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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, March 17, 2023

69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण घोटाले की खुलती परत दर परत-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

मुद्दा 69000 शिक्षक भारती 

हाई कोर्ट के फैसले के बाद यदि सरकार की ईमानदारी से ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग के पीड़ितों के साथ आरक्षण पर न्याय करने की मंशा है तो संशोधित चयन सूची तैयार करने वाली कमेटी में ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग का समुचित प्रतिनिधित्व होना बहुत जरूरी है। पीड़ित अभ्यर्थियों और विपक्ष को एकजुट होकर इस दिशा में जोरदार तरीके से सड़क से लेकर सदन तक अड़े रहना चाहिए।
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) सेवा निवृत
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी

         आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को संवैधानिक आरक्षण के लाभ से वंचित होने पर उन्होंने सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन और धरना-प्रदर्शन कर सरकार का कई बार ध्यानाकर्षण करने के विफल प्रयासों के बाद वे प्रकरण को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग तक ले जाने के लिए विवश हुए। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा आरक्षण विसंगतियों को स्वीकार करने और उनके सुधारने की सिफारिश के बावजूद राज्य सरकार की ओर से जानबूझकर आरक्षण की विसंगतियों को दूर करने का कोई प्रयास नही किया गया। इससे क्षुब्ध,निराश, हताश और पीड़ित अभ्यर्थियों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी जिसमें समय और धन की बर्बादी हुई और असहनीय शारीरिक-मानसिक पीड़ा और दुश्वारियों के कठिन दौर से सपरिवार गुजरना पड़ा। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सोमवार को अपने एक आदेश में 69000 की मौजूदा चयन लिस्ट को याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों और दस्तावेजों के आधार पर गलत माना है और कहा है कि सरकार लिस्ट में अभ्यर्थियों के गुणांक,कैटेगरी (सामान्य/अनारक्षित,ओबीसी और एससी-एसटी) और उनकी सब कैटेगरी सहित ओबीसी का 27% और एससी-एसटी का 23% आरक्षण पूरा करते हुए संशोधित सूची तैयार करे। आरक्षण घोटाले से चयन से बाहर हुए आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सरकार पर लगातार आरोप लगाकर अपने हक के लिए तीन साल से विभिन्न संस्थाओं और जिम्मेदारों के खिलाफ धरना- प्रदर्शन कर रहे थे। बाद में इस शिक्षक भर्ती में अनुमानित 19 हजार से अधिक आरक्षण घोटाले के मुकाबले सरकार ने  5 जनवरी 2022 को घोटाला स्वीकार करते हुए 6800 सीटों पर अतिरिक्त आरक्षण दिया था,उसे भी हाई कोर्ट ने पूरी तरह खारिज़ कर दिया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस भर्ती प्रक्रिया में अनुमानित 19000 आरक्षित पदों पर घोटाला कर उनके स्थान पर अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की भर्ती कर एक बड़ा घोटाला हुआ है। हाई कोर्ट ने सरकार को 69000 शिक्षकों की नए सिरे से चयन सूची को तीन महीने में श्रेणीवार (अनारक्षित, ओबीसी और एससी - एसटी) तैयार करने के लिए निर्देश दिए हैं और यह भी कहा है कि तब तक सभी चयनित कार्यरत शिक्षक अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे। उल्लेखनीय है कि आरक्षण से वंचित हुए अभ्यर्थियों की दलीलों को न्यायालय ने सही मानते हुए 8 दिसंबर 2022 को आरक्षण घोटाले पर आर्डर रिजर्व किया था। असली घोटाला तो संशोधित सूची बनने के बाद ही सामने आ पाएगा।
