबह उन बड़े चोरों के पास चलें, जो राहत समग्री बांटते हुए गरीबों का हक जोकों की तरह चूस रहे हैं और गांव के भोले-भाले लोग उन्हें अपना भगवान मान कर उनके भक्त बने हुए हैं।
 सुबह वे चोर सरकारी राहत सामग्री पाने के लिए कतार बद्ध भीड़ में खड़े थे। उनके सामने एक अधिकारी अपने हाथ में भोंपू लिए ऐलान कर रहा था-सब लोग लाइन से ही राहत समग्री लें और जिन्हें  कल कूपन दिये गये थे उन्हें ही आज राशन मिलेगा। जिनके पास कूपन नहीं है, वे यहां फालतू में न खडे हो। हमारी टीम बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रही है जो प्रभावित होंगे उन्हें ही कूपन मिलेंगे। और जो डेट कूपन पर होगी, उसी डेट पर उन्हें राहत सामग्री मिलेंगी। यह ऐलान सुन वह सारे चोर हैरत से एक दूसरे का मुंह ताकने लगे, क्योंकि किसी के पास कूपन नहीं थे। तब तीसरा मुखिया चोर बोला-कल लोग इसी के कूपन-उपन बांटने जैसी कुछ चर्चा कर रहे थे, कल यही अपने लोगों से वसूली करा रहा था। फिर उनकी इशारों से मंत्रणा हुई। सारे चोर कतारों से हट लिए। रास्ते में उनका मुखिया चोर बोला-अब हमसे बड़े-बडे़ पढ़े-लिखे चोर गांवों में आ गये हैं। अब हमें चोरी छोड़ कर नेतागीरी करनी चाहिए, शहरों में कुछ बड़े-बड़े नेता-मंत्री  हमारी पहचान के मित्र हैं, उनका यही कहना हैं। क्योंकि चोरी छोड़ कर ही, वे माननीय बने और करोड़पति भी । 
   अब सारे चोर माननीय बनने की तरतीब में बतियातें हुए जा रहे थे।  

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.