साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, June 05, 2021

पर्यावरण दिवस

पर्यावरण दिवस पर विशेष

 कई बार कह चुका हूँ मित्रों

मैं अपने संदेश में ।

आज प्लास्टिक पनप रही है

खतरा बनकर देश में ।।

 

झील सरोवर नदी ताल

झरने सागर हैरान हैं ।

इसके कब्जे में वन उपवन

खेत और खलियान हैं ।।

 

उपजाऊ को बंजर करना

इसका एक स्वभाव है ।

खाने पीने की चीजों पर

पड़ता बुरा प्रभाव है ।।

 

सख्ती आज नजर आई है

सरकारी आदेश में ।

आज प्लास्टिक पनप रही है

खतरा बनकर देश में ।।

 

पॉलीथिन के थैलों में जो

चीजें फेकी जातीं हैं ।

खाकर उनको जाने कितनी

गायें जान गंवातीं हैं ।।

 

पशु पक्षी और जीव जन्तुओं

पर पड़ता है बुरा असर ।

पर्यावरण प्रदूषित करता

नहीं छोड़ता कोई कसर ।।

 

महापुरुष भी बतलाते हैं

बात यही उपदेश में ।

आज प्लास्टिक पनप रही है

खतरा बनकर देश में ।।

 

जाने क्या मजबूरी है और

जाने क्या लाचारी है ।

जाने क्यों ये खतरनाक

पॉलीथिन सबपर भाारी है ।।

 

स्वार्थ त्याग कर पॉलीथिन का

बंद करें उपयोग हम ।

जूट और कपड़ों के थैलों

का ही करें प्रयोग हम ।।

 

पर्यावरण बेचैन ना हो

अब पॉलीथिन के केश में ।

आज प्लास्टिक पनप रही है

खतरा बनकर देश में ।।

 


श्याम किशोर बेचैन

9125888207

श्यामकिशोर बेचैन की बाल-कवितायेँ


Friday, June 04, 2021

आरएसएस नियंत्रित बीजेपी सरकार में ओबीसी के वेलफेयर की उम्मीद/कल्पना करना सबसे बड़ी भूल:

एक विमर्श  वंचित समाज के लिए
नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर) 


             ज ओबीसी से संबंधित सोशल मीडिया/साइट्स पर एक ख़बर काफी तेजी से प्रचारित हो रही है। खबर यह है कि बीजेपी के यूपी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और सीतापुर लोकसभा मा.सांसद श्री राजेश वर्मा को संसद की "ओबीसी वेलफेयर संबंधी संसदीय समिति " का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है,इस पद को राज्यमंत्री स्तर का दर्जा प्राप्त है।ओबीसी विशेषकर कुर्मी/पटेल समाज के राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सामाजिक संगठनों से भरपूर बधाईयों और शुभकामनाओं का अनवरत सिलसिला जारी है।ज़ारी भी रहना चाहिए,क्योंकि ओबीसी में कुर्मी/पटेल समाज की अपनी एक महत्वपूर्ण व निर्णायक जनसंख्या और राजनैतिक शक्ति और भागीदारी रही है।हमारी तरफ से हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं इसलिये विशेष हो जाती हैं,क्योंकि श्री राजेश वर्मा हमारे जनपद खीरी से लगे जनपद सीतापुर के रहने वाले हैं और वहीं से बीजेपी से दोबारा सांसद चुने गए हैं और बीजेपी के उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रांतीय अध्यक्ष भी हैं।इससे पूर्व वह बीएसपी से सांसद रहे हैं। 

