(पुस्तक चर्चा)
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समीक्षक-सत्य प्रकाश 'शिक्षक' लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश |
नारी विमर्श पर केंद्रित 'गुलाबी गलियां' कृति में संकलित लघुकथाएं साहित्य के अभिजन वर्ग द्वारा वर्जित विषयों पर तन्मयता के साथ अंकित की गई हैं। इन लघुकथाओं में समाज की सच्चाई का बोध कराने का स्तुत्य प्रयास किया गया है। कहीं जीवन के स्याहपक्ष को सहजता से स्वीकार किया गया है, तो कहीं जीवन के अनकहे, अनछुये पहलुओं के यथार्थ कटु चित्रों को प्रस्तुत किया है। दूरवर्ती लेखकों से संपर्क करके उनकी रचनाओं का संकलन-परिमार्जन एक दुरूह कार्य है जिसे संपादक ने अपने तन, मन-धन से कुशलता पूर्वक संपन्न किया है। संकलन में दायित्वबोध के क्रम में सच्ची लघु, कथाएं ग्रीष्म की तपन के साथ चांदनी शीतल छांव भी प्रदान करतीं हैं जिनसे पाठक अपने अंर्तमन में झांककर देख सकता है कि सभ्यता के विकास क्रम में वे अग्रसर हो रहे हैं या समाज के साथ पतनोन्मुख हो रहे हैं। चर्चित लघुकथाकार सुरेश सौरभ जी ने प्रस्तुत संग्रह की अपनी भूमिका में सही कहा है कि कभी छल से या कभी बल से नारी अनादि काल से शोषित रही है । प्रस्तुत संकलन वेश्याओं के जीवन संघर्ष, को पढ़ते हुए आत्मसात करने वाले किसी भी पाठक के मन में संवेदना जगाने में पूर्ण सक्षम है। प्रसिद्ध साहित्यकार संजीव जायसवाल 'संजय व उदीयमान युवा साहित्यकार देवेंद्र कश्यप "निडर'' जी ने संग्रह पर अपनी अमूल्य टिप्पणियां लिख कर किताब को कालजयी बना दिया है। इससे पहले सुरेश जी की इस दुनिया में तीसरी दुनिया, तालाबंदी, बेरंग, वर्चुअल रैली, एक कवयित्री की प्रेमकथा, पक्की दोस्ती, निर्भया आदि रचनाएँ अपार ख्याति पा चुकीं हैं। इनकी रचनाएँ गरीबों किसानों महिलाओं एवं मध्यम वर्ग की संवेदनाओं भावनाओं के इर्द-गिर्द विचरण करती रहती हैं। गुलाबी गलियां साझा संग्रह में देशभर के 63 लघुकथाकारों को संकलित किया है। बधाई सौरभ जी।
पुस्तक- गुलाबी गलियां
संपादक-सुरेश सौरभ
प्रकाशन- श्वेत वर्णा प्रकाशन नई दिल्ली
मूल्य-249 (हार्ड बाउंड)