साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Wednesday, April 17, 2024

सदियों से लाईलाज बीमारी का डॉक्टर-मुकेश वाळके

  कविता   
मुकेश वाळके
बंगाली कैम्प, मूल रोड, 
शांतिनगर, चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
442401


डॉक्टर
मै फिर से खोज रहा हु 
तुम्हारा राष्ट्र मन जांचनेवाला टेटस्कोप
तुमने जो इजात किया था
जाति उन्मूलन का टीका-
और उसे लगाने के लिए इस्तेमाल की थी जो सिरिंज.

डॉक्टर
आज फिर से गर्व के साथ संक्रमित हुआ है-
जाति धर्म के द्वेष का चौमुखी वायरस 
कुरेद रहा सौहार्द्र रहित 
संवेदनशील मस्तिष्क का 
मानवतावादी ढांचा 
तुम्हारे मरीज का भटक रहा ध्यान और दिशाहीन,
हो रही तुमने जो सीधी कर दी वो गर्दन 
संविधान की फार्मसी देकर 
जहां तुमने उंगली दिखा कर लिखा था आर एक्स 
उस निरामय संसद की ओर 
दूसरो के कंधो पर जा रहें तुम्हारे 
स्वार्थ भावना से लापरवाह हुए मरीज, 
कोई पागलखाने भर्ती हो रहा हो जैसे!
पढ़ो, संघर्ष करो और संगठित रहो!
यह सब तुम्हारी जालीम टैबलेट्स खोज रहा हूँ, 
मै फिर से-
आजादी, समानता, न्याय और भाईचारे के 
सद्धम्म की स्थाई आराम देनेवाली सलाईन कहा खो गई है डॉक्टर?
चिंता करते करते ही तुमने बुनियाद रख छोड़ी,
दीक्षाभूमि के ग्लोबल मेडिकल कॉलेज की.
तुम्हारा मरीज ज्यादा समय दर्द और मर्ज से तड़पता ना रहें 
इसलिए ...  
लेकिन अब फिर अस्पताल के सामने दिखने लगी है कतार 
मरीजों की किसी महामारी की तरह. 
अब तुम ही बताओ डॉक्टर!
वो तुमने खोजा हुआ टीका कहा है?
तुम्हारा वो टेटस्कोप कहा है?
वो टैबलेट्स, और सलाइन कहा है?

डॉ.आंबेडकर के संगठन और संघर्ष जैसे मन्त्रों की राजनीतिक प्रासंगिकता:प्रो.नन्द लाल वर्मा(सेवानिवृत्त)

नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी 
✍️एक जमाना था,जब न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी भारत की स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थाओं के सरकार और शक्तिशाली नेताओं के दबाव में न आने के लिए विश्व भर में भारत की प्रशंसा हुआ करती थी,लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं दिखाई दे रहा है। संवैधानिक संस्थानों को सत्त्तारुढ़ दल की सोच के अनुरूप ढालने के लिए लगातार दबाव जारी हैं। आज एक्टिविस्ट और विपक्षी नेताओं को महीनों तक बिना ज़मानत के न्यायिक हिरासत में,जेल या घरों में नज़रबंद कर रखा जा रहा है और लोकतंत्र की रक्षक न्यायपालिका की आज़ादी शंका की नज़र से देखी जाने लगी है। संवैधानिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण तंत्र आज के दौर में ग़ायब से होते दिख रहे हैं। विदेश ही नहीं देश के अंदर भी मोदी सरकार पर संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को किनारे लगाने का आरोप लग रहा है। आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन डॉ.बिबेक देबराय ने अखबार मिंट में एक लेख के माध्यम से 2047 के लिए एक नए संविधान की जोरदार तरीके से वकालत कर चुके हैं और बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े भी कई बार बयान दे चुके हैं कि संविधान बदलने के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी है। बीजेपी के नेताओं द्वारा दिया गया नारा "अबकी बार 400 पार" इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। संघ,बीजेपी और मोदी का अंतिम लक्ष्य संविधान को नष्ट कर उसके स्थान पर मनुस्मृति की व्यवस्था लागू करना है। उन्हें न्याय,समता,धर्मनिरपेक्षता,नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र से सख्त नफ़रत है।
✍️आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की है। इसलिए हमारा संविधान हमारे लोकतंत्र का रक्षक है,लेकिन आज जैसे हालात पैदा हो गए हैं और निरंतर जारी हैं,ऐसे में आंबेडकर जी की विचारधारा और अधिक प्रासंगिक हो जाती है। आज चारों तरफ सांविधानिक अभिव्यक्ति की आजादी पर आक्रामक हमले हो रहे हैं। असहमति और विपक्ष लोकतंत्र की खूबसूरती माना जाता है, लेकिन आज विपक्ष,असहमति व्यक्त करने और सवाल करने वाले लोग एक तरह की अघोषित इमरजेंसी जैसे दौर में गुजरने को मजबूर हो रहे हैं। आज प्रजातांत्रिक व्यवस्था में "अहम ब्रह्मश्मि" जैसा दम्भ भरता हुआ एक तानाशाह दिखाई दे रहा है। संवैधानिक व्यवस्था और मूल्यों का खुला हनन हो रहा है। वर्तमान सत्तारूढ़ दल की पैतृक संस्था द्वारा संविधान बदलकर सांविधानिक धर्मनिरपेक्ष देश को “हिन्दू राष्ट्र” बनाने की बात कही जा रही है। लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करने वालों को देश द्रोही करार देकर उन्हें जेल भेजा जा रहा है या उन्हें उनके घरों में नज़रबंद किया जा रहा है। चुनावी राजनीति के लिए साम्प्रदायिकता को हवा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। मॉबलिंचिंग जैसी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। जातिगत-धार्मिक भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे संक्रमण काल में डॉ.आंबेडकर की मानवतावादी विचारधारा और संवैधानिक व्यवस्था का महत्व और बढ़ जाता है। अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि संविधान और लोकतंत्र के बग़ैर भारत का कोई भविष्य नहीं है। 
संविधान सभा में दिए आख़िरी संबोधन में डॉ.आंबेडकर ने कहा था कि केवल राजनीतिक लोकतंत्र से काम नहीं चलेगा। राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र में बदलना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक लोकतंत्र भारत की धरती पर सिर्फ़ आवरण मात्र होगा। हमारा भारत राजनीतिक लोकतंत्र से सामाजिक लोकतंत्र में कितना बदला है?सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है, स्वतंत्रता, समता और बन्धुतायुक्त सामाजिक जीवन पद्धति। लगता है कि हम संवैधानिक और कानूनी माध्यमों से इस दिशा में आगे जरूर बढ़े हैं,लेकिन अभी भी हमें एक लंबा रास्ता तय करना है।
✍️ अमेरिका की एक संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि पीएम मोदी की सरकार के अंतर्गत ''भारतीय लोकतंत्र अब पूर्ण रूप से आज़ाद के बजाए केवल आंशिक रूप से आज़ाद रह गया है और यह अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहा है।" वहीं की एक मानवधिकार संस्था ने अपनी सालाना रिपोर्ट में लिखा है कि "सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों ने हाशिए के समुदायों, सरकार की आलोचना करने वालों और धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों पर अधिकाधिक दबाव डाला है।" "संघ की स्वतंत्रता" भारतीय नागरिकों के हाथों से फिसलने के साथ उनके राजनीतिक अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता भी कम हो रही है।" हम कह सकते हैं कि आंबेडकर के सपनों का लोकतंत्र बीजेपी के कार्यकाल में गायब होता दिख रहा है। चुनावी तंत्र के भ्रष्ट होने से सम्पूर्ण लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। लोकतंत्र में आने वाली हर गिरावट किसी भी देश की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साख में गिरावट लाने का संकेत देखे जा रहे हैं। 
✍️उदार लोकतंत्र के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं उसमें पहला तो यह है कि क्या सभी नागरिकों को चेतना और धर्म की स्वतंत्रता हासिल है? दूसरा, कोई धार्मिक समूह चुनावी प्रक्रिया पर अनुचित प्रभाव तो नहीं डालते? अगर देश का वर्तमान संविधान,उनकी व्यवस्थाओं और संस्थाओं को नहीं बचाया गया तो पिछड़ों और वंचितों की सामाजिक न्याय के विस्तार की बात तो दूर की कौड़ी बल्कि उस व्यवस्था को जड़ से खत्म किये जाने की साजिश के स्पष्ट संकेत दिखने लगे हैं। प्रेस की आज़ादी जो थोड़ी बहुत बची हुई है, वह पूरी तरह खत्म हो जाएगी। संविधान सभा में डॉ.आंबेडकर के कड़े संघर्ष के बाद मिला आम आदमी का वोट देने का अधिकार भी छिन सकता है, ऐसी स्थिति में तो लोकतंत्र भी ख़त्म होना निश्चित है। इसलिए सन्निकट लोकसभा चुनाव में " संविधान बचाओ-देश बचाओ " का देशव्यापी सामाजिक और राजनीतिक अभियान चलाकर और नारा लगाकर सामाजिक न्याय के दायरे में शामिल वर्गों को जाग्रत करने की जरूरत है।
✍️आंबेडकर जी की जयंती,परिनिर्वाण और संविधान दिवस पर भारत में लोकतंत्र और संविधान में आती गिरावटों पर होती बहसें इस बात का परिचायक हैं कि भारत में लोकतंत्र और आंबेडकर के संविधान के प्रति लोगों की अभी भी आस्था बनी हुई है अर्थात संविधान विरोधी शक्तियों के सतत प्रयास के बावजूद आंबेडकर का संविधान और लोकतंत्र अब भी ज़िंदा है। सबसे उल्लेखनीय पहलू यह है कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं में आ रही गिरावट की आलोचनाओं को भारत में वह समूह भी उठा रहा है जिन्हें महसूस होता है कि सत्ता संस्थाओं द्वारा उन्हें ख़ामोश किए जाने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है।

