साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
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Wednesday, February 08, 2023

घनीभूत संवेदनाओं का प्रगटीकरण-डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

पुस्तक समीक्षा 


पुस्तक -बेरंग (लघुकथा संग्रह )
लेखक-सुरेश सौरभ
प्रकाशन-श्वेत वर्णा प्रकाशन नई दिल्ली।
मूल्य -२००
प्रकाशन वर्ष-2022
मानव समाज के उत्तम दिशा में उत्थान हेतु स्वस्थ व उत्तम मानवीय संस्कारों की आवश्यकता होती है और ऐसे मानवीय संस्कार हमें संस्कृति से ही प्राप्त हो सकते हैं। संस्कृति को उत्तम रखने में साहित्य की भूमिका महती होती है। उत्तम साहित्य, संस्कृति में मौजूद विषाणुओं को समाप्त कर रोगयुक्त संस्कारों में संजीवनी का संचार करने की क्षमता रखता है।
कहना न होगा कि प्रस्तुत लघुकथा संग्रह "बेरंग" में इसके रचयिता सुरेश सौरभ ने उक्त कथनों को ही मूर्तिमंत किया है। लेखक ने अटूट परिश्रम से सामयिक विविध विषयों की जीवंत झांकी को सरल एवं ओजस्वी भाषा शैली में प्रस्तुत किया है, वह श्लाघनीय है। यह अनुभवजन्य और सन्देशप्रद लघुकथाओं का संग्रह है, जिसमें 77 लघुकथाएँ विद्यमान हैं। ये रचनाएँ जीवन के दर्पण सरीखी हैं। 
साहित्य इन्द्रधनुषीय होता है, जिसमें जीवन के विविध रंग होते हैं, लेकिन इस संग्रह का शीर्षक बेरंग है, जो कि लेखक ने अपनी एक रचना पर रखा है। इस संग्रह की अन्य अग्रणीय व चर्चा योग्य लघुकथाओं में से एक 'बेरंग' लघुकथा ने होली सरीखे उत्तम त्यौहार पर महिलाओं के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार की वेदना को जो स्वर दिया है, वह विचारने को मजबूर करता है।
'कन्या पूजन' एक स्तब्ध कर देने वाला कथानक है। नवरात्र में कन्या पूजन के बहाने से किसी बालिका के साथ बलात्कार करना अमानवीयता की पराकाष्ठा है और इसी तरह के समाज-कंटक संस्कृति की उत्तमता को अपने घिनौने नकाब से ढक देने में कामयाब हो ही रहे हैं।
अछूती व नई कल्पनाशीलता से पगी रचनाएँ ही अधिकार पूर्वक अपना स्थान बना सकती हैं। 'धंधा' भी इसी तरह की एक लघुकथा है, इसकी भाषा शैली बहुत अच्छी है, इसमें एक मुहावरे का भी निर्माण हो रहा है- 'पचहत्तर आइटमों में छिहत्तर मसाले'। रचना समाज में फैली दिखावे की संस्कृति में छिपे धन की बचत के भाव को दर्शा पाने में पूर्ण सफल है।
'महँगाई में फँसी साइकिल' में चिंतन और मनन के माध्यम से जो ताना-बाना बुना गया, वह काबिले तारीफ है। उसे बिना लाग-लपेट के सरलता से व्यक्त करना उत्कृष्ट रचनाकार की गूढ़ चिन्तनशीलता को दर्शाता है।
लघुकथा संसार ने तो बहुत प्रगति की है, लेकिन लघुकथा संस्कार ने नहीं। इन दिनों कई सामयिक लघुकथाओं में लेखकीय पूर्वाग्रहों के कारण नकारात्मकता का पोषण दृष्टिगत हो रहा है। इस कथन के विपरीत, 'बादाम पक चुका' भारतीय संस्कृति के उस सत्य का समर्थन करती रचना है, जिसमें पति व पत्नी के मध्य विश्वास का रिश्ता होता है। 