इस संसदीय समिति का गठन इस उद्देश्य से है कि वह समय-समय पर देश के ओबीसी की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन और मूल्यांकन करना और बदले हुए परिवेश में उनके अपेक्षित कल्याण के लिए सरकार को सिफारिश करना।श्री राजेश वर्मा से पहले इसी संसदीय समिति के चेयरमैन बीजेपी के वरिष्ठ सांसद (2004 से अनवरत चौथी बार सांसद) श्री गणेश सिंह पटेल (मध्यप्रदेश की सतना लोकसभा सीट) थे जिनका कार्यकाल संभवतःवर्ष 2020 समाप्त होने से कुछ समय पूर्व खत्म हो गया था।यहां यह उल्लेख करना और याद दिलाना बहुत जरूरी है कि श्री गणेश सिंह पटेल ने अपने कार्यकाल में ओबीसी की क्रीमी लेयर की नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश में आरक्षण के लिए संशोधित औसत वार्षिक आय सीमा आठ लाख रुपये से बढ़ाकर पंद्रह लाख रुपए की सिफारिश की थी और यह भी उल्लेख किया था कि इस "औसत वार्षिक आय सीमा" की गणना (कैल्कुलेशन) में अभ्यर्थी के माता-पिता की "कृषि और वेतन" से होने वाली आय शामिल नहीं की जाएगी जैसा कि 1992 में बना क्रीमी लेयर नियम जो 1993 से लागू हुआ,की आय सीमा तय करते समय मूल विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की थी।श्री गणेश सिंह जी की अन्य सिफारिशों के साथ यह सिफारिश कई महीने सरकारी पटल पर पेंडिंग में पड़ी रहीं और बीपी शर्मा(सेवानिवृत्त आईएएस) की अध्यक्षता में गठित डीओपीटी की समिति की क्रीमी लेयर की सिफारिश (औसत वार्षिक आय ₹12लाख जिसकी गणना में कृषि और वेतन से होनी वाली आय शामिल की गई थी) मानकर ओबीसी के बहुत से बच्चों को क्रीमी लेयर में शामिल होने की वजह से आरक्षण की परिधि से आज भी बाहर किया जा रहा है।बहुत से अभ्यर्थी आज भी न्यायिक प्रक्रिया से जूझ रहे हैं। श्री गणेश सिंह पटेल द्वारा बार- बार याद दिलाने के बावजूद जब उनकी सिफारिशों पर संसद या सरकार के पटल पर चर्चा तक नही हुई तो उन्होंने संसद के सभी 112 ओबीसी सांसदों को एक खुला आमंत्रण पत्र प्रेषित कर यह अनुरोध किया था कि इस विषय पर सभी ओबीसी सांसदों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर मा. प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री को इन सिफारिशों को लागू करने के लिए पत्र लिखकर या ट्वीट करके, क्रीमीलेयर के माध्यम से नौकरीपेशा और किसानों को आरक्षण से लगभग बाहर करने की कोशिश का कड़ा विरोध करें।इस खुले पत्र के बाद चुनिंदा गैर बीजेपी सांसदों ने तो पीएम को पत्र लिखा।किंतु बीजेपी सरकार में शामिल सभी दलों के ओबीसी सांसदों को सांप सूंघ गया था।बीजेपी के जो ओबीसी सांसद इस समिति के सदस्य थे, वे भी उनके इस आमंत्रण पत्र पर अदृश्य राजनैतिक भयवश मौन व्रत धारण कर कन्नी काटते रहे। जनपद खीरी के गोला गोकर्णनाथ निवासी यूपी से समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद श्री रवि प्रकाश वर्मा जी ने पीएम को इस संदर्भ में पत्र लिखकर जिस तत्परता, जीवंत सामाजिक चेतना और गौरव का परिचय दिया था,उसके लिए जनपद खीरी के ओबीसी संगठनों को उनके प्रति कृतज्ञता भाव से धन्यवाद। सामाजिक दिशा में उनके द्वारा की गई इस पहल/ प्रयास के लिए ओबीसी उन्हें सदैव सम्मान के साथ याद करता रहेगा श्री गणेश सिंह जी ने बीजेपी से सांसद होने के बावजूद ओबीसी के कल्याण की दिशा में वर्गीय चेतना से ओतप्रोत जो साहसिक कदम उठाया था, उसकी प्रशंसा या सपोर्ट में ओबीसी विशेषकर कुर्मी/पटेल समाज के विविध समूहों मंव इतनी चेतना,जोर-शोर और दमख़म और सभी ओबीसी सांसदों के प्रति आक्रोश नही दिखा था जितना आज नवनियुक्त अध्यक्ष की ताजपोशी पर दिख रहा है। धर्म की राजनीति के नशे में डूबा ओबीसी यह नही समझ पा रहा कि किस साज़िश से बीजेपी सरकार द्वारा व्यवस्था में परिवर्तन कर अप्रत्यक्ष तरीकों से उसके आरक्षण के प्रभाव को कैसे धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है और दूसरी तरफ देश के 15% सामान्य वर्ग के निर्धन लोगों(ईडब्ल्यूएस) को संविधान संशोधन के माध्यम से 10% आरक्षण दिया जा रहा है? 

 दरअसल,ओबीसी में इतिहास पर गौर कर सीखने की आदत नही है।यदि ओबीसी को श्री गणेश सिंह पटेल के संघर्ष और योगदान और आरएसएस संचालित बीजेपी सरकार की सामाजिक और राजनैतिक संस्कृति की सही जानकारी होती तो नवनियुक्ति पर इतना जश्न जैसा माहौल नही दिखता! मूलतः सामाजिक विचारक और मंडल आंदोलन से जुड़े श्री गणेश सिंह पटेल के सामाजिक दिशा में किये गए योगदान/ऋण के लिए वे ओबीसी में सदैव सम्मान से याद किये जायेंगे।उनके कार्यकाल की सिफारिशें आज भी भारत सरकार के दफ्तर में धूल फांक रही हैं और इन सिफारिशों के लागू न होने के कारण ओबीसी के बहुत से बच्चे आरक्षण का लाभ न मिलने से आईएएस, आईपीएस और पीसीएस बनने से वंचित होकर उससे कमतर पदों पर चयनित होने के लिए बाध्य किये जा रहे हैं।

