साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 08, 2021

इन सोशल मीडिया साइट्स पर सरकार नकेल डाल पाएगी -अजय बोकिल

'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे', जहां केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि ट्विटर पर राजनीति करना उनका पसंदीदा कार्य हैवही मोदी सरकार ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को भारत की सम्प्रभुता पर खतरा मानकर उसे नोटिस थमा रही है।

अजय बोकिल

एक विमर्श

सोशल मीडिया क्षेत्र में इन दिनो  दिलचस्प टकराव और कुछ खिसियाहट भरी स्थिति है। जहां केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि ट्विटर पर राजनीति करना उनका पसंदीदा कार्य है, वही मोदी सरकार ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को भारत की सम्प्रभुता पर खतरा मानकर उसे नोटिस थमा रही है। लेकिन ट्विटर पर स्थायी प्रतिबंध लगाने की हिम्मत अभी तक नहीं जुटा पाई है। उसी ट्विटर को हाल में नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देश ने राष्ट्रपति विरोधीबताकर एक झटके में बैन कर दिया। यूं भारत सरकार ट्विटर, व्हाट्स एप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को भारत के कानून मानने की बाध्यता के नोटिस पहले  भी  दे चुकी है, लेकिन ये कंपनियां अभी भी आदेश मानने में आकाकानी करते हुए सरकार को ही झटके दे रही हैं। अगर ये प्लेटफार्म भारत सरकार के कानूनो को नहीं मान रहे हैं तो इनकी मुश्कें कसने में दिक्कत क्या है? क्या सरकार सचमुच अभिव्यक्ति की आजादीकी प्रबल पक्षधर हो गई है या फिर वह स्वयं इन प्लेटफार्म्स का सिलेक्टिव इस्तेमाल होने देना चाहती है? हालांकि सिलेक्टिव सोच ( अगर है तो)  अपने आप में अंतरराष्ट्रीय नेट स्वतंत्रताऔर सोशल मीडिया पर लोगों के मनमाफिक बोलने की आजादी के अधिकार के खिलाफ है। बावजूद इस सचाई के कि सोशल मीडिया पर घोर अराजकता है। कई लोगों का मानना है कि भारत सरकार के आदेश में आम आदमी की स्वच्छंद अभिव्यक्ति के साथ-साथ ‍उसकी निजता के अधिकार की रक्षा भी दांव पर है। इस नियम के तहत सरकार जब चाहे, जिसकी चाहे बातचीत या मैसेजिंग को मांग सकती है, पढ़ सकती है।

 

इक्कीसवीं सदी की पहली चौथाई के आखिरी सालों में इन वैश्विक और अब बेहद ताकतवर हो चुकी सोशल मीडिया कंपनियों और वैधा‍िनक सरकारों के बीच जनमत बनाने के तंत्र पर नियंत्रण को लेकर खुली जंग शुरू हो गई है। कुछ देशों ने इन कंपनियो पर नकेल भी डाली है। लेकिन लोग भी अब सोशल मीडिया के गुलाम हो चुके हैं। क्योंकि ये कंपनियां हमारे जैसे आम आदमी को अपनी बात रखने का ( जिसमें अंध भक्ति से लेकर अंध विरोध और बेहूदा सामग्री पोस्ट करना तक शामिल है) प्लेटफार्म देती हैं। इससे जहां सच छुप नहीं पाता तो वहीं, कई बार झूठ ही सच के रूप में परोसा जाता है। यूं मोटे तौर पर एक यूजर सोशल मीडिया पर दिल की बातकहकर हल्का हो जाता है, लेकिन ये कंपनियां ऐसे करोड़ों यूजरों के डाटा का बेखौफ इस्तेमाल अपने व्यावसायिक हितों के लिए करती हैं। इन कंपनियों को इतना ताकतवर भी हमी ने बनाया है। शायद इसीलिए करीब सात साल पहले भाजपा और मोदी सरकार को अत्यंत प्रियलगने वाला सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपनी अब हरकतोंके कारण उन्हें चुभने लगा है। याद करें वर्ष 2011 में यूपीए- 2 सरकार में तत्कालीन संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने जब सोशल मीडिया पर नकेल कसने की बात कही थी तो उसका कितना ‍विरोध हुआ था। सिब्बल को सफाई देनी पड़ी थी कि सरकार ऐसा कुछ नहीं करने जा रही। वो भारत में ट्विटर, व्हाट्सएप का शुरूआती दौर था। तब सिब्बल के बयान का विरोध इसलिए हुआ था, क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर राजनीतिक विरोध और मन की बातकहने की सुविधा थी।

