साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, May 31, 2022

आंबेडकर बनाम गांधी-गोलवलकर वैचारिकी/सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक समरसता/जाति उन्मूलन बनाम जाति समरसता-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

  
भाग चार
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी

दलितों और ओबीसी को अपने घरों में अदृश्य व काल्पनिक देवी-देवताओं की मूर्तियों,उनकी आरती की पुस्तकों,रामचरित मानस के स्थान पर बहुजन नायक की वैचारिकी से संबंधित सामग्री जैसे भारत का संविधान,कालेलकर आयोग(1955),बीपी मंडल आयोग (1980) की सिफारिशें (ओबीसी के लिए एससी-एसटी की तरह राजनैतिक आरक्षण, सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में 27% आरक्षण प्रोन्नति में आरक्षण और बैक लॉग के आधार पर भर्तियां ) और पेरियार- ललई सिंह की "सच्ची रामायण" पढ़ना चाहिए।वर्ग विशेष के आधिपत्य के मंदिरों में कैद मिट्टी/पत्थरों की बेजान मूर्तियों के सामने खड़े होकर और दान पात्र में पैसा और सोना-चांदी डालकर अपनी मनोकामना पूरी होने,जन्म-पुनर्जन्म,स्वर्ग-नरक और पाप-पुण्य जैसे अंधविश्वास से बाहर निकल कर डॉ.आंबेडकर के मूलमंत्र/सूक्ति वाक्य "शिक्षित बनो,संगठित रहो और संघर्ष करो " पर चलने का साहस और विश्वास पैदा करो, क्योंकि ब्राम्हणवाद (ब्राम्हणों द्वारा ब्राम्हणों के लाभ के लिए निर्मित ब्राम्हण वर्चस्व की जन्म से लेकर मृत्यु तक और मृत्यु के बाद भी अवैज्ञानिक धार्मिक कर्मकांड,आडंबर,नाना प्रकार के व्रत और त्योहार मनाना,भूखे इंसान की जगह गाय/काले कुत्ते को रोटी खिलाना,हाथ और गले में काला धागा,हाथ की अंगुलियों में नाना प्रकार के महंगे पाषाण/रत्न जड़ित अंगूठियां पहनना,नजर न लगे इसलिए नवनिर्मित सुंदर मकान के मुख्य द्वार पर काला लंबा चुटीला या नजरौटा और हर शनिवार को घर में काले धागे में गुथे नीबू और हरी मिर्च लटकाना,माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा और चरण स्पर्श न कर कुत्ते और गाय को पूड़ी पकवान खिलाना,गले लगाना और पैर पूजना,बेजान मूर्तियों के सामने धूप बत्ती जलाकर वायु प्रदूषण फैलाना,अदृश्य देवी-देवताओंं के अज्ञात जन्म दिन/जयंती के अवसरों पर और सावन माह भर गंगा नदी का गंदा पानी भरकर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्राएं करना,खाली बाल्टी और बिल्ली द्वारा रास्ता काटना देखकर शगुन-अपशगुन की अवैज्ञानिक सोच और भय पैदा होना,बिना वैज्ञानिक आधार के ज्योतिषियों से भविष्य जानना,कालसर्प योग की मार को काटने के लिए अनुष्ठान करवाना,दशहरा पर्व पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन को शुभ मानना,दीपावली पर बदबू फैलाती छछूंदर के दर्शन और धनतेरस पर खरीदारी को शुभ मानना,खून पसीने से कमाए गए आपके धन से रोजी-रोटी चलाने वालों से आशीर्वाद लेना,गाड़ी आदि खरीदने और दुल्हन को प्रथम बार मंदिर में जाकर भगवान के ठेकेदारों द्वारा फूलमाला पहनाना और तिलक/शुभांकर