साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, July 05, 2021

मेरी अजीब किस्मत-रिंकी सिद्धार्थ


समाज को आईना दिखाती एक लड़की के जीवन के संघर्षों की सच्ची कहानी

गूगल से साभार
सीतापुर जिले के एक छोटे से गांव में सुधा और रज्जु अपने माता पिता और दो भाई और एक बहन जो कि ससुराल वालों के अत्याचारों से तंग आकर वापस मायके आ गई थी सब के साथ रहते थे रज्जू के दोनों भाईयों की शादी भी हो चुकी थी और उन दोनों के एक बेटी दो बेटे थे रज्जू ने भी सोचा था इसलिए रज्जु के जब एक बेटी और एक बेटा हुआ तब तक सब ठीक था दूसरे बेटे की आस में जब दूसरी बेटी पैदा हो गई तब तो जैसे उस लड़की ने एक ऐसी जगह पैदा होकर गुनाह कर दिया जहां लोग बेटा ही चाहते थे इसीलिए सुधा और रज्जु ने फिर से एक और बच्चा जनने की सोची और इस बार उनकी चाहत के अनुसार उन्हें एक और बेटा हो गया अब उनके भाईयो के दो बेटा और एक बेटी थी रज्जु और सुधा के दो बेटा और दो बेटीयां हो गई, उन्हें लगने लगा कि बेटियों की शादी करनी पड़ेगी जबकि उनके भाईयों को सिर्फ एक बेटी का ही खर्च उठाना पड़ेगा यह सोच कर वो दो बेटीयों को देखकर बहुत दुःखी रहते थे जैसे ही लड़कीयां थोडी बड़ी हुई उनकी लड़कीयों के लिये बुरे दिन आ गये। वो अपनी छोटी लड़की से तो ज्यादा ही नफरत करने लगे क्योंकि उसे वो बिलकुल भी नहीं चाहते थे वो तो दूसरे बेटे की चाहत में आ गई थी उनकी छोटी लड़की रीना की उम्र उस समय केव8 वर्ष की थी। 

जब उसके माता पिता ने गाँव छोड़ कर शहर में रहने का फैसला लिया, गांव में सारा परिवार साथ रहता था।  अतः मां बाप चाहते हुये भी अपनी बेटियों के साथ ज्यादा बुरा व्यवहार नहीं कर पाते थे बाकी परिवार वाले बेटियों को बचा लेता थे उनके जुल्म से. पर शहर आने पर माता पिता का व्यवहार बेटियों के प्रति और खराब होता चला गया गाँव में चैन से खेलने वाली लड़कियों को घर के काम में जुतना पड़ा। उन पति पत्नी के पास एक बहाना था क्योंकि वो दोनों पति पत्नी सरकारी नौकरी करते थे तो जब कभी कोई उन्हें बोलता आप छोटी बच्चीयों से इतना काम क्यों लेती है तो वो बोल देती मैं नौकरी करती हूं तो मुझे लड़कियों की मदद लेनी पड़ती हैं और लड़कीयां अगर उनकी बात न माने घर के काम न करके पढना चाहे तो वो लड़कीयों को चिल्लाते और मारते थे जब कोई पडोसी उनसे पूछता क्यों डाँट मार रही हैं लड़की को तो वो बोल देते हमारी बात नहीं मानती है इसलिए जबकि उनकी बड़ी बेटी और छोटी बेटी के बीच में एक बेटा था उससे कोई काम नहीं कहती करने को वो पढाई भी नहीं करता था सारा दिन वो सिर्फ टीवी देखता और दोस्तों के साथ घूमता फिर भी वो अपने बेटे को कभी डांटती भी नहीं थी पति कुछ बोले तो उसे भी रोक लेती लड़का है हमारे बुढ़ापे का सहारा है इसको कुछ मत बोलो. सुधा रुपवती और पैसा कमाने वाली स्त्री थी और रुप और गर्व में चोली-दामन का नाता है। 

वह अपने हाथों से कोई काम न करती।घर का सारा काम बेटियों से कराना चाहती।पिता की आँखें कुछ ऐसी फिरीं कि उसे अब बेटीयों में सब बुराइयाँ-ही- बुराइयाँ नजर आतीं थी बेटों में नहीं । सुधा की बातों को वह प्राचीन मर्यादानुसार आँखें बंद करके मान लेता था। बेटीयों की शिकायतों की जरा परवाह न करता। नतीजा यह हुआ कि बेटियों ने शिकायत करना ही छोड़ दिया। किसके सामने रोये? जब मां बाप ही गलत करते हैं , अब कुछ लोगों को छोड़ कर लगभग सारे लोग ही जैसे उसके दुश्मन बन गये। बड़ी जिद्दी लड़कीयां है,सुधा को तो कुछ समझती ही नहीं; बेचारी उनका दुलार करती है, खिलाती-पिलाती है यह उसी का फल है। दूसरी औरत होती, तो निबाह न होता। वह तो कहो, सुधा इतनी सीधी-सादी है कि निबाह हो जाता है। सबल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद भी कोई नहीं सुनता! बेटियों का हृदय माँ बाप की ओर से दिन-दिन फटता रहा बेटीयां माता पिता के जुल्म सहती रही सिर्फ इस डर में कि जब घर के लोग इतना बुरा व्यवहार करते हैं तो बाहर के लोग कैसा व्यवहार करेंगें उनके साथ और वो अगर घर से भाग कर घर वालों के जुल्मों से बच कर जाना भी चाहे तो जाये तो जाये कहां जहां उनके साथ बुरा न हो कोई ऐसी सुरक्षित जगह नजर न आती उन्हें जहां वो रह सके जुल्मों से बच सके इसलिए उन्होंने इतने बुरे माता पिता का मिलना अपने प्रारब्ध के बुरे कर्मो का फल मान लिया और वैसे ही घरवालों के अत्याचार सह कर जीवन व्यतीत करती रही!

रिंकी सिद्धार्थ

पता-बनारस उत्तर प्रदेश

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