साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, May 09, 2024

लोकतंत्र में वोटर्स पर " चार दिन की चांदनी,फिर अंधियारी रात" वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही-प्रो.नन्द लाल वर्मा (सेवानिवृत्त)

नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी
            ✍️बजाज ग्रुप की गोला-गोकर्णनाथ,पलिया और खम्भार खेड़ा चीनी मिलों के क्षेत्र के जागरूक गन्ना किसानों को वर्तमान लोकसभा चुनाव प्रचार-प्रसार में वोट मांगने के लिए गांवों में पधारने वाले सभी स्थानीय सत्ताधारी माननीय जनप्रतिनिधियों अर्थात सत्ताधारी गठबंधन के सभी दलों के माननीय विधायकों,सांसदों और पदाधिकारियों से गन्ना मूल्य भुगतान के लिए निर्धारित क़ानूनी समय सीमा के भीतर भुगतान न होने पर सवाल करना न भूलें। यदि स्थानीय नेतागण संतोषजनक जवाब नहीं दे पाते हैं या गोलमोल जबाव देते हैं या जबाव देने से कतराते हैं तो उन्हें किसानों से वोट माँगने का कोई राजनैतिक अधिकार नहीं रह जाता है और न ही जनता को ऐसे जनप्रतिनिधियों को दुबारा अपना मत और समर्थन देना चाहिए अर्थात ऐसे लोगों को फिर से चुनने की गलती नहीं करनी चाहिए। यूपी के मुख्यमंत्री की अतिमहत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत जिले में अलग-अलग जगहों पर कथित पर्याप्त गौशालाओं की व्यवस्था होने के बावजूद बेतहाशा घूमते आवारा पशुओं से किसानों की बर्बाद होती फसल के लिए उन्होंने और उनकी सरकार की ओर से अब तक कौन-कौन से सार्थक प्रयास किए हैं और किये जा रहे हैं? इन आवारा पशुओं से कई किसानों की मौतें तक हो जाने के बावजूद यूपी की असंवेदनशील सरकार इस मुद्दे पर अपेक्षित मुद्दे पर खरी नहीं उतरी। किसान भाइयों! यही समय है जब आप इनसे अपनी दुश्वारियों या दिक्कतों पर सवाल-जबाव कर सकते हैं,उसके बाद अगले चुनाव तक फिर आप इनसे मिलने और सवाल करने की स्थिति में नहीं रह पाएंगे। चुनाव में नेताओं की भूमिका याचक या भिखारी जैसी होती है और जनता की मालिक या राजा जैसी। चुनाव खत्म हो जाने के बाद जनता की भूमिका याचक या भिखारी जैसी हो जाती है और नेता की मालिक या राजा जैसी। यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि चुनावी लोकतंत्र में नेताओं को चुनाव के दौरान कुछ दिनों के लिए नकली भिखारी बनकर पांच साल के लिए असली राजा बन जाने के भरपूर अवसर प्रदान करता है और जनता चुनाव दौरान के कुछ दिनों के लिए राजा जैसा अनुभव कराकर या बनकर बाकी समय के लिए नेता के सामने असली याचक या भिखारी जैसा ही बनकर रहने के अवसर देता है। प्रत्येक मतदान से पहले देश के हर जिम्मेदार नागरिक मतदाता का राजनीतिक उत्तरदायित्व हो जाता है कि अगले चुनाव में वोट अपने नेता की कारगुजारियों या दलीय सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन का अवलोकन-आंकलन करने के बाद निकले निष्कर्ष के आधार पर ही दे। 
✍️देश के सामाजिक और सांस्कृतिक मंचों से जुड़े एक्टिविस्ट,बुद्धिजीवियों,स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों एवं चिंतकों,जन सरोकारों से जुड़े मीडिया वर्ग और अकादमिक संस्थाओं से जुड़े बुद्धिजीवियों द्वारा पिछले कई वर्षों से लगातार यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि संविधान और लोकतंत्र भयंकर खतरे की चपेट में है और 2024 का लोकसभा चुनाव देश के संविधान और लोकतंत्र का भविष्य तय होने के संदर्भ में देखा जा रहा है। पिछले कुछ समय से संविधान - लोकतंत्र और उनसे जुड़ी स्वायत्त संस्थाओं की कार्य-संस्कृति