साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, May 24, 2021

महंगाई की मार


 

 

महंगाई की मार

बढ़ती महंगाई पर कविता - कुछ कम कर दो

अच्छे  दिन  के  इंतज़ार में

मां गंगा की   धार  मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई  की मार  मिली ।।


नाही   पंद्रह   लाख   मिला

नाही कोई रोजगार मिला ।

नाही आक्सीजन मिल पाया

नाही कोई उपचार मिला ।।

 

आधी  से  ज्यादा  आबादी

ला-इलाज  बीमार  मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई  की   मार  मिली ।।


एक   महामारी   के  आगे

सारा  सिस्टम   फेल  हुआ ।

अंगों की  तस्करी  हुई और

भ्रष्टाचार  का  खेल   हुआ ।।

 

छप्पन  इंच  की  सारी  सेवा

असफल और लाचार मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई की मार  मिली ।।

 

जहां  प्रजा  बेचैन हो राजा

फिर भी  मनकी  बात करे ।

धनवानों  पर कृपा करें और

निर्धन  पर   आघात  करे ।।

 

वहां प्रजा की सुनने को बस

केवल चीख  पुकार  मिली ।

जीना मुश्किल हुआ है ऐसी

महंगाई  की  मार  मिली ।।

 

श्यामकिशोर बेचैन 
कवि-श्याम किशोर बेचैन

संकटा देवी बैण्ड मार्केट

लखीमपुर खीरी 262701

Saturday, May 22, 2021

आसुओं के बदले आंसू और मिल ही क्या सकता है


"वस्तुतः कहें तो रुदन, क्रंदन अपने आप में अभिनय क्षेत्र की सर्वोच्च नाटकीयता का अंश है। जिसे विश्व की गिने चुने अभिनेता ही अभी तक इसका सफल मंचन कर सके हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमारे देश की यशस्वी प्रधानमंत्री इस विधा में पारंगत हैं।"


As Poll Results Crystallise, PM Modi Congratulates Victors, Lauds BJP  Workers on Twitter
साथियों अभिनय की दुनिया में किसी भी अभिनेता के लिए चारित्रिक अभिनय में रुदन अभिनय करना अपने आप में एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है, जो सहज रोने का अभिनय कर लेता है वह वास्तविक में एक सफल अभिनयके शीर्ष पर पहुंच जाता है. उसके काम की लोग तारीफ करते हैं। थिएटर से लेकर सिनेमा हॉल तक करतल ध्वनि से गुंजायमान हो जाता है और यह इतना सहज भी नहीं है की सभी आसानी से इसको अभिनित कर सकें वस्तुतः कहें तो रुदन, क्रंदन अपने आप में अभिनय क्षेत्र की सर्वोच्च नाटकीयता का अंश है। जिसे विश्व की गिने चुने अभिनेता ही अभी तक इसका सफल मंचन कर सके हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमारे देश की यशस्वी प्रधानमंत्री इस विधा में पारंगत हैं, उन गिनी चुने अभिनेताओं में आप की गिनती होनी चाहिए।

देश के लोग कोरोना काल में भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी, बेकारी और चिकित्सकीय मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है। देश की नदियां लाशों से पट गई हैं, महंगाई अपने चरम पर है, देश के युवाओं का भविष्य डावांडोल है। ऐसे में देश का कोई भी नागरिक अछूता नहीं है जिसकी आंखों में आंसू ना हो, देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आप अपने नागरिकों को आंसू के बदले आंसू नहीं दे सकते।ऐसा करना किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति के कायरता की निशानी कहलायेगा। मान लीजिये परिवार में बिपदा आने पर घर का मुखिया ही आंसू बहाने लगे तो परिवार के अन्य लोगों का क्या होगा उनको कौन धैर्य/धीरज धरायेगा....ऐसे तो परिवार के लोग और विचलित हो जायेंगे।
विदेशी अख़बार में घड़ियाली आंसू से पीएम के आंसु की तुलना


