साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, May 31, 2024

हर परिस्थिति में बीजेपी को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की संभावना-नन्दलाल वर्मा (सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)

  लोकतंत्र की लूट/आशंका/संभावना/हिटलरशाही पर लेख   
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी


✍️इस बार चरण दर चरण चुनाव के बाद मोदी की भाषा-शैली लड़खड़ाती और कटुतापूर्ण होती दिख रही है। चुनाव परिणाम के बाद उपजने वाले संकटपूर्ण परिदृश्य पर संविधान और लोकतंत्र के समानता, समता, धर्मनिरपेक्षता और बंधुता जैसे सिद्धांतों में गहन आस्था और विश्वास रखने वाले सामाजिक वर्ग और राजनीति की संस्थाओं से जुड़े चिंतक वर्ग संविधान और लोकतंत्र को लेकर कल्पनातीत सम्भावनाएं और आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं।चुनाव में सत्ता के शीर्ष नेतृत्व के वैमनस्यता पूर्ण वक्तव्यों विशेषकर हिन्दू मुसलमान और पाकिस्तान पर लगातार जनता को दिग्भ्रमित करने की हर सम्भव कोशिश जारी रही है। साम्प्रदायिक वैमनस्यता फैलाते और विषवमन करते भाषणों की लगातार  बौछार से देश के ईमानदार,स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया वर्ग में चार जून के बाद संविधान और लोकतंत्र के संकट को लेकर गहन विचार-विमर्श जारी है।बीजेपी को बहुमत न मिलने की स्थिति में सरकार गठन के मुद्दे पर नई तरह की तानाशाही के उभरने की आशंका ज़ाहिर कर रहे हैं।इस बार भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में वह हो सकता है जिससे देश के संविधान बनाने वाले और लोकतंत्र स्थापित करने वालों की रूह तक कांप उठेगी।बहुमत न मिलने की आशंका से भयभीत दिखते पीएम इंडिया गठबंधन के घोषणा पत्र को साम्प्रदायिक रंग देकर उसकी व्याख्या कर हिंदू-मुस्लिम की दीवार लगातार ऊंची करने में लगे हैं।उनके चुनावी भाषणों,संसद पर अचानक बढ़ाई गयी सुरक्षा व्यवस्था सन्निकट संभावित आशंकाओं और घटनाक्रम को लेकर संवैधानिक-लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था रखने वाला बौद्धिक वर्ग यथासंभव वैचारिक-विमर्श कर टीवी चैनलों के माध्यम से लोगों को संभावित खतरों से लगातार आगाह कर रहा है। 
✍️मोदी काल में नियुक्त राष्ट्रपतियों और उपराष्ट्रपतियों के आचरण से संवैधानिक और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का लगातार हरण-क्षरण हुआ है। देश-विदेश में सार्वजनिक मंचों पर इन प्रमुखों का आचरण कैसा रहेगा,उसे पीएमओ तय करता है जिसके कुछ उदाहरण बतौर सबूत देखे जा सकते हैं। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने पूरे कार्य काल में मोदी के सामने समर्पण और कृतज्ञता भाव से आचरण करते दिखाई देते रहे और वर्तमान राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू उन्हीं की विरासत को आगे बढ़ाते हुए पीएमओ से मिले दिशा-निर्देशों की अनुरूपता और अनुकूलता के हिसाब से आचरण करने की हर सम्भव कोशिश करती दिखाई देती हैं।उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की राष्ट्रपति बनने की चाहत ने मोदी के सामने उनकी शारीरिक भाव-भंगिमा,भाषा और समर्पण मुद्रा से संविधान और लोकतंत्र की व्यवस्थाएं-मर्यादाएं मौके-बेमौके विगत लंबे अरसे से शर्मसार और बेनक़ाब होती रही हैं। द्रोपदी मुर्मू की लोकतंत्र और देश की महिला पहलवानों,मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई शर्मनाक घटनाओं पर उनके मुंह से एक लफ्ज़ न निकलना मोदी के सामने उनका निरीह दिखता चरित्र और व्यक्तित्व उनकी संवैधानिक शक्ति के निष्पक्ष और विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में बहुत कुछ संशय पैदा करता दिखाई देता है।