साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Thursday, September 30, 2021
पक्की दोस्ती-बाल संवेदनाओं का संवहन-सत्य प्रकाश 'शिक्षक'
Thursday, September 16, 2021
हिन्दी हैं हम-अखिलेश कुमार 'अरुण'
हिन्दी को दिवस की जगह व्यवहारिक और व्यवसायिक बनाईए-अखिलेश कुमार अरुण
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ए०के० अरुण |
किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं, यह समझने के लिए शिमला के सेब किसानों का एक सटीक और सार्थक उदाहरण दिया जा सकता है- नन्द लाल वर्मा
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नन्दलाल वर्मा (प्रोफ़ेसर) |
जब अड़ानी ने सेब ख़रीदना शुरू किया तो
छोटे व्यापारी जो सेब किसानो से 20 रुपए किलो के भाव से ख़रीदते थे, अड़ानी ने वही सेब 25 रुपए किलो ख़रीदना शुरू कर दिया। अगले साल
अड़ानी ने रेट बढ़ाकर 28 रुपए किलो कर दिया। अब धीरे - धीरे छोटे व्यापारी वहाँ ख़त्म हो
गए, अड़ानी से
प्रतिस्पर्धा करना किसी स्थानीय व्यापारी के बस का नहीं था। जब वहाँ अड़ानी का
एकाधिपत्य स्थापित हो गया तो तीसरे साल से अड़ानी ने किसान के सेब का भाव कम करना
शुरू कर दिया और यदि इसकी असलियत देखना हो तो शिमला जाकर देखी जा सकती है।
आज वहां एक भी छोटा
व्यापारी बचा नहीं है।अब अड़ानी को कम मूल्यों पर सेब बेचना वहां के किसानों की
मजबूरी सी बन गयी है। अब अड़ानी किसानों से मनमर्जी कीमत मैं जो सेब ख़रीदता है और
उस पर एक-दो पैसे का अड़ानी लिखा अपना स्टिकर चिपका कर उसी सेब को 200-250
रुपए किलो बाज़ार में
बेचा जा रहा है। अब बताइए, क्या अड़ानी ने वह सेब उगाए हैं ? सेब किसान उगाए और फसल की कीमत का लाभ कोई दूसरा
उठाये,यह कितना
तार्किक और न्यायसंगत है? किसानों की हाड़-मांस की कमाई पर दूसरे पूंजीपतियों द्वारा डाले
जाने वाले डाके की इस राजनीति और कूटनीति के निहितार्थ को समझने की जरूरत है। अगर
सरकार ही इसमें शामिल होती दिख रही है तो इस सरकार को लोकतांत्रिक सरकार कहलाने का
नैतिक अधिकार खत्म हो जाता है। यह सरकार पूंजीपतियों की सरकार के रूप में काम करते
हुए भारतीय संविधान की सारी स्थापनाओं, मर्यादाओं और मूल्यों का खुला उल्लंघन माना जाना चाहिए और
संविधान की सुरक्षा और पालन की संवैधानिक जिम्मेदारी को देश की सर्वोच्च अदालत को
स्वतः संज्ञान लेते हुए आम आदमी के हितों और भविष्य की सुरक्षा करनी चाहिए। अभी
कुछ समय से देश की न्यायपालिका की न्याय व्यवस्था पर भी तरह तरह के सवालिया निशान
लगने लगे थे लेकिन चीफ जस्टिस रमना के आने और उनकी कार्यसंस्कृति और शैली से एक नई
आशा की किरण चमकने की उम्मीदें जगी हैं।
इसी तरह टेलिकॉम
(दूरसंचार) इंडस्ट्री की मिसाल भी आपके सामने हैं। कांग्रेस की सरकार में 25 से ज़्यादा मोबाइल सर्विस प्रवाइडर थे। जिओ
ने शुरू के दो-तीन साल फ़्री कॉलिंग, फ़्री डेटा देकर सबको समाप्त कर दिया। आज केवल तीन सर्विस
प्रवाइडर ही बचे हैं और बाक़ी दो भी अंतिम साँसे गिन रहे हैं। अब जिओ ने रेट बढ़ा
दिए। रिचार्ज पर महीना 24 दिन का कर दिया। पहले आपको फ़्री और सस्ते की लत लगवाई अब जिओ
अच्छे से आपकी जेब काट रहा है।
कृषि बिल अगर लागू हो गये तो गेहूँ ,चावल,सब्जी,दाल,तेल जो एक आम आदमी की दिनचर्या में एक आबश्यकता के रूप में
शामिल है और दूसरे कृषि उत्पादों का भी यही हाल होगा। पहले दाम घटाकर बड़े पूंजीपति
छोटे व्यापारियों को ख़त्म करेंगे और फिर मनमर्ज़ी रेट पर किसान की उपज ख़रीदेंगे।