हिंदू मुस्लिम, धर्म आदि का जादू चलता न देखकर देश के प्रधानमंत्री जीने अपने नागरिकों को इमोशनली ब्लैकमेल करके उनकी सहानुभूति पाने का सफल प्रयास किए हैं किंतु देश की आवाम पर इसका खास असर नहीं पड़ा है कुछ परसेंट को छोड़ दिया जाए तो सभी ने इसकी भर्त्सना की है और नाटकीयता से दूर रहने का सलाह दिया है। सोशल मीडिया पूरा का पूरा व्यंग्य से पट गया है, आलोचनाएं पर आलोचनाएं जारी हैं लोग आंसुओं के भवसागर में डूब और उतरा रहे हैं। चारों तरफ दुख ही दुख है माननीय प्रधानमंत्री जी को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और देश हित में ठोस कदम उठाना चाहिए कोरोना की तीसरी लहर आने से पहले दूसरी लहर पर पूर्णता नियंत्रण पाया जाए। दूसरी के रहते तीसरी की क्या तैयारी है इसे भी स्पष्ट किया जाए और आज से ही तीसरी लहर के उन्मूलन में पूरे मनोयोग से वैचारिक और राजनैतिक वैमनस्यता को त्याग कर राज्य और केंद्र सरकार साथ साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस महामारी के नियंत्रण में एक दूसरे का सहयोग करें और सहयोग लें। यही देश हित में सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन परिवारों के प्रति जिन्होंने अपनों को खोया है। उन्हें इस बात का भरोसा हो जायेगा कि जो कुछ हमने अब तक खोया है अपने शेष को कोरोना की तीसरी लहर में नहीं खोएंगे। इस प्रकार का आप जनता को विश्वाश दिला सकते हैं तो कुर्सी पर बने रहिये नहीं तो प्रधानमंत्री की मर्यादा का सम्मान करते हुए अपना झोला उठाईये और निकल जाईये ......क्योंकि आपने ही कहा था हम देश की जनता के लिए खरे साबित नहीं होंगे तो हमारा क्या आप जब कहेंगे हम अपना झोला उठाएंगे और ............।

देश की जनता को आंसू के बदले आंसू मत दीजिये....देना ही है तो अस्वासन दीजिये, गारंटी दीजिये, रोजगार दीजिये, महंगाई कम कीजिये, बेकारी हटाईये बहुत ढेर सारी समस्याएं हैं कितना लिखूं कुछ पहले से थीं और उनमे से ज्यादातर बीजगणितीय वर्गमुलित हुई हैं 2x2x2x2x2 उनके जिम्मेदार आप हैं

अखिलेश कुमार अरुण
ग्राम हजरतपुर,लखीमपुर 
उ०प्र० २६२७०१
22/05/2021 

रिश्तों के बिखरे धागे (लघुकथा)

हिंदी कहानी- रिश्तों की बगिया (Hindi Short Story- Rishto ki Bagiya)
गूगल से साभार

 

रिश्तों के बिखरे धागे  (लघुकथा)

-सुरेश सौरभ

भीड़। श्मशान घाट। लाशों के पीछे लाशों की लम्बी लाइनें। सबको जलने का इंतजार। और लाशों के साथ आए, उनके कुछ परिजन। कोरोना संक्रमण के भय से उनके सुलगते दिल। कोई रोते हुए कह रहा, 'ऑक्सीजन की कमी से मर रहे। कोई कह रहा 'सरकार की बदइंजामी से सब बेमौत मर रहे। 'हर तरफ मरने का खौफ और संक्रमण के खतरे का भय, लोगों की पुतलियों में अनवरत नाच रहा था। चारों ओर पूरे देश में दिल दुखाने वाला अजीब हाहाकार-चीत्कार मचा हुआ था। बहुत से लोग तो अपने परिजन की लाशों को घोर भय और संशय से लावारिस छोड़-छोड़ कर भाग रहे थे। बेहद खौफ और तनाव में वह भी अपने कोविड संक्रमित पिता की लाश को श्मशान घाट पर लावारिस छोड़ कर भाग आया। अब घर में उदास खामोश मुँह लटकाए बैठा था, "बेटे मैंने तेरे लिए इतना बना दिया है कि तू और तेरी आगे आने वाली कई पीढ़ियाँ, अगर सारी जिंदगी बैठकर खाएं तब भी कभी न कमी  होगी। लेकिन मेरी यही हार्दिक इच्छा है, जब मैं मरूँ तब तू मेरी अंत्येष्टि सनातन परंपरा से करना और मेरे फूल गंगा मैया की गोद में अर्पित कर देना।"..पिता जी बुढ़ापे में अक्सर यह कहा करते थे। अब यही शब्द बार-बार उसके पूरे दिमाग में सैंकड़ों सुईयों मानिन्द चुभ रहे थे। मन-मतिष्क  को उद्वेलित कर रहे थे। दुःखी अंर्तमन की पीड़ा में आँखों से टप-टप आँसू चूने लगी। तभी उसका छः साल का बेटा,उसे रोता देख,उसके पास आया और अपने पापा के आँसू पोंछते हुए बोला-पापा क्यों रो रहें हैं? क्यों आँसू बहा रहें हैं? अच्छे बच्चे नहीं रोते? बेटे को एकदम से अपने सीने में भींच लिया उसने,लरजते शब्दों में बोला-बेटा मैं अच्छा बच्चा बिलकुल नहीं हूँ। गंदा बच्चा हूँ। बेहद गंदा बच्चा हूँ.. तभी उसकी पत्नी भी वहाँ आ गई, सुबकते हुए पति को एकटक करूण नेत्रों से देखने लगी, अपने मन में कह रही थी, "न मेरा दोष न तेरा दोष? सिर्फ इस समय का दोष है। इस समय ने हम सब को गंदा बना दिया। इस कोरोना ने हर मानव को मानवता से जुदा कर दिया।" दूसरी ओर कोराना दूर छिपा हुआ अट्टहास मारे कह रहा था, "ऐ मतलबी दुनिया वालों हमें दोष देने से बेहतर है, पहले अपनी आँखों पर बंधी लोभ, लालच और स्वर्थों पट्टी खोलो तभी इंसानियत और रिश्तों के अपनेपन का सुखद अहसास महसूस कर सकोगे और रिश्तों के बिखरे धागे सहेज पाओगे।

