कहानी
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अखिलेश कुमार 'अरुण' ग्राम- हज़रतपुर जिला-लखीमपुर खीरी मोबाईल-8127698147 |
मजदूरों के लिए एक कहावत है कि मजदूर को मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले मिल जाना चाहिए क्योंकि मजदूर अपना और अपने परिवार का पेट साथ लेकर आता है मजदूरी से लौटने के बाद फकत वक्त उसकी मजदूरी उसके काम न आए तो उसकी मजदूरी किसी काम की नहीं, गांव का प्रधान है कि अपनी रसूख और राजनीतिक पहुंच के चलते किसी से नहीं डरता। करीम चचा यह जानते हुए भी उसके यहां काम करने गये कि इस प्रचंड गर्मी में कुछ सहारा हो जाएगा क्योंकि किसानों की किसानी अप्रैल-मई के बाद खत्म है वहां कोई काम है नहीं कि जहां कुछ काम-धाम करके दो-चार पैसे का जुगाड़ हो जाए पर प्रधान जी अपना घर बनवा रहे थे। इसलिए काम मिल गया था। एक महीना पूरा खटे हैं सौ-पचास करके 1200 रुपए कुल अभी तक करीम चचा ले गये हैं और प्रधान कह रहा है कि 200 और तुम्हारा बनता है वह दो-चार दिन में दे देगा।
करीम चचा अब करें तो करें क्या? किसी ने सलाह दिया कि श्रम विभाग में चले जाओ वहां जाकर शिकायत कर दो। करीम चचा ने ऐसा ही किया आज से 10 दिन पहले लिखित शिकायत की अर्जी सहायक श्रमायुक्त को दे आए थे जिसकी प्रति लेकर आज फिर आफिस पहुंच गये क्योंकि अभी तक कुछ हुआ तो है नहीं। अर्जी की ताकीद करवाई और श्रमायुक्त महोदय से गुजारिश कर रहे हैं" साहेब, मजदूरी का पूरा पैसा दिलवा दीजिए ....? नहीं तो हम चार जनों का परिवार भूखों मर जाएगा।"
"रुको, हम अभी आते हैं।" कहकर किसी साहब का हवाला देकर निकल लिए। घंटा-दो घंटा बीतने के बाद करीम चचा श्रमायुक्त महोदय को खोजते हुए आगे बढ़ चले तो पता चला कि अपर श्रमायुक्त महोदय के पास बैठे हैं। बहुत हिम्मत करके दरवाजे पर दस्तक दिए,"हुजूर हम अन्दर आ सकते हैं!"
"हां, आइए।"
चश्मे के ऊपर से झांकते हुए साहब ने
अनुमति दी।
"अरे! तुम, हम कहे थे न कि
अभी आ रहे हैं।" श्रमायुक्त जी थोड़ी गर्मी दिखाते हुए करीम चचा की तरफ
मुखातिब हुए।
"क्या
समस्या है? छोटे साहब से
बड़े साहब ने पूछा।
"कुछ खास
नहीं सर।"
करीम चचा कुछ
बोलने को हुए कि उससे पहले ही छोटे साहब बोल पड़े, "अभी योग दिवस पर
बहुत काम करना है,
ऊपर
से आदेश आया है। यह बहुत जरूरी है, उसके बाद आना।"
"कब सर?"
"योग दिवस
के बाद।"
"योग दिवस
कब......?
"अरे, इतना भी नहीं
मालूम, तुमको योग दिवस
कब है.....21 जून के बाद।"