अपने अब तक के लोकसभा सांसद के कार्यकाल में गणेश सिंह पटेल ने ओबीसी के मुद्दों को हमेशा प्रमुखता और प्रखरता प्रदान की है। इसी वजह से उन्हें ओबीसी कल्याण की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया था और इस नाते उनका जो सामाजिक-राजनैतिक कद बढ़ा, उसका सही इस्तेमाल करते हुए उन्होंने ओबीसी क्रीमीलेयर के नियमों में होने जा रहे अपनी ही सरकार के खतरनाक बदलावों का विरोध तो किया ही, साथ ही उसे राष्ट्रीय मुद्दा भी बना दिया।" 

आज स्थिति यह है कि क्रीमीलेयर में संशोधन की सिफारिश करने वाली डीओपीटी कमेटी के चेयरमैन बीपी शर्मा देशभर में ओबीसी तबके के बीच खलनायक बन चुके हैं और अब सरकार भी उनकी सिफारिशों पर आगे बढ़ने से पहले पुनर्विचार करती दिख रही है जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह ने संकेत दिया है।अगर ओबीसी के लिए यह बात कुछ मायने रखती है तो इसका पूरा श्रेय समाजवादी पृष्ठभूमि और मंडल आयोग के प्रबल समर्थक सांसद गणेश सिंह पटेल को ही जाता है। 

सांसद श्री राजेश वर्मा को उसी संसदीय समिति का चेयरमैन बनाया गया है।ओबीसी के सभी सोशल साइट्स/मीडिया से मेरा अनुरोध है कि वे नवनियुक्त चेयरमैन को भरपूर मात्रा में और लंबे समय तक हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं प्रेषित करने के साथ सोशल साइट्स/मीडिया के माध्यम से श्री गणेश सिंह जी के कार्यकाल की ठंडे बस्ते में पड़ी क्रीमी लेयर की सिफारिश को तत्काल लागू कराने की समय-समय पर याद दिलाते रहे और पूर्णसम्मान के साथ सामाजिक और राजनैतिक दबाव भी बनाते रहें जिससे हमारे ओबीसी के बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच सके।यही हमारी सामाजिक और राजनैतिक चेतना की परिचायक भी होगी।

श्री राजेश वर्मा जी को ओबीसी के समस्त सामाजिक और राजनैतिक संगठनों की ओर से इस अनुरोध के साथ एक बार पुनः बधाईयां और शुभकामनाएं कि ओबीसी की क्रीमी लेयर से संबंधित सिफारिश को यथाशीघ्र लागू करवाने में भरसक प्रयास करें जिससे हमारे समाज के बच्चे कमतर पदों पर जाने की मजबूरी से बच सकें। 

 
लखीमपुर-खीरी (यूपी) 9415461224,8858656000

सुरेश सौरभ की बाल-कवितायेँ


 1 पापड़ वाला

-सुरेश सौरभ
 पापड़ ले लो पापड़ ले लो!

कुर्रम-कुर्रम पापड़ हैं

नरम-नरम पापड़ है

मुँह में रखो झटपट गायब

ऐसा बढ़िया पापड़ है।

 

2 गौरैया

 यह प्यारी गौरैया है

दाना-चुग्गा खाती है

बच्चों को खिलाती है

यह बड़ी चिलबिल्ली है

देखी इसने दिल्ली है

जैसे घर की गैया है

वैसे प्यारी गौरैया है।

 

 3 कौवे जी

 कौवे जी ओ! कौवे जी

काँव-काँव कनफोड़ू जी

तुमने इतने क्यों काले हो

क्रीम लगाओ,पाउडर लगाओ

हो जाओ तुम गोरे जी।

 

4 टिंकू भाई

 इधर दौड़ना उधर दौड़ना

फिर सीढ़ी छू वापस आना

टॉफी खाकर मुँह चिढ़ाना

सीटी वाला बाजा बजाना

काम न इनका कोई भाई

नाम है इनका टिंकू भाई।

 

  5 टकला

 कितना प्यारा टकला है

कितना चिकना टकला है

मन करता है इसपे फिसलूँ

मन करता है इसपे उछलूँ

मन करता है इसपे कुदूँ

इतना उछलूँ इतना कुदूँ

इतना उछलूँ इतना कुदूँ

बस आसमान को छू लूँ।

 

6  मोबाइल

 यह शैतान का बच्चा है

हरदम पापा के संग रहता है।

पापा इसको खूब झुलाते

दूर-दूर की सैर कराते

मुझको तनिक न भाता है

मोबाइल यह कहलाता है।

 

 7 तोंद

 बुलडोजर सी चलती है

हरदम खाती रहती है।

काम न कोई करती है

यह तोंद बड़ी निठल्ली है।

 