'दावत का मज़ा' भूख और ग़रीबी से जूझते तबके की मजबूरियों और विडंबनाओं के सामने दावतों के रंग को बेरंग बना रही है। यह रचना लेखक की गहन-गंभीर चिंतनशीलता को प्रदर्शित करती है। 
'भरी-जेब' एक अलग ही धरातल पर आकार लेती है, जो धन की बजाय प्रेम और संवेदना की एक बारीक़ धुन में बंध कर स्वयं को धन्य समझने को बताती है। बड़ी ही सरलता से प्रेम और मनुष्य के संबंधों की बारीक़ियों को भी रेखांकित करती हैं।
'तेरा-मेरा मज़हब' चूड़ी और कंगन के प्रतीकों के जरिए साम्प्रदायिक सद्भाव का एक ऐसा चित्र खींचती है, जिसका शब्द-शब्द अपने आप में अनूठा है। यह रचना जर्मन संगीतकार बीथोवेन के गीत सरीखी एक नवाचार है।
'पूरा मर्द' में रचनाकार ने सरल और सहज शब्दों में बिना किसी शोशेबाज़ी और दिखावे के सशक्त व रोचक ढंग से अपने विषय को दर्शाया है। यही इसकी मुख्य विशेषता है। यह उम्दा व भावप्रधान रचना है। 
रचनाओं को पढ़कर यह समझ आता है कि, ये लघुकथाएँ महज लेखकीय सुख के लिए नहीं लिखी गई हैं, बल्कि इन्हें रचने का उद्देश्य घनीभूत संवेदना का प्रगटीकरण है। लेखक ने हमारे आसपास की ही दुनिया के कई बिखरे हुए बिंदुओं को जोड़कर एक मुकम्मल तस्वीर उभारने का सफल प्रयास किया है। इस संग्रह में मनुष्य की कमज़ोरियाँ हैं और उसे समझने का प्रयास करता लेखक भी है। यहाँ सपने हैं, तो उनसे पैदा हुई हताशाएँ भी हैं। कटु आलोचनाएँ हैं, तो प्रेम की सुगंध भी है। प्रशस्तियाँ हैं, तो गर्जनाएँ भी हैं। कुछ लघुकथाएँ पाठकों से कठोर प्रश्न करती मनुष्य के मनुष्य के प्रति दुर्व्यवहार को भी बारीक़ी से उकेरती हैं। 
लेखक ने कुछ रचनाओं में प्रतीकों को प्रवीणता-कुशलता के साथ स्पष्ट किया है लेकिन इस बात का ध्यान रखते हुए कि यथार्थपरक तथ्य कहीं ओझल न हो जाए, अपितु उनके महत्व को भी पाठकगण हृदयंगम कर सकें। संग्रह की एक अच्छी बात यह भी है कि लेखक अच्छे-बुरे का ज़्यादा आग्रह नहीं करते, वह सिर्फ़ अपनी बात कहभर देतेहैं, बाक़ी पाठक अपने तरीक़े से विचारते रहें। सहजता से समाज का यथार्थ सामने रख देना और बिना उपदेश के विमर्श इस संग्रह की ख़ूबी है। 
   इस संग्रह के मूल्यांकन का अधिकार तो पाठकों को है ही। मेरे अनुसार, समग्रतः इस संग्रह की रचनाएँ पाठकों को विचार करने के लिए धरातल देती हैं। प्रभावशाली मानवीय संवेदनाओं, उन्नत चिन्तन, सारभूत विषयों को आत्मसात करती जीवंत लघुकथाओं से परिपूर्ण यह संग्रह रोचक-रोमांचक कथ्य के कारण पठनीय और सुरुचिपूर्ण साहित्यिक कृति है। 
लेखक श्री सौरभ को अशेष मंगलकामनाएँ।

3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर – 313 002, राजस्थान
मोबाइल: 9928544749
chandresh.chhatlani@gmail.com

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