साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, June 03, 2021

गजल (नन्दी लाल)

नन्दी लाल


रोशनी में बैठकर के   खो गया महताब में।

राज महलों के झरोखे खूब देखे ख्वाब में।।

 

 बाढ़ क्या आई , कहर टूटा गरीबी पर मेरी,

 मुश्किलें  बहकर हजारों आ गईँ सैलाब में।।

 

 नाज नखरे नक्श उनकी जिंदगी में देखकर,

अक्श उनका आ गया सारा  दिले बेताब में।।

 

 मार मौसम की पड़ी सब सूख कर बंजर हुआ,

 मछलियाँ मरने लगी    पानी बिना तालाब में।।

 

 गिड़गिड़ाता फिर रहा है वह खुदा के नाम पर,

जल रहा था कल दिया जिस शख्स के पेशाब में।।

 

 जिंदगी के दाँव सारे      भूल बैठा आजकल,

 बाज आखिर आ गया उड़ती चिड़ी के दाब में।।

 

 ज़ीस्त की जादूगरी में कैद होकर रह गया,

 खो गया जो भीड़ में, इस दौर केअसबाब में ।।

 


गोला गोकर्णनाथ खीरी

‘कोविड स्ट्रेन’ का नया नामकरण और वैज्ञानिक सहिष्णुता..!


अजय बोकिल


इसे भारत सरकार की सख्ती का नतीजा कहें या फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सक्रियता कि उसने कोरोना के कथित भारतीय वेरिएंट का नामकरण अब डेल्टा कोविड 19’ कर दिया है। वरना इस वेरिएंट को भारतीयकहे जाने पर भारत सरकार सख्त नाराज हुई थी और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को उसने चेतावनी भी जारी कर दी थी कि वह कोविड के किसी वेरिएंट को इंडियन वेरिएंटकहने से बचें और ऐसी किसी भी सामग्री को अपने प्लेटफार्म पर से हटाएं। यह बात अलग है कि सरकार के एक हाथ को दूसरे हाथ का पता नहीं होता। क्योंकि सवाल यह है कि कोविड के लिए यह इंडियन वेरिएंटशब्द आया कहां से? पता चला कि मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड वैक्सीनेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार दिन पहले जो हलफनामा दायर किया था, उसमें खुद सरकार ने भारत में ‍मिले कोरोना स्ट्रेन को इंडियन स्ट्रेनबताया था। जबकि इसको लेकर देश में भाजपा और कांग्रेस में जमकर राजनीतिक तलवारबाजी भी हो गई। भाजपा ने कांग्रेस को भारत विरोधी भी बता दिया, बिना यह जाने कि खुद उसकी सरकार ही इसे इंडियन वेरिएंटबता चुकी है।

 

कहते हैं कि बद अच्छा, बदनाम बुरा। कोविड मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यह वायरस इतना खतरनाक है कि कोई भी देश इससे अपना नाम किसी सूरत में नहीं जो़ड़ना चाहता। लेकिन जब तक किसी वायरस का वैज्ञानिक नामकरण न हो, तब तक उसे क्या कहा जाए। देशों के नाम से पुकारें तो यह उस देश के लिए चिढ़जैसा हो जाता है। याद करें कि पिछले साल जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोविड को चीनी वायरसकहा था तो चीन भड़क गया था। जबकि इस वायरस का सबसे पहले पता चीन के वुहान शहर में ही चला था। पिछले दिनो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केन्द्र सरकार को वायरस के कथित सिंगापुर स्ट्रेनके बारे में चेताया था तो सिंगापुर सरकार ने नाराज होकर वहां भारतीय उच्चायु्क्त को तलब कर लिया था। वहां के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन ने ट्वीट कर कहा कि सिंगापुर वेरिएंट जैसा कोई वायरस नहीं है और न ही ऐसे किसी वायरस से बच्चों को खतरा है। मामला इतना गर्माया कि भारत के विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी कि केजरीवाल के बयान को भारत सरकार का बयान न समझें। यह उनकी निजी राय है। इसके समांतर हम मीडिया में कोविड 19 के अलग-अलग वेरिएंट्स के नाम मुख्यत: वो जहां पहली बार मिले, उन देशों के नाम से जानते आ रहे हैं। मसलन ब्राजील वेरिएंट, यूके वेरिएंट, अफ्रीकन वेरिएंट आदि। इसी आम बोलचाल में भारत में मिले स्ट्रेन को इंडियन स्ट्रेनकहा गया। हालांकि यह कोई अधिकृत नामकरण नहीं है, लेकिन यह वैसा ही है कि किसी नवजात बच्चे का विधिवत नामकरण होने से पहले परिजन उसे मनचाहे नामों से पुकारते हैं। क्योंकि हर जीव फिर चाहे वह वायरस ही क्यों न हो, उसे पहचान तो चाहिए ही। और लोग हैं कि तब तक रूकते नहीं है कि भई अधिकृत नामकरण तो हो जाने  दें। 