Friday, March 29, 2024

मन का फेर (अंधविश्वासों रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित साझा लघुकथा संग्रह)-मनोरमा पंत

पुस्तक समीक्षा

मनोरमा पंत 
वरिष्ठ  साहित्यकार
भोपाल (म०प्र०)

पुस्तक-मन का फेर (अंधविश्वासों रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित साझा लघुकथा संग्रह) 
प्रकाशन-श्वेत वर्णा प्रकाशन नोयडा
संपादक-सुरेश सौरभ 
मूल्य- 260 /
अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों के संपादक-लेखक सुरेश सौरभ, नवीन लघुकथा का साझा संग्रह ‘मन का फेर‘ लेकर पाठकों के बीच उपस्थित हुए हैं, अंधविश्वासों, रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित यह साझा लघुकथा संग्रह अपने आप में बेहद अनूठा है। जिसमें उनकी संपादन कला निखर कर आई है। बलराम अग्रवाल, योगराज प्रभाकर जैसे प्रमुख लघुकथाकारों ने  एक स्वर में कहा है कि लघुकथा का मुख्य उद्देश्य समाज की विसंगतियों को सामने लाना है।’ इस उदेश्य में सुरेश  सौरभ  का नवीनतम  लघुकथा-संग्रह  ‘मन का फेर’ खरा उतरा है। यह एक विडम्बना ही है कि विकसित देशों के समूह  में शामिल होने में अग्रसर  भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी धर्म और परम्परा के नाम  पर ढोंगी महात्माओं और कथित मौलवियों के जाल में फँसा हुआ है। अभी भी स्त्री को डायन करार कर प्रताड़ित  किया जाता है, पिछड़े इलाकों में बीमार  व्यक्ति को, चाहे वह दो महीने का बच्चा ही क्यों न हो, नीम हकीम के द्वारा लोहे के छल्लों से दागा जाता है। ऐसे समाज  को जागरुक करने का बीड़ा  उठाने में यह लघुकथा-संग्रह  सक्षम  है ।
डॉ० राकेश माथुर
'मन का फेर' पुस्तक पढ़ते हुए.


      सुकेश सहानी, मीरा जैन, डॉ.पूरन सिंह, कल्पना भट्ट, डॉ. अंजू दुआ जैमिनी, गुलजार हुसैन, चित्तरंजन गोप 'लुकाठी', डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, रमाकान्त चौधरी, अखिलेश कुमार ‘अरूण’, डॉ. राजेंद साहिल, डॉ. मिथिलेश दीक्षित, रश्मि लहर, विनोद शर्मा, सहित 60 लघुकथाकारों से सुसज्जित, 144 पृष्ठीय संग्रह में, आडम्बरों को, रूढ़ियों को बेधती मार्मिक लघुकथाएँ सहज, सरल, भाषा शैली में, पाठकों को आकर्षित करने में सफल है। हाल ही में इस संग्रह का विमोचन स्वच्छकार समाज और समाज सेवियों ने किया। सौरभ जी का प्रसास है कि समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक साहित्य पहुँचे। संग्रह की भूमिका प्रसिद्ध पत्रकार लेखक अजय बोकिल ने लिखी है। संग्रह की लघुकथाएँ शोधपरक एवं पठनीय हैं। सुरेश  सौरभ  को  इस लघुकथा-संग्रह के लिए  बधाई।

