साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, March 13, 2023

संवैधानिक लोकतंत्र बचाना है तो एससी-एसटी और ओबीसी को जातिगत राजनीति की जगह जमात की राजनीति पर केंद्रित होना पड़ेगा:नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर),

एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) सेवा निवृत
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी


 "धार्मिक और आर्थिक गुलामी का खतरनाक दौर."
            बीजेपी गठबंधन को हराने के लिए सम्पूर्ण राजनैतिक विपक्षी दलों को अपने-अपने राजनैतिक मनभेद और मतभेद भुलाकर जातिगत राजनीति की लड़ाई से ऊपर उठकर सम्पूर्ण जमात के व्यापक हितों की सुरक्षा की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यहां गैरभाजपाई दलों और विपक्षी दलों में अंतर समझना जरूरी है। सामान्यतः भाजपा के अलावा सभी दल गैरभाजपाई माने जाते हैं,लेकिन जो दल बीजेपी सरकार की रीतियों-नीतियों का खुलकर या मौन समर्थन करते हैं या चुनाव से पहले या बाद में सत्ता में हिस्सेदारी के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन करते हैं,वे दल गैरभाजपाई तो कहे जा सकते हैं, किंतु विपक्षी दल नहीं। जो दल चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव बाद सत्ता में हिस्सेदारी के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करते हैं और बीजेपी गठबंधन सरकार के संविधान विरोधी अलोकतांत्रिक आचरण और सामाजिक न्याय विरोधी निर्णयों/नीतियों पर सड़क से लेकर सदन तक जोरदार तरीके से आलोचना या असहमति व्यक्त करते हैं और संवैधानिक लोकतंत्र के सम्मान की रक्षा के लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ते हुए दिखते हैं,उन्हें ही विशुद्ध विपक्षी दल कहना उचित होगा। कहने का आशय यह है कि ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग को अपने-अपने वर्ग के कतिपय नेताओं की जातिगत राजनीति या लाभ को दरकिनार करते हुए पूरी ज़मात के व्यापक हितों (सामाजिक न्याय) की सामूहिक राजनीतिक लड़ाई लड़ने की भावना पैदा कर ही लोकतंत्र के आवरण में छुपी तानाशाही प्रवृत्ति अपनाए बीजेपी को परास्त करने की दिशा में कुछ सफलता हासिल की जा सकती है। जातिगत राजनीति से आपकी जाति का व्यक्ति विधायक/ सांसद/मंत्री तो बन सकता है, लेकिन वह हमारे समाज के व्यापक हितों की रक्षा नही कर सकता है। इसी तरह कोई भी दल आपकी जाति का मंत्री/गवर्नर/ उपराष्ट्रपति/ राष्ट्रपति बनाकर आपकी जाति का वोट लेकर सत्ता तो हासिल कर सकता है ,लेकिन ऐसा पदस्थ व्यक्ति आपकी जाति या वर्ग के हितों की रक्षा के मामले पर खरा उतरता नज़र नहीं आता है या आएगा। दलित समाज के व्यक्ति को इस देश के कितने भी उच्च पद पर बैठ जाने के बावजूद उसकी वास्तविक पहचान दलित/अछूत ही मानी जाती रही है। यहां तक कि देश के राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बावजूद वह मंदिरों में प्रवेश करने के अधिकार से वंचित ही रहता है।  
                  बीजेपी का बार बार यह राजनीतिक रोना कि कांग्रेस के सत्तर साल के शासन में कुछ नहीं हुआ के अनर्गल अलाप को किसी भी विपक्षी दल या सामाजिक संगठन को समर्थन नही करना चाहिए। आज़ादी के बाद देश के विभाजन के फलस्वरूप पैदा हुई खराब स्थितियों के बावज़ूद कॉंग्रेस के सत्तर सालों में बड़ी बड़ी सरकारी/सार्वजनिक संस्थाओं का विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा हुआ,स्कूल,कॉलेज और विश्वविद्यालय खुले जिसमें आरक्षण की वजह से शिक्षा के अवसर और नौकरियां मिलने पर वंचित और शोषित समाज का एक बहुत बड़ा तबका सामाजिक और आर्थिक रूप से मध्य वर्ग के रूप में मजबूती के साथ उभरा है। वंचित और शोषित समाज के लोग आरक्षण की बदौलत ही सार्वजनिक और सरकारी संस्थाओं में लाखों रुपये की नौकरी पाकर चमचमाता कोट,पैंट और टाई पहनने के लायक बने हैं और घरों में कीमती टाइल्स लगाकर साफ सुथरी जिंदगी जीने का मौका पाए है। अब यह सर्वविदित हो चुका है कि नौ साल के बीजेपी की शासन सत्ता के दौर में बेतहाशा निजीकरण की प्रक्रिया से सार्वजनिक और सरकारी संस्थाओं को खत्म कर आरक्षण की वज़ह से मिलने वाली सस्ती शिक्षा और नौकरियों के अवसर खत्म हो चुके हैं/ रहे हैं। शिक्षा,चिकित्सा और कृषि को राजनैतिक स्वार्थवश मनपंसद कुछ कॉरपोरेट घरानों को सौंपकर ओबीसी और एससी - एसटी  समुदाय की आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बर्बाद करने का बड़ा कार्यक्रम बन चुका है। ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय की सरकारी स्कूलों और अस्पतालों तक जो आसानी से पहुंच होती थी/है, निजीकरण के बाद वह अब एक सपना बनती दिखाई देती नज़र आएगी। रेलवे,एलआईसी और राष्ट्रीयकृत बैंक जिनमें अभी तक निम्न और मध्य वर्ग की सहज, विश्वसनीय और निःशुल्क पहुंच होती थी ,वह भी  इस बीजेपी के शासन काल में एक सपना भर रह जायेगा। पूंजीपरस्त बीजेपी की सत्ता में खीरा चोर को सज़ा और हीरा चोर को सिर-आंखों पर बैठाए जाने की संस्कृति देखी जा सकती है। बीजेपी शासन सत्ता ने विपक्ष को बर्बाद या खत्म करने की एक नई संस्कृति पैदा की है जिसमें उसने संवैधानिक संस्थाओं के माध्यम से चुनाव से ठीक पहले उनके यहां इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई, सीवीसी,आइवी द्वारा छापे डालकर उन्हें परेशान और विचलित करने के उपक्रम किये जा रहे हैं। यदि वास्तव में जांच करनी थी तो चुनावी बेला के अलावा किसी समय हो सकती थी। नहीं, चुनाव से भटकाने और जनता को जांच दिखाकर और बेवकूफ बनाकर उनका वोट हथियाना और अपने शासन सत्ता काल की नाकामियों को छुपाना इनका मक़सद रह गया। हिंडन वर्ग की रिपोर्ट और गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री से सत्ता बुरी तरह से डरी या बौखलाई हुई नजर आती है। चुनाव के एन वक्त पर एकजुट होते विपक्ष के नेताओं को राज्यवार परेशान कर और क्षद्म राष्ट्रवाद ,धर्म और हिन्दू बनाम मस्लिम के बल पर येनकेन प्रकारेण चुनाव जीतना और सत्ता पर काबिज़ रहना ही इनके लिए लोकतंत्र की परिभाषा और व्याख्या बन चुकी है।


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