 

अब  बच्चे का नामकरण तो मां-बाप करते हैं, संस्थानों, वास्तु आदि का नाम सरकारें तय करती हैं, लेकिन वायरस जैसे अत्यंत सूक्ष्म विषाणु का नाम कौन और किस विधि से रखता है? तो जान लें कि किसी वायरस का नामकरण भी उसकी वैज्ञानिक कुंडली देखकर किया जाता है। इसके लिए एक वैश्विक कोरोना वायरस स्टडी ग्रुप काम करता है। यह स्टडी ग्रुप इंटरनेशनल कमेटी आॅन टैक्साॅनामी आॅफ वायरसेस के तहत काम करता है। यह कमेटी सार्स कोविड 2 वायरस के नामकरण के लिए जवाबदेह है। नामकरण भी वायरस की पहचान और इससे होने वाली बीमारी को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मसलन हम जिसे कोविड-19 के नाम से जानते हैं, उसमें कोसे तात्पर्य कोरोना, ‘विसे तात्पर्य वायरस, ‘डीसे तात्पर्य डिसीज तथा ‘19’ से तात्पर्य वो वर्ष, जिसमें यह वायरस खोजा गया। लेकिन अब यह वायरस भी अलग अलग देशों में अपने भीतर उत्परिवर्तन कर रहा है। यानी अपना रंग-रूप और मारकता बदल रहा है। इसलिए अब इसके अलग-अलग स्ट्रेनों का अलग-अलग नामकरण जरूरी हो गया है। लेकिन इसके पहले जब तक इस वायरस के विभिन्न रूपों का कोई अधिकृत नाम सामने नहीं आया था, तब तक लोगों ने जिस देश में जो वेरिएंट मिला, उसे उसी के नाम से पुकारना शुरू कर ‍दिया। सारे बवाल की जड़ यही है। लेकिन वैज्ञानिक क्षेत्र में ऐसी हड़बड़ाहट या सियासत काम नहीं करती। हमारे देश में तो  किसी भी मुद्दे पर राजनीति हो सकती है। लिहाजा इंडियन वेरिएंटपर भी घमासान मचा। मानो इसका भी कोई राजनीतिक लाभ हो सकता है। जब पाकिस्तानी मीडिया में खबर चमकी कि वहां कोरोना का पहला इंडियन स्ट्रेनमिला तो भाजपा प्रवक्ता डाॅ.‍संबित पात्रा ने इसके लिए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को घेर लिया। उन्होंने  ट्वीट कर कहा कि राहुल की मंशा पूरी हुई। आशय यह कि राहुल ने कोरोना वायरस को इंडियनबताकर भारत को बदनाम किया। यही काम मप्र भाजपा ने पूर्व मुख्यिमंत्री कमलनाथ पर हमला कर और उनके खिलाफ एफआईआर करके किया (अब उस एफआईआर का क्या होगा, देखने की बात है)। यानी जो कुछ हुआ, वह राजनीतिक मूर्खता और हमारे नेताअोंके दिमागी दिवालियापन  के अलावा कुछ नहीं है।

 