 

गौरतलब है कि माइक्रो ब्लागिंग सोशल साइट ट्विटर  और भारत सरकार के बीच पहला टकराव दिल्ली के सीमा पर किसान आंदोलन के चरम पर पहुंचने के समय ही हो गया था, जब सरकार ने आईटी एक्ट के सेक्शन-79 के तहत ट्विटर से उन 1178 ‍’खालिस्तान एवं पाकिस्तान समर्थित अकांउट्स को सस्पेंड करने को कहा था, जो किसान आंदोलन के बारे में गुमराह करने वाली सूचनाएंडाल रहे थे।टविटर ने कुछ खाते सस्पेंड भी किए। साथ में दलील दी किभारत सरकार ने जिस आधार पर ट्विटर अकाउंट्स बंद करने को कहा, वो भारतीय क़ानूनों के अनुरूप नहीं हैं।" इस के बाद भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर को सरकारी निर्देशों का अनुपालन न करने का नोटिस थमा दिया। लेकिन मोदी सरकार सबसे ज्यादा 'टूलकिट मैनिपुलेशन मीडिया' प्रकरण से भड़की। इसमें ट्विटर ने भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा द्वारा लगाए कांग्रेस पर टूलकिट इस्तेमाल कर बीजेपी और देश की छवि ख़राब करने के आरोप को मैनिपुलेटेडश्रेणी में रखा। मैनिपुलेटेड बोले तो  ऐसी तस्वीर, वीडियो या स्क्रीनशॉट है, जिसके ज़रिए किए जा रहे दावों की प्रामाणिकता पर संदेह हो और इसके मूल रूप से कोई छेड़छाड़ की गई हो। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने मामले की जांच के बहाने ट्विटर के दिल्ली दफ्त र पर छापा मारा। इस पर ट्विटर ने दिल्ली में अपने स्टाफ की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई। जवाब में भारत सरकार के आईटी मंत्रालय ने कहा कि "सरकार ट्विटर के दावों को पूरी तरह से खारिज करती है। भारत में बोलने की आज़ादी और लोकतांत्रिक तरीक़ों को मानने की एक शानदार परंपरा रही है। लेकिन  ट्विटर का बयान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर अपने शर्तें थोपने की कोशिश है। इसके पूर्व इस साल फरवरी में भारत सरकार ने सभी सोशल मीडिया कंपनियों से नए भारतीय नियम लागू करने का अल्टीमेटम‍ ‍िदया था, जो 26 मई को खत्म हो गया। ट्विटर पर इसका भी खास असर नहीं दिखा, क्योंकि उसने हाल में देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू व सरसंघचालक मोहन भागवत सहित आरएसएस के पांच बड़े नेताअोंके अकाउंट से भी ब्लू टिक हटा दिया था। कारण कि ये अकाउंट काफी समय से इनेक्टिवथे। भाजपा प्रवक्ता सुरेश नखुआ ने इसे भारतीय संविधान पर हमलाबताया। हालांकि बाद में ये टिकरिस्टोर कर दिए गए। लेकिन अब भारत सरकार ने ट्विटर को फाइनल नोटिसदे दिया है। कहा गया है कि अगर ट्विटर तत्काल नियमों का पालन करने में नाकाम रहता है तो आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत उसे प्राप्त कानूनी संरक्षण समाप्त हो जाएगा।

 

उधर व्हाट्सएप के साथ भी भारत सरकार की तनातनी चल रही है। सरकार के नए आईटी नियमों का विरोध करते हुए व्हाट्सएप ने कहा कि वह  ट्रेसेबिलिटी कानून एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शनके खिलाफ है। दिल्ली हाई कोर्ट में कंपनी ने कहा कि नए कानून में ट्रेसेबिलिटी का प्रावधान असंवैधानिक और लोगों के निजता के अधिकार का हनन करता है। इस पर भारत के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफ कहा कि अगर सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में काम करना है तो उन्हें यहाँ के क़ानूनों को मानना होगा। सरकार चाहती है कि ये सोशल मीडिया कंपनियां उनके बारे में शिक़ायतों का निपटारा पंद्रह दिनों में करें और इस बाबत सरकार को महीने में एक रिपोर्ट सौंपें। साथ ही सरकारी नियमों का पालन कराने  कम्प्लायंस अफ़सर की नियुक्ति करें।