लगवाना,मुंडन के नाम पर बच्चों का मुंडन किसी अदृश्य देवी-देवता के द्वार या स्थान पर ही करवाना और तिलक लगवाना,डॉक्टर से उपचार न कराकर भूत-चुड़ैल उतरवाने के चक्कर में ओझाओं/तांत्रिकों के चंगुल में फंसना, काल्पनिक कथा-कहानी जैसी व्यवस्था जिसमें मानव समाज में स्थापित जन्म से श्रेष्ठ ब्राम्हण स्वयं को "भू-देवता" और अन्य को नीच बनाता है) को सबसे ज्यादा आक्सीजन ओबीसी ही देता है। जिस दिन ओबीसी ऑक्सीजन देना बन्द कर देगा,उसी दिन ब्राम्हणवाद की सांसे बन्द हो जाएंगी और वह समाज रूपी सड़क पर दम तोड़ता नजर आयेगा,लेकिन धर्मांध ओबीसी मानने को तैयार ही नही है।अदृश्य/,काल्पनिक भयवश वह इसी व्यवस्था का आदी/गुलाम सा बन चुका है। चाहे कोई संविधान को ख़त्म करे या उसके आरक्षण पर तरह-तरह से वार (क्रीमीलेयर,200 पॉइंट्स रोस्टर प्रणाली के स्थान पर 13 पॉइंट्स रोस्टर प्रणाली,दूसरे प्रांत में आरक्षण न मिलना,परीक्षा के किसी स्तर पर आरक्षण सुविधा लेने पर सामान्य वर्ग की कट-ऑफ से अधिक या बराबर मेरिट होने पर केवल आरक्षित वर्ग में ही चयन, अनारक्षित और आरक्षित वर्गों का साक्षात्कार अलग अलग समय करवाकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को कम अंक देना जिससे उनकी सामान्य वर्ग में चयन होने की संभावनाएं तो खत्म हो या कम हो जाएं,लिखित परीक्षा के बाद अनारक्षित और आरक्षित सीटों के गुणक में अभ्यर्थियों को बुलाना जिसमें आरक्षित वर्ग की कट-ऑफ सामान्य वर्ग की कट-ऑफ से अधिक होने के बावजूद साक्षात्कार में शामिल न करना,प्रोन्नति में आरक्षण समाप्त करना और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10% आरक्षण और उसकी 10%की गूढ़ गणित को समझना बहुत जरूरी है) कर कटौती/अतिक्रमण करे। अपने हितों पर पड़ने वाले दूरगामी दुष्प्रभावों/परिणामों को वह न तो समझ पा रहा और न ही मूल्यांकन कर पा रहा हैं,क्योंकि उसे धर्म-ग्रंथो के कर्मकांडो के अलावा"संविधान और आयोग की सिफारिशें पढ़ने,समझने का न तो समय है और न ही ललक या जिज्ञासा।"अंत में अवैज्ञानिकता पर आधारित भारत की सामाजिक/धार्मिक सरंचना/अवधारणाओं का विश्व के सर्वाधिक विकसित देशों से तुलना कर पेरियार रामा स्वामी की वैचारिकी का रेखांकित किया जाना अपरिहार्य जैसा लगता है:-
✍️"इंग्लैंड में कोई ब्राम्हण/शूद्र/अछूत/नीच पैदा नहीं होता!रूस में वर्णाश्रम/धर्म/भाग्य जैसी कोई चीज नहीं  है।अमेरिका में लोग ब्रम्हा के मुख/भुजाओं/उदर/पैर से पैदा नहीं होते।जर्मनी में भगवान खाना नहीं खाते और तुर्की में शादी नहीं करते।फ्रांस में भगवान करोड़ों के जेवरात/हीरे/मोती नहीं पहनते।इन सभी अति विकसित देशों के लोग विद्वान बुद्धिमान और वैज्ञानिक होते हैं। वे लोग आत्म-सम्मान खोना नहीं चाहते हैं। इसीलिए उनका ध्यान अपने अधिकारों और देश की सुरक्षा की ओर होता है। तो फिर!हमारे देश के लोगों के लिए ही अदृश्य करोड़ों बर्बर देवी -देवता और धार्मिक हठधर्मिता क्यों?
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