अब सवाल यह कि राहुल गांधी ने इसे इंडियन स्ट्रेनक्यों कहा तो इसका जवाब खुद मोदी सरकार के कोर्ट में दिए हलफनामे में था। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 9 मई के एक हलफनामे में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने देश में  कोवैक्सीन विकसित करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए कोरोना वायरस के लिए  इंडियन डबल म्यूटेंट स्ट्रेनशब्द का उल्लेख किया। आईसीएमआर के इस हलफनामे पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार और भाजपा को इस की गंभीरता समझ नहीं आई। परंतु इस हलफनामे के तीन दिन बाद ही केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन मीडिया रिपोर्ट्स पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें कोरोना वायरस के एक स्वरूप बी.1.617 को इंडियन वेरिएंटकहा गया था। मंत्रालय ने कहा कि डब्लूएचअो ने इस वेरिएंट को इंडियन जैसा कोई नाम नहीं दिया है। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठनने भी सफाई दी कि वह वायरस के किसी वेरिएंट को किसी देश के नाम से नहीं जोड़ता है।

 

बहरहाल, अब डब्लूएचअो ने बदनाम कोरोना वायरस के वैज्ञानिक नामकरण की पद्धति तय कर दी है। इसके मुताबिक ग्रीक अल्फाबेट ( वर्णाक्षर) को आधार बनाकर सभी कोविड वेरिएंट्स का नामकरण किया जाएगा। ग्रीक वर्णमाला में 24 अक्षर हैं। इसी के तहत कथित इंडियन वेरिएंट यानी B.1.617.2 का नाम डेल्टा वेरिएंटकर दिया गया है तथा देश में मिले एक और वेरिएंट B.1.617.1 ‍का नाम कप्पारख दिया गया है। इसी प्रकार ब्रिटिश वेरिएंट अल्फा’, साउथ अफ्रीकन वेरिएंट बीटा’, ब्राजील वेरिएंट गामा’, फिलीपीन्स वेरिएंट थीटाव यूएस वेरिएंट ‘‍एप्सिलानकहलाएगा। यदि ग्रीक अल्फाबेट के वर्ण भी खत्म हो जाएंगे तो नामकरण की नई सीरिज शुरू होगी। लेकिन अब किसी देश के नाम से कोई वायरस नहीं जाना जाएगा।

 

यहां प्रश्न किया जा सकता है कि क्या ग्रीक के लोग इस नामकरण के लिए तैयार हैं? या वो लोग भी हमारे नेताअों की तरह बवाल मचाएंगे? उनकी संस्कृति खतरे में आ जाएगी। क्योंकि मान लीजिए यदि डब्लूएचअो तय करता कि वह देवनागरी के वर्णों ( या ऐसी ही किसी और भाषा) का इस्तेमाल कोविड नामकरण के लिए करेगा तो हमारे देश में कितना बवाल मचता? लेकिन ग्रीस या उस जैसे देशों में ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि उनकी सांस्कृतिक, वैज्ञानिक समझ व दृष्टि हमसे कई गुना ज्यादा और व्यापक है। वायरस से जोड़े जाने पर ग्रीक अल्फाबेट की महत्ता और ग्रीस की महान संस्कृति पर कोई आंच नहीं आने वाली है। यही वैश्विक समझ और वैज्ञानिक सहिष्णुता भी है।

 (लेखक म० प्र० से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के वरिष्ठ संपादक हैं )

पियरे और जोसेफ़ के जैसा है मेरा और मेरे साईकिल का रिश्ता-अखिलेश कुमार अरुण


पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।

 

2014

आज विश्व साइकिल दिवस है, 3 जून 2018 को संपूर्ण विश्व में पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाया गया था, आज तक के वैज्ञानिक आविष्कारों में एक यही ऐसा अविष्कार है जो सस्ता होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।

 