पर उमड़ते संकटों को देखते हुए एक अजीब सा माहौल बनता हुआ दिखाई दे रहा है जिससे देश के सामाजिक घटकों में एक तरह की असमंजस,अदृश्य भय,बेचैनी या अनगिनत आशंकाएं पनपती हुई महसूस की जा रही हैं। समता,समानता,न्याय और बन्धुतायुक्त हमारे संविधान और लोकतंत्र ने देश के हर नागरिक और हर वर्ग को बहुत कुछ दिया है,लेकिन देश के हज़ारों साल से सामाजिक-राजनीतिक-शैक्षणिक-आर्थिक रूप से वंचित,शोषित व पिछड़े वर्गों को कुछ अतिरिक्त सकारात्मक व्यवस्था प्रदान की गई है जिससे उन्हें भी समान और सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अवसर मिल सकें। इसके लिए संविधान में बाक़ायदा अनुच्छेद दर अनुच्छेद उचित व्यवस्था के साथ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत भी बनाए गए हैं। संवैधानिक व्यवस्था की निगरानी करने के लिए कुछ विशिष्ट स्वायत्तशासी संस्थानों की भी स्थापित की गयी। एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के सम्मान,विकास और सुरक्षा हेतु बनी संवैधानिक व्यवस्था के माध्यम से मिले आरक्षण से ही एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों को देश की व्यवस्था में उनकी जनसंख्या के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व मिलने की प्रक्रिया शुरू हुई। भले ही यह प्रक्रिया बे-मन,अधूरे मन,देर से और दूषित मानसिकता की वजह से सुस्ती से लागू हो पाई है,लेकिन जैसे-जैसे इन वर्गों में सामाजिक और शैक्षणिक चेतना से पिछड़ापन दूर होता गया उसके अनुरूप उनकी भागीदारी बढ़ने या मिलने का मार्ग प्रशस्त होता गया। आज़ादी के 75 सालों में संवैधानिक व्यवस्था के हिसाब से भले ही इन वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है,लेकिन आरक्षण की वजह से मिली भागीदारी से इन वर्गों से सामाजिक,शैक्षणिक,राजनीतिक व आर्थिक रूप से एक विशाल और सशक्त मध्यम वर्ग के रूप में जरूर उभरा है जो यहां की वर्णवादी व्यवस्था के पोषकों की आंखों में सुई की तरह चुभ रहा है और इनको जब भी कोई मौका मिलता है तो वे ऐसी साजिश या षडयंत्र रचने का अवसर हाथ से जाने नहीं देते जिससे इन पिछड़े वर्गों को मिलने वाले समान अवसरों में यथासंभव कटौतियां की जा सके। 
✍️आरक्षण में ओवरलेपिंग व्यवस्था का खात्मा,एक ही स्तर पर आरक्षण देना,शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की रोस्टर व्यवस्था,आयु सीमा और शैक्षणिक योग्यता में मिलने वाली छूट के आधार पर आरक्षण खत्म करना,ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करना,वर्ग आधारित जिसे लोग जाति आधारित आरक्षण कहते हैं,उसकी 50% अधिकतम सीमा तय होना,ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण देते समय आरक्षण की निर्धारित अधिकतम सीमा को जानबूझकर ओवरलुक करना,आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता होने पर सामान्य/अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की भर्ती करने की पुरानी व्यवस्था के स्थान पर एन.एफ.एस. की व्यवस्था लांच कर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की योग्यता पूर्ण होने के बावजूद उन्हें नॉट फाउंड सूटेबल घोषित कर बाहर का रास्ता दिखाना और ऐसा तीन बार होने पर आरक्षित सीट पर सवर्ण की नियुक्ति करने का नियम और सबसे बड़ी साजिश तो लेटरल एंट्री(चोर दरवाजे) से विषय विशेषज्ञता के नाम पर 450 से अधिक जॉइंट सेक्रेटरी (यूपीएससी के माध्यम से चयनित और नियुक्त एक आईएएस को लगभग 17 साल लगते हैं, इस पोस्ट पर पहुंचने में अर्थात जिसके अधीन लगभग सत्तरह बैच के आईएएस ऑफिसर् काम करते हैं) की आरक्षण लागू किये बिना भर्ती करना,बेतहाशा निजीकरण करना आदि आरक्षित वर्ग की खुलेआम हकमारी के जीते-जागते उदाहरण देखे और पढ़े जा सकते हैं। सबसे बड़ी विडंबना और दुखद पहलू यह है कि इस तरह की हकमारी पर विधायिका (लेजिस्लेटिव)और कार्यपालिका (एग्जीक्यूटिव) में उसी वर्ग के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों में किसी भी तरह की बेचैनी या हलचल नहीं दिखती है। ये सभी लोग डॉ.