साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, July 12, 2024

सामाजिक न्याय के नाम पर सत्ता की मलाई चाटते जातीय दलों की असलियत जो एससी-एसटी और ओबीसी के लिए आस्तीन के सांप सिद्ध हो रहे हैं-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

भाग: दो.......
(भाग एक पढ़ने के लिए लिंक करें https://anviraj.blogspot.com/2024/07/blog-post_12.html
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी
9415461224.

वास्तविकता यह है कि एससी-एसटी और ओबीसी के जनप्रतिनिधियों को आरक्षण व्यवस्था और उसमें होने वाली साजिशों की जानकारी ही नहीं है और न ही उन्हें इसकी जरूरत महसूस होती है,क्योंकि एक विधायक या सांसद के बच्चे के लिए इन चीजों का कोई महत्व नहीं रह जाता है। सामाजिक न्याय की आरक्षण व्यवस्था और उसका सही तरीके से क्रियान्वयन एक जटिल प्रक्रिया है जिसकी सामान्य जानकारी (ज्ञान नहीं) बहुजन समाज के कुछ लोगों को तो है,लेकिन बहुजन समाज के जनप्रतिनिधियों को तो है ही नहीं और न ही वे इसकी सामान्य जानकारी और क्रियान्वयन प्रक्रिया की जटिलता को जानना और समझना चाहते हैं,भले ही उनमें से कोई सामाजिक अधिकारिता विभाग का मंत्री ही क्यों न बना दिया जाए!
✍️यूपी में 69000 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती में एससी और ओबीसी के लगभग 19000 अभ्यर्थियों की हकमारी की सच्चाई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य की हाई कोर्ट मान चुकी है। इन 19000 अभ्यर्थियों के स्थान पर अपात्र या अयोग्य नौकरी कर अच्छा खासा वेतन उठाकर अपने परिवार की परवरिश कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। भर्ती की सूची के संशोधन हेतु कोर्ट द्वारा निर्धारित अवधि गुजर जाने के बावजूद न तो राज्य सरकार के कानों पर जूं रेंग रही है और न ही न्यायपालिका को उसकी दुबारा सुधि आ रही है। राज्य सरकार में शामिल अपना (दल एस) प्रमुख अनुप्रिया पटेल के विधायक और मंत्रीगण और एससी-एसटी और ओबीसी के सत्ता पक्ष और विपक्ष के जनप्रतिनिधि लंबे अरसे से लंबित इस मुद्दे पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? मेडिकल की नीट,शिक्षा की यूजीसी नेट और शोध की सीएसआईआर की परीक्षाओं में केवल पेपर लीक का या पेपर बिकने या उसमें हुई धांधलियों तक ही सीमित नहीं है,अपितु इसके पीछे एक बड़ा सामाजिक-आर्थिक विषय जुड़ा हुआ है। 
✍️मेडिकल की नीट,यूजीसी-नेट और सीएसआईआर जैसी परीक्षा में अयोग्य लोगों की भर्ती होने से केवल पात्र/योग्य बच्चों के वर्तमान और भविष्य के साथ ही खिलवाड़ नहीं होता है,बल्कि गलत तरीके से बनने वाले डॉक्टरों और शिक्षकों से देश की जनता के स्वास्थ्य और जीवन में लंबे समय के लिए खतरनाक स्थितियां पैदा होंगी जिससे आने वाली कई पीढ़ियों का जीवन और शिक्षा बर्बाद होने की पूरी संभावना रहती है। सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाले सभी दलों (सत्ता या विपक्ष) के सांसदों को नीट जैसी राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में अनियमितताओं के परत दर परत खुलासे किए जाने के लिए एक मंच पर दिखना चाहिए,तभी सामाजिक न्याय के नाम पर हो रही राजनीतिक गोलबंदी सार्थक और विश्वसनीय होती नजर आएगी और देश हर वर्ग के विद्यार्थियों के साथ न्याय होगा। अन्यथा किसी एक दल द्वारा सामाजिक न्याय या आरक्षण के किसी एक हिस्से को उछालने के निहितार्थ कुछ और हो सकते हैं,जहां तक आम आदमी का दिमाग और नज़र नही जा सकती है। किसी अदृश्य राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए ऐसी परिस्थितियां शीर्ष स्तर से राजनीतिक रूप से प्रेरित या संदर्भित होने की पूरी संभावना जताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों और विशेषज्ञों की राय में अनुप्रिया पटेल की चिट्ठी के संदर्भ में "कहीं पे निगाहें-कहीं पे निशाना" की कहावत चरितार्थ होती नज़र जा रही है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा कि इस चिट्ठी की विषय वस्तु के जरिये योगी आदित्यनाथ की एससी-एसटी और ओबीसी विरोधी ईमेज बनाने का षड्यंत्र या साज़िश हो सकती है। लोकसभा चुनाव 2024 में एससी- एसटी और ओबीसी की नाराज़गी और भविष्य की राजनीति इस चिट्ठी के माध्यम से बीजेपी साधना चाहती है। हो सकता है कि योगी से केंद्र की नाराज़गी निकालने में यह चिट्ठी रामवाण के रूप में सहायक या कारगर साबित हो जाए! अनुप्रिया पटेल की इस चिट्ठी पर मीडिया जगत में तो यहां तक चर्चा है कि गुजराती जोड़ी का अपने गठबंधन घटक के कंधे पर बंदूक रखकर योगी के ऊपर दागने का प्रयास है।