 

सुरेश सौरभ

लेखक- सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले-देवेन्द्रराज सुथार

 Why Savitribai Phule is the Best Role Model for India's Protesters

देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका, मराठी की पहली कवयित्री और वंचितों की आवाज बुलंद करने वाली क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के पुणे-सतारा मार्ग पर स्थित नैगांव में एक दलित कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। 1840 में मात्र 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। विवाह के बाद अपने नसीब में संतान का सुख नहीं होते देख उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा उसके बच्चे को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और उसका नाम यशंवत राव रख दिया। बाद में उन्होंने यशवंत राव को पाल-पोसकर व पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया।

सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने वर्ष 1848 में मात्र 9 विद्यार्थियों को लेकर एक स्कूल की शुरुआत की। ज्योतिराव ने अपनी पत्नी को घर पर ही पढ़ाया और एक शिक्षिका के तौर पर शिक्षित किया। बाद में उनके मित्र सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भावलकर ने उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने महिला शिक्षा और दलित उत्थान को लेकर अपने पति ज्योतिराव के साथ मिलकर छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा को रोकने व विधवा पुनर्विवाह को प्रारंभ करने की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किये। उन्होंने शुद्र, अति शुद्र एवं स्त्री शिक्षा का आरंभ करके नये युग की नींव रखने के साथ घर की देहरी लांघकर बच्चों को पढ़ाने जाकर महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन का उदय किया।

ज्योतिराव फुले ने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह और 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इस सत्यशोधक समाज की सावित्रीबाई फुले एक अत्यंत समर्पित कार्यकर्ता थीं। यह संस्था कम से कम खर्च पर दहेज मुक्त व बिना पंडित-पुजारियों के विवाहों का आयोजन कराती थी। इस तरह का पहला विवाह सावित्रीबाई की मित्र बाजूबाई की पुत्री राधा और सीताराम के बीच 25 दिसंबर, 1873 को संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक क्षण पर शादी का समस्त खर्च स्वयं सावित्रीबाई फुले ने उठाया। 4 फरवरी, 1879 को उन्होंने अपने दत्तक पुत्र का विवाह भी इसी पद्धति से किया, जो आधुनिक भारत का पहला अंतरजातीय विवाह था। दरअसल, इस प्रकार के विवाह की पद्धति पंजीकृत विवाहों से मिलती-जुलती होती थी। जो आज भी कई भागों में पाई जाती है। इस विवाह का पूरे देश के पुजारियों ने विरोध किया और कोर्ट गए। जिससे फुले दंपति को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन वे इससे विचलित नहीं हुए। इसके अलावा सावित्रीबाई फुले जब पढ़ाने के लिए अपने घर से निकलती थी, तब लोग उन पर कीचड़, कूड़ा और गोबर तक फेंकते थे। इसलिए वह एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी और स्कूल पहुंचकर गंदी हुई साड़ी को बदल लेती थी।