राष्ट्रपति मुर्मू को नई संसद के शिलान्यास से लेकर उद्घाटन और राम मंदिर के शिलान्यास व प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल न होने या न करने के बावजूद मोदी के प्रति उनके कृतज्ञता भाव में कोई कमी नही आयी है।इन विषयों पर सवाल होने पर मोदी की कार्य-संस्कृति से उन्हें कोई शिकवा शिकायत नहीं है।वो मानती हैं कि मोदी जी जो कर रहे हैं या करेंगे वो सब ठीक ही होगा। मुर्मू की भूमिका के बारे में यह धारणा सी बन चुकी है कि वह संविधान प्रदत्त शक्तियों का विवेकपूर्ण प्रयोग न कर पीएमओ से मिले दिशा-निर्देशों को शीर्ष सत्ता की मर्ज़ी और मंशा के अनुरूप और अनुकूल ही आचरण करती हैं,अर्थात वह पीएमओ की राय के बिना एक शब्द तक नहीं बोल सकती हैं। महिला पहलवान और मणिपुर की महिलाओं की अस्मिता पर उनकी चुप्पी को देखते हुए लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सरकार गठन के मुद्दे को लेकर संभावित वीभत्स परिस्थितियों प का सामना करने की कई तरह की आशंकाएं प्रकट की जा रही हैं।2024 के चुनावी परिणाम मोदी और शाह के लिए राजनीतिक रूप से जीवन-मरण और प्रतिष्ठा की लड़ाई दिखाई देती है।बीजेपी यानि कि मोदी-शाह किसी भी परिस्थिति में विपक्ष की विशेष रूप से कांग्रेस नेतृत्व की सरकार न बनने की कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते हैं,भले ही उन्हें संविधान-लोकतंत्र की सारी हदें पार करनी पड़े और इसमें राष्ट्रपति से पूर्ण सहयोग मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
✍️संविधान-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं,मर्यादाओं,परंपराओं का तकाज़ा है कि चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रपति को सांविधानिक व्यवस्था के साथ खड़ा होना चाहिए,किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष के पक्ष या विपक्षी दलों के विपक्ष में नहीं। इस बार चुनाव परिणाम आने के बाद पैदा होने वाली परिस्थिति से निपटने के लिए भारतीय संसदीय लोकतंत्र में कल्पनातीत ऐतिहासिक उथल-पुथल होने की संभावना जताई जा रही है। मोदी के तानाशाही रवैये के चलते राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और प्रदत्त शक्तियों के कसौटी पर कसने का समय आने वाला है। देखना है कि चुनाव परिणाम में यदि एनडीए को स्पष्ट पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्ति और विवेक निष्पक्ष होकर काम करती है या फिर शीर्ष सत्ता संस्थान से मिले संकेतों और दिशा-निर्देशोँ के अनुरूप और अनुकूल निर्णय लेने के लिए मजबूर होती हैं।एनडीए को पूर्ण बहुमत नही मिलने पर मुर्मू विपक्षी इंडिया गठबंधन को गठबंधन की मान्यता देती हैं या नहीं,यह एक बड़ा सवाल उठता दिखाई दे रहा है।ऐसी परिस्थिति में वह संविधान और लोकतंत्र के साथ खडी दिखाई देंगी या पार्टी/व्यक्ति विशेष के साथ जिसने उन्हें राष्ट्रपति जैसे गौरवशाली पद तक पहुंचाया है!संविधान-लोकतंत्र के जानकारों का मानना है कि इस चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी के प्रतिकूल बनीं परिस्थितियों में सरकार के गठन पर राष्ट्रपति की निर्णय बेहद महत्त्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