Tuesday, February 27, 2024

अमीन सयानी ने मनोरंजन की दुनिया में रेडियो का मधुर व्याकरण रचा-अजय बोकिल

अजय बोकिल
 वरिष्ठ संपादक, दैनिक सुबह सवेरे म०प्र०
अमीन सयानी यानी आवाज की दुनिया के सुपर स्टार। बचपन में जब अमीन सयानी का हर दिल अजीज कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ सुनते तो लगता था कि ये आवाज किसी दूसरी दुनिया से आती है। ऐसी आवाज जो मानो रेडियो के लिए ही बनी है और रेडियो अमीन सयानी के लिए। कल के रेडियो उद्घोषक और आज के रेडियो जाॅकी अमीन सयानी की जानदार आवाज और अदायगी को के प्रति श्रोताअों की जबर्दस्त दीवानगी को शायद ही समझ पाएं। वो जमाना था जब बड़े बड़े फिल्म स्टार भी अमीन सयानी से मिलने को बेताब हुआ करते थे। दरअसल अमीन सयानी ने आजाद भारत में मनोरंजन की दुनिया में रेडियो एक नया और मधुर व्याकरण रचा। शुष्क समाचार, धीर गंभीर सूचनाअों और शास्त्रीय संगीत से परे जाकर आम आदमी की जबान में आम आदमी से सहज और दिलकश संवाद की नींव अमीन सयानी ने अपनी युवावस्था में रखी। उसी नींव पर आज टी.वी. चैनल्स और एफएम रेडियो की दुनिया खड़ी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अमीन सयानी भारतीय रेडियो की दुनिया के ‘पितृ पुरूष’ थे। 
अमीन सयानी को सिर्फ इसलिए याद नहीं किया जाएगा कि उन्होंने बिनाका गीतमाला के रूप में हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता का पैमाना तय करने वाला कार्यक्रम 42 साल तक होस्ट किया, बल्कि इसलिए भी याद किया जाएगा कि उन्होंने रेडियो की जनोन्मुखी, संवादात्मक और सहज सम्प्रेषणीय भाषा भी रची। अमीन सयानी जिस भाषा में उद्घोषणा करते थे, इसके माध्यम से रोचकता का संसार रचते थे,  वह हिंदी और उर्दू का मीठा मिश्रण होता था। खास बात यह है कि अमीन सयानी ने अंग्रेजी उद्घोषक के रूप में कॅरियर की शुरूआत की थी। लेकिन बाद में वो हिंदी उद्घोषणा के मील का पत्थर बन गए। अपनी सरल लेकिन प्रभावी शब्द संपदा के साथ हिंदी उर्दू के कठिन शब्दों का शुद्ध और नफासत भरा उच्चारण, स्वराघात, लय और प्रांजल सम्प्रेषणीयता अमीन सयानी की जुबान की ऐसी खूबियां थीं कि लोग उनकी सामान्य बातचीत पर भी मोहित हो जाते थे। बीती सदी में साठ और सत्तर के दशक में हर युवा उद्घोषक अमीन सयानी की नकल करने की कोशिश करता था और वैसा ही बनना चाहता था। अभी भी विविध भारती के नामी उद्घोषक युनूस खान की उद्घोषण शैली में इसकी झलक देखी जा सकती है। उन दिनो हिंदी उद्घोषणा जगत में तीन आवाजें मानक समझी जाती थीं। समाचार वाचन में आकाशवाणी के देवकी नंदन पांडे, हाॅकी कमेंट्री में जसदेवसिंह तथा मनोरंजन के क्षेत्र में अमीन सयानी। इन सभी ने जनसंचार के क्षेत्र में रेडियो माध्यम की महत्ता और चुनौतियों को बखूबी समझा तथा उसे एक नई परिभाषा दी। इन तीनों में भी अमीन सयानी का नाम तो हर घर में पहुंच चुका था। उन्होंने सार्वजनिक संबोधन में भी एक बुनियादी बदलाव किया था। तब तक किसी भी कार्यक्रम में वक्ता आम तौर पर ‘भाइयो और बहनो’ से बोलने की शुरूआत करते थे। लेकिन इससे लैंगिक विषमता की गंध आती थी। अमीन सयानी ने अपने कार्यक्रम में ‘बहनो और भाइयों’ कहना शुरू किया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ और स्त्री शक्ति की महत्ता को रेखांकित करता था।
ये सुखद संयोग ही है कि 20 साल की उम्र में अमीन सयानी ने रेडियो सीलोन से भारतीय फिल्म संगीत, जो उस वक्त अपने सुनहरे दौर में कदम रख रहा था, को घर- घर पहुंचाने और उत्कृष्टता की प्रतिस्पर्द्धा में लोकप्रियता को एक मानदंड के रूप में स्थापित करने का सफल प्रयास किया। यही वो दौर था, जब देश की पुरानी पीढ़ी हिंदी फिल्मों के संगीत को बाजारू मानकर उसे खारिज या अनदेखा करने की कोशिश कर रही थी। देश के तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री बी.वी. केसकर ने तो आकाशवाणी से हिंदी फिल्म संगीत का प्रसारण यह कहकर बंद करवा दिया था कि इससे देश की युवा पीढ़ी बिगड़ रही है। जबकि हकीकत में उसी दौर में हिंदी सिने संगीत के स्वर्णिम काल का द्वार भी खुल रहा था। देश की नई पीढ़ी सुरों की उन्मुक्त दुनिया का आस्वाद ले रही थी। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मन्ना डे, गीता दत्त, आशा भोसले, तलत महमूद, मुकेश, किशोर कुमार जैसे महान गायक अपनी कला से सुगम संगीत के नए प्रतिमान रच रहे थे। इन गायकों को महान बनाने का काम असाधारण रूप से प्रतिभाशाली कई संगीतकार कर रहे थे। युवा पीढ़ी इन गायकों की आवाज की दीवानी थी। लेकिन तत्कालीन सरकार की नजर में यह सब बेकार की बातें थीं। (हालांकि बाद में इस गलती को आकाशवाणी से विविध भारती कार्यक्रम शुरू करके सुधारा गया।) लेकिन इसमें निहित संकेत साफ था कि संगीत की स्वर लहरियां अभिजात्य शास्त्रीय संगीत की संकुचित दुनिया से बाहर निकल कर लोक विश्व में तैरने को बेताब थीं। मानो देश के साथ संगीत भी आजाद हो गया था। उधर  रेडियो सीलोन (जो एक श्रीलंकाई कंपनी थी) ने आजादी के बाद बदलती लोक रूचि को ध्यान में रखकर बिनाका गीतमाला कार्यक्रम शुरू किया, जिसके उद्घोषक बने अमीन सयानी। अमीन साहब के सामने ऐसे कार्यक्रम का कोई तयशुदा माॅडल नहीं था। लिहाजा उन्होंने अपना खुद का माॅडल तैयार किया, शैली गढ़ी। हालांकि उन दिनो देश भर में रेडियो स्टेशनो की संख्या एक दर्जन से भी कम थी और रेडियो की पहुंच मुश्किल से 15 फीसदी आबादी तक रही होगी, लेकिन ‘बिनाका गीतमाला’ सुनने के लिए लोग रेडियो खरीदने लगे। रेडियो के प्रसार के साथ ही बिनाका गीतमाला भी लोकप्रिय होता चला गया। हर हफ्ते बुधवार को रात आठ बजे प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम को सुनने वालों में शर्त बदी जाती कि इस हफ्ते कौन सा गाना नंबर एक पर रहने वाला है। ‘पायदान, हिट परेड, सरताज जैसे शब्दों को अमीन साहब ने ही लोकप्रिय बनाया। कौन सा गीत कौन सी पायदान पर रहने वाला है, इसको लेकर देश भर में उत्सुकता रहती। लोग रात आठ बजे सारे काम छोड़कर रेडियो से कान लगाए रहते। 1954 में साल भर में नंबर पर रहने वाला पहला गीत था फिल्म ‘अनारकली’ का स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का गाया ‘ ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया।‘ इसी कड़ी में सन 2000 में आखिरी सर्वाधिक लो‍कप्रिय गीत था फिल्म मोहब्बतें का ‘हमको हमी से चुरा लो।‘ संयोग देखिए कि यह गीत भी लता मंगेशकर ने ही गाया था। या यूं कहें ‍कि सिने संगीत के मेलोडी की शुरूआत भी लताजी  से होती है और शायद समापन भी उन्हीं की आवाज से होता है।  
बिनाका गीतमाला में चयनित गीतों का मानदंड क्या था, यह खुद अमीन सयानी ने एक इंटरव्यू में बयान किया था। उन्होंने कहा था कि बिनाका गीतमाला का प्रसारण रेडियो सीलोन से 1952- 53 में शुरू हुआ। आरंभ में गीतों को पायदान के अनुसार क्रम देने का चलन नहीं था। पहली बार 1954 में गीत को उसकी लोकप्रियता के आधार पर क्रम देने की शुरूआत हुई। इसका मुख्य मापदंड उस गीत की लोकप्रियता थी। यह लोकप्रियता उस गीत के रिकाॅर्ड की बिक्री के आंकड़ों तथा श्रोताअों की वोटिंग के आधार पर तय होती थी। हालांकि बाद में वोटिंग सिस्टम बंद कर दिया गया।  

बिनाका गीतमाला की सर्वाधिक लोकप्रियता उसकी रजत जयंती तक रही। हालांकि बाद में भी यह कार्यक्रम प्रसारित होता रहा, लेकिन टीवी के आगमन के बाद कानों की दुनिया की जगह आंखों की दुनिया ने ली। गायको के सामने गीत के भाव को अपनी आवाज के माध्य म से विजुलाइज करने की चुनौती घटने लगी। गाना संगीत के सागर में तैरने की जगह परफार्म करने का विषय बन गया। 
ये अमीन सयानी ही थे, जो रेडियो के उत्तर काल में भी अपनी आवाज के दम पर अपनी पहचान कायम रख सके। इस कार्यक्रम के एक जमाने में 20 लाख से ज्यादा श्रोता हुआ करते थे। अमीन साहब ने रेडियो पर लगभग 54 हजार प्रोग्राम प्रोड्यूस और कम्पेयर किए थे। 19 हजार स्पॉट/जिंगल में भी उनका आवाज सुनाई दी थी। अमीन सयानी कई फिल्मों में भी रेडियो अनाउंसर के तौर पर नजर आए। 2009 में उन्हें रेडियो के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। 
आजकल रेडियो एनांउसर को रेडियो जाॅकी कहा जाता है। एफ एम रेडियो ने इस पेशे को कुछ अलग चमक दी है। लेकिन एक अच्छा और अनोखा रेडियो जाॅकी बनना अभी भी आसान नहीं है। अमीन सयानी कहते थे कि हर रेडियो जाॅकी को अपने आप में अलग होना चाहिए। यह उसकी आवाज के अनोखेपन से ही संभव है। वरना सभी की आवाज और अदायगी एक सी होगी तो कौन सुनेगा। साथ ही रेडियो जाॅकी को लोगों को अपने जैसा महसूस होना चाहिए। अमीन सयानी रेडियो जाॅकी के लिए एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा कि अमीन सयानी अपने काम के जरिए वे भारतीय ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में क्रांति लाए और अपने श्रोताओं के साथ खास बॉन्ड बनाया। कुछ लोग अमीन सयानी को भारतीय रेडियो का ‘ग्रैंड अोल्ड मैन’ भी कहते हैं। अमीन सशरीर भले जुदा हुए हों, लेकिन उनकी रेशमी आवाज हमेशा हमारे साथ रहेगी। आमीन। 
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 22 फरवरी 2024 को प्रकाशित)