 The life and times of Savitribai Phule

महात्मा ज्योतिराव फुले की मुत्यु 28 नवंबर, 1890 को हुई, तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिया। लेकिन 1897 में प्लेग की भयंकर महामारी फैल गई। पुणे के कई लोग रोज इस बीमारी से मरने लगे। तब सावित्रीबाई फुले ने अपने पुत्र यशवंत को अवकाश लेकर आने को कहा और उन्होंने उसकी मदद से एक अस्पताल खुलवाया। इस नाजुक घड़ी में सावित्रीबाई फुले स्वयं बीमारों के पास जाती और उन्हें इलाज के लिए अपने साथ अस्पताल लेकर आती। यह जानते हुए भी यह एक संक्रामक बीमारी है, फिर भी उन्होंने बीमारों की देखभाल करने में कोई कमी नहीं रखी। एक दिन जैसे ही उन्हें पता चला कि मुंडवा गांव में म्हारो की बस्ती में पांडुरंग बाबाजी गायकवाड का पुत्र प्लेग से पीड़ित हुआ है तो वह वहां गई और बीमार बच्चे को पीठ पर लादकर अस्पताल लेकर आयी। इस प्रक्रिया में यह महामारी उनको भी लग गई और 10 मार्च, 1897 को रात को 9 बजे उनकी सांसें थम गईं।

निश्चित ही सावित्रीबाई फुले का योगदान 1857 की क्रांति की अमर नायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं आंका जा सकता, जिन्होंने अपनी पीठ पर बच्चे को लादकर उसे अस्पताल पहुंचाया। उनका पूरा जीवन गरीब, वंचित, दलित तबके व महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने में बीता। समाज में नई जागृति लाने के लिए कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फुले ने 2 काव्य पुस्तकें 'काव्य फुले', 'बावनकशी सुबोधरत्नाकर' भी लिखीं। उनके योगदान को लेकर 1852 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया। साथ ही केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले की स्मृति में कई पुरस्कारों की स्थापना की और उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया। उनकी एक मराठी कविता की हिंदी में अनुवादित पंक्तियां हैं- 'ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं इसलिए, खाली ना बैठो, जाओ, जाकर शिक्षा लो।'

देवेन्द्रराज सुथार

पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा

जिला-जालोर, राजस्थान। 343025

मोबाइल – 8107177196

हे संविधान के निर्माता

हे संविधान के निर्माता

हे रमापति, यशवंत पिता, हे रामजीराव के लाल चौदहवे।
तुलसा,मंजुला के लाडले भैया,भीमा मैया के राज दुलारे।
हे परमपूज्य हे बोधिसत्व,  हे ज्ञान के सागर भीमराव,
तुमने मोड़ी उस धारा को जिसमें बहता था उलटा बहाव।
हे अर्थशास्त्री, समाज शास्त्री,हे राजनीति के परम पुरोधा
हार गए वो सब के सब जो कहते थे खुद को योद्धा।
मानवता के दुश्मन कांपे, मन में अटल विश्वास रहे।
जबतक धरती .चाँद सितारे,सूरज,नीला आकाश रहे।
हे संविधान के निर्माता हर ह्रदय में तुम्हारा वास रहे।।

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हे समाजसुधारक ,विधिवेत्ता,हे मनुवाद के नाशक तुम।
दुश्मन की छाती पर खंजर, हे बहुजन के उद्धारक तुम।
जातिवाद के विध्वंसक, समता का पाठ पढ़ाने वाले।
अगणित,अगनित दुखों से शोषित को मुक्त कराने वाले।
सदियों से शोषित नारी को तुमने सम्मान दिलाया था।
मानव को मानव होने का तुमने अहसास कराया था।
रमाकान्त परिवार सहित चरणों का तुम्हारे दास रहे।
जबतक धरती ,चाँद सितारे,सूरज,नीला आकाश रहे।
हे संविधान के निर्माता हर ह्रदय में तुम्हारा वास रहे।।

