साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Sunday, November 21, 2021

नन्दी लाल की ग़ज़ल

ग़ज़ल


गया जो कुछ गया   ईमानदारी में गया बाबा।
बचा जो इश्क की  दूकानदारी में गया बाबा।।

चुकानी पड़ रही है एक बोसे की बड़ी कीमत,
हमारा माल लाखों का  उधारी में गया बाबा।।

मिला था प्रेम से जो कुछ उसे मिल बाँट खाना था,
भतीजा तो चचा की  होशियारी में गया बाबा।।

हमेशा रात में महबूब      की सूरत नजर आई ,
बचा जो दिन सितारों की शुमारी में गया बाबा।।

बताकर हक मोहब्बत माँगने फिर घर चले आए,
मिला था वक्त खुद की ताजदारी में गया बाबा।।

अँधेरों में बहकता इसलिए  इतना उजाला जो,
बड़ों का तेल छोटो की   दियारी में गया बाबा।।

   नन्दी लाल 
गोला गोकर्णनाथ खीरी

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