Wednesday, January 24, 2024

राम अयोध्या लौटे हैं- एड. रमाकान्त चौधरी

एड. रमाकान्त चौधरी
गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।
उत्तर प्रदेश, मो. 9415881883


जो हाथ लगायेगा सीता को वह रावण मारा जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
सदियों से शोषित पीड़ित जो वह स्वाभिमान पा जायेंगे।
शोषण करने वालों पर कोड़े बरसाए जायेंगे।
दीप जलेंगे खुशियों के गम के बादल छंट जायेंगे।
जातिवाद और ऊंच नीच के सब गड्ढे पट जायेंगे।
अब ना होगा जुल्म किसी पर जुल्मी मारा जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
रिश्वतखोरी और दलाली अब ना होगी थानों पर।
रोक लगेगी भारत भर के मक्कारों बेईमानों पर।
बालाएं अब घूम सकेंगी मेलों में बाजारों में।
दुष्कर्म नहीं हो पाएंगे अब ट्रेन बसों व कारों में।
राहजनी और लूटपाट अब कोई नहीं कर पायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
हर मानव अब सच बोलेगा अब सतयुग फिर से लौटेगा ।
झूठ बोलने वाला कोई दूर-दूर तक नहीं दिखेगा।
हर द्वारे पर गाय जनेंगी प्यारे-प्यारे बछड़ों को।
ताले अब लग जाएंगे भारत के बूच़डखानों को।
हर किसान खुशहाल रहेगा अब ना जान गंवाएगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
भात भात कहकर के कोई अब न मरेगी संतोषी।
हर नंगा कपड़ा पायेगा हर भूख पायेगा रोटी।
मुनिया का अपहरण न होगा अब न बिकेगी कोठों पर।
मुजरिम को अब सजा मिलेगी न्याय न होगा नोटों पर।
सबके नाथ सियापति होंगे कोई न अनाथ कहायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
आतंकवाद का दूर-दूर तक नामों निशां नहीं होगा।
गद्दारों का धड़ होगा सिर का पता नहीं होगा।
बेरोजगार अब कोई न होगा सबको मिलेगी अब रोजी।
देशद्रोहियों को मारेगा सरहद का इक-इक फौजी।
पुलवामा का किस्सा अब बिल्कुल न दोहराया जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
घर-घर जा साधु सन्यासी अब उपदेश सुनायेंगे ।
राजनीति से दूर रहेंगे अपना फर्ज निभाएंगे।
धोखा देने वालों का निश्चित ही जेल पठाना है।
सच कहता हूं सुनो मित्रों मुझे अयोध्या जाना है।
राम राज्य आ जाने से अब परिवर्तन आयेगा।।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।।