हे भारत की अमूल धरोहर, हे भारत के स्वाभिमान।
दुनिया के कोने - कोने में, होता है तुम्हारा यश गान।
हे भारतरत्न भीम बाबा, हे भारत के भाग्य विधाता ।
हे बहुजन के दीनबन्धु, हे गाँधी के जीवनदाता।
शिक्षित बनो,संगठित रहो, संघर्ष करो ये बतलाया।
वैज्ञानिक धर्म बुद्ध का देकर,सत्य का मार्ग हमें दिखलाया।
जबतक लहराए तिरंगा अपना,मन में भरा उल्लास रहे।
जबतक धरती ,चाँद सितारे,सूरज,नीला आकाश रहे।
हे संविधान के निर्माता हर ह्रदय में तुम्हारा वास रहे।
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रमाकान्त चौधरी 
ग्राम - झाऊपुर, लंदनपुर ग्रंट,
गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।
उत्तर प्रदेश।
 Mob. No.-9415881883
Gmail- rkchaudhary2012@gmail.com
YouTube channel- bas Tumhare liye

प्यारे बहुजनों

प्यारे बहुजनों

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बुद्धं शरणं गच्छामि से, अपना रिश्ता जोड़ो जी।
 मनुवादी क्रूर व्यवस्था से तुम, अपना नाता तोड़ो जी।

 स्वर्ग-नर्क का भय दिखला कर, सदियों से तुम छले गए।
 पाप-पुण्य के चक्कर में, तुम हद से ज्यादा दले गए।
 तुम से पत्थर पुजवा करके , वो सारे मालामाल हुए।
 तुम मूरख अज्ञानी ठहरे , जो पूज पूज कंगाल  हुए।
 कुछ बुद्धि विवेक से काम करो, सच से रिश्ता जोड़ो जी।
 मनुवादी क्रूर व्यवस्था से तुम अपना नाता तोड़ो जी।

 खुद की दवा वैद्य से लेते , तुमसे हवन कराते हैं ।
जीव-जंतु, पशु-पक्षी, नदियां, गोबर तक पुजवाते हैं ।
वह कंपटीशन की करें तैयारी, तुम कांवर को ढोते हो।
 फिर अपनी अमिट गरीबी का, बेमतलब रोना रोते हो ।
छोड़ देवालय विद्यालय से , अपना रिश्ता जोड़ो जी ।
मनुवादी क्रूर व्यवस्था से तुम अपना नाता तोड़ो जी।

 वक्त पड़े तो चरणों में तुम्हारे, उनको झुकना आता है।
 जब वह झूठा प्यार करें , तब सीना गदगद हो जाता है।
 बिना ज्ञान के छोटी सी भी, चाल समझ ना पाते हो ।
उनके बिछे जाल में तुम, आसानी से फंस जाते हो ।
मांस और मदिरा के खातिर, ईमान अपना छोड़ो जी।
 मनुवादी क्रूर व्यवस्था से तुम, अपना नाता तोड़ो जी।
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रमाकांत चौधरी


रमाकान्त चौधरी 
ग्राम - झाऊपुर, लंदनपुर ग्रंट,
गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।
उत्तर प्रदेश।
 Mob. No.- 9415881883
Gmail- rkchaudhary2012@gmail.com
YouTube channel- bas Tumhare liye

Friday, May 21, 2021

चाय से शियासत तक

चाय से शियासत तक 


लेखक-अखिलेश कुमार 'अरुण'

आज अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस है जिसे 2005 से मनाया जा रहा है, इस दिन चाय दुनियाभर में सुर्खियों में रहती है। लेकिन आपको शायद ही पता हो की करीब दो साल पहले तक दुनियाभर में 15 दिसबंर को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता था और अब 21 मई को मनाया जाने लगा है। हैरान हो गए ना कि आखिर माजरा क्या है? तो बता दें कि इसके पीछे भारत की अहम भूमिका है। क्योंकि भारत ने ही चाय को उसका हक दिलाया है। दरअसल, दुनियाभर में चाय उत्पादक देश 2005 से 15 दिसंबर को हर साल अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाते रहे हैं। क्योंकि तब तक इसे संयुक्त राष्ट्र की ओर से मान्यता नहीं दी गई थी। इसे लेकर भारत सरकार ने बड़ी पहल की और  2015 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के माध्यम से आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। जिसे स्वीकार कर लिया गया तबसे यह 21 मई को मनाया जाने लगा गया। 
International Tea Day 2020 Date, History, Significance, And All You Need To  Know - International Tea Day 2020: जानिए, कैसे हुई अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस  की शुरुआत ?
विश्व के सभी पेय पदार्थों में से एक सबका पसंदीदा, हमारा तो पुछिए मत..... ऐसा समझ लिजिए चाय का और हमारा चोली दामन का साथ है....बस चाय है तो सब कुछ है....इस कोरोनाकाल में चाय की इमेज कुछ सुधर गई डाक्टरों ने कहा दिन में तीन-चार बार चाय पीजिये गले की खरास दूर होगी और मानसिक तनाव कम होगा। चाय की सारी भ्रांतियाँ धरी की धरी रह गई कोको कोला, पेप्सी, मिरांडा अब अब अपने दिन बहुरने के बाट जोह रहे हैं.....कभी चाय की  चुस्की कम बुराई ज्यादा गिनाई जा रही थी....चाय की इतनी छिछालेदर किसी भी देश के प्रधानमंत्रीत्व काल में  नहीं हुई जितनी की मोदी जी के २०१४ से चाय बेचने को लेकर की गई, बड़प्पन भी खूब हाथ लगा चाय बेचने वाले  अपने को प्रधानमंत्री का सहोदर मानने लगे थे।