 8 नानी अम्मा

 नानी अम्मा आयेंगी

चिज्जी-विज्जी लायेंगी।

गौरी को खिलायेंगी

गौरी ऊधम मचायेगी।

नानी उसे दुलरायेंगी

झूला खूब झूलायेंगी।

सुरेश सौरभ

मो0-निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उ0 प्र0

पिन-262701 मो-7376236066

तोता

श्याम किशोर बेचैन

हरा  बदन  है मुख  है लाल |

घर है उसका पेड़ की डाल ||

 

पिंजरे  मे  जब   होता  है  |

मन  ही  मन  में  रोता  है ||

 

मीठा  तीखा  उसे  पसंद |

उसको ना  भाए प्रतिबंध ||

 

है  सुकदेव  का वंशज वो |

बिन किताब पढ़ता है जो ||

 

शब्द  शब्द  दोहराता  है |

सबके  मन को  भाता है ||


ग़ज़ल ( देवेन्द्र कश्यप 'निडर')


देवेन्द्र कश्यप 'निडर'


हाय ! कैसे दिन  यहाँ  पर आ गये ।

झूठ  के  जलवे  यहाँ  पर छा गये ।।

 

कल तलक  जो थे  बड़े भोले भले ।

बेंच  कर औकात  अपनी खा गये ।।

 

हाथ  जोड़े   जो   खड़े   थे  नाटकी ।

अब कड़क तेवर बदल कर ला गये ।।

 

कल शपथ ली आम जनता के लिए ।

आज  जनता की कमी को गा गये ।।

 

थे  छपे  अखबार   में   कर्मठ  कभी ।

अब करोड़ों के लिए  बिक  धा गये ।।

 

जो   लफंगें   थे    कभी   नेता   बने ।

सभ्यता  का  ताज  अब  वे पा गये ।।

 

छानते  थे  खाक   गाँवों  में  'निडर'

शहर  के  घर आज उनको भा गये ।।

ग्राम अल्लीपुर पत्रालय कुर्सी तहसील सिधौली 

जिला सीतापुर, पिन कोड – 261303

मेरी अभिकामना

"है मेरी अभिकमना, इस ब्लॉग पर यह 100 वीं रचना है,  कम समय में रचनाओं का शतक पूरा कर लिया गया यह हमारे लिए हर्ष का विषय है. ब्लॉग 2014 से संचालित हैं जिस पर इक्का-दुक्का मेरे स्वंय की रचनाएँ ही प्रकाशित होती थीं जिले के नामचीन साहित्यकार सुरेश सौरभ के सुझाव से मई के अंतिम सप्ताह से अब यह ब्लॉग मेरा व्यक्तिगत न रहकर ऑनलाइन दुनिया में संपादन/प्रकाशन पर एक शोध के लिए आप सभी साहित्यकार मित्रों के लिये पटल का रूप ले लिया है. बहुत अधिक रचनाएँ प्राप्त होने लगी हैं. हम गौरान्वित हैं कि हमारा जिला भी साहित्य के क्षेत्र में अग्रणी है और इसे साहित्य के दुनिया में और आगे ले जाना है."
-संपादक/उपसंपादक
है मेरी अभिकामना

मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ,

नीरजा विष्णु 'नीरू'

टूटकर, गिरकर, बिखरकर

एक नया आकार पा लूँ।

 

है मेरी अभिकामना

मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।

 

कंटकों से बैर कैसा ?

प्रेम क्या मुझको सुमन से ?

पथ मेरा ऐसा हो जिसपे

चलके मैं संस्कार पा लूँ।

 

है मेरी अभिकामना

मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।

 

जीत का लालच नही है

हार का भय भी नही,

हो वही परिणाम जिससे

कर्म का आधार पा लूँ।

 

है मेरी अभिकामना

मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।

 

मित्रवत मुझसे मिलें सब

शत्रुता जैसा न कुछ हो,

प्रेम हो चारों तरफ

ऐसा सुखद संसार पा लूँ।

 

है मेरी अभिकामना

मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।

 

भावनाओं के भंवर में

बह न जाये नाव मेरी

हो न कोई शेष तृष्णा

तृप्ति की पतवार पा लूँ।

 

है मेरी अभिकामना

मैं ज़िन्दगी का सार पा लूँ।

Email: neerusolanki1090@gmail.com

ग्राम व पोस्ट: भीखमपुर जनपद: लखीमपुर खीरी

(उत्तर प्रदेश) पिन कोड:262805

Thursday, June 03, 2021

कोरोना काल की, त्रासदियों की लघुकथाएँ आमंत्रित

साहित्यिक आमंत्रण

 साहित्यकार समाज का सजग प्रहरी होता है। समय की धारा को अपनी लेखनी से लिपबिद्ध करता चले, यह उसका दायित्व भी होता है। दरबारी भांड,चारण, रीतकालीन जैसे लेखक हमेशा रहें हैं और हमेशा रहेंगे। नीर-क्षीर ढंग से अपनी बात कहना ही हमारा लेखकीय कर्म होना चाहिए, इस संग्रह में ऐसे ही रचनाकारों का हृदय से स्वागत है।