ऊपर चित्र में यही हमारी साईकिल है, कभी हमने अपनी साईकिल को साईकिल नहीं कहा हमेशा गाड़ी कहते थे...इससे सम्बन्धित एक बाकया है हम  हमारा मित्र रविन्द्र कुमार गौतम सरकारी अस्पताल में अपने मित्र का हाल-चाल लेने पहुंचे थे ...साईकिल अस्पताल गेट पर खड़ी किये और अस्पताल में जो भर्ती थे उनके तीमारदार बाहर ही मिल गए पर साईकिल से उतरते नहीं देखा था यह हमें बाद में पता चला........गाड़ी खड़ी बा तनी देखत रहिह....कहते हुए अस्पताल के अन्दर गए हाल-चाल लिया कुछ देर बाद लौटना हुआ तब तक आप हमारी गाड़ी देखते रहे उनसे मिलकर साईकिल का ताला जब खोलने लगे तब ऊ बोले ई का हो .....गाडी से आईल रहल ह न......फिर बहुत हंसी हुई हम कहे, “इहे हमार गाडी ह।” अब जब भी मुलाकात उनसे होती है ठहाका लग ही जाता है।

 

साइकिल से हमारा बहुत पुराना नाता है सन 1998-99 की बात होगी। जब हमारे लिए पापा जी सेकंड हैंड साइकिल लेकर आए थे, 11 या 12 सौ की थी। उसका कलर नीला है तब से लेकर आज तक हम नीले रंग के दीवाने हो गए हमें लगता है कि नीला हमारा अपना रंग है जो हमेशा आसमान की उचाई को छूने के लिए प्रेरित करता रहता है। वह साइकिल आज भी हमारे प्रयोग में लाई जाती है पर कम दूरी के लिए या बाजार तक कभी हम पूरा लखीमपुर उसी से छान मारते थे, हमारा मोटरसाईकिल चलना उसको खलता होगा, लम्बी दुरी पर जो नहीं जाती सजीव होती तो शिकायत जरुर करती। 22/23 साल का हमारा उसका पुराना सम्बन्ध है,  उसके एक-एक पुर्जे से हम बाकिब हैं, और हो भी क्यों ना चलाते कम उसको बनाने का काम ज्यादा करते थे, पढ़ाई के दौरान महीने का दो रविवार साइकिल के नाम ही रहता था। हमारे साइकिल में टायर-ट्यूब का प्रयोग इतना जबरदस्त तरीके से किया जाता था कि बच्चों के खेलने लायक भी नहीं रह जाता। जगह-जगह टायर की सिलाई और ट्यूब में पंचर लगाने का काम तब तक जारी रहता था जब तक की वह लुगदी-लुगदी न हो जाए। हमारी साइकिल इतना वफादार थी कि वह छमाही या वार्षिक परीक्षा होने के पूर्व ही बयाना फेर देती उसका सीधा-सीधा संकेत था कि हम इतना कंडम हो गए हैं हमको सुधरवालो नहीं तो तुम्हारा पेपर हम दिलवा नहीं पाएंगे फिर तीन-चार सौ का खर्चा होना तय था... पीछे का टायर आगे, आगे किसी काम का नहीं ऐसा भी नहीं था टायरों में गोट (कत्तल) रखने के काम आता था। मूलरूप में साईकिल में अब केवल फ्रेम और पीछे का करिएर ही शेष हैं नहीं तो सब कुछ बदल चूका है। मेरे और साइकिल के बीच का सम्बन्ध पियरे और उसके घोड़ा जोसेफ़ के जैसा है हम दोनों एक दुसरे की भावनाओं को आसानी से समझ लेते हैं। हमारी साईकिल को देखकर हमारे होने का सहज अनुमान लोग आज भी लगा लेते हैं।

 जब हम छोटे थे तब साईकिल दुसरे को अपनी साईकिल देने में आना-कानी करते थे। जिसका फायदा उठाकर हमारे चाचा लोग चिढ़ाने का काम करते थे, कभी लेकर चले जाते तो गुस्सा भी बहुत आता था जब साईकिल आ जाती तब चुपके से उसका निरिक्षण करने जाते कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं है................चोरी पकड़ी जाती हाँ-हाँ देख लो कुछ घिस तो नहीं गया ......हमारा भी जबाब होता आउर नाहीं त का????

