साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, June 06, 2024

"एक अकेला सब पर भारी और यह मोदी की गारंटी है" के दम्भ को तोड़ता जनादेश-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी
✍️बीजेपी के सांसद रहे लल्लू सिंह (अयोध्या) और अनंत कुमार हेगड़े (कर्नाटक) संविधान बदलने की बात लगातार सार्वजनिक रूप से कह रहे थे और इसकी सफलता और सार्थकता सिद्ध करने के लिए नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में "अबकी बार400 पार " नारे को समय-समय पर बुलंद करते दिख रहे थे। दूसरी तरफ पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबोराय ने "द मिंट"  अंग्रेजी अखबार में संविधान बदलने की जरूरत बताते हुए बाक़ायदा एक विस्तृत लेख लिख डाला। उस लेख का हिंदी अनुवाद का जब हिंदी भाषी राज्यों में जोर-शोर से प्रचार-प्रसार होने लगा तो बहुजन समाज के बुद्धिजीवियों,चिंतकों,सोशल एक्टिविस्टों और संविधान प्रदत्त सामाजिक न्याय की राजनीति करने वालों ने बीजेपी के "अबकी बार400 पार " के नारे के गूढ़ रहस्यों और निहितार्थों को देश के ओबीसी,एससी-एसटी और अल्पसंख्यक समुदायों को समझाना शुरू किया तो उसके राजनीति पर पड़ने वाले व्यापक असर को भांपते हुए आरएसएस की ओर से बीजेपी को इस नारे की सार्वजनिक मंचों से तत्काल बंदी का हुक़्म जारी करना पड़ा। उसके बाद बीजेपी की रैलियों में पूरे चुनाव भर इस नारे,संविधान-लोकतंत्र या आरक्षण पर सन्नाटा छाया रहा।

✍️चुनाव में इस नारे के गूढ़ रहस्य और निहितार्थ के प्रचार-प्रसार का इतना प्रभाव पड़ा कि बीजेपी अकेले बहुमत की संख्या पाने से वंचित रह गई। इस स्थिति से बहुजन समाज में राहत महसूस हुई और उम्मीद जताई जा रही है कि अकेले बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने की वजह से मोदी की तीसरे काल की सरकार पूर्ण आत्मनिर्भर नहीं रहेगी,बल्कि गठबंधन घटक दलों पर निर्भर रहेगी जो संविधान,लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के आरक्षण के मजबूत पैरोकार रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो सामाजिक न्याय के विस्तार के लिए अपने राज्य में जातिगत जनगणना के नाम पर सामाजिक सर्वेक्षण कराकर बाक़ायदा उसके जातिगत आंकड़े तक ज़ारी कर दिए थे जिससे केंद्र सरकार ने असहमति और आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा था कि किसी राज्य को जातिगत जनगणना कराने अधिकार नहीं है,यह अधिकार केवल केंद्र सरकार को है और वह जातिगत जनगणना कराने के लिए सक्षम नहीं है,क्योंकि इससे सरकार का अनाबश्यक धन और समय की बर्बादी होगी जो देश की जनता के हित में नहीं होगा। संविधान,लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के दो मजबूत पैरोकार जेडीयू के नीतीश कुमार और टीडीपी के चन्द्र बाबू नायडू के सहयोग और समर्थन से ही बीजेपी की सरकार बनने की उम्मीद है,लेकिन इस बार मोदी जी की एक नख-दंत विहीन पीएम साबित होने की और अमित शाह का महत्व और दखल कम होने की संभावना जताई जा रही है। इस सरकार में मोदी-शाह की मनमानी कतई चलने वाली नहीं है। इसलिए यहां तक चर्चा है कि अमित शाह गृह मंत्रालय के बिना नहीं रह सकते हैं और यदि उन्हें यह विभाग नहीं मिलता है तो संभावना है कि उनकी गृह राज्य वापसी हो जाए!इस बार मोदी नेतृत्व वाली सरकार एनडीए के उन घटक दलों की "डील" पर चलने की संभावना जताई जा रही है,जो कभी मोदी के सामने सिर उठाकर बोलने,बैठने या बराबर खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा सकते थे। आज वे बेधड़क मोदी से सत्ता बंटबारे में खुलकर मोलभाव करने की स्थिति में हैं।

