साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, August 21, 2021

बुढ़ापे का निवाला पेंशन- गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

लघुकथा

गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
स्वाति, सुरेखा और सुमन तीन बहनें थीं।वे पढ़ने लिखने में काफी होशियार थीं,साथ ही घर के कामों में भी हाथ बंटाने से तनिक भी नहीं हिचकती थीं।न तो तीनों बहनों को कभी भाई की कमी खलती न उनके माता-पिता को बेटे की।जिंदगी तेजी से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।
लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।पिछले मई माह में उनके माता-पिता एक सप्ताह के भीतर ही काल के गाल में समा गए। दोनों के दोनों दुनिया को तबाह करने वाली बीमारी कोरोना और देश में व्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के भेंट चढ़ गए। जिसके कारण तीनों बहनों पर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। रातों-रात इनकी देखभाल और पढ़ाई लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी अब अवकाश प्राप्त शिक्षक दादाजी पर आन पड़ी। लेकिन दादाजी को मिलने वाले पेंशन से घर खर्च के साथ साथ पढ़ाई-लिखाई का खर्च चलाना काफी मुश्किल होने लगा।यह देख एक दिन तीनों बहनें दादाजी के पास गईं और बोलीं दादाजी ! हमलोगों ने फैसला किया है कि कल से पढ़ाई लिखाई के बाद आसपास के घरों में ट्यूशन पढ़ाने का काम भी करूंगी।इस पर दादाजी नाराज हो गए और बोले तुम लोगों को हमारी बुड्ढी हड्डियों पर भरोसा नहीं है जो ऐसा फैसला हमसे बिना पूछे कर ली। अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो कहो।जब-तक मैं जिंदा हूं तुम्हें सोचने की जरूरत नहीं है।अभी तुम्हारे मासूम हाथ कमाने योग्य नहीं हैं मेरी बच्चियों!क्या कहेगा दुनिया जमाना ! अवकाश प्राप्त शिक्षक मनोहर बाबू की पोतियां घर खर्च चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ा रहीं हैं।तुम लोग सिर्फ अपने पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान केंद्रित करो।अभी हमारी बुड्ढी हड्डियों में इतनी ताकत है कि कमाकर तुम लोगों को अच्छी तालीम दे सकूं।तुम लोग नहीं मैं बच्चों को पढ़ाऊंगा। फिर कभी ऐसी बात किये तो मैं तुमलोगों को माफ़ नहीं करूंगा।
क्या तुम लोग भी अटल बिहारी की सरकार की तरह हो जो बीच राह में करोड़ों कर्मचारियों को धोखा दे दी थी! और पुरानी पेंशन की नई पेंशन का झुनझुना थमा दिया।जिसके कारण आज हम जैसे करोड़ों कर्मचारी जिंदगी भर कमाने के बावजूद बुढ़ापे में बेसहारा बन जा रहे हैं। एक तरफ तो उन्होंने हमारी बुढ़ापे की लाठी तोड़ ही दी,क्या तुम लोग भी बीच में पढ़ाई-लिखाई से ध्यान हटाकर हमारे बुढ़ापे की अंतिम सहारे को भी समाप्त करना चाहती हो। पोतियों ने दादाजी के कंधे पर सर रखकर एक साथ बोलीं नहीं दादा जी हम अटल जी के जैसे नहीं हो सकते जो आपके बुढ़ापे का निवाला छीन लेंगे!
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक
ग्राम देवदत्तपुर,पोस्ट एकौनी, थाना दाऊदनगर, जिला
औरंगाबाद, बिहार
पिनकोड 824113
मोबाइल न 9507341433


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