साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, December 20, 2021

जाता हुआ दिसंबर और हम......अखिलेश कुमार अरुण

अखिलेश कुमार अरुण
गैर-कानूनी क़दम उठाएं जो सम्भव नहीं है अगर गलती से क़दम उठा भी लिया तो पुलिस से लेकर घर वाले पीट-पीटकर बोकला छोड़ा देंगे वकील साहब भी कुछ नहीं कर पाएंगे मानवाधिकार के हाथ से भी निकल गया अब करो गणना मगर उल्टी गिनती दो साल बारह महीना..दो साल ग्यारह महीना...दो साल दस.....।

(हिंदी-मिलाप के दैनिक अंक  हैदराबाद से २८.१२.२०२१ को प्रकाशित)
दिसंबर जाने वाला है और यह हर साल जाता है इसमें कोई नई बात नहीं है, पहली इस्वी मने ईसा मसीह के जन्म से लेकर आज तक यह क्रम लगातार जारी है और रहेगा जब तक कि यह दुनिया रहेगी और लिखने-पढ़ने वाले लोग रहेंगे क्योंकि इसकी गणना मनुष्य ही करता है और मनुष्य पढ़ा लिखा है, जानवर नहीं करता वह पढ़ा-लिखा नहीं है न। मनुष्यों के पास साल भर का लेखा-जोखा होता है गिनने के लिए जन्म, मृत्यु, शादी, सालगिरह आदि-आदि इस साल का निपटा नहीं कि अगले साल की तैयारी में लग जाइए
 


पति अपना जन्मदिन भूल जाए चलेगा पर अपनी पत्नी का भूल जाये  तो उसकी खैर नहीं, "इतना भी याद नहीं रहता कि आज कुछ खास है, काहें याद रखियेगा खर्च जो नहीं हो जाएगा, पिछले साल भी ऐसे ही भूल गए थे कौन रोज-रोज आता है साल में एक ही बार तो आता है दो-चार सौ खर्च हो जाए तो कौन हम बेगाने हैं हम पर ही तो खर्च होना है किसके लिए कमा रहे हैं...।"  अब इस पत्नी नामक परजीवी को कौन समझाए कि बैंक की ईएमआई, दूधवाला, पेपर वाला, बच्चों की स्कूल-टयूशन फीस ले-देकर महीने की अन्तिम तारिख को बचता है तो बस जान देना ही रह जाता है। घर में कुछ नया करना हो तो हाथ फैलाए बिना नहीं होता, सरकारी नौकरी से कहां पूर पड़ता है जी अपनी जिंदगी तो बंधुआ मजदूर सी होकर रह गयी है।

उत्तर प्रदेश की सरगर्मी तेज हो चली है ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आता जा रहा है दिसम्बर की ठिठूरती जाड़े में प्रत्याशियों को यकायक पसीना छूट जा रहा है। वर्तमान सत्तापक्ष के छूटभैये नेता से लेकर सांसद-विधायक तक वोट की गणित में दिन-रात एक किए जा रहे हैं। साल का भी अन्तिम महिना चल रहा है और पंचवर्षीय राजशाही का भी अंत ही समझिए सरकार की वापसी हो भी सकती है और नहीं भी क्योंकि साफ-साफ कहना मुश्किल है। वह इसलिए कि मतदाताओं का मन किसी के गड़ना में नहीं आ रहा है। किसान आन्दोलन करते रहे पर किसान सम्मान निधि वाले भी तो हैं

बेरोजगार युवाओं के मन में आशा थी की समय से टीईटी हो जाएगा तो सुपर टेट में मौका मिल जाएगा आज साल का अंतिम महिना है और सत्ता में सरकार भी पांच साल पूरे कर रही है आशा यह है कि जनवरी तक कुछ अच्छा हो जाएगा। सबसे ज्यादा असमंजस में वे बेरोजगार साथी हैं जिनके लिए यही साल लास्ट है इसके बाद वे ओवरएज हो जाएंगे तो न नौकरी मिलनी है और न ही छोकरी फिर तो ताने के नाम पर खरी-खोटी सुनने को रह जाएगा मने पूरे जीवन की पढ़ाई-लिखाई पर पानी फिर जाना क्योंकि अपने देश में उसे ही सफल माना जाता है जिसकी महीने की पेशगी होती है उसके इतर आप लाख कमाओं रहोगे निकम्मे के निकम्मे इसलिए तो युवा कुछ कर गुजरने की उम्र में अपने को चहारदिवारियों में कैद कर आंखें फोड़ता रहता है। युवाओं का देश है भारत फिर भी निकम्मों में गिना जाता है।

वह किशोरियां जो अभी-अभी 18 को टक से छू-कर यूवा होने वाली थीं जिनका प्री-प्लान था, "बाबू, कुछ दिन की ही तो बात है बालिग होने में....फिर हमारा कोई कुछ नहीं कर पाएगा।" उनके लिए 3 साल का यह सौगात स्वर्ग के दरवाजे से धक्का दे देने जैसा है। अब या तो वह तीन साल के दिन को अपनी गिनती में शामिल करें या फिर गैर-कानूनी क़दम उठाएं जो सम्भव नहीं है अगर गलती से क़दम उठा भी लिया तो पुलिस से लेकर घर वाले पीट-पीटकर बोकला छोड़ा देंगे वकील साहब भी कुछ नहीं कर पाएंगे मानवाधिकार के हाथ से भी निकल गया अब करो गणना मगर उल्टी गिनती दो साल बारह महीना..दो साल ग्यारह महीना...दो साल दस.....। दूसरा पहलू उन लड़कियों/किशोरियों के लिए वरदान साबित होगा जो अपने पैरों पर खड़ा होकर समाज में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती हैं और किसी भी इस स्तर पर अपने मान-सम्मान, अभिमान आदि से समझौता नहीं करना चाहती उन्हें तीन साल इस लिहाज से तो मिला की शादी लिए बालिग होने में अभी 3 साल और लगेंगे, यह तीन साल का समय कुछ कर गुजरने के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

अखिलेश कुमार अरुण
ग्राम-हजरतपुर जिला-खीरी
उत्तर प्रदेश 262804

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