✍️देश में आये इस तरह के जनादेश के लिए बहुजन समाज(ओबीसी,एससी-एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोग) का चुनावी निर्णय बेहद कारगर साबित होता हुआ है।संविधान,लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के आरक्षण को छेड़ने या खत्म करने की वकालत करने वाली आरएसएस नियंत्रित बीजेपी अब अपने तीसरे शासन काल में इन मुद्दों पर चर्चा तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी। बहुजन समाज की इस बार की चुनावी राजनीतिक चेतना और इस चर्चा कि मोदी के दिन लदने वाले हैं,से पैदा हुआ राजनीतिक माहौल आरएसएस और बीजेपी को बड़ा सबक सिखा गया है और अब इस पर वहां गम्भीरतापूर्वक चिंतन और मनन जरूर शुरू हो गया होगा। इस जनादेश में बीजेपी अभी भी सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है और उसके एनडीए को पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी न्यूनतम संख्या से बीस ज्यादा का बहुमत मिला है। सबसे बड़ा दल होने और प्री-पोल गठबंधन के नाते एनडीए की ही सरकार बनना तय है। चूंकि,बीजेपी की सरकार बनेगी तो मोदी के रहते कोई दूसरा पीएम पद की दावेदारी पेश नहीं कर सकता है और ऐसी स्थिति में मोदी, पीएम पद छोड़ भी नहीं सकते हैं,क्योंकि वह अपने दस साल की बैलेंस शीट को अच्छी तरह जानते हैं और वह विपक्षी गठबंधन की सरकार बनने की कोई संभावना पैदा होने के संकेत तक बर्दाश्त नहीं कर सकते,भले ही उसके लिए  संविधान की धज्जियां उड़ानी पड़ें! विपक्षी इंडिया गठबंधन की सरकार बनने का मतलब पीएम केयर्स फण्ड,राफेल सौदा और इलेक्टोरल बांड जैसे बड़े घोटाले खुलने के साथ उनके दस साल के सारे काले कारनामों की सरकार और जनता के सामने कलई खुलना।अच्छा हुआ मोदी को पीएम बनने के लिए एनडीए को पर्याप्त बहुमत हासिल हो गया,वरना देश को बहुत गम्भीर संवैधानिक राजनीतिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता था।