 

यहां बुनियादी सवाल ये है कि ये कंपनियां किसी सरकार को इतनी आंख कैसे दिखा सकती हैं और सरकार भी इतनी सहनशीलता क्योंकर‍ दिखा रही है? ध्यान रहे कि इन सोशल मीडिया कंपनियों ने दुनिया के दूसरे कुछ देशों में भी ऐसा ही करने की कोशिश की तो वहां सरकारों ने इन कंपनियों की मुश्कें कस दीं। लेकिन अगर हमारे यहां ये कंपनियां आसानी से नहीं मान रही तो इसका कारण करोड़ों भारतीयों का डेटा इनके पास है। अकेले ट्विटर के ही भारत में करीब 18 करोड़ यूजर्स हैं और वर्ष 2019 में इस कंपनी की भारत से कमाई 56.9 करोड़ रू. थी। कंपनी यह कमाई विज्ञापनों और डेटा लायसेंसिंग से करती है। यूं कहने को ट्विटर के मुकाबले एक स्वदेशी माइक्रो ब्लाॅगिंग सोशल वेब साइट कूपिछले साल वजूद में आई है। भारत सरकार के कई मंत्री और भाजपा से जुड़े लोग इससे शुरू में ही जुड़ चुके हैं। फिर भी ट्विटर-सी लोकप्रियता और विश्वास अभी इसे नहीं मिला है। कूके भारत में अभी साढ़े 4 करोड़ यूजर हैं। सरकारों और सोशल साइट कंपनियों के व्यावसायिक हितों और दुराग्रहों के बरक्स तीसरा पक्ष उन नेटीजनों का है, जो इंटरनेट पर अपनी बात बेलाग ढंग से कहने के पक्षधर हैं। उनका तर्क है कि सांडों की इस लड़ाई में अपनी बात कहने का उनका हक न प्रभावित हो। अगर सरकारें पिछले दरवाजे से भी सोशल मीडिया कंपनियों की मुश्कें कसना चाहती हैं तो वह इन्हें नामंजूर है।

 

यहां असल सवाल वही है कि अभिव्यक्ति की आजादी की हद क्या है? उसे किस हद तक मान्य किया जाए? इसे कौन पारिभाषित करेगा? कोई सरकार इतनी उदार कभी नहीं होगी कि वह उसे गालियां देने वालों को गुलाब के फूल भेंट करती रहे। जबकि सरकार या व्यवस्था विरोधी कभी नहीं चाहेंगे कि गालियां दे सकनेका उनका यह प्लेटफार्म कैदखाना बनकर रह जाए।

 

यानी असल जंग उस पब्लिक नरेटिव को नियं‍त्रित, निर्देशित और उसे संचालित करने की है, जो सरकारें बनाता, मिटाता है। मसलन कुछ देशों में  सोशल मीडिया साइट्स पर चुनावों को प्रभावित करने के गंभीर आरोप लगे हैं। वोटरों तक व्यक्तिगत रूप से पहुंच के चलते इन कंपनियों ने चुनाव नतीजों को किसी के पक्ष में झुकाने की ताकत दिखाई। इसका तात्पर्य यही है कि यदि सोशल मीडिया साइट्स यदि सरकार और उसके हितों के पक्ष में काम करें  तो सरकारें उन्हें सहीमानती हैं, लेकिन अगर विप‍क्षी हित में काम करें तो देश विरोधीठहराने में देर नहीं होती। क्योंकि सरकार के हितऔर देशहितमें सूक्ष्म विभाजन रेखा है। जबकि इन सोशल मीडिया साइट्स का मकसद अपनी  ताकत और कमाई बढ़ाते जाना है। यकीनन  इस पर कहीं तो अंकुश लगाना ही होगा, लेकिन क्या सभी सरकारों में इतना नैतिक साहस है? 