GK Library - अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस * पूरी दुनिया में साल... | Facebook

चाय का अपना स्टेंडर्ड है अमीरों की चाय से लेकर गरीबों की चाय तक अपने कई रूपों में पी और पीलाई जाती है... काली चाय, भूरी चाय( दूध कम और परिवार लम्बा) पानी कम दूध की चाय, खालिस दूध की चाय, मसाला चाय, नींबू चाय, हरी चाय.....मने पुछिए मत भिन्न भिन्न वेराइटी में उपलब्ध है। इन सभी चायों में से हमें खलिश दूध की चाय बहुत अच्छी लगती है। बड़े होटलों का चाय पिने के लिए मौका तलाश रहा हूँ जिसमें चीनी,चाय,दूध और गरम पानी सब अलग-अलग होता है....कोई साथ देने वाली मिल जाए तब....आनंद लिया जायेगा।

किसी भी लोकतांत्रिक देश में सत्ता परिवर्तन में चाय की अहम भूमिका है.....चाय पर चर्चा तो सुने ही होंगे....नाम पर मत जाइए/चर्चा चाय पर नहीं होगी गली-नुक्कड़ की दुकानों से लेकर रेस्टोरेंट और सियासत की शतरंज तक चाय की आड़ में चर्चा देश के पंचवर्षीय भविष्य पर होता जहां से आप 70 साल बनाम 7 साल की बाउंड्री रेखा के इधर और उधर का सहज मूल्यांकन कर सकते हैं। इन 70 साल बनाम 7 साल में क्या खोया क्या पाया पर गंभीरता से बिचार किया जाय तो ऐसा समझ लीजिये सब कुछ चाय में चला गया.....अब देश के लिए बचा है तो बस  बाबा जी का ठुल्लू....सोचिये एक  गंभीरता से आपकी अंतरात्मा भी बोल उठेगी।
चाय का अहम रोल है व्यक्ति के जीवन में चाय की चुस्की से आप अपने पारिवारिक जीवन की शुरुआत करते हैं फिर तो पीना ही है....... चुस्की जम गई जीवन आनन्ददायक है नहीं तो.....? इसलिए चाय है तो आशिकों के लिए जान है/हम सबके लिए जहान है।

अखिलेश कुमार अरुण
21/05/2021

एक कविता ने दिलाई श्याम किशोर को वैश्विक पहचान (व्यक्तित्व)

एक कविता ने दिलाई श्याम किशोर को वैश्विक पहचान   (व्यक्तित्व)

 

कवि
कवि

साधारण सा व्यक्तित्व, साधारण से शहर के निवासी, साधारण सी शिक्षा, पर कृतित्व असाधरण। जी हां मैं बात कर रहा हूं, एक कविता के माध्यम अपनी वैश्विक पहचान बनाने वाले लखीमपुर उत्तर प्रदेश के कवि श्याम किशोर बेचैन की। आप ने वाट्सएप फेसबुक पर एक कविता कहीं न कहीं जरूर टहलती हुई देखी, पढ़ी होगी। यथा झाड़ू छोड़ो कलम उठाओ परिवर्तन आ जाएगा/शिक्षा को हथियार बनाओ परिवर्तन
आ जाएगा। 