Saturday, January 06, 2024

मोहन यादव सरकार: अपनी लकीर बड़ी करने की पुरजोर कोशिश... अजय बोकिल

राजनीतिक चर्चा
वरिष्ठ  संपादक
सुबह सवेरे, म०प्र०


मध्यप्रदेश में नई भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में डाॅ. मोहन यादव को शुरू में भले ही ‘डार्क हाॅर्स’ माना जा रहा हो, लेकिन अपने 20 दिन के कार्यकाल में उन्होंने जिस तेजी से और जिस संकल्प शक्ति के साथ फैसलों की झड़ी लगा दी है, उससे राज्य में साफ संदेश गया है कि कोई उन्हें ‘हल्के’ में न ले। यह अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश भी है। खास बात यह है कि डाॅ.मोहन यादव के कुछ फैसलों में कई छोटी- छोटी लेकिन गंभीर जमीनी समस्याअों की निदान की चिंता भी दिखाई पड़ती है। यानी ये समस्याएं तो बरसों से चली आ रही हैं, लेकिन किसी भी मुख्यमंत्री ने इन्हें अब तक बहुत संजीदगी से नहीं लिया। दूसरे, यादव सरकार के फैसलों में राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ- साथ प्रशासनिक कसावट का आग्रह भी साफ नजर आती है। 
मप्र में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की चौथी बार बंपर जीत के बाद बहुतों का कयास था कि अब पार्टी को राज्य में नया चेहरा प्रोजेक्ट करना आसान नहीं होगा। लेकिन भाजपा आलाकमान ने सरकार का चेहरा मोहरा बदलने की ठान ली थी। इसी के तहत बहुत कम चर्चित लेकिन भगवान महाकाल की नगरी के बाशिंदे डाॅ. मोहन यादव को मुख्‍यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। हालांकि आला कमान द्वारा सुनियोजित तरीके से दरकिनार ‍िकए गए पूर्व मुख्यमंत्री‍ शिवराजसिंह चौहान ने एक अलग रणनीति अपनाते हुए एक बार फिर से अपनी दावेदारी जताने का कोई मौका नहीं छोड़ा  और वो अभी भी यह बताने में लगे हैं कि भूमिका कोई सी भी हो, वो जन सेवा से पीछे हटने वाले नहीं है। शिवराज की यह कसक समझी जा सकती है, क्योंकि उन्होंने लगभग 17 साल तक देश के इस ह्रदय प्रदेश की कमान संभाली और राजनीति का अपना अलग नरेटिव गढ़ा। लेकिन लगातार सत्ता में बने रहने के अपने दुष्परिणाम भी होते हैं। सरकार में एक काकस और निरंकुशता का भाव बन जाता है। यूं शिवराज भावनात्मक और भौतिक रूप से जनता से जुड़े रहे, लेकिन प्रशासनिक तंत्र जनता से दूर होता चला गया। उसमे मगरूरी का भाव घर कर गया। इसके अलावा खुद शिवराज का बढ़ता कद भी भाजपा आला कमान को असहज करने वाला था। इसलिए माना गया कि अब राज्य में बदलाव का सही समय है। 
नए मुख्‍यमंत्री डाॅ मोहन यादव के सामने वही चुनौतियां थीं, जो किसी भी नए नवेले और अचर्चित मुख्यमंत्री के सामने होती है। उन्हें तय करना था कि वो शिवराज सरकार की छाया और प्रशासनिक शैली से बाहर निकलकर नई पिच पर कैसी बैटिंग करते हैं। जनता देख रही है कि उनमें उनकी अपनी सोच, संघ से तालमेल, भाजपा के एजेंडे को क्रियान्वित करने का संकल्प, नौकरशाही में धमक कायम करने का जज्बा और प्रशासनिक तंत्र को नए नई और सही दिशा में हांकने की क्षमता कितनी है। इस दृष्टि से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सीएम डाॅ.मोहन यादव ने इस वन डे मैच के शुरूआती अोवर दमदारी से और सधे हाथों से खेले हैं।
और इस बात के पुष्ट प्रमाण भी हैं। मसलन मुख्‍यमंत्री बनने के तत्काल बाद जारी उनका पहला आदेश प्रदेश में धार्मिक स्थानों पर जोर से लाउड स्पीकर बजाने और खुले में मांस और अंडे की बिक्री पर सख्‍ती से रोक। इस फैसले को यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंगलाचरण की नकल के रूप में भी देखा गया, लेकिन धार्मिक स्थलों और अन्य कार्यक्रमों में कई बार बहुत ज्यादा शोर और कानफोड़ू लाउड स्पीकर आम जनता की परेशानी का सबब बन गए थे। चूंकि मामला धार्मिक था, इसलिए इसके खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था। विपक्षी कांग्रेस  ने इस आदेश में भाजपा और आरएसएस का साम्प्रदायिक एजेंडा देखा और इस आदेश को परोक्ष रूप से मुसलमानों के खिलाफ बताने की कोशिश भी हुई, लेकिन मोटे तौर पर आम जनता ने इसका स्वागत ही ‍िकया, क्योंकि यह नियम किसी धर्म विशेष के स्थलों के लिए न होकर सभी धार्मिक स्थलों  के लिए था। इसी तरह खुले में मांस व अंडों की बिक्री पर रोक से उन छोटे दुकानदारों और ठेले वालों को जरूर परेशानी हुई है, जो सरेआम सड़क किनारे दुकान लगा कर ये सामग्री बेचकर अपना पेट भरते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों ने इसे इसलिए सही माना, क्योंकि खुले में मांस बिक्री वैसे भी स्वास्थ्य के लिए हानिकर है। ऐसी कुछ अवैध दुकानों को तोड़ा भी गया। यही नहीं सरकार ने ध्वनि प्रदूषण के मामलों की जांच के लिए फ्लाइंग स्क्वॉड भी गठित किया है, जो निर्धारित सीमा से अधिक ध्वनि प्रदूषण की शिकायत मिलने पर क्षेत्र में जाकर कार्रवाई करेगा। धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण की हर हफ्ते समीक्षा की जाएगी। इसका असर दिखने भी लगा है।  भाजपा नेता उमा भारती यादव सरकार  के इस फैसले से गदगद दिखी। उन्होंने सोशल मीडिया पर इसे ‘यादव सरकार की संवेदनशीलता’ निरूपित किया। 
यादव सरकार का दूसरा अहम फैसला राज्य में विस चुनाव नतीजों के बाद भोपाल में एक भाजपा कार्यकर्ता पर हमला कर उसकी कलाई काटने के आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने का था। अल्पसंख्यक समुदाय के आरोपियों के घर बुलडोजर चलवाकर यादव ने यह संदेश दिया कि अपराध नियंत्रण और आरोपी को सबक सिखाने के मामले में वो योगी सरकार की नीति पर चलेंगे। हालांकि बुलडोजर को ‘त्वरित न्याय’ का उपाय मानने और इंसाफ की वैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार करने के भाजपाई सोच पर प्रश्नचिन्ह भी लगता रहा है, लेकिन इससे जनाक्रोश को तत्काल कम करने का संदेश भी जाता है। एक और निर्णायक फैसला  प्रदेश की राजधानी भोपाल में विवादित बीआरटीएस ( बस रैपिड ट्रासंपोर्ट सिस्टम) के खात्मे का था। देश के कुछ दूसरे शहरों की नकल पर भोपाल में ‍िनर्मित बीआरटीएस शुरू से विवादों में रहा। करीब 13 पहले शिवराज सरकार के कार्यकाल में बना यह बीआरटीएस 360 करोड़ रू. खर्चने  के बाद भी न तो पूरी तरह बन सका और न ही राजधानी के यातायात को सुगम बनाने का इसका मूल उद्देश्य पूरा हो सका। इसे हटाने की बात बीच में सवा साल के लिए सत्ता में आई कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में भी उठी थी, लेकिन अफसरों ने उस सरकार को भी इस बारे में कोई ठोस निर्णय लेने से रोक दिया था। हकीकत में बीआरटीएस जी का जंजाल ज्यादा बन गया था। यह बात अलग है कि इस बीआरटीएस को हटाने में भी अफसर और नेताअों की चांदी होने वाली है, क्योंकि हाथी मरा भी तो सवा लाख का। बताया जा रहा है कि इसे हटाने पर भी 40 करोड़ का खर्च अनुमानित है। 
 लेकिन यादव सरकार के  जिस फैसले ने मोहन यादव सरकार की धमक कायम की वो गुना बस हादसे के समूची नौकरशाही को जिम्मेदार मानते हुए  ‘पूरे घर के बदल डालने’ का था। एक निजी बस और डंपर की टक्कर के बाद लगी आग में 13 यात्रियों की जलकर मौत हो गई थी। जांच में सामने आया कि दोनो ही वाहन अवैध तरीके से चल रहे थे। इसके बाद सीएम मोहन यादव ने गुना जिले के कलेक्टर, एसपी के साथ साथ  ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और प्रमुख सचिव परिवहन को भी पद से हटा कर समूची नौकरशाही में कड़ा संदेश ‍िदया।  यह मौका देखकर चौका मारने वाली बात भी थी, क्योंकि आगे पीछे शिवराज सरकार में प्रमुख पदों पर बैठे अफसरों को हटना ही था, लेकिन सड़क हादसा इसका निमित्त बन गया। वैसे भी किसी सड़क हादसे में सरकार द्वारा अब तक की गई यह सबसे बड़ी कार्रवाई है, हालांकि जिस बस के यात्रियों की अकाल मौत हुई, वो एक भाजपा  नेता की है और उसके खिलाफ कार्रवाई का अभी लोगों को इंतजार है।  
जन समस्याअों से जुड़ा एक और मुद्दा जिलों, तहसीलों और थानों की सीमा के पुनर्निधारण का है। इसके लिए एक कमेटी बनाने का फैसला हुआ है, जो इसका अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट देगी। शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इंदौर संभाग से की जाएगी। यह सही है कि राज्य में कई तहसीलों और थानों की भौगोलिक सीमाएं ऐसी हैं, जो स्थानीय नागरिकों की पहुंच से प्रशासन को दूर करती हैं। इनके युक्तियुक्तकरण की बेहद आवश्यकता थी। मसलन किसी गांव से जिला मुख्यालय 10 किमी है तो किसी दूरस्थ तहसील से इसकी  दूरी सौ किमी तक है। जबकि पड़ोस का जिला मुख्यालय वहां से बहुत पास है। यही स्थिति थानों  की भी है। किसी गांव से पुलिस थाना बहुत पास है तो किसी गांव से बहुत दूर। इस विसंगति को मिटाने  के लिए तहसील और थानों की सरहदों का पुनर्निधारण बेहद जरूरी था। यादव सरकार ने इस बारे में निर्णय लेकर एक बुनियादी मसले के हल की दिशा में कदम उठाया है। प्रशासन की लोगों तक सुगम पहुंच के इस फैसले पर अगर सही ढंग से अमल हुआ तो इसका सकारात्मक असर जरूर दिखाई देगा। ताजा तरीन फैसला ड्राइवरों की औकात को लेकर की गई घटिया टिप्पणी के बाद शाजापुर कलेक्टर किशोर कन्याल को ताबड़तोड़ पद से हटाना है। संदेश यही कि ड्राइवर जैसे छोटे कर्मियों का भी सरकार की नजर में बड़ा महत्व है। इसके अलावा उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के उद्देश्य से हर जिले में प्रधानमंत्री एक्सीलेंस काॅलेज खोलने का निर्णय भी अहम है। लेकिन इसी के साथ राज्य में पहले से चल रहे काॅलेज आॅफ एक्सीलेंस और सीए राइज स्कूलों की दुर्दशा पर भी सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। कुल मिलाकर नई सरकार का आगाज तो अच्छा है, लेकिन इसके अनुकूल राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक परिणाम कैसे और कितने आते हैं, इस पर यादव सरकार का भविष्य काफी कुछ निर्भर करेगा।
( सुबह सवेरे’ में दि. 4 जनवरी 2023 को प्रकाशित)


देह व्यापार की गुलाबी गलियां-सत्य प्रकाश 'शिक्षक'