अपनी दो या तीन लघुकथाएँ नीचे लिखी हमारी मेल पर वर्ड फाइल में भेजें (चित्र नहीं)

पुस्तक का प्रकाशन राष्ट्रीय स्तर पर, दिल्ली का शीर्ष प्रकाशन करेगा, जो अमेजॉन और फ्लिपकार्ड पर उपलब्ध रहेगी। रचनाएँ चयनित होने पर, ईबुक और पीडीएफ लेखकों को निःशुल्क मिलेगी, चाहे तो हार्ड कापी 30% छूट के साथ खरीद सकते हैं। लघुकथाएं लगभग तीन सौ से पांच सौ शब्दों की बेहतर रहेंगी।

 

 विशेष- लघुकथाएँ भेजने की अंतिम तिथि 20 जून 2021

 

 संपादक-सुरेश सौरभ

  मो-7376236066

Email-sureshsaurabhlmp@gmail.com

ग़ज़ल (अरविन्द असर)

 

अरविन्द असर


कैसे बताऊं बात कि हालात हैं बुरे,

दिन बन गया है रात कि हालात हैं बुरे।

 

श्मशान, अस्पताल में लाशों के ढेर हैं,

रोकें ये वारदात कि हालात हैं बुरे।

 

कैसा ये दौर है कि करोड़ों को आजकल,

दूभर है दाल- भात कि हालात हैं बुरे।

 

इस सोच में हूं गुम कि चलूं कौन सी मैं चाल,

है हर क़दम पे मात कि हालात हैं बुरे।

 

गैरों की छोड़िए कि अब अपने भी इन दिनों,

देते नहीं हैं साथ कि हालात हैं बुरे।

 

हम डाल -डाल बचने की कोशिश में हैं, मगर

है रोग पात- पात कि हालात हैं बुरे।

 

बचना है गर तुम्हें तो "असर " इस निजाम पर,

जमकर चलाओ लात कि हालात हैं बुरे।

 

 

D-2/10 ,रेडियो कालोनी, किंग्स्वे कैम्प दिल्ली-110009

Ph no.9871329522,8700678915

गजल (नन्दी लाल)

नन्दी लाल


रोशनी में बैठकर के   खो गया महताब में।

राज महलों के झरोखे खूब देखे ख्वाब में।।

 

 बाढ़ क्या आई , कहर टूटा गरीबी पर मेरी,

 मुश्किलें  बहकर हजारों आ गईँ सैलाब में।।

 

 नाज नखरे नक्श उनकी जिंदगी में देखकर,

अक्श उनका आ गया सारा  दिले बेताब में।।

 

 मार मौसम की पड़ी सब सूख कर बंजर हुआ,

 मछलियाँ मरने लगी    पानी बिना तालाब में।।

 

 गिड़गिड़ाता फिर रहा है वह खुदा के नाम पर,

जल रहा था कल दिया जिस शख्स के पेशाब में।।

 

 जिंदगी के दाँव सारे      भूल बैठा आजकल,

 बाज आखिर आ गया उड़ती चिड़ी के दाब में।।

 

 ज़ीस्त की जादूगरी में कैद होकर रह गया,

 खो गया जो भीड़ में, इस दौर केअसबाब में ।।

 


गोला गोकर्णनाथ खीरी

‘कोविड स्ट्रेन’ का नया नामकरण और वैज्ञानिक सहिष्णुता..!


अजय बोकिल


इसे भारत सरकार की सख्ती का नतीजा कहें या फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सक्रियता कि उसने कोरोना के कथित भारतीय वेरिएंट का नामकरण अब डेल्टा कोविड 19’ कर दिया है। वरना इस वेरिएंट को भारतीयकहे जाने पर भारत सरकार सख्त नाराज हुई थी और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को उसने चेतावनी भी जारी कर दी थी कि वह कोविड के किसी वेरिएंट को इंडियन वेरिएंटकहने से बचें और ऐसी किसी भी सामग्री को अपने प्लेटफार्म पर से हटाएं। यह बात अलग है कि सरकार के एक हाथ को दूसरे हाथ का पता नहीं होता। क्योंकि सवाल यह है कि कोविड के लिए यह इंडियन वेरिएंटशब्द आया कहां से? पता चला कि मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड वैक्सीनेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार दिन पहले जो हलफनामा दायर किया था, उसमें खुद सरकार ने भारत में ‍मिले कोरोना स्ट्रेन को इंडियन स्ट्रेनबताया था। जबकि इसको लेकर देश में भाजपा और कांग्रेस में जमकर राजनीतिक तलवारबाजी भी हो गई। भाजपा ने कांग्रेस को भारत विरोधी भी बता दिया, बिना यह जाने कि खुद उसकी सरकार ही इसे इंडियन वेरिएंटबता चुकी है।