ये परिस्थितियां पैदा होने की संभावना जताई जा रही है:
1️⃣यदि एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलता है तो सरकार बनाने के आमंत्रण देने में राष्ट्रपति को कोई दुविधा नहीं होगी। बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना निश्चित। यह स्थित उनके लिए बेहद सुखद और सुविधाजनक साबित होगी।
2️⃣यदि एनडीए का पूर्ण बहुमत नहीं आता है तो राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाएगी।बहुमत पाए विपक्ष इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता नहीं भेजेंगी,ऐसी सम्भावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि मोदी  के इशारे पर इंडिया गठबंधन की प्री पोल गठबंधन की मान्यता न मानते हुए उसे सरकार बनाने का न्योता नहीं देंगी। यदि एनडीए पूर्ण बहुमत की संख्या से थोड़ा पीछे रह जाती है जो मैनेज की जा सकती है तो राष्ट्रपति मुर्मू एनडीए को पूर्ण बहुमत  के लिए समर्थन जुटाने के लिए सरकार गठन में विलंब कर सकती हैं जिसकी पूरी सम्भावना जताई जा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसी बीच बीजेपी अर्थात मोदी को हीरा मंडी से हीरे खरीदने का वक्त मिल जायेगा अर्थात हॉर्स ट्रेडिंग हो जाएगी। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विपक्ष के छोटे-छोटे दलों के सांसदों को अच्छी खासी रकम और मंत्री का आकर्षण दिखाकर बहुमत के लिए न्यूनतम आबश्यक संख्या जुटा ली जाएगी। इस तरह की परिस्थिति की ज्यादा संभावना जताई जा रही है।
3️⃣यदि विपक्ष के इंडिया गठबंधन अर्थात विपक्ष को पूर्ण बहुमत का संख्या बल हासिल हो जाता है तो क्या राष्ट्रपति मुर्मू इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने और बहुमत सिद्ध करने का न्योता देंगी? जानकारों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति विपक्ष को सरकार बनाने का न्योता नही देंगी। माना जा रहा है कि ऐसा शीर्ष सत्ता संस्थान से फरमान जारी हो चुका है। लोगों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति विपक्षी दलों को गठबंधन की मान्यता इस आधार पर नहीं देंगी कि एनडीए गठबंधन की तरह विपक्ष का इंडिया गठबंधन प्री-पोल गठबंधन ही नहीं है और इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने का मौका नहीं दिया जाएगा,ऐसा प्लान मोदी बना चुके हैं।
4️⃣यदि एनडीए गठबंधन बहुमत से थोड़ी दूर अर्थात बहुमत सिद्ध करने के काफी नजदीक संख्या पर आकर टिकती है तो राजनीतिक विश्लेषकों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि इस परिस्थिति में मोदी की इच्छानुसार/संकेतानुसार राष्ट्रपति द्वारा बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता देते हुए अपना सदन में बहुमत साबित करने के लिए अनुकूल और सुविधापूर्ण अवसर प्रदान किया जा सकता है। संसद पर बढ़ाई गई सुरक्षा का इसी संदर्भ में अवलोकन और आंकलन किया जा रहा है। उनका मानना है कि सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिए कुछ विपक्षी सांसदों को सुरक्षा के कतिपय अदृश्य कारणों का हवाला देते हुए संसद में प्रवेश करने से रोक दिया जाएगा और एनडीए को पूर्ण बहुमत न मिलने पर भी बीजेपी/मोदी के लिए सरकार बनाने की अनुकूल परिस्थिति पैदा की जाएगी।
5️⃣हंग पार्लियामेंट की दशा में राष्ट्रपति द्वारा जानबूझकर ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाएंगी जिससे एनडीए गठबंधन की हर हाल में सरकार बन सके। अपरिहार्य परिस्थिति जैसे अपवाद को छोड़कर राष्ट्रपति मुर्मू की यही मंशा और प्रयास रहेगा कि किसी तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की ही सरकार बनने का रास्ता साफ हो सके,भले ही उन्हें इसके लिए संवैधानिक-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और परंपराओं को थोड़े समय के लिए दरकिनार करना पड़े।
6️⃣ बीजेपी सरकार बनने की कोई गुंजाइश न दिखने पर पीएम मोदी आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।

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