(पुस्तक चर्चा)
समीक्षक-सत्य प्रकाश 'शिक्षक'
लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश
नारी विमर्श पर केंद्रित 'गुलाबी गलियां' कृति में संकलित लघुकथाएं  साहित्य के अभिजन वर्ग द्वारा वर्जित विषयों पर तन्मयता के साथ अंकित की गई हैं। इन लघुकथाओं  में समाज की सच्चाई का बोध कराने का स्तुत्य प्रयास किया गया है। कहीं जीवन के स्याहपक्ष को सहजता से स्वीकार किया गया है, तो कहीं जीवन के अनकहे, अनछुये पहलुओं के यथार्थ कटु चित्रों को प्रस्तुत किया है। दूरवर्ती लेखकों से संपर्क करके उनकी रचनाओं का संकलन-परिमार्जन एक दुरूह कार्य है जिसे संपादक ने अपने तन, मन-धन से कुशलता पूर्वक संपन्न किया है। संकलन में  दायित्वबोध के क्रम में सच्ची लघु, कथाएं ग्रीष्म की  तपन के साथ चांदनी शीतल छांव भी प्रदान करतीं हैं जिनसे पाठक अपने अंर्तमन में झांककर देख सकता है कि‌ सभ्यता के विकास क्रम में वे अग्रसर हो रहे हैं या समाज के साथ पतनोन्मुख हो रहे हैं। चर्चित लघुकथाकार सुरेश सौरभ जी ने प्रस्तुत संग्रह की अपनी भूमिका में सही कहा है कि कभी छल से या कभी बल से नारी अनादि काल से शोषित रही है । प्रस्तुत संकलन वेश्याओं के जीवन संघर्ष, को पढ़ते हुए आत्मसात करने वाले किसी भी पाठक के मन में संवेदना जगाने में पूर्ण सक्षम है। प्रसिद्ध साहित्यकार संजीव जायसवाल 'संजय व उदीयमान युवा साहित्यकार देवेंद्र कश्यप "निडर'' जी ने संग्रह पर अपनी अमूल्य टिप्पणियां लिख कर किताब को कालजयी बना दिया है। इससे पहले सुरेश जी की इस दुनिया में तीसरी दुनिया, तालाबंदी, बेरंग, वर्चुअल रैली, एक कवयित्री की प्रेमकथा, पक्की दोस्ती, निर्भया आदि रचनाएँ अपार ख्याति पा चुकीं हैं। इनकी रचनाएँ गरीबों किसानों महिलाओं एवं मध्यम वर्ग की संवेदनाओं भावनाओं के इर्द-गिर्द विचरण करती रहती हैं। गुलाबी गलियां साझा संग्रह में देशभर के 63 लघुकथाकारों को संकलित किया है। बधाई सौरभ जी। 

पुस्तक- गुलाबी गलियां
संपादक-सुरेश सौरभ
प्रकाशन- श्वेत वर्णा प्रकाशन नई दिल्ली
मूल्य-249 (हार्ड बाउंड) 

Friday, November 17, 2023

करो कम ,फैलाओ ज्यादा-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य) 
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066


   पुराने दिनों बात है। उन दिनों 'कर्म ही पूजा है’ के सिद्धांत को मजबूती से अपनी गांठ में बांधकर बड़ी कर्मठता, ईमानदारी से, मैं अपना कार्य किया करता था। लेकिन फिर भी लोगों की मेरे प्रति, यह गलत धारणाएँ बनी हुईं थीं कि मैं अपने कर्म के प्रति उदासीन रहता  हूं, हीलाहवाली करता हूं, ऐसी रोज अनेक मेरी शिकायतें बॉस से हुआ करती थीं। आए दिन बॉस की डांट मुझ पर पड़तीं रहती थी। मैं बहुत परेशान रहता था। क्षुब्ध रहता था। 
  घर में पत्नी बच्चों की किचकिच से बचकर जब ऑफिस आओ, तो बेवजह बॉस की झांड़ सुनो, मेरी जिंदगी किसी बड़ी पार्टी से निकाले गये, उस नेता जैसी हो गई थी, जिसे लाख कोशिशों के बाद भी उसे कोई मंजिल न मिल रही हो,कोई सही ठौर-ठिकाना न मिल रहा हो, कोई  पुरसाहाल न हो। क्या करूँ ? क्या न करूँ ? मेरी दशा चिड़ियाघर में कैद बेचारे निरीह निरुपाय जीव जैसी हो गई थी। हमेशा सोचता रहता था, कैसे अपनी जहन्नुम हो चुकी जिंदगी को जन्नत बनाऊं।
     फिर एक दिन अचानक परमात्मा की मुझ पर असीम कृपा हुई। हर समस्या का समाधान चुटकियों में हल करने वाले, एक संत जी सोशल मीडिया के दरवाजे पर दिखे, उनसे फोन पर रो-गाकर अपनी सारी व्यथा बताई ,तब उन्होंने मिलने के लिए, परामर्श से समाधान के लिए, अपनी ऑनलाइन फीस बताई। मैंने तुरत-फुरत उनकी फीस जमा कर दी। उनसे मिलने का ऑपाइंटमेंट लिया। फिर ढेर सारे फल, मेवा, मिष्ठान आदि लेकर, नियत स्थान, नियत तिथि, नियत समय, संत जी के आश्रम पहुंच गया। संत जी उर्फ बाबा जी ने मुझे अपने एकांत केबिन बुलवाया। मेरी समस्या ध्यान से सुनी। फिर मुझे खूब समझाया। काउंसिलिंग की। फिर मुझे परमार्थ करने के अनेक पुण्य बताते हुए, मेरे कान में कुछ मंत्र फूंकें। जिन्हें अपने तक ही सीमित रखने का आदेश दिया। मैं उनके बताए नेक मार्ग पर चलने लगा। फिर मुझे संत जी के मंत्रों और टोटकों से बहुत लाभ होने लगा। घर से लेकर ऑफिस तक, अपनी फुल बॉडी के अंदर से लेकर बाहर तक, मुझे गुड फील होने लगा। जिंदगी मंगलमय आनंदमय में बीतने लगी। अगर अन्य लोगों से संत जी के मंत्रों की चर्चा करूंगा, तो उन मंत्रों का असर मेरे जीवन से जाता रहेगा। लिहाजा फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा है। अपने दिल पर बड़ा सा पत्थर रखकर, एक मंत्र मैं आप से शेअर किए ले रहा हूँ। ...काम करो कम फैलाओ ज्यादा, जी हां इसके आगे और न बताऊंगा। यूँ समझो बॉस की चापलूसी करते हुए ...करो कम फैलाओ ज्यादा तथा संत जी के अन्य टोटकों से अपना जीवन सुखमय और शांतिपूर्वक बीता रहा हूँ। खुशी और मस्ती से राग मल्हार गाते हुए अब अपने दिन सोने जैसे सुनहरे, रातें चांदी जैसी, चांदनी जैसी चम-चम चमकाने लगी हैं।

ग़ज़ल- नन्दी लाल निराश

गजल
नन्दी लाल निराश
गोला गोकर्ण नाथ (खीरी)


 बाजरे के खेत से     बाहर निकलने का समय।
 आ गया है अब चिड़ी के घर बदलने का समय।।

 कुछ दिखाई दी नई  उम्मीद की चढ़ती किरण,
 जो लगा उनको तुम्हारे साथ चलने का समय।।

 गर्दिशी में दिन गुजारे हैं     कई सालों से अब,
 बीत आया बैठ खाली  हाथ मलने का समय।।

 चेतना के स्वर जहन में    यार के मुखरित हुए ,
 मिल गया सरकार से जो फिर सँभलने का समय।।

 गर्म जोशी से हवाएँ     चल रही मद मस्त अब,
 क्या फिजा में लग रहा पर्वत पिघलने का समय।।

 तेल, बाती, दीप ,झालर    से सजा दीवाल, घर,
 आ गया दीपावली के  दीप   जलने का समय।।

 फिर लगायेंगे हवा में    गाँठ करतब बाज, है
 पूड़ियाँ सुखी कढ़ाई     बीच तलने का समय।।