 (लेखक म० प्र० से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के वरिष्ठ संपादक हैं )

प्रकृति और योग-अल्का गुप्ता

 साहित्य के नवांकुर

अल्का गुप्ता

श्रष्टि, प्रकृति, योग हैं पुरस्कार,

मिला है, स्वरूप यह उपहार

सुखी जीवन का एक आधार,

योग का पालन करो सरोकार

 

मात्र योग एवं प्रकृति के,

सामीप्य से सब रोग निषिद्ध

अर्जित, आत्मसिद्धि शांत-चित्त,

सात्विकता ही है फलसिद्ध

 

हैं प्रकृति योग सम्बन्ध घनेरा,

प्रकृति और योग के सानिध्य में

अभिसिंचित होता जीवन मेरा

व्यतीत हो जीवन के मध्य में

 

मन भ्रान्ति मिट जाये सब,

अर्जित हो शांति जो योग 

काया-क्लेश दूर हो,

काया प्रफुल्लित हो रहें निरोग

पता-लखीमपुर-खीरी ( उ०प्र०)

alka7398718446@gmail.com


 

ग़ज़ल-(नन्दी लाल)

नन्दी लाल
दिल से अपने  न अब रहा जाए।

कबतलक जुल्म यह सहा जाए।।

 एक गलती हुजूर की    जिससे ,

पूण्य  सब पाप सँग बहा जाए।।

 साँच कितना है झूठ कितना है,

कुछ तो अखबार में लिखा जाए।।

 आप खुद ही है जानकार बड़े ,

आप से और क्या कहा जाए।।

 देख कर भी न देखती आँखें ,

दुखते पाँवों से कब चला जाए।।

 ये सियासत है झूठ की इसको ,

क्या पता कौन बरगला जाए।।

 है टिकी साँस आस पर जिसकी,

उसकी गर्दन   कोई दबा जाए।।

 जो उसे ठोकरों   में मिलती है ,

आपको   मुफ्त में दवा जाए।।

 कुछ भरोसा नहीं कि कौन कहाँ,

बात ही बात में    रुला जाए।।

 

        पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी

Monday, June 07, 2021

अस्मिता ब्लॉग के दैनिक पाठक

link here- anviraj.blogspot.com

सूबे की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती जी के प्रति रणदीप हुड्डा की कलुषित मानसिकता

-अखिलेश कुमार 'अरुण'
मिस मायावती 2 बच्चों के साथ गली में जा रही थीं। वहां खड़े एक व्यक्ति ने उनसे पूछा- क्या ये दोनों बच्चे जुड़वां हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा- नहीं, यह 4 साल का है और वह 8 साल का है। इसके बाद उस आदमी ने कहा- मुझे विश्वास नहीं होता कि कोई आदमी वहां दो बार भी जा सकता है।'


सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए लोग किस हद तक गिर सकते हैं. यह हम रणदीप हुड्डा से सीख सकते हैं. इन लोगों का बस चले तो आज भी दलित/वंचितों को पैर का धूल बना कर रखें, यह आज जो सेलिब्रिटी बना हुआ है वह वंचितों की देन है. मजदूर,रिक्सा चालक, फेरीवाला, आदि अपने दिन भर के कामों से थक हार कर आज भी सस्ते/महंगे मोबाइल के यूट्यूब पर इनकी अभिनीत फिल्मो को देखकर इन्हें स्टार बनाते हैं उनका व्यूवर बढ़ाते हैं ....यह यहीं तक सिमित नहीं रहा है गाँव के परिवेश टीवी,वीसीआर/डीवीडी/वीसीडी से लेकर शहर के सिनेमा हाल तक में वंचित तबके की ही भीड़ होती है. जहाँ पर फिल्म के एक-एक दृश्य पर हूटिंग और तालियों की गड़गड़ाहट सुनाने को मिलता है वह यही काले और नस्लीय जाति भेद के लोग हैं जिनकी इज्जत यह सरे आम तार-तार कर रहा है.