जब उपज केवल अड़ानी जैसे लोगों के पास ही होगी तो बाज़ार पर इनका एकाधिकार और
वर्चस्व होगा और सेब की तरह वे बेचेंगे भ अपने रेट पर। अब सेब की महंगाई तो आम
आदमी या उपभोक्ता बर्दाश्त कर सकता है क्योंकि उसको खाए बिना उसका काम चल सकता है
लेकिन दाल, रोटी,सब्जी और चावल तो हर आदमी को चाहिए ।
अभी भी वक्त है, जाग जाइए, आज देश के किसान सरकार से लगभग नौ महीने से लड़ाई
केवल अपनी लड़ाई ही नहीं लड़ रहे हैं,बल्कि देश के 100 करोड़ से अधिक मध्यमवर्गीय / निम्नवर्गीय परिवारों की भी लड़ाई
लड़ रहा है।यदि किसान आंदोलन से सरकार प्रभावित या बैक फुट पर नही जाती है तो कृषि
कानूनों के लागू हो जाने के बाद एक आम आदमी के परिवार की थाली की रोटी,दाल,सब्जी ,तेल और चावल इतना महंगा हो जाएगा जिसकी कोई कल्पना नही की जा
सकती है। इसलिए मैं समझता हूं कि अब किसानों का आंदोलन धर्म,क्षेत्र ,जाति और राजनीति से कहीं ऊपर उठकर एक जनांदोलन का
रूप देने का वक्त आ गया है। देश एक बार फिर इन पूँजीपतियों की गुलाम बनने की दिशा
में जाता हुआ दिख रहा है। कृषि कानून लागू होने के बाद देश मे खाद्यान्न सुरक्षा
कार्यक्रम निकट भविष्य में किस कदर दम तोड़ता नज़र आएगा ,इसकी परिकल्पना भी नही की जा सकती है।देश
का आम नागरिक अपनी पेट की भूख शांत करने और जिंदा रहने के लिए इन पूंजीपतियों के
रहमोकरम पर होगा। सरकार के तीनों कृषि कानून किसानों के लिए तो फांसी के फंदे हैं
ही और साथ ही ये आम आदमी के लिए दूसरी गुलामी की दस्तक भी।
मुज़फ्फरनगर में हुई किसान मोर्चा की
संयुक्त महापंचायत से किसान आंदोलन की दिशा और दशा में एक अभिनव परिवर्तन की आहट
दिखाई दी।धर्म,जाति और
क्षेत्रीय सीमाओं से परे इस महापंचायत और उसके तुरंत बाद हरियाणा सरकार के कथित मिनी
सचिवालय पर किसानों का धरना प्रदर्शन सत्तारूढ़ भाजपा ,उसके पैतृक और आनुषंगिक संगठनों में
सन्निकट विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र बेचैनी जरूर पैदा करने में सफल होता दिखता
है। जमीनी स्तर से भी अब यह आवाज उठती नज़र आ रही है कि जिन समाजों ने 2014,2017 और 2019 में अपने सामाजिक - राजनैतिक दल को छोड़कर बीजेपी के पक्ष में
मतदान कर बड़ी गलती कर दी और अब वह उस गलती की पुनरावृत्ति नही करना चाहता और साथ
ही यह भी निकलकर आ रहा है कि जो विपक्षी दल बीजेपी को हराने की स्थिति में दिखाई
देखा धर्म और जाति से परे हटकर उसी दल के पक्ष में मतदान करने के मूड में दिखाई दे
रहे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा,महामारी और बेरोजगारी से बुरी तरह टूट चुकी आम जनता बीजेपी शासन
से इस कदर नाराज़ है कि वह बीजेपी को हराते हुए किसी भी विपक्षी दल के साथ जाने का
मन बनाता हुआ दिखने लगा है। इन स्थितियों से एक तस्वीर चाहे वह धुंधली ही क्यों न
हो, उभरती नज़र
जरूर आ रही है कि राजनैतिक माहौल बीजेपी के लिए सुखद नही है। किसान आंदोलन के
प्रति सरकार के अमानवीय,असंवेदनशील, हठधर्मी और उपेक्षापूर्ण रुख से गांव के किसानों और उसके सहयोगी
कृषि मजदूरों में सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति एक समावेशी आक्रोश उभरता हुआ नजर आ रहा
है। संवैधानिक सामाजिक न्याय पर हो रहे अनवरत कुठाराघात और संविधान समीक्षा के नाम
पर अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण खत्म करने की साजिश को ओबीसी,एससी और एसटी अच्छी तरह समझने की स्थिति