नीरू की पांडुलिपि हिंदी संस्थान ने की चयनित

साहित्यिकं समाचार

    लखीमपुर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा अनुदान से पांडुलिपि चयन प्रक्रिया के अन्तर्गत गोला गोकर्णनाथ की युवा कवयित्री नीरजा विष्णु 'नीरू' की पांडुलिपि 'लिखेंगी इतिहास चिरैया' का चयन हुआ है। यह जानकारी संस्थान की संपादक अमिता दूबे ने पत्र द्वारा दी। नीरजा की कविताएँ निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं। इनकी मार्मिक कविताएँ सोशल मीडिया पर वायरल भी होती रहीं हैं। कविता वाचन एवं प्रकाशन में नीरू ने साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान बनाई है। हिंदी संस्थान से कविता संग्रह की पांडुलिपि चयनित होने के लिए नंदी लाल, द्वारिका प्रसाद रस्तोगी, लघु कथाकार  सुरेश सौरभ, विकास सहाय अखिलेश कुमार अरुण, रमाकांत चौधरी, श्याम किशोर बेचैन ,आदि साहित्यकारों ने नीरजा को बधाई दी है। 
प्रेषक-अंजू

Tuesday, November 07, 2023

लिक्खेगी इतिहास चिरैया-नीरजा विष्णु 'नीरू'

नीरजा विष्णु 'नीरू'
कविता 
नन्हें पंखों से नापेगी 
यह पूरा आकाश चिरैया 
नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

उसको है मालूम घरौंदा 
अपना स्वयं बनाना होगा,
फिर सारे झंझावातों से भी 
खुद   उसे   बचाना  होगा 
सुख-दुःख से आगे जाने का 
कर लेगी अभ्यास चिरैया।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

जब दुनिया नफरत बोयेगी 
तब भी वह बस प्यार रचेगी,
नीले अम्बर की फुनगी पर 
सपनों का संसार रचेगी
हारों के भीतर भर देगी 
जीवन का उल्लास चिरैया।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

आज भले ही कैद करो तुम 
या फिर उसके पर काटो,
ऊँच-नीच और लिंग भेद का 
कितना ही कचरा पाटो,
जगवालों! इक रोज गगन पर 
लिक्खेगी इतिहास चिरैया ।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

जब तक चुप है; तब चुप है,
पर जब शौर्य  दिखाएगी..
हार नहीं मानेगी; जिस दिन 
जिद पर वो आ जाएगी..
बोल उठेगा तिनका-तिनका 
वाह! वाह! शाबाश चिरैया
नन्हें    पंखों    से   नापेगी 
यह  पूरा  आकाश  चिरैया।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।

बुद्ध स्तुति-डॉ० कैलाश नाथ

डॉ० कैलाश नाथ
 (प्राचार्य) 
डॉ० भीमराव अम्बेडकर पी०जी० कॉलेज, 
मुराद नगर (पतरासी) लखीमपुर खीरी। 
मो- 9452107832 



!! बुद्ध स्तुति !!

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! 
जैसे जगे आप हमको जगा दो, 
महाज्ञानी हो ही मुझे ज्ञान दे दो ।
एक बार फिर से आ जाओ भगवन्, 
वट छाँव में ज्ञान- सुरसरि बहा दो ।

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! 
दुख ही दुख है पूरे जगत में, 
सुधामय वाणी का मंत्र दे दो ।
ज्ञान-ज्योति दिखा दो भटकते मनुज को,
पंचशील का मर्म हमको बता दो।

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! 
दुनिया ने जाना सबने है माना,
तथागत के बोल अमृत समाना। 
कला जीवन की जीना सिखाया,
अष्टम् मार्ग क्या है हमें भी बता दो ।

 हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध !हे बुद्ध ! 
मेरी आज विनती तुमसे यही है,
पड़ी भीर भारी मनुज के है ऊपर । 
विपदा हरौ है व्यथित आज जन-जन, 
कर दो दया राह भटके जनों पर ।

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध !



Tuesday, October 31, 2023

सोशल मीडिया पर नंगे होने की होड़ - रमाकान्त चौधरी


           रमाकान्त चौधरी           
ग्राम -झाऊपुर, लन्दनपुर ग्रंट, 
जनपद लखीमपुर खीरी उप्र।
सम्पर्क -  9415881883

    
    जैसे ही मनुष्य के हाथ में मोबाइल आया तो यूं लगा की सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में आ गई। मोबाइल क्रांति ने मनुष्य के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया, जो कार्य करने में काफी लंबा सफर तय करना पड़ता था वही काम कुछ पलों में होने लगा।  सोने पर सुहागा तब हुआ जब सोशल मीडिया ने दस्तक दी , यू ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, ईमेल, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे दर्जनों प्लेटफार्म आ गए जहां मनुष्य अपने विचारों का एक दूसरे से आदान-प्रदान करने लगा।  गरीब से गरीब व्यक्ति जो सीधे-सीधे शासन प्रशासन से अपनी बात, अपना दुख दर्द नहीं  कह पाता था वह इन सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी बात शासन प्रशासन तक पहुंचाकर अपना मन हल्का  करने का रास्ता खोज निकाला। और तो और वर्षों बिछड़े पुराने मित्र जिनसे शायद दोबारा कभी मिलने की उम्मीद न थी सोशल मीडिया के माध्यम से वह सभी लोग मिलने लगे और मनुष्य अपनी जिंदगी का पूर्ण आनंद सोशल मीडिया पर ढूंढने लगा। जीवन में अपने सगे संबंधी से ज्यादा सगेपन की जगह इस अदने से प्लास्टिक के टुकड़े ने ले ली। वर्तमान समय में समाजनीति से लेकर राजनीति  व धर्मनीति का प्रचार प्रसार करने का माध्यम सोशल मीडिया से बेहतर दूसरा कोई नहीं है।  जैसे-जैसे देश दुनिया ने प्रगति की वैसे-वैसे छोटे बड़े हर हाथ में मोबाइल पहुंचने लगा।  फिर एक दौर ऐसा भी आया कि बड़ों से ज्यादा बच्चे एवं किशोर मोबाइल का उपयोग करने लगे, जो जानकारी चाहो मोबाइल से पूछो तुरंत हाजिर, किंतु सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक चीज यह हुई कि एक प्रश्न पूछने पर दस उत्तर हाजिर हो गए।  साथ साथ सोशल मीडिया के उपरोक्त तमाम प्लेटफार्म  वीडियो रील्स आदि बनाकर अपलोड करने के बदले अपने नियम शर्तों के मुताबिक अच्छा खासा  एमाउंट भी दे रहे हैं । मोबाइल फोन सोशल मीडिया लोगों के पैसा कमाने का एक बेहतरीन जरिया भी साबित हुआ। जहां एक और हर आदमी अखबार खरीद कर नहीं पढ़ पा रहा था और घर पर बैठकर टीवी पर समाचार देखने का समय नहीं था वहीं  व्यक्ति को अपने कार्य करते हुए भी  युटुब चैनलों के माध्यम से क्षेत्र से लेकर देश-विदेश तक की खबरें देखने का जानने का बेहतर प्लेट फार्म मिल गया।
 किन्तु  इन तमाम फायदों के साथ  अप्रत्याशित कार्य यह भी हुआ कि बहुत सारी वह भी चीजें मोबाइल पर खुलकर सामने आने लगी जिन्हें किशोर एवं बच्चों को नहीं देखना चाहिए।  किंतु जब सामने आई है तो फिर देखने व जानने की जिज्ञासा बढ़ जाना लाजिमी है।  इसी जिज्ञासा ने  पढ़ने वाले हाथों को अनावश्यक चीजे सर्च करने पर मजबूर कर दिया परिणाम स्वरूप जिन चीजों को जानने की अभी बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी वह भी जानने लगे।  इसका प्रभाव यह रहा कि किशोरों द्वारा यौन अपराधों में अकल्पनीय वृद्धि हो गई । जिस कोरी स्लेट पर मानवता की इबारत लिखी जानी चाहिए थी उस स्लेट पर उम्र से पहले वे चीजें लिख गईं जो उनके जीवन के लिए अहितकर साबित हो रही हैं। आज  जो बच्चे व किशोर यौन अपराधी बन रहे हैं देखा जाए तो  मोबाइल एवं सोशल मीडिया की इस बिगड़ती सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका साबित हो रही है। किन्तु सबसे अहम परिवर्तन जो हुआ उसके विषय में सोच कर ही रूह कांप जाती है, पढ़ाई करने वाले, कैरियर बनाने वाले, कैरियर की फिक्र करने वाले युवा व किशोर  जिस तरह से रील्स बना बनाकर मोबाइल पर अपलोड करने में व्यस्त हैं वह भविष्य के लिए ठीक नहीं साबित होगा। जहां एक ओर फिल्मी गानों पर युवक युवतियां अर्धनग्न होकर वीडियो रील्स बना रहे हैं तो वहीं  दूसरी ओर आजकल  स्तनपान कराने वाली माताएं बच्चों को स्तनपान कराते हुए अर्द्धनग्न होकर रील्स बनाकर अपलोड कर रही हैं, जहां मातृत्व होना चाहिए वहां अश्लील तरीके से स्वयं को माताएं परोस रही हैं। जैसे ही सोशल मीडिया का कोई भी प्लेटफॉर्म खोला जाए कोई न कोई वीडियो रील्स जो फूहड़ता से लवरेज होगी, सामने खुलकर आ जाएगी। ऐसा लग रहा है कि मोबाइल सिर्फ इसी कार्य के लिए बनाया गया है। बच्चे, किशोर, युवा सभी नंगे होने की होड़ में लगे हुए हैं। इन्हीं नंगी पुंगी रील्स बनाने वाले हाथों में कल देश दुनिया का भविष्य  होगा, यह एक चिंतनीय व विचारणीय विषय है।