पुराने वायरल अंग्रेजी वीडियो का हिंदी सार जिसमे यह शख्स कहता है' मिस मायावती 2 बच्चों के साथ गली में जा रही थीं। वहां खड़े एक व्यक्ति ने उनसे पूछा- क्या ये दोनों बच्चे जुड़वां हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा- नहीं, यह 4 साल का है और वह 8 साल का है। इसके बाद उस आदमी ने कहा- मुझे विश्वास नहीं होता कि कोई आदमी वहां दो बार भी जा सकता है।' जातीय और रंगभेद पर यह तंज है, विडिओ लिंक https://youtu.be/_0VOcRSbVAE हिसार (हरियाणा) में ऍफ़ आई आर दर्ज की जा चुकी है पर इतने से कुछ नहीं होगा जब तक की कोई ठोस कानून नहीं बनाया जाता जिस सेलिब्रेटी के मन में जो आये वंचित समुदाय के प्रतिष्ठित नेताओं पर अनाप-शनाप बोलकर रातों-रात स्टार बन जाता है. जितनी छवि अभिनेता अपने काम को लेकर नहीं बना पता है उसे कहीं ज्यादा बाबा साहब, कांशीराम, मायावती, मुलायम सिंह, लालू यादव के साथ साथ जातिसूचक चोरी-चमारी, भंगी जैसा नहीं दिखाना चाहती, अहीर समझ रखे हो का, आदि-आदि शब्दों का इस्तेमाल कर लोग चमक जाते हैं. और हम प्राथमिकी दर्ज कराकर बस खुश हो जाते हैं ऐसे में हमारी और हमारे समाज की छवि कभी भी नहीं सुधर सकती और नहीं सुधारी जा सकती है.


रणदीप हुड्डा की पहली फिल हाईवे देखे थी एक दो सीन को छोड़ दें तो और सब समान्य था कीन्तु अभिनय अच्छा लगा. पहली बार में ही उसके अभिनय का कायल हो गया था. लगे हाथ सर्वजीत भी देख लिये किन्तु उसके अभिनय में कहीं ऐसा नहीं लगा की यह ओछी मानसिकता का व्यक्ति है. यह भ्रम भी आज टूट  गया आखिर इसने अपनी जातीय मानसिकता को उजागर कर ही दिया. हमको ऐसे लोगों से घृणा क्यों हो जाती है?????? या ये सबके सब घृणा लायक ही होते हैं, नहीं ऐसा नहीं है सब एक जैसे नहीं हो सकते लेकिन इस अभिनेता से यह उम्मीद नहीं थी.
जाति है की जाती नहीं है, जाति तुम कब जाओगी हमारे दिल, दिमाग और देश से कर्म के आधार पर कब लोग यहाँ (भारत में) सम्मान पायेंगे?????????????????????????? अनंत तक यह एक अनुत्तरित प्रश्न बनकर ही रह जायेगा, शायद सदा के लिए.

UN ने ब्रांड अम्बेसडर के पद से हटाया, हमने अपने दिलोदिमाग से और आप?????? 


लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार/साहित्यकार हैं.
पता-ग्राम हजरतपुर, लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश-262804

ग़ज़ल (नीरजा विष्णु 'नीरू')

नीरजा विष्णु 'नीरू'

भला कब दर्द से आज़ाद हूँ मैं

ग़मो की इक बड़ी तादाद हूँ मैं।

 

तबस्सुम देखकर हैरान मत हो

लबों पर कांपती फरियाद हूँ मैं।

 

  कैसे  दामन-ए-उम्मीद  छोड़ूं

पता है जब कि उसके बाद हूँ मैं।

 

वो गुल जो टूटकर मुरझा गया हो

उसी ख़ुशबू सी बस बर्बाद हूँ मैं।

 

मसीहाई   तुम्हारी    देखनी   थी

इसी ख्वाहिश में तो आबाद हूँ मैं।

 

मुझे  ये  जानकर  अच्छा लगा  है

कि तुमको आज तक भी याद हूँ मैं।

 

ख़ुदा ही  जानता  है ये  हक़ीकत

कि ज़ख्मों की बड़ी उस्ताद हूँ मैं।

 

मेरे  हालात  पर  हंसना    'नीरू'

यही क्या कम है यूँ भी शाद हूँ मैं।

ग्राम व पोस्ट: भीखमपुर

जनपद: लखीमपुर खीरी(उत्तर प्रदेश) पिन कोड:262805

 neerusolanki1090@gmail.com

पर्यावरण बचाना है-साधना रस्तोगी पंखु

साधना रस्तोगी पंखु

साहित्य के नवांकुर     
पर्यावरण दिवस अपना कर

पर्यावरण बचाना है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

 