           कोर्ट का यह निर्णय यूपी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बड़ी बात यह है कि जीरो भ्रष्टाचार की दुहाई देने वाली यूपी सरकार के सुशासनकाल में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और हाई कोर्ट ने पहले ही मान लिया था कि भर्ती प्रक्रिया के आरक्षण में कई तरह की विसंगतियां हुई हैं। जो विसंगतियां सुनी जा रही हैं उनमें प्रमुख रूप से एक यह है कि आरक्षित वर्ग की उच्च मेरिट को दरकिनार करते हुए उनको अनारक्षित वर्ग में चयनित नहीं किया गया है,अर्थात उनको उनके आरक्षण प्रतिशत की सीमा तक समेट दिया गया है। दूसरा जो महत्वपूर्ण हुई अनियमितता बताई जा रही है कि बहुत से सामान्य/सवर्ण वर्ग के अभ्यर्थियों ने आरक्षित वर्ग (ओबीसी/एससी) का जाति प्रमाणपत्र बनवाकर आरक्षित श्रेणी में चयन पाने में सफल हो गए है। इसी तरह ओबीसी के अभ्यर्थियों द्वारा एससी-एसटी का जाति प्रमाणपत्र बनवाकर एससी-एसटी का आरक्षण डकारने की बात भी सुनी जा रही है।
           कोर्ट के निर्णय के कुछेक बिन्दुओं पर मीडिया के माध्यम से आ रही खबरों से भ्रम या अस्पष्टता की स्थिति नज़र आ रही है। बताया जा रहा है कि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। जब आरक्षण की 50% की सीमा सुप्रीम कोर्ट पहले ही तय कर चुकी है तो फिर फैसले में इसे उल्लिखित करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है? यदि यह बात सही है तो इसके लागू करने में कहीं कोई बड़ा झोल तो नहीं है? कुछ लोग इस बात को इस तरह परिभाषित-व्याख्यायित कर आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि ओबीसी और एससी-एसटी अभ्यर्थियों को उनके निर्धारित आरक्षण प्रतिशत की संख्या तक ही चायनित किये जाने का संकेत तो नहीं है अर्थात उच्च मेरिट और सामान्य वर्ग के बराबर या उनसे अधिक मेरिट अंक होने के बावजूद उन्हें अनारक्षित वर्ग में चयनित नही किये जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। जबकि ऐसा नियम नही है। हां, यह नियम तो है कि यदि कोई अभ्यर्थी आरक्षण की छूटों की वजह से ही आवेदन करने के लिए पात्र बनता है तो उसे अंतिम सूची में आरक्षित वर्ग में ही चयन पाने का अधिकार होगा फिर भले ही उसकी मेरिट अनारक्षित वर्ग की कट ऑफ मेरिट से अधिक क्यों न हो। नियमानुसार 50% अनारक्षित वर्ग की सूची में आरक्षित और अनारक्षित श्रेणी में भेद न करते हुए विशुद्ध रूप से मेरिट के आधार पर सामान्य/अनारक्षित वर्ग की अंतिम चयन सूची तैयार होनी चाहिए। तत्पश्चात अनारक्षित श्रेणी की कट ऑफ से नीचे ही आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों की चयन सूची बननी चाहिए जो विशुद्ध रूप से संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था के अनुरूप कही जाएगी। हाई कोर्ट के फैसले के बाद यदि सरकार की ईमानदारी से ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग के पीड़ितों के साथ आरक्षण पर न्याय करने की मंशा है तो संशोधित चयन सूची तैयार करने वाली कमेटी में ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग का समुचित प्रतिनिधित्व होना बहुत जरूरी है। पीड़ित अभ्यर्थियों और विपक्ष को एकजुट होकर इस दिशा में जोरदार तरीके से सड़क से लेकर सदन तक अड़े रहना चाहिए।