✍️राष्ट्रव्यापी बहुचर्चित मेडिकल की नीट,शिक्षा की यूजीसी-नेट और शोध की सीएसआईआर जैसी अतिमहत्वपूर्ण परीक्षाओं में हुई धांधलियों पर अनुप्रिया पटेल की ओर से एक मौखिक वक्तव्य तक नहीं आया और अचानक एनएफएस पर लिखित चिट्ठी,वह भी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित! असल में एनएफएस का फॉर्मूला राज्य और केंद्र के विश्वविद्यालयों में शिक्षक भर्ती में उस स्तर पर लागू होने की ज्यादा संभावना रहती है जहां साक्षात्कार  और एकेडेमिक्स के आधार पर नियुक्तियां होती हैं। किसी भी सेवा आयोग से होने वाली भर्तियों में एनएफएस लागू कर अनारक्षित वर्ग की भर्ती करने का प्रावधान नहीं है। यूपी में स्थित राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी-एसटी और ओबीसी के अभ्यर्थियों के साथ एनएफएस के नाम पर घोर अन्याय होते समय यह मुद्दा किसी सामाजिक न्याय या आरक्षण की वकालत करने वाले दल द्वारा क्यों नहीं उठाया गया? बीएचयू, दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर और बुंदेलखंड विश्वविद्यालयों में एनएफएस के बहाने न जाने कितने एससी-एसटी और ओबीसी अभ्यर्थियों की हकमारी हुई है,यह तथ्य सोशल मीडिया के माध्यम से जगजाहिर होने के बावजूद उस समय सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाले सभी दल और उनके मुखिया कान में तेल डालकर या रुई ठूंसकर क्यों बैठे रहे? आज सरकारी कर्मचारियों का राष्ट्रव्यापी सबसे बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली का है जो बुढ़ापे का सबसे बड़ा आर्थिक सहारा और मजबूती के रूप में मानी जाती है। सामाजिक न्याय की राजनीति का नारा लगाने वाले एनडीए गठबंधन में शामिल और विपक्ष के सभी दलों को इस लंबित मामले पर संसद से लेकर सड़क तक संघर्ष करना चाहिए अन्यथा नैतिकता के आधार पर सभी विधायकों और सांसदों को भी अपनी पेंशन छोड़ देना चाहिए। असल में अनुप्रिया पटेल द्वारा अपनी चिट्ठी में एनएफएस के मुद्दे को उछालने की टाईमिंग और परिस्थिति सही नहीं चुनी गई।मोदी की पिछली सरकार में दिल्ली विश्वविद्यालय की भर्तियों में एनएफएस का मुद्दा काफी चर्चा में रहा, लेकिन तब अनुप्रिया पटेल की इस पर कोई सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया देखने और सुनने को नही मिली थी। इसलिए उनकी इस चिट्ठी की टाइमिंग को लेकर कई तरह के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। 
✍️यूटूबर्स और सोशल मीडिया में अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल की उस चिट्ठी का राजनीतिक पोस्टमार्टम अच्छी तरह से हो रहा है। बताया जा रहा है कि अनुप्रिया पटेल की चिट्ठी किसी बड़े राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने की दिशा में बीजेपी के शीर्ष राजनेताओं की साजिश का हिस्सा है।  पेपर लीक मामले में सुभासपा के एक विधायक का नाम आने और उसके एक पुराने स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो वायरल होने से जो राजनीतिक उथल-पुथल पैदा होती नजर आ रही है,उसका ठीकरा यूपी के एक बड़े बीजेपी नेता और पीएम पद के कथित दावेदार के रास्ते में रोड़ा पैदाकर उनके सिर पर फोड़ने का षडयंत्र का हिस्सा बताया जा रहा है। वरिष्ठ और निर्भीक पत्रकार वानखेड़े के इस चिट्ठी के पोस्टमार्टम से यह बात निकलकर सामने आ रही है कि इस चिट्ठी के माध्यम से मोदी और शाह की खोपड़ी एक बड़े राजनीतिक उद्देश्य को साधने की नीयत से काम कर रही है। अनुप्रिया पटेल की चिट्ठी मोदी-शाह की एक बड़ी राजनीतिक चाल का हिस्सा बताई जा रही है। मोदी-शाह इस चिट्ठी के माध्यम से लोकप्रिय हो रहे योगी आदित्यनाथ की वर्तमान और भावी राजनीति में ग्रहण लगाना चाहते हैं। यूटूबर्स और राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान और आंकलन है कि अनुप्रिया पटेल ने स्वप्रेरणा से यह चिट्ठी नहीं लिखी है,बल्कि यूपी में लॉ एंड ऑर्डर के मामले में लोकप्रियता के शिखर पर स्थापित मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की राजनीतिक साख पर बट्टा लगाने की नीयत से एक सुनियोजित रणनीति के तहत यह चिट्ठी बीजेपी के ही शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिखाई गयी है। यह भी कहा जा रहा है कि अनुप्रिया पटेल की इस चिट्ठी के माध्यम से यह संदेश प्रचारित और प्रसारित करने की कोशिश की गई है कि राज्य की योगी सरकार एससी-एसटी और ओबीसी विरोधी है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी आंकलन है कि मोदी और शाह एक तीर से कई शिकार करना चाहते हैं। बीजेपी के द्वय राजनेता इस चिट्ठी में निहित विषय को सामाजिक और राजनीतिक रंग देकर योगी की जगह प्रदेश में पिछड़े वर्ग की राजनीति को स्थापित कर सपा और नीतीश कुमार की राजनीति की बीजेपी में भरपाई करना चाहते हैं। इस चिट्ठी की असलियत,निहितार्थ और असर तो आने वाले भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं से ही उजागर होना सम्भव होगा।

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.