इस कविता का वाचन बैचेन कई मंचों से कर चुके हैं और कई पत्र-पत्रिकाओं और संग्रहों में भी यह प्रमुखता से प्रकाशित हो चुकी है। इस कविता की लोकप्रियता इस हद तक हैं कि इसे कई सामाजिक संगठनों में सस्वर गायन किया जा रहा है। ’बेचैन’ अपनी कविता के कथानक और बिंब अपने आसपास के लोगों के बीच से उठातें हैं। गरीबों, किसानों महिलाओं व दलितों की जमीनी शोषण और सच्चाइयों के रेशे-रेशे में, अपनी कविताओं की गहन संवेदनाएं पिरोतें हैं। कविता की तरफ आप का झुकाव कब से हुआ? इस सवाल के जवाब में वे कहतें हैं,‘घर में बचपन से ही संगीत, साहित्य का माहौल था। पिता स्वर्गीय शंकर लाल 'रागी जी’ ने भारत खण्डे संगीत विद्यालय इलाहाबाद से संगीत शिक्षा प्राप्त की थी। रामायण महाभारत,वेद आदि धार्मिक ग्रन्थों का वह अध्ययन किया करते थे। संगीत की महफिलों में उनकी बड़ी कद्र थी। उनकी प्रेरणा से संगीत, साहित्य की बारीकियों को जानने समझने का प्रयास बचपन से करने लगा। सन 1985 से कीर्तनकारों के सम्पर्क में आया। रात्रि जागरण में एक कीर्तनकार के रूप में, पब्लिक के बीच में मेरी इन्ट्री हुई। आप क्या-क्या लिखतें है? इसके जवाब में 'बेचैन’ कहतें हैं, शुरूआत में भजन लिखता और गाता था, पर दलित चिंतक, वरिष्ठ साहित्यकार ओम प्रकाश वाल्मीकि जी का साहित्य पढ़ कर और लखीमपुर के कवि स्वः राजकिशोर पाण्डेय 'प्रहरी', फारूक सरल जी, अवधेश शुक्ल 'अवधेश' जी, सुरेश सौरभ आदि साहित्यकारों के सम्पर्क में आने के बाद गीत, गजल मुक्तक, छंद भी लिखने लगा। फिर मित्रों के सहयोग से मंचों से वाचन करने लगा।
   
 'बैचैन’ का एक कविता संग्रह ’वन्य जीव और वन उपवन’ नमन प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हो चुका है और कई अन्य पुस्तकें अभी प्रकाशन की बाट जोह रहीं हैं। जब उनसे मैंने उनकी शिक्षा के बारे में पूछा, तो वह गुनगुनाते हैं.. मैं  अनपढ़  हूँ  पढ़ाई  में/ मुझे  बच्चा  समझ  लेना/अगर हो जाए कुछ अच्छा/तो अच्छा  समझ  लेना/मैं सच का साथ देने के लिए ’बेचैन’ रहता हूँ/नजर आ जाए सच्चाई तो /फिर सच्चा समझ लेना। प्रसिद्ध साहित्यकार, संजीव जायसवाल ’संजय’, डॉ0 निरूपमा अशोक,चंदन लाल वाल्मीकि, डाॅ0 सुरचना त्रिवेदी, आदि प्रबु़द्ध जनों एवं पाठकों को अपना प्ररेणा स्रोत 'बेचैन’ बतातें हैं, जो निरन्तर कविता लेखन के लिए इन्हें प्रोत्साहित करते रहतें हैं। कौन साहित्यकार सबसे अधिक पंसद है? इस बारे में वह कहतें हैं कि नाम बहुत है, पर कुछ ही गिना पाऊँगा, जिनमें महादेवी वर्मा, पंत, निराला,नीरज,निदा फाजली,मुनव्वर राना, राहत इंदौरी, नन्दी लाल ’निराश’।  
      पूरे देश में कई मिशनियों का हिस्सा बनी, देश-विदेश में सोशल मीडिया पर वायरल अपनी चर्चित कविता ’परिवर्तन’ हमारे आग्रह पर 'बेचैन’ सुनाते हैं।
  परिवर्तन
झाडू छोडों कमल उठाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बना
परिवर्तन आ जाएगा ।।
दारू छोडों ज्ञान बढ़ाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
हर कीमत पर पढ़ो पढ़ाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
मनुवादी साधु-संन्यासी
ढोंगी पाखंडी पंडे ।
जन्म-जन्म के दुश्मन हैं ये
मत थामो इनके झंडे ।।
समझ नहीं पाए जो अब तक
अब समझो इन के फंडे ।
इनको हमसे काम चाहिए
संडे हो या हो मंडे ।।
इनके झांसे में ना आओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
अपनी कथनी और करनी में
खुद सुधार करना होगा ।
ठग विद्या करने वालों का
तिरस्कार करना होगा ।।
आज तथागत की बातों पर
फिर विचार करना होगा ।
घर-घर जाकर बाबा साहब
का प्रचार करना होगा ।।
तुम इतना ही करके दिखाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
कोई प्यार नहीं करता ।
दलित अछूतों के बच्चों को
कोई दुलार नहीं करता ।।
दलितों का उज्ज्वल भविष्य
कोई स्वीकार नहीं करता ।
दलित महापुरुषों का भी
कोई सत्कार नहीं करता ।।
इनके आगे सर झुकाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार  बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
कहने को तैंतीस करोड़ है
लेकिन कोई नहीं अपना ।
कोई नहीं चाहता है कि
दलितों का सच हो सपना ।।
सपना अपना सच करने को
खुद आगे आना होगा ।
यही हकीकत है, हकीकत
सबको समझाना होगा ।।
बात यही सबको समझाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
मानवता के धर्म को मानो
कर्म को ही मानो पूजा ।
मात् पिता से बढ़के जग में
देव नहीं कोई दूजा ।।
भला चाहते हो तो ऊंची
कर लो अपनी सीढ़ी को ।
संसद तक पहुंचा दो अपनी
आने वाली पीढ़ी को ।।
खुद अपनी तुम राह बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
आज भी गांवों में देखो
जिंदा हमैं बस मजबूरी में ।
नहीं गुजारा हो पाता है
गांवों की मजदूरी में ।।
हो अपना "बेचैन" कोई तो
थोड़ा फर्ज निभा देना ।
हो जाना गम में शरीक कुछ
कौम का कर्ज चुका देना ।।
तुम अपना कर्त्तव्य निभाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
    परिवर्तन आ जाएगा ।।
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लेखक
-सुरेश सौरभ