 

कहते हैं कि बद अच्छा, बदनाम बुरा। कोविड मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यह वायरस इतना खतरनाक है कि कोई भी देश इससे अपना नाम किसी सूरत में नहीं जो़ड़ना चाहता। लेकिन जब तक किसी वायरस का वैज्ञानिक नामकरण न हो, तब तक उसे क्या कहा जाए। देशों के नाम से पुकारें तो यह उस देश के लिए चिढ़जैसा हो जाता है। याद करें कि पिछले साल जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोविड को चीनी वायरसकहा था तो चीन भड़क गया था। जबकि इस वायरस का सबसे पहले पता चीन के वुहान शहर में ही चला था। पिछले दिनो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केन्द्र सरकार को वायरस के कथित सिंगापुर स्ट्रेनके बारे में चेताया था तो सिंगापुर सरकार ने नाराज होकर वहां भारतीय उच्चायु्क्त को तलब कर लिया था। वहां के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन ने ट्वीट कर कहा कि सिंगापुर वेरिएंट जैसा कोई वायरस नहीं है और न ही ऐसे किसी वायरस से बच्चों को खतरा है। मामला इतना गर्माया कि भारत के विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी कि केजरीवाल के बयान को भारत सरकार का बयान न समझें। यह उनकी निजी राय है। इसके समांतर हम मीडिया में कोविड 19 के अलग-अलग वेरिएंट्स के नाम मुख्यत: वो जहां पहली बार मिले, उन देशों के नाम से जानते आ रहे हैं। मसलन ब्राजील वेरिएंट, यूके वेरिएंट, अफ्रीकन वेरिएंट आदि। इसी आम बोलचाल में भारत में मिले स्ट्रेन को इंडियन स्ट्रेनकहा गया। हालांकि यह कोई अधिकृत नामकरण नहीं है, लेकिन यह वैसा ही है कि किसी नवजात बच्चे का विधिवत नामकरण होने से पहले परिजन उसे मनचाहे नामों से पुकारते हैं। क्योंकि हर जीव फिर चाहे वह वायरस ही क्यों न हो, उसे पहचान तो चाहिए ही। और लोग हैं कि तब तक रूकते नहीं है कि भई अधिकृत नामकरण तो हो जाने  दें। 

 

अब  बच्चे का नामकरण तो मां-बाप करते हैं, संस्थानों, वास्तु आदि का नाम सरकारें तय करती हैं, लेकिन वायरस जैसे अत्यंत सूक्ष्म विषाणु का नाम कौन और किस विधि से रखता है? तो जान लें कि किसी वायरस का नामकरण भी उसकी वैज्ञानिक कुंडली देखकर किया जाता है। इसके लिए एक वैश्विक कोरोना वायरस स्टडी ग्रुप काम करता है। यह स्टडी ग्रुप इंटरनेशनल कमेटी आॅन टैक्साॅनामी आॅफ वायरसेस के तहत काम करता है। यह कमेटी सार्स कोविड 2 वायरस के नामकरण के लिए जवाबदेह है। नामकरण भी वायरस की पहचान और इससे होने वाली बीमारी को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मसलन हम जिसे कोविड-19 के नाम से जानते हैं, उसमें कोसे तात्पर्य कोरोना, ‘विसे तात्पर्य वायरस, ‘डीसे तात्पर्य डिसीज तथा ‘19’ से तात्पर्य वो वर्ष, जिसमें यह वायरस खोजा गया। लेकिन अब यह वायरस भी अलग अलग देशों में अपने भीतर उत्परिवर्तन कर रहा है। यानी अपना रंग-रूप और मारकता बदल रहा है। इसलिए अब इसके अलग-अलग स्ट्रेनों का अलग-अलग नामकरण जरूरी हो गया है। लेकिन इसके पहले जब तक इस वायरस के विभिन्न रूपों का कोई अधिकृत नाम सामने नहीं आया था, तब तक लोगों ने जिस देश में जो वेरिएंट मिला, उसे उसी के नाम से पुकारना शुरू कर ‍दिया। सारे बवाल की जड़ यही है। लेकिन वैज्ञानिक क्षेत्र में ऐसी हड़बड़ाहट या सियासत काम नहीं करती। हमारे देश में तो  किसी भी मुद्दे पर राजनीति हो सकती है। लिहाजा इंडियन वेरिएंटपर भी घमासान मचा। मानो इसका भी कोई राजनीतिक लाभ हो सकता है। जब पाकिस्तानी मीडिया में खबर चमकी कि वहां कोरोना का पहला इंडियन स्ट्रेनमिला तो भाजपा प्रवक्ता डाॅ.‍संबित पात्रा ने इसके लिए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को घेर लिया। उन्होंने  ट्वीट कर कहा कि राहुल की मंशा पूरी हुई। आशय यह कि राहुल ने कोरोना वायरस को इंडियनबताकर भारत को बदनाम किया। यही काम मप्र भाजपा ने पूर्व मुख्यिमंत्री कमलनाथ पर हमला कर और उनके खिलाफ एफआईआर करके किया (अब उस एफआईआर का क्या होगा, देखने की बात है)। यानी जो कुछ हुआ, वह राजनीतिक मूर्खता और हमारे नेताअोंके दिमागी दिवालियापन  के अलावा कुछ नहीं है।

