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N.L.Verma (Asso.Pro.) |
ओबीसी आरक्षण : सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल में हरियाणा सरकार के पांच साल पुराने नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। यह सवाल फिर से चर्चा के केंद्र में आ गया कि आखिर ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने के आधार/मानदंड क्या-क्या है या क्या-क्या होना चाहिए? आइए जानते हैं..........
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी
लेयर की व्यवस्था इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में एक आदेश के माध्यम से दी
थी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "क्रीमी लेयर" अर्थात विगत तीन वर्षों की
सकल वार्षिक औसत आय सीमा (तत्कालीन एक लाख रुपये) से ऊपर आने वालों को क्रीमी लेयर
मानकर उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) के नॉन-क्रीमी लेयर
में प्राथमिकता तय करने वाले आदेश का नोटिफिकेशन यह कहते हुए रद्द कर दिया कि
सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर तय नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि 17 अगस्त 2016 के नोटिफिकेशन के तहत हरियाणा राज्य सरकार ने सिर्फ आर्थिक आधार पर
क्रीमी लेयर तय किया था। बेंच ने कहा कि यह नोटिफिकेशन इंदिरा साहनी से संबंधित
वाद में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले के खिलाफ है। उसने कहा कि इंदिरा साहनी केस के
निर्णय में आर्थिक, सामाजिक और अन्य
आधार पर क्रीमी लेयर तय करने का फॉर्म्युला बताया गया था।
मंडल कमिशन की सिफारिशें और ओबीसी:
सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े
वर्ग की पहचान करने के लिए वर्ष 1979 में बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) की अध्यक्षता में एक आयोग पुनः गठित किया गया था। इससे
पूर्व इसी उद्देश्य के लिए 1953 में काका कालेलकर
आयोग गठित किया गया था जिसकी सिफारिशें 1955 में ही आ गयी थी।
तब से ये सिफारिशें सरकार के ठंडे बस्ते में पड़कर धूल फांक रही थी। मंडल आयोग ने
पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 27% आरक्षण देने की सिफारिश के साथ ओबीसी
के कल्याण के लिए अन्य कई सिफारिशें की थी। ध्यान रहे कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण का प्रावधान देश में
पहले से ही लागू था। इसलिए, मंडल कमिशन ने
जिन्हें आरक्षण देने की सिफारिश की थी, उन्हें अन्य पिछड़ा
वर्ग (ओबीसी) कहा गया।
क्या है ओबीसी में क्रीमी लेयर:
मंडल कमिशन की सिफारिशें लगभग 12 सालों तक ठंडे बस्ते में दबी रही। जब
वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो वर्ष 1991 में इन्ही
सिफारिशों के आधार पर केवल सरकारी नौकरियों में ओबीसी के 27% आरक्षण की घोषणा कर दी थी। तब सुप्रीम
कोर्ट की वकील इंदिरा साहनी ने उसे देश की शीर्ष अदालत में चुनौती दी। सुप्रीम
कोर्ट ने 16
नवंबर, 1991 को दिए अपने फैसले में ओबीसी को 27% आरक्षण के फैसले का समर्थन किया, लेकिन उसने कहा कि ओबीसी की पहचान के लिए जाति को पिछड़ेपन का आधार
बनाया जा सकता है। साथ ही, उसने यह भी स्पष्ट
किया था कि ओबीसी में क्रीमी लेयर को आरक्षण नहीं दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगले वर्ष 1992 में देश भर में सरकारी नौकरियों में
ओबीसी आरक्षण लागू हो गया। हालांकि, कुछ राज्यों ने
सुप्रीम कोर्ट की बात यह कहते हुए नहीं मानी की उनके यहां ओबीसी में कोई क्रीमी
लेयर है ही नहीं। वर्ष 1999 में क्रीमी लेयर का
मुद्दा फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने उठा। कोर्ट ने फिर से अपना पुराना आदेश
दोहराया। हालांकि, केंद्र की वीपी
सिंह सरकार ने 1993
में ही ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने
के लिए अधिकतम सालाना औसत आय की रकम भी तय कर दी थी और नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट
की भी व्यवस्था बना दी थी।
क्या है आय का पैमाना:
इसके मुताबिक, वर्ष 1993 में किसी ओबीसी अभ्यर्थी के माता-पिता
की विगत तीन वर्षों की औसत वार्षिक सकल आय 1 लाख रुपये से ज्यादा वाला अभ्यर्थी क्रीमी लेयर घोषित किया गया। यानी, जिस ओबीसी अभ्यर्थी के माता -पिता की
पिछले तीन सालों की औसत वार्षिक सकल आय एक लाख रुपये की कमाई हो रही थी, उसे आरक्षण का फायदा नहीं दिया जाएगा।
इस आय की गणना करने में उसके माता -पिता की वेतन और कृषि से होने वाली आय शामिल
नही करने का प्रावधान था। फिर 2004 में यह वार्षिक आय
बढ़कर 2.5 लाख रुपये, 2008 में 4.5 लाख रुपये, 2013 में 6 लाख रुपये और फिर 2017 में 8 लाख रुपये हो गयी। नियम के मुताबिक, हर तीन साल में क्रीमी लेयर तय करने के तयशुदा आमदनी की रकम को
रिवाइज किया जाता है। यही वजह है कि अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) और ओबीसी वेलफेयर की लड़ाई लड़ने वाले
सामाजिक न्याय के पक्षधर राजनीतिक दल और एक्टिविस्ट जल्दी से जल्दी यह रकम बढ़ाने
की बात कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि ओबीसी वेलफेयर की संसदीय समिति के चेयरमैन
एमपी की सतना लोकसभा क्षेत्र से लगातार चार बार के सांसद श्री गणेश सिंह पटेल की
अध्यक्षता में इस आय सीमा को 15लाख रुपये बढ़ाने की
सिफारिश की गई थी जिस पर केंद्र सरकार द्वारा कोई संज्ञान न लेने पर उन्होंने संसद
के सभी ओबीसी सांसदों को एक आमंत्रण पत्र भेजा था कि वे इस विषय को लागू करने के
लिए केंद्र सरकार से अनुरोध करें और दबाव बनाएं। लेकिन अत्यंत दुख के साथ लिखना पड़
रहा है कि उस समय एनडीए सरकार में शामिल किसी दल के ओबीसी सांसद अपने ही समाज के
कल्याण के लिए बनी समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए केंद्र सरकार या पीएम
मोदी से निवेदन करने का साहस तक नही जुटा पाए थे। गैर एनडीए दलों के कुछ सांसदों
जिनमें समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद श्री रवि प्रकाश वर्मा भी
शामिल थे,ने देश के पीएम को पत्र लिखकर श्री
गणेश सिंह पटेल की समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए अनुरोध किया गया था।
गिनती के कुछ सांसदों की आवाज़ नक्कारखाने
में तूती की आवाज़ की तरह दबकर रह गयी थी और उसके कुछ दिनों के बाद ही श्री गणेश
सिंह पटेल का कार्यकाल समाप्त हो जाने के लगभग सात आठ महीने बाद उनके स्थान पर
सीतापुर से सांसद श्री राजेश वर्मा को उस समिति का चेयरमैन बनाया गया जो वर्तमान में उस पद पर आसीन हैं।
उधर, केंद्र सरकार का
कहना है कि उसे ओबीसी कोटे की जातियों में उपजातियों के निर्धारण के लिए गठित
जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं
अधिकारिता राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक ने मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में लिखित
जवाब दिया था। उन्होंने कहा, 'ओबीसी में क्रीमी
लेयर तय करने का इनकम क्राइटेरिया के रिविजन का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन है।'
अभी हाल में ओबीसी के क्रीमीलेयर पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
आया है कि... सिर्फ आर्थिक आधार पर तय नहीं हो सकता है ओबीसी क्रीमी लेयर। इसलिए
इस निर्णय ने
क्रीमी लेयर और नॉन क्रीमी लेयर पर
सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों और ओबीसी बौद्धिक वर्ग में एक नई बहस को
जन्म दे दिया है। दूसरे ओबीसी की किसी जाति को ओबीसी सूची में शामिल करने और
निकालने के राज्यों के अधिकार का बिल संसद से पारित हो जाने के बाद भी ओबीसी
आरक्षण पर नए सिरे से वैचारिक- विमर्श शुरू हो चुका है। ओबीसी आरक्षण पर जन्मी यह
नई बहस सामाजिक न्याय की पक्षधर पार्टियों के लिए यूपी के विधानसभा चुनाव में
कितना कारगर सिद्ध हो सकती है, आने वाले निकट
भविष्य में ही देखा जा सकता है।
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