कविता
कोई मर रहा होगा
तो उसे बूंद भर जिंदगी दोगे क्या,
सांसें मोहताज है यकीं की, मुझे उम्मीद दोगे क्या..
सोच मेरी इतनी सी नहीं
जो तुमको कत्ल कर दें
क्या सच बोलकर मुझे महफूज़ कर दोगे क्या...
मैंने इक निवाला चुराया था
एक बच्चे के दांतों के बीच.. क्या मुझे माफ़ी दोगे क्या,
सच कहती हूं, इस दौर में
मां को दूर बैठे देखती हूं, क्या क़रीब कर दोगे क्या...!
मैं शरीर नहीं मांगती हूं
मैं वक्त मांगती हूं तुम्हारा
निगाह में, समंदर नहीं
रेत चाहती हूं क्या मुझे इन नेत्रों में बिछने दोगे क्या..!
पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०