 

अब सवाल यह कि राहुल गांधी ने इसे इंडियन स्ट्रेनक्यों कहा तो इसका जवाब खुद मोदी सरकार के कोर्ट में दिए हलफनामे में था। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 9 मई के एक हलफनामे में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने देश में  कोवैक्सीन विकसित करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए कोरोना वायरस के लिए  इंडियन डबल म्यूटेंट स्ट्रेनशब्द का उल्लेख किया। आईसीएमआर के इस हलफनामे पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार और भाजपा को इस की गंभीरता समझ नहीं आई। परंतु इस हलफनामे के तीन दिन बाद ही केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन मीडिया रिपोर्ट्स पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें कोरोना वायरस के एक स्वरूप बी.1.617 को इंडियन वेरिएंटकहा गया था। मंत्रालय ने कहा कि डब्लूएचअो ने इस वेरिएंट को इंडियन जैसा कोई नाम नहीं दिया है। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठनने भी सफाई दी कि वह वायरस के किसी वेरिएंट को किसी देश के नाम से नहीं जोड़ता है।

 

बहरहाल, अब डब्लूएचअो ने बदनाम कोरोना वायरस के वैज्ञानिक नामकरण की पद्धति तय कर दी है। इसके मुताबिक ग्रीक अल्फाबेट ( वर्णाक्षर) को आधार बनाकर सभी कोविड वेरिएंट्स का नामकरण किया जाएगा। ग्रीक वर्णमाला में 24 अक्षर हैं। इसी के तहत कथित इंडियन वेरिएंट यानी B.1.617.2 का नाम डेल्टा वेरिएंटकर दिया गया है तथा देश में मिले एक और वेरिएंट B.1.617.1 ‍का नाम कप्पारख दिया गया है। इसी प्रकार ब्रिटिश वेरिएंट अल्फा’, साउथ अफ्रीकन वेरिएंट बीटा’, ब्राजील वेरिएंट गामा’, फिलीपीन्स वेरिएंट थीटाव यूएस वेरिएंट ‘‍एप्सिलानकहलाएगा। यदि ग्रीक अल्फाबेट के वर्ण भी खत्म हो जाएंगे तो नामकरण की नई सीरिज शुरू होगी। लेकिन अब किसी देश के नाम से कोई वायरस नहीं जाना जाएगा।

 

यहां प्रश्न किया जा सकता है कि क्या ग्रीक के लोग इस नामकरण के लिए तैयार हैं? या वो लोग भी हमारे नेताअों की तरह बवाल मचाएंगे? उनकी संस्कृति खतरे में आ जाएगी। क्योंकि मान लीजिए यदि डब्लूएचअो तय करता कि वह देवनागरी के वर्णों ( या ऐसी ही किसी और भाषा) का इस्तेमाल कोविड नामकरण के लिए करेगा तो हमारे देश में कितना बवाल मचता? लेकिन ग्रीस या उस जैसे देशों में ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि उनकी सांस्कृतिक, वैज्ञानिक समझ व दृष्टि हमसे कई गुना ज्यादा और व्यापक है। वायरस से जोड़े जाने पर ग्रीक अल्फाबेट की महत्ता और ग्रीस की महान संस्कृति पर कोई आंच नहीं आने वाली है। यही वैश्विक समझ और वैज्ञानिक सहिष्णुता भी है।

 (लेखक म० प्र० से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के वरिष्ठ संपादक हैं )

पियरे और जोसेफ़ के जैसा है मेरा और मेरे साईकिल का रिश्ता-अखिलेश कुमार अरुण


पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।

 

2014

आज विश्व साइकिल दिवस है, 3 जून 2018 को संपूर्ण विश्व में पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाया गया था, आज तक के वैज्ञानिक आविष्कारों में एक यही ऐसा अविष्कार है जो सस्ता होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।

 