अपनी संस्कृति और सभ्यता

का परिचय देना होगा ।

पर्यावरण को संरक्षित करने

का प्रण लेना होगा ।।

 

पौधों  को  नुकसान  न  पहुचे

सबको ये समझाना है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

 

वन उपवन के पेड़ों को पौधों

को मित्र बनाएं हम ।

खुशियां उनसे शेयर करें संबंध

विचित्र बनाएं हम ।।

 

पूज्य है जो श्रद्धेय है जो उसको

सादर अपनाना है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

 

यही  हैं  माता पिता यही हैं

यही बंधु हैं सखा यही ।

इन  पेड़ों  जैसा   हित कारी

दूजा कोई दिखा नही ।।

 

यही  साधना है  बाकी  बाकी

कर्तव्य  निभाना  है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०

Sunday, June 06, 2021

जंगल की आग

सुरेश सौरभ
लघुकथा    

किया जाए, लखनऊ, दिल्ली से बड़े अधिकारी आने वाले हैं किसी दिन, बड़ी चिंता हो रही है लग रहा, अब औचक निरीक्षण हो ही जाएगा?
-चिंता काहे की साहब ?
-अरे यार! यह भी नहीं जानते, हमने जो चोरी-चोरी सैकड़ों पेड़ कटा दिए हैं, उसका हमारे वन विभाग के पास कोई रिकार्ड नहीं है, अगर उन लोगों ने कटे पेड़ों के ठूंठ देख लिए और हमारी चोरी पकड़ी गई, तो फिर हमारी खैर नहीं? हमें नौकरी बचाना मुश्किल होगा भाई?   
-इसका समाधान है साहब, परेशान काहे हैं?
-क्या है भाई! जल्दी बता?
-आग।
अगले दिन जंगल में भीषण आग लग गई। खबर छपी, सैंकड़ों पेड़ जलकर खाक। शीघ्र ही लखनऊ दिल्ली के, वन विभाग के, अधिकारी जंगल में, लगी आग से नुकसान का जायजा लेने के लिए आ रहे हैं।


निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
मो-7376236066

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष- लक्ष्मी पाण्डेय

लक्ष्मी पांडे

साहित्य के नवांकुर

काटे हैं हमने पेड़ भी  दीवान के लिए ।

छोड़े नही पहाड़ भी , मकान के लिए ।।

 

वसुधा के साथ खेल इतना ठीक नहीं है ।

खतरा है ये बहुत बड़ा इंसान के लिए ।।

 

सांसों के लिए सांस, जो ले रहे हैं हम ।

सांस नहीं जहर है, अपनी जान के लिए ।।

 

पीने के योग्य पानी बहुत ही, कम है दोस्तों ।

रखना है सुरक्षित ये जल, जहान के लिए ।।

 

अब पैलोथिन भी बन गई है शत्रु देखिए ।

कोई विकल्प ढूंढिए भावी-भविष्य के लिए ।।

 

अब लक्ष्य घर की लक्ष्मी को साधना होगा ।

इंसानियत के इस धर्म और ईमान के लिए ।।

पता-नहर रोड निकट बुद्ध बिहार लखीमपुर

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

आँधियों में पार कर देना   मुझे मझधार से।

नाव ने यह बात कर ली है नदी की धार से।।

 

वह कभी कीमत न समझे जान की पहचान की,

यह मुनाफा खोर    चौड़े हो गए व्यापार से।।

 

 भूख जब इन्सान  की बर्दाश्त से बाहर हुई,

 सर पटक कर मर गया तब आदमी दीवार से।।

 

 मौत का मंजर नजर में, फर्श पर लेटा हुआ ,

वह गुजारिश कर रहा बहरी हुई सरकार से।।

 

 बुझ गई जो झोपड़ी की आग दो सुलगा उसे,

 आ गई फिर से खबर उस बेरहम दरबार से।।

 

 काम में अपने बराबर    वह खड़ा मुस्तैद है,

 बेवजह की अब बहस करिए न चौकीदार से।।

 

 कोन जहरीली कहाँ है      कौन सेहत मंद हैं,

 आ रही उड़कर हवाएँ   यह समंदर पार से।।

 


नन्दी लाल

गोला गोकर्णनाथ खीरी


पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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