Thursday, October 26, 2023

बलत्कृत रूहें-सुरेश सौरभ

 (कविता)
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066


कुछ लोग कहते हैं
कि युद्ध थल पर
जल पर
नभ पर 
और साइबर पर होते हैं
पर ऐसा नहीं? कदापि नहीं?
युद्ध तो होते हैं, 
हम औरतों की छातियों की विस्तृत परिधियों पर
हमारे मासूम बच्चों के पेटों 
और उनकी रीढ़ों के भूगोलों पर 
जब तमाम बम, मिसाइलें गिरतीं हैं 
ऊंची-ऊंची इमारतों पर
रिहायशी इलाकों पर
रसद और आयुध पर
तब मातमी धुएं और घनी धुंध में,
चारों दिशाओं में हाहाकार-चीत्कार उठता है
लोग मरते हैं,घायल होकर तड़पते हैं 
लाशों चीथड़ों से सनी-पटी धरती का      
 कलेजा लाल-लाल हो 
घोर करूणा से चिंघाड़ता-कराहता है।
तब उन्हीं लाशों चीथड़ों के बीच तड़पड़ते हुए 
लोगों के बीच से
परकटे परिन्दों सी बची हुई घायल-चोटिल लड़कियों को, 
औरतों को मांसखोर आदमखोर गिद्ध उन्हें नोंच-नोंच कर तिल-तिल खाने लगते हैं।
आदमखोर वहशी गिद्ध बच्चों को भी नहीं बख्शते 
उनकी मासूमियत को नोंच डालते हैं
 हिटलरों के वहशीपन की तरह
जार-जार रोती उन स्त्रियों की, बच्चों की, 
रोती तड़पती रूहों की, 
कातर आवाजें आकाश तक गूंजती रहती हैं, 
पर अंधे बहरे लोभी धर्मांध सियासतदां
 उन्हें नहीं सुन पाते, नहीं देख पाते।
अगर न यकीं हों तो इस्राइल फलस्तीन के
युद्ध को देख समझ सकते हैं 
जहां धूं धूं कर जलती इमारतों के बीच से वहशियों से लुटती, पिटती, घिसटती
स्त्रियों के घोर करूण दारूण चीखों को सुन सकते हैं। 
कोई जीते कोई हारे, 
पर हम स्त्रियां की रूहें युद्ध में बलत्कृत होती रहेंगी, 
हमेशा लहूलुहान होती रहीं हैं 
और होती रहेंगी।

Thursday, October 05, 2023

विशेष सत्र केवल महिला आरक्षण बिल तक सिमट जाना,कई अहम सवाल खड़े कर गया:नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

विशेष सत्र का एजेंडा अभी भी गुप्त
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी 
                प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने का हिडेन एजेंडा क्या था,वह आज भी मीडिया, विपक्ष,राजनीतिक विश्लेषकों और एकेडेमिक्स से जुड़े लोगों के लिए एक रहस्य के तौर पर देखा जा रहा है। विशेष सत्र केवल महिला आरक्षण बिल पारित कराने के लिए बुलाया गया, यह बात सहज रूप से स्वीकार नहीं हो रही है। महिला आरक्षण बिल जो जातिगत जनगणना और परिसीमन की लम्बी प्रक्रिया के बाद लागू होना है और इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम दस साल का समय लग सकता है, मात्र उस बिल को पास कराने के लिए मोदी जी द्वारा विशेष सत्र के बुलाये जाने की बात राजनीतिक गलियारों में गले नहीं उतर रही है। मीडिया,विपक्ष,राजनीतिक विश्लेषकों और एकेडेमिक्स में इस बात पर गहन अध्ययन और चिंतन चल रहा है और कई तरह की आशंकाओं को रेखांकित कर केवल महिला आरक्षण बिल पास करने के नाम पर बुलाये गए विशेष सत्र के लिये मोदी जी द्वारा तय किये गए गुप्त एजेंडों पर भी गहन अध्ययन जारी है,क्योंकि बिल के लागू होने के समय के हिसाब से यह बिल आगामी शीतकालीन सत्र में भी आसानी से पास हो सकता था।  तो फिर बिल को लेकर इतनी छटपटाहट क्यों थी। मीडिया,विपक्ष,राजनीतिक विश्लेषकों और एकेडेमिक्स में गुप्त एजेंडों को लेकर माथापच्ची जारी है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मोदी जी इस विशेष सत्र में कुछ बड़ा करने वाले थे,लेकिन पांच राज्यों के विधानसभाओं के आसन्न चुनावों का राजनैतिक माहौल अनुकूल महसूस न होने/ हार की आहट और घबराहट या जातिगत जनगणना की मांग और उसके अनुरूप आरक्षण विस्तार जैसी राजनीतिक परिस्थितियों को भांपते हुए अपने मूल एजेंडे पर फ़ोकस न कर देश की पचास प्रतिशत आबादी नारी शक्ति का वंदन  के नाम पर उनके साथ राजनीतिक रूप से भावनात्मक रूप से जोड़ने की नीयत से  33% राजनैतिक आरक्षण देने के बिल तक सिमटना पड़ा। बौद्धिक क्षेत्र में यह भी चर्चा है कि मोदी जी इस बिल पर विपक्ष की ओर से ना नुकुर या विरोध या हो -हल्ला की उम्मीद लगाए बैठे थे। यदि बिल के पास कराने पर विपक्ष कोई हंगामा या बखेड़ा खड़ा कर देता तो मोदी जी विपक्ष पर नारी या महिला विरोधी होने की मोहर और मानसिकता का आगामी लोके सभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रचार- प्रसार कर देश की महिलाओं का वोट बैंक अपने पक्ष में करने की कवायद में सफल होने की रणनीति तय करते दिखाई देते, लेकिन विपक्ष की ओर से बिल पर किसी तरह का विरोध न आने से मोदी जी की सारी रणनीति और योजना धराशायी होती दिखी। महिला आरक्षण बिल जो पारित हुआ है, उसमें एससी-एसटी महिलाओं के आरक्षण की स्थिति स्पष्ट नहीं बताई जा रही है। चर्चा यहां तक है कि इस बिल में एससी-एसटी का राजनैतिक आरक्षण यथावत जारी रहने की बात कही गयी है,लेकिन ओबीसी और ओबीसी की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था  नहीं की गई है, यह शत प्रतिशत सही है। यदि बिल में एससी-एसटी वर्ग की महिलाओं का क्षैतिज आरक्षण होता तो ओबीसी की महिलाओं को भी क्षैतिज आरक्षण देना पड़ता,यह तभी सम्भव होता जब ओबीसी को एससी-एसटी की तरह पहले सही आरक्षण व्यवस्था चली आ रही होती या इस बिल में नई व्यवस्था होती,जो कि दोनों  नहीं है। ऐसी स्थिति में ओबीसी की महिलाओं को आरक्षण मिलने की कोई सम्भावना नही लग रही है।

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