 अंत में आएगा तो साईकिल ही की उपयोगिता के लिए एक जयकारा तो बनता है .........जय साईकिल जिंदाबाद साईकिल अब कुछ लोग हमको सपाई होने की भूल भी कर बैठेंगे ऐसे में हम राजनीति से दूर हैं, आएगा साईकिल से तात्पर्य बस इतना है की पेट्रोल-डीजल आसमान छू रहे हैं ऐसे में लोग साईकिल की तरफ़ जा सकते हैं......बहुत कोशिश कर रहा हूँ इस पैराग्राफ में पर पता नहीं क्यों इसमें राजनीति की बू आ रही है हमको राजनीति से दूर रखियेगा वैसे हाथी भी ठीक रहेगा......राजनीति अपनी जगह साहित्य अपनी जगह, चलते है

ए०के०अरुण
नमस्ते


ग्राम-हजरतपु, जिला खीरी

उ०प्र० 262701

8127698147

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान

 

रमाकान्त चौधरी

गैरों से तो बचा हुआ है अपना मुल्क महान।

 अपनों से पर लुटा जा रहा भारत का अभिमान ।

आओ मिलकर तोड़े हम सब जंग लगी जंजीरों को,

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

भगत बोस बिस्मिल आजाद ने अपनी बलि चढ़ा दी।

 और देश के दीवानों ने हंसकर जान लुटा दी।

 उसी देश में आज खो रहा वीरों का बलिदान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 जिनको आया देश की खातिर केवल जान लुटाना।

 कुर्बानी उनकी भूल चुका है यह खुदगर्ज जमाना।

 आज झूठ को ताज बंधा है सत्य हुआ बदनाम।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 याद करो झांसी की रानी जिसने लोहा मनवाया ।

उसकी हिम्मत देखके यारों हर  दुश्मन था थर्राया ।

उसी देश में आज हो रहा नारी का अपमान।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 कभी जहां पर मंदिर मस्जिद और शिवाले होते थे,

 आज वहां पर रिश्वतखोरी और घोटाले होते हैं।

 बदल गए हैं लोग यहां के बदल गया ईमान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 आज हो रहा कुर्सी खातिर गली-गली में दंगा ।

मानवता को भूलके मानव नाच दिखाता नंगा ।

भूल गया संस्कृति अपनी भूल गया संविधान।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

शासन सत्ता हाथ में उनके जिनका कोई ईमान नहीं ।

कुछ भी हो सकते हैं लेकिन हो सकते इंसान नहीं ।

जो गली-गली में बेच रहे हैं टुकड़ों में ईमान।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

अब तो सबक सिखाना होगा छुपे हुए गद्दारों को ।

मारके तुम्हें भगाना होगा देश के इन हत्यारों को।

 और यहां पर लाना होगा फिर से वही सम्मान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

बच्चे खेले खेल जहां पर गुड्डे गुड़ियों वाला ।

उनके मन में डर न कहीं हो हब्सी भेड़ियों वाला।

 और शान से बोल सके वह मेरा देश महान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

गैरों से तो बचा हुआ है अपना मुल्क महान ।

अपनों से पर लुटा जा रहा भारत का अभिमान।

आओ मिलकर तोड़े हम सब जंग लगी जंजीरों को,

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 


ग्राम - झाऊपुर, लंदनपुर ग्रंट,

गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।

उत्तर प्रदेश।

Mob. No.- 9415881883

Gmail- rkchaudhary2012@gmail.com

YouTube channel- bas Tumhare liye

Wednesday, June 02, 2021

ग़ज़ल (डी.के.भास्कर)

डी के भास्कर


तुम्हारा आंकड़ों का खेल जारी है

हमारी जिन्दगी पर खूब भारी है।

 

बयाँ सब कर रही हैं तैरती लाशें

हकीकत इस तरह सारी उघारी है।

 

तुम्हें कैसे भला यूं नींद आती है

हमें पूछो कि कैसे शब गुजारी है।

 

अगर कुछ लोग मरते हैं मरें बेशक

मगर सरकार को तस्वीर प्यारी है।

 

तुम्हारे अश्क झूठे हैं फरेबी हैं

रुदाली बन गये कैसी बिमारी है।

 

बड़ी उम्मीद से ये ताज सौंपा था

यही गलती पड़ी भारी हमारी है।

 

समय की मांग है अब चल फकीरा चल

उठा झोली बढ़ा अपनी सवारी है।

(संपादक मासिक पत्रिका डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, मथुरा)

 