ऊपर चित्र में यही हमारी साईकिल है, कभी हमने अपनी साईकिल को साईकिल नहीं कहा हमेशा गाड़ी कहते थे...इससे सम्बन्धित एक बाकया है हम  हमारा मित्र रविन्द्र कुमार गौतम सरकारी अस्पताल में अपने मित्र का हाल-चाल लेने पहुंचे थे ...साईकिल अस्पताल गेट पर खड़ी किये और अस्पताल में जो भर्ती थे उनके तीमारदार बाहर ही मिल गए पर साईकिल से उतरते नहीं देखा था यह हमें बाद में पता चला........गाड़ी खड़ी बा तनी देखत रहिह....कहते हुए अस्पताल के अन्दर गए हाल-चाल लिया कुछ देर बाद लौटना हुआ तब तक आप हमारी गाड़ी देखते रहे उनसे मिलकर साईकिल का ताला जब खोलने लगे तब ऊ बोले ई का हो .....गाडी से आईल रहल ह न......फिर बहुत हंसी हुई हम कहे, “इहे हमार गाडी ह।” अब जब भी मुलाकात उनसे होती है ठहाका लग ही जाता है।

 

साइकिल से हमारा बहुत पुराना नाता है सन 1998-99 की बात होगी। जब हमारे लिए पापा जी सेकंड हैंड साइकिल लेकर आए थे, 11 या 12 सौ की थी। उसका कलर नीला है तब से लेकर आज तक हम नीले रंग के दीवाने हो गए हमें लगता है कि नीला हमारा अपना रंग है जो हमेशा आसमान की उचाई को छूने के लिए प्रेरित करता रहता है। वह साइकिल आज भी हमारे प्रयोग में लाई जाती है पर कम दूरी के लिए या बाजार तक कभी हम पूरा लखीमपुर उसी से छान मारते थे, हमारा मोटरसाईकिल चलना उसको खलता होगा, लम्बी दुरी पर जो नहीं जाती सजीव होती तो शिकायत जरुर करती। 22/23 साल का हमारा उसका पुराना सम्बन्ध है,  उसके एक-एक पुर्जे से हम बाकिब हैं, और हो भी क्यों ना चलाते कम उसको बनाने का काम ज्यादा करते थे, पढ़ाई के दौरान महीने का दो रविवार साइकिल के नाम ही रहता था। हमारे साइकिल में टायर-ट्यूब का प्रयोग इतना जबरदस्त तरीके से किया जाता था कि बच्चों के खेलने लायक भी नहीं रह जाता। जगह-जगह टायर की सिलाई और ट्यूब में पंचर लगाने का काम तब तक जारी रहता था जब तक की वह लुगदी-लुगदी न हो जाए। हमारी साइकिल इतना वफादार थी कि वह छमाही या वार्षिक परीक्षा होने के पूर्व ही बयाना फेर देती उसका सीधा-सीधा संकेत था कि हम इतना कंडम हो गए हैं हमको सुधरवालो नहीं तो तुम्हारा पेपर हम दिलवा नहीं पाएंगे फिर तीन-चार सौ का खर्चा होना तय था... पीछे का टायर आगे, आगे किसी काम का नहीं ऐसा भी नहीं था टायरों में गोट (कत्तल) रखने के काम आता था। मूलरूप में साईकिल में अब केवल फ्रेम और पीछे का करिएर ही शेष हैं नहीं तो सब कुछ बदल चूका है। मेरे और साइकिल के बीच का सम्बन्ध पियरे और उसके घोड़ा जोसेफ़ के जैसा है हम दोनों एक दुसरे की भावनाओं को आसानी से समझ लेते हैं। हमारी साईकिल को देखकर हमारे होने का सहज अनुमान लोग आज भी लगा लेते हैं।

 जब हम छोटे थे तब साईकिल दुसरे को अपनी साईकिल देने में आना-कानी करते थे। जिसका फायदा उठाकर हमारे चाचा लोग चिढ़ाने का काम करते थे, कभी लेकर चले जाते तो गुस्सा भी बहुत आता था जब साईकिल आ जाती तब चुपके से उसका निरिक्षण करने जाते कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं है................चोरी पकड़ी जाती हाँ-हाँ देख लो कुछ घिस तो नहीं गया ......हमारा भी जबाब होता आउर नाहीं त का????

 अंत में आएगा तो साईकिल ही की उपयोगिता के लिए एक जयकारा तो बनता है .........जय साईकिल जिंदाबाद साईकिल अब कुछ लोग हमको सपाई होने की भूल भी कर बैठेंगे ऐसे में हम राजनीति से दूर हैं, आएगा साईकिल से तात्पर्य बस इतना है की पेट्रोल-डीजल आसमान छू रहे हैं ऐसे में लोग साईकिल की तरफ़ जा सकते हैं......बहुत कोशिश कर रहा हूँ इस पैराग्राफ में पर पता नहीं क्यों इसमें राजनीति की बू आ रही है हमको राजनीति से दूर रखियेगा वैसे हाथी भी ठीक रहेगा......राजनीति अपनी जगह साहित्य अपनी जगह, चलते है

ए०के०अरुण
नमस्ते


ग्राम-हजरतपु, जिला खीरी

उ०प्र० 262701

8127698147

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