-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी यूपी
पिन-262701
मोः-7376236066
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

अमानवीयता (लघुकथा)

अमानवीयता   (लघुकथा)

34 Haryana police officers transferred in major reshuffle- The New Indian  Express
पति खामोश मुँह लटकाए बैठा था। पत्नी बोली,“क्या हुआ? आज जाना नहीं है क्या?
पति एकदम से फट पड़ा-नहीं! अब घर में ही पड़े-पड़े खाना है और मर जाना है। दुनिया के लिए छुट्टी है, पर हम पुलिस वालों के लिए नहीं, हमें तो बस मरना है ड्यूटी पर।
“बात क्या है,पूरी बात, बताओ तो सही?“
“क्या बताएँ?आंय!क्या बताएँ?अस्पताल नहीं? डाक्टर नहीं?दवाएँ नहीं? ऑक्सीजन नहीं? बस सेन्ट्रल विस्टा खा लो, स्टेडियम खा लो, और मंदिर खा लो, बच जाएँगे सब कोरोना से।लाइलाज लोग मर रहें हैं, उनके पास लाश फूँकने तक का पैसा नहीं?गंगा में शव बहाए जा रहे हैं। कुत्ते नोंच रहें हैं। अब तुम्हीं बताओ,जब उस लाश को कुत्ते नोंच रहे थे,दुनिया तमाशा देख रही थी,तब हम लोगों ने किसी तरह टायर-फायर से उसे जला दिया, तो हमारे ही ऊपर हाकिम हावी है। कह रहा है, तुम ने अमानवीता की, इसलिए निलंबित।“
“हाकिम को देखना चाहिए क्या सही है, क्या गलत?
“सब अंधे-बहरे हो गए हैं। हाकिम को मोर नचाने से फुरसत कहाँ? जो हमारी और जनता की तकलीफों को समझे?
“अब क्या करोगे?“
“घर में बैठ कर भगवान का स्मरण करते हुए,अपनी अमानवीयता का पश्चाताप करेंगे।“
अब दोनों से खामोशी से मुँह लटकाए बैठे थे, उनके चेहरों से अपराध भाव टप-टप टपक रहा था। ऐसा लग रहा था, कोरोना से बेमौत मरने वालों के असल दोषी-दुश्मन वहीं हो।


 लेखक- सुरेश सौरभ


निर्मल नगर लखीमपुर खीरी
पिन-262701
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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