प्रीती की कलम से

प्रीति गौतम
कहाँ तक अंधविश्वास में जिओगे।
पढ़ोगे तभी तो तुम आगे बढ़ोगे ।।
 
कभी बाबा साहेब का संविधान पढ़ो।
कभी देख के कांशीराम का संघर्ष बढ़ो।।
 
माता सावित्री बाई के पथ पर चलोगे।
पढ़ोगे तभी तो तुम आगे बढ़ोगे ।।
 
भले आएं जितने भी कांटे राहों में।
हो बस किताबें तुम्हारे हाथों में ।।
 
क़लम से तुम नया इतिहास रचोंगे।
पढ़ोगे तभी तो तुम आगे बढ़ोगे।।
 
करें कोई चाहें कुछ मगर सच यही है।
कौम जो हमारी आज आगे बढ़ रही है।।
 
इसी से आगे चलकर राज करोगे ।
पढ़ोगे तभी तो तुम आगे बढ़ोगे।।
                                                                                                            निवास-सेनपुर लखीमपुर खीरी

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

  

 नन्दी लाल

उम्र भर यह वबा का साल तुझे।

 याद आएगा    बहरहाल  तुझे।।

 

मर गया वह गरीब था घर का,

उसके मरने प क्या मलाल तुझे।।

 

 रोज करता नए    दिखावे है,

 उसके अच्छे लगे कमाल तुझे।।

 

 बैठकर काढ़ कसीदे उस पर,

 दे गया वो नया रुमाल तुझे।।

 

 क्यों खड़ा ताक रहा साहब को,

 याद आया कोई सवाल तुझे।।

 

 लोन खाता था रोज रोटी पर,

 आज अच्छी न लगे दाल तुझे।।

 

 राज महलों में क्या नहीं होता,

 झोपड़ी का दिखा बवाल तुझे।।

 

 आँसुओं को सुखा के बैठा है,

 पीटना आ गया है गाल तुझे।।

 

 बेवजह शे'र लिख रहा  ऐसी,

 हो गया क्या है नंदीलाल तुझे।।

 


निवास-गोला गोकर्णनाथ खीरी

ज्ञान भरें हैं पुस्तक में


डॉ. सतीश चन्द्र भगत


मेरे घर में है अलमारी,

रखी पुस्तकें इसमें सारी ।

 

सजे हुए हैं इसके खाने,

मोटे- पतले ग्रंथ पुराने ।

 

कहते दादा पढ़ना सीखो,

सोच समझकर बढ़ना सीखो ।


मिहनत करके मंजिल चढ़ना,

अच्छी- अच्छी पुस्तक पढ़ना ।


इनसे तुमको  ज्ञान मिलेंगे,

जीवन में सम्मान मिलेंगे ।

निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

Tuesday, June 01, 2021

सफाई वाला (लघुकथा)

    एक सड़ी हुई क्षत-विक्षत लावारिस डेड बॉडी अस्पताल में आई। पोस्टमार्टम हाउस में कोई डॉक्टर उसे पहचान नहीं पा रहा था कि बॉडी स्त्री की है या पुरूष की। सड़ांध के कारण, दूर से ही डॉक्टर खानापूरी करना चाह रहे थे। तब डॉक्टरों ने सफाईकर्मी कमरूद्दीन को बुलाया। डॉक्टरों ने उससे कहा कि वह पहचाने कि बॉडी किस की है। कमरूद्दीन ने एक ही क्षण में निहार कर कहा-साहब स्त्री की है।

   तब एक डॉक्टर ने उससे चुटकी ली-यार! ये बताओ हम उतनी देर से नहीं पहचान पाए, तुम इतनी जल्दी कैसे पहचान गये?

   कमर-मैंने दिल की आँखों से, मन की आँखों से देखा।

   दूसरा डॉक्टर बोला-अरे! यार, ये आँखें हमें क्यों नहीं मिली?

   कमर-क्यों कि आप डॉक्टर हैं, मैं सफाई कर्मी हूँ?

   अब वहाँ निःशब्दता में मिश्रित शून्यता, छा गई। डॉक्टर शान्ति से खानापूरी में लग गए।

 

सुरेश सौरभ

 

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

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