आंबेडकर जी के "पे बैक टू द सोसाइटी " के दर्शन या सिद्धांत को भूल गए हैं जिनकी बदौलत इन्हें राजनीतिक और सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलने से एक सम्मान पूर्वक खुशहाल और विलासिता पूर्ण जीवन जीने का अवसर मिला है। चुनाव में ऐसे छद्म आंबेडकरवादियों और सामाजवादियों को परखने का अच्छा वक़्त होता है। असली और नकली लोगों की जानकारी हासिल करने के बाद ही डॉ.आंबेडकर के द्वारा दिये गए बहुमूल्य मताधिकार का प्रयोग करना ही उनके प्रति असली सम्मान और सच्ची श्रद्धांजलि मानी जाएगी। मुंह से जय भीम का नारा लगाने या नीले कपड़े पहनने या नीला झंडा पकड़ने से डॉ.आंबेडकर का मिशन/सपना/ पूरा नहीं होने वाला है,इसके लिए प्रदर्शन के स्थान पर उनके दर्शन या वैचारिकी और चित्र की जगह उनके चरित्र और आवरण को हटाकर आचरण में लाना होगा। वह पूंजी परस्त सरकारों के विरोधी थे। आजकल की सरकार पूरी तरह क्रोनी कैपिटलिज़्म की पोषक बनी हुई है। 
✍️पिछड़े और वंचित वर्ग को इस लोकसभा चुनाव में संविधान और लोकतंत्र के ख़ातिर वोट करना है और वह भी चातुर्यपूर्ण तरीके (टैक्टिकली) से। चुनावी राजनीति के लिए आज सरकार जो मुफ़्त सुविधा,सामग्री या सम्मान दे रही है,वह सब संविधान की वजह से ही सम्भव हुआ है। जब संविधान ही नहीं रहेगा तो यह सब जो आज मिल रहा है,वो सब बंद होने में देर नहीं लगेगी। सरकार किसी भी दल की हो,सांविधानिक रूप से जिसे जो मिल रहा है,उसे खत्म करने का साहस नहीं है और यह तभी सम्भव है जब देश में संविधान और लोकतंत्र मजबूती के साथ क़ायम रहेगा। संविधान और लोकतंत्र को बचाना एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों की " चातुर्यपूर्ण चुनावी राजनीतिक एकजुटता और विवेकशील निर्णय" से ही सम्भव है। विगत चुनावों की तरह इस बार किसी भी तरह के लालच/चुनावी प्रलोभन/मीठे भाषण में यदि फंसे तो यह तय मानिए कि आने वाले भविष्य में न तो संविधान बचेगा और न ही लोकतंत्र बचेगा और ऐसी स्थिति में आपको अपने मताधिकार जैसे एक मजबूत हथियार से भी वंचित होना पड़ सकता है जिसे डॉ.आंबेडकर ने कड़ी मेहनत और त्याग- तपस्या से सामाज और राजनीति के भयंकर विरोधों और संघर्षों को झेलते हुए पिछड़े-वंचित वर्ग के लोगों के लिए हासिल कर पाए थे। 
✍️एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों को इस लोकसभा चुनाव में बेहद चातुर्यपूर्ण तरीके से वोट देने की जरूरत है जिससे संविधान और लोकतंत्र बदलने और खत्म करने की बात करने का दुस्साहस करने वाले राजनीतिक दल,उनके नेताओं और उसके परामर्शदाताओं की संविधान और लोकतंत्र विरोधी सोच पर एक-एक वोट की करारी चोट कर उनके मंशूबों को चकनाचूर और धराशायी किया जा सके। संविधान है तो लोकतंत्र कायम रहेगा और यदि लोकतंत्र कायम रहेगा तो सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक विविधताओं से युक्त हमारा खूबसूरत भारत भी वैश्विक स्तर पर मजबूती के साथ खड़ा रहेगा। 

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