✍️2027के यूपी में होने वाले चुनाव से पहले इस मुद्दे की तगड़ी काट ढूंढने की कोई कोर-कसर छोड़ी नहीं जायेगी,क्योंकि बीजेपी के इस मुद्दे पर जब सामाजिक और राजनीतिक हमले शुरू हुए तो बीजेपी खुद विपक्ष पर संविधान,लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के आरक्षण के बंटवारे का आरोप लगाकर पूरे चुनाव भर इस तोहमत से बचने के प्रयास करती रही,लेकिन अंततोगत्वा उसके दुष्प्रभाव की छींटों से वह पूरी तरह से बच नही पाई,जिसके परिणाम स्वरूप अकेले बीजेपी बहुमत के पाले को छू तक नही पाई। बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि ओबीसी और एससी-एसटी के सहयोग के बिना वह राजनीतिक रूप से मजबूत नहीं हो सकती,क्योंकि कथित हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के नाम पर इन जातियों की राजनीतिक गोलबंदी आसानी से की जा सकती है। कहने को तो भाजपानीत एनडीए को पूर्ण बहुमत मिल गया है,लेकिन ऐसी सरकार में निर्णय लेने के मामलों में पहले की तरह "एक अकेला सब पर भारी" जैसे निर्द्वन्द्व भाव से तानाशाही तर्ज़ पर निर्णय लेने की गुंजाइश बहुजन समाज के चातुर्यपूर्ण चुनावी निर्णय से मिले जनादेश से खत्म हो गयी है और सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश भी दे दिया है कि यदि किसी भी शासन सत्ता की तरफ से संविधान और लोकतंत्र पर किसी तरह की आंच या चोट आने की ज़रा सी भी आहट सुनाई दी तो ईवीएम के बटन से करारी चोट देने में कोई कमी नहीं रखी जाएगी। यह भी सन्देश छिपा है कि सभी राजनीतिक दलों और नेताओं को संविधान सम्मत लोकतंत्र को सुरक्षित और समृद्ध करना उनका पहला धर्म है,अन्यथा सत्ता पक्ष और विपक्ष की लड़ाई में विपक्ष की भूमिका में देश की जनता खड़ी होती दिखाई देगी। लोकतंत्र में जनता द्वारा,जनता के लिए,जनता की सरकार चुनी जाती है। सन्देश है कि इस देश में हिन्दू-मुसलमान आधारित धर्म और मंदिर-मस्जिद की वैमनस्यता फैलाने वाली राजनीति अब नहीं चल पाएगी। देश में जनता के शिक्षा,बेरोज़गारी और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर ही स्थायी राजनीति चल सकती है। चुनिंदा अमीर पूंजीपतियों को अथाह लाभ पहुंचाने के बजाए देश के संसाधन विहीन गरीब और मध्यम तबके के लिए कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी,अन्यथा आने वाले चुनाव में जनता को बाज़ी पलटते देर नहीं लगेगी। सबसे दिलचस्प और अप्रत्याशित जनादेश यूपी में रहा,विशेषकर अयोध्या में वहां की जनता के रुख से यह साबित हो गया है कि सरकार चुनने में यहां न तो राम मंदिर के निर्माण से लेकर प्राण प्रतिष्ठा और न ही मुफ़्त में मिल रहे पांच किलो गेंहू-चावल का असर है। पूर्ण बहुमत के साथ दस साल के शासन चलाने वालों को आइना दिखाता है, यह जनादेश!सभी दलों को इस जनादेश से सबक सीखने की जरूरत है। इस बार के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के ख़िलाफ़ जनता ने चुनाव लड़कर लोकतंत्र में तानाशाही प्रवृत्ति को सबक सिखाने का काम किया है। राजनीतिक विश्लेषकों और विशेषज्ञों और बौद्धिक वर्ग के विचार- विमर्श में इस तथ्य या सच्चाई को स्वीकार किया और खूब सराहा जा रहा है।

✍️इस जनादेश ने केवल मोदी और शाह के सपनों को ही चकनाचूर नहीं किया है,बल्कि उत्तर प्रदेश के शासन को लेकर भ्रम भी दूर हो गया है। इस जनादेश से सत्ता काल की निरंतरता और अवधि के संदर्भ में नरेंद्र मोदी,जवाहर लाल नेहरू के बराबर भले ही पहुंच जाएं जो मोदी जी लंबे अरसे से सपना देख रहे है,क्योंकि जब भी मोदी अपने शासन,सत्ता,सरकार की उपलब्धियों की बात करते हैं तो वे जवाहरलाल नेहरू को कोसना नहीं भूलते। जवाहरलाल नेहरू का भूत अभी उन्हें सताता रहता है।नेहरू और मोदी में सत्ता की आवृत्ति-अवधि की बराबरी तो हो सकती है,लेकिन नेहरू जैसे विशाल-विराट व्यक्तित्व,दृष्टि और ज्ञान की बराबरी कैसे कर पाएंगे? जनता ने मोदी को यह भी सन्देश दिया है कि कोई स्वयं को ईश्वर का अवतार स्थापित करने का भ्रम न फैलाये,क्योंकि धरती पर सभी मनुष्यों का जन्म एक ही तरह होता है और उसे उसके सामाजिक,शैक्षणिक और आर्थिक पृष्ठभूमि-परिवेश के हिसाब से आगे बढ़ने या महान बनने का अवसर मिलता है।मोदी की वेशभूषा,वस्त्रों,धार्मिक-आध्यात्मिक भूमिकाओं और उनके संस्कृत-गणित ज्ञान को गोदी मीडिया और देश के नामी गिरामी व्यंग्यकारों ने जनता को भरपूर दिखाने-सिखाने का प्रयास किया अर्थात मोदी के मदारी व्यक्तित्व ने इन दस सालों में जनता का भरपूर मनोरंजन किया। उनके व्यक्तित्व,कृतित्वों और वक्तव्यों पर बने मीम्स और व्यंग्य आने वाली पीढ़ियों को सालों गुदगुदाते रहेंगे।

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.