         अब सवाल यह उठता है कि आरक्षण में फर्ज़ीवाड़े से जो अपात्र नौकरी कर रहे हैं,क्या उनको नौकरी से हटाया जाएगा और जो विधायिका- कार्यपालिका की मिलीभगत से हुए फर्ज़ीवाड़े या लापरवाही से इतने समय तक सेवा से वंचित रहे हैं, उनके मानसिक और आर्थिक नुकसान की भरपाई कैसे होगी और आन्दोलनरत रहे पीड़ित अभ्यर्थीगण कोर्ट के फैसले से संशोधित सूची में चयनित हो जाते हैं तो उनकी सेवा की वरिष्ठता (सीनियोरिटी) तय होने के नियम क्या होंगे,क्या उन्हें समानता का अधिकार मिलेगा ? हाई कोर्ट के आदेश के बाद चयनित होने वाले नए अभ्यर्थियों के सामने कई तरह की चुनौतियां रहेंगी। जो अभ्यर्थी फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र जारी कराकर नौकरी पाने में सफल हो गए थे तो उनके खिलाफ़ और फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने वाले सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों के खिलाफ क्या कोई सख्त कानूनी कार्रवाई होगी? इस संदर्भ में योगी नेतृत्व वाले पहले शासनकाल में तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री के भाई ने ईडब्ल्यूएस का फर्जी दस्तावेज जारी कराकर एक विश्वविद्यालय में ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ लेते हुए नियुक्ति पाई थी। बाद में सोशल मीडिया के सक्रिय होने से मंत्री के भाई को नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन फर्जी दस्तावेज जारी कराने और करने वालों के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं हुई थी। जब तक फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने और कराने से लेकर आरक्षण लागू करने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई नही होगी तब तक नियुक्तियों में फर्जीवाड़ा नही रुक सकता है। फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाले अभ्यर्थियों और नौकरशाहों के खिलाफ ठोस कार्यवाही करने के लिए कोई नया सख्त कानून बनाना चाहिए जिससे दोनों पक्षों में एक भय का संचार हो सके।
           शासन और प्रशासन में बैठे जिन लोगों की वजह से आरक्षण में जो भयंकर फर्जीवाड़ा हुआ है,वे लापरवाही और कदाचार के शातिर अपराधी हैं। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए पीड़ितों द्वारा एक और आंदोलन और धरना-प्रदर्शन करना होगा जिसमें सामाजिक - राजनीतिक संगठनों और बुद्धिजीवियों की भी सहभागिता और पहरेदारी सुनिश्चित हो जिससे भविष्य में आरक्षण व्यवस्था कानूनी रूप से शत- प्रतिशत लागू हो सके। कोर्ट के आदेश के बावजूद नई सूची तैयार करने में सरकार आरक्षण व्यवस्था का शत - प्रतिशत अनुपालन कर पाएगी,पीड़ित अभ्यर्थियों और सामाजिक न्याय के संगठनों के जहन में अभी भी एक बड़ा सवाल और संशय बना हुआ है। ओबीसी और एससी- एसटी आरक्षण (सरकारी नौकरियों, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और राजनैतिक) व्यवस्था के इतिहास और उसके क्रियान्वयन पर सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नए सिरे से गम्भीर चिंतन- विमर्श के साथ अब देश में जातिगत जनगणना होना बहुत जरूरी है। इस दिशा में विपक्षी दलों के आरक्षण व्यवस्था के जानकारों और विशेषज्ञों की भूमिका सार्थक सिद्ध हो सकती है। ओबीसी और एससी-एसटी के सामाजिक, राजनीतिक, अकैडमिक संगठनों को एकजुट होकर वर्तमान सरकार की सामाजिक न्याय के प्रति नकारात्मक रवैये के दूरगामी दुष्परिणामों के दृष्टिगत अब जातिगत जनगणना के मुद्दे की लड़ाई सड़क से लेकर विधायी सदन तक लड़कर अंतिम अंज़ाम देना जरूरी हो गया है, अन्यथा सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की वजह से बची खुची सीटों पर हमारे समाज के बच्चों के लिए दरवाजे भी बंद हो जाएंगे जिसके फलस्वरूप समाज की सामाजिक और आर्थिक खाई जो अभी तक थोड़ी बहुत पटती दिख रही थी, उसे अपनी पुरानी अवस्था में जाते देर नहीं लगेगी ।

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