में है, जिसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया भी बीजेपी के लिए आग में घी डालने
जैसी स्थिति से निपटना आसान नही होगा। अभी हाल ही में सम्पन्न हुए पंचायत चुनावों
के परिणामों से आम जनमानस में यह संदेश जा चुका है कि सत्तारुढ़ बीजेपी के प्रति
लोगों का लगाव/झुकाव कम हुआ है,उससे चुनावी टक्कर लेने की स्थिति में यदि कोई दल है तो वह है, समाजवादी पार्टी क्योंकि, समाजवादी पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के
चुनाव में पूरे दमखम के साथ एक मजबूत विपक्ष के रूप में सत्तारूढ़ दल के साथ लड़ता
हुआ दिखाई दिया है और अन्य विपक्षी दलों की भूमिका लगभग नगण्य दिखाई दी,बीएसपी ने तो अपने को चुनाव से अलग कर यह
लगभग साबित करती दिखी कि वह अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को लाभ देने उसकी रणनीति का
हिस्सा है।इससे पूर्व भी कई राजनैतिक अवसरों पर भी बीएसपी बीजेपी के साथ ही नज़र
आती रही। जमीनी स्तर पर और राजनैतिक गलियारों में यह चर्चा जोड़ पकड़ती जा रही है कि
बीजेपी के सामने यदि ऊई टिकता नज़र आ रहा है, तो वह है समाजवादी पार्टी और इस अवसर का भरपूर राजनैतिक लाभ
समाजवादी पार्टी को मिलने की संभावना हो सकती है।यह सपा की रणनीति पर निर्भर करेगा
कि वह इसका कितना राजनैतिक नकदीकरण करने की स्थिति में होगी!
2014 के चुनाव से
पूर्व से आज तक कांग्रेस विरोधी और झूठे प्रचार से देश की भोली-भाली जनता की
भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है जिसे अब वह अच्छी तरह समझ और ऊब चुकी है।
सांविधानिक संस्थाओं को पंगु कर और आम आदमी की आवाज राष्ट्रीय मीडिया के अधिकांश
भाग को खरीदकर सरकार ने अपने लोकतांत्रिक तानाशाही चरित्र की बड़ी मिसाल क़ायम
कर लोकतंत्र की निर्मम हत्या जैसा कृत्य किया है। सत्तारूढ़ बीजेपी की कथनी और करनी
का रिपोर्ट कार्ड यदि ईमानदारी से तैयार कर उसका विश्लेषण किया जाए तो वह आम आदमी
के किसी भी सरोकार पर खरी साबित नही हुई है। मेरा मानना है कि आज जो भी मंदिर-
मस्जिद,हिन्दू-
मुसलमान,भारत-
पाकिस्तान अर्थात अदृश्य,काल्पनिक और झूठी राष्ट्रभक्ति की अंधभक्ति में डूबे हुये हैं
और जिनकी आज मानवीय संवेदनाएं किसानों के साथ नहीं है,उन्हें सजग और सतर्क हो जाने की जरूरत है
क्योंकि, भविष्य में
देश के आम आदमी और उसकी सुरक्षा में रात दिन सरहद पर तैनात सैनिकों के परिवार के
साथ होने वाले एक बड़े अन्याय और धोखे की साज़िश को अंधी राष्ट्रभक्ति की भट्टी में
झोंकने से बचे ,यही सच्ची
राष्ट्रभक्ति की मिसाल होगी।
जय जवान - जय किसान।
लखीमपुर-खीरी
88586560
Monday, September 06, 2021
तो क्या ‘जातिवार जनगणना’ अब नया गेम चेंजर होगी -अजय बोकिल
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अजय बोकिल |
सिफारिश लागू हुई तो बदल जाएगा ओबीसी आरक्षण का पुराना ढांचा-नन्द लाल वर्मा
"क्या ओबीसी आरक्षण में बंदरबांट को खत्म कर देगी "रोहिणी आयोग" की सिफारिश, सामाजिक- राजनीतिक दबदबे का बदल सकता है हुलिया या चेहरा,सिफारिश लागू हुई तो बदल जाएगा ओबीसी आरक्षण का पुराना ढांचा"
लखीमपुर-खीरी
88586560
पढ़िये आज की रचना
मौत और महिला-अखिलेश कुमार अरुण
(कविता) (नोट-प्रकाशित रचना इंदौर समाचार पत्र मध्य प्रदेश ११ मार्च २०२५ पृष्ठ संख्या-1 , वुमेन एक्सप्रेस पत्र दिल्ली से दिनांक ११ मार्च २०२५ ...

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