साहित्य

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Monday, August 22, 2022

इंद्र कुमार मेघवाल की हत्या : जातीय दुराग्रह की पराकाष्ठा: दाह संस्कार में यूपी के हाथरस मॉडल की पुनरावृत्ति:प्रो.नन्द लाल वर्मा

ज्वलंत मुद्दा, जातियदंस
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी


           राजस्थान के सुराणा गाँव के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल की तीसरी कक्षा का नौ वर्षीय दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल भारत के अमिट घिनौने जातिवाद की भेंट चढ़ गया। एक सवर्ण शिक्षक छैल सिंह की पिटाई से घायल मासूम की इलाज के दौरान मौत हो गई। अंतिम संस्कार से पूर्व मानवीय और कानूनी इंसाफ माँग रहे लोगों को राज्य की दमनकारी शक्तियों का कोपभाजन बनना पड़ा। सवर्णों के लिए शायद इंद्र कुमार का खून कम पड़ गया हो,इसलिए और भी दलितों का खून बहाया गया। यहाँ तक कि शोकाकुल परिवार को भी पुलिस की लाठियों का शिकार होना पड़ा। इससे यह पता चलता है कि हमारा सिस्टम कितना असंवेदनशील और क्रूर है। आरोपी शिक्षक के गिरफ़्तार होते ही उसकी जाति के लोग यह कहते हुए संगठित और सक्रिय हुए कि "पानी की मटकी छूने और मारपीट करने की बात झूठ है।"आरोपी का बचाव करते हुए बेहद सुनियोजित और व्यवस्थित काउंटर जातिगत नेरेटिव सेट किया गया और पूरा जातिवादी ईकोसिस्टम सक्रिय होते देर नही लगी। कैसे एक विशुद्ध मानवाधिकार उल्लंघन का मामला जातिगत राजनीति का हिस्सा और शिकार हो जाता है?
             जातिवादी संगठन सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि उस विद्यालय में कोई मटकी थी ही नहीं,सब लोग पानी टंकी से पीते थे। पानी की बात,मटकी की बात, छुआछूत की बात और यहाँ तक कि मारपीट की बात भी सच नहीं है। छात्र पहले से ही बीमार था,बच्चे आपस में झगड़े होंगे,जिससे चोट लग गई होगी। सुनियोजित तरीके से उसी स्कूल के एक अध्यापक गटाराम मेघवाल और कुछ विद्यार्थियों को मीडिया के समक्ष पेश किया गया कि पानी की मटकी की बात सही नहीं है। इस स्कूल में कोई भेदभाव नहीं है और न ही बच्चे के साथ मारपीट की गई। जालोर भाजपा विधायक योगेश्वर गर्ग ने भी इन्हीं सुरों में अपना सुर मिलाया और खुलेआम आरोपी शिक्षक को बचाने की कोशिश करते हुए एक वीडियो भी जारी किया। स्थानीय पुलिस ने भी जांच पूरी किये बिना ही मीडिया में बयान दे डाला कि इस घटना में मटकी का एंगल कहीं नहीं दिखाई दे रहा है।
           इस प्रकरण में राज्य का सिस्टम जातिवादी शक्तियों के सामने घुटने टेकते नज़र आया और मुआवज़ा देने तक में जातीय भेदभाव साफ़-साफ़ नज़र आया। इस सूबे में अजब सी रिवाज़ क़ायम होती दिखी कि किसी ग़ैरदलित की हत्या हो तो उसे 50 लाख का मुआवज़ा और परिजन को नौकरी,लेकिन दलित की हत्या पर सिर्फ मुआवज़ा वह भी 5 लाख। अर्थात शासन की नज़र में गैरदलित की जान की कीमत,दलित की जान की कीमत के दस गुने के बराबर और नौकरी अलग। किसी भी लोकतांत्रिक राज्य को इतना संवेदनहीन और जातिभेदी नहीं होना चाहिये। संविधान के अनुसार उसकी नज़र में हर नागरिक बराबर होना चाहिये। इस भेदभाव के ख़िलाफ़ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी भयंकर आक्रोश व्याप्त है। इस घटना से मानवीय संवेदनाएं इस कदर आहत होती नज़र आई कि सत्तारूढ़ दल के एक विधायक पाना चंद मेघवाल ने अपनी विधायकी अपने पास रखना अनैतिक समझा और इस्तीफा दे डाला जिससे उत्प्रेरित होकर अन्य विधायक भी इस्तीफ़े देने के मूड में दिखाई पड़ रहे हैं।
         
 अगर शासन ने इस घटना से उपजी सामाजिक-मानवीय संवेदनाओं को अच्छी तरह नहीं समझा तो यह सत्ता प्रतिष्ठान के लिए ठीक नही होगा। जो लोग,समूह और जातियाँ इस निर्मम हत्याकांड को बेहद चतुराई से शब्दों की बाज़ीगरी कर विचलित या विषयांतर करने का दुष्कर्म और तरह तरह के उपक्रम कर रहे हैं,वे भी देर सवेर इसका ख़ामियाज़ा भुगतने के लिए तैयार रहें,क्योंकि दलितों की वर्तमान पीढ़ी अब किसी भी तरह के सामाजिक दमन या अत्याचार बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है,हर मोर्चे पर वह जवाब देने के लिए सक्षम है। कथित जातिगत श्रेष्ठता वाले किसी मुग़ालते में न रहें। शिक्षा के मंदिर में दलित छात्र के साथ जातिजन्य अत्याचार के ख़िलाफ़ देशव्यापी आक्रोश फूटना स्वाभाविक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक शिक्षक द्वारा की गई ऐसी क्रूरता और निर्दयता कैसे बर्दाश्त की जा सकती है? भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत सरकार ने मुक़दमा दर्ज कर आरोपी शिक्षक को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है।
        मृतक के पिता देवा राम द्वारा वायरल वीडियो और चाचा द्वारा पुलिस को दी गयी तहरीर के आधार पर एफआईआर दर्ज हुई। उसमें बताया कि प्यास लगने पर नौ वर्षीय इंद्र मेघवाल ने शिक्षक छैल सिंह के लिए पानी पीने हेतु रखे गए मटके से पानी पी लिया। इससे आग बबूला शिक्षक ने मासूम बच्चे के साथ मारपीट की,जिससे उसके दाहिने कान और आँख पर गम्भीर चोट आई और उसकी नस फट गई। इलाज हेतु परिजन कई अस्पतालों में भटकते रहे और अंत में एक अस्पताल में उपचार के दौरान इंद्र कुमार की मौत हो गई। इस बीच छात्र के पिता और आरोपी शिक्षक के मध्य फ़ोन पर बात हुई,जिसमें छात्र का पिता शिक्षक से यह कह रहा है कि "आपको इतनी ज़ोर से नहीं मारना चाहिये था,बच्चों को इस तरह मारने का आपको कोई अधिकार नहीं है।" शिक्षक अपना क़सूर मानते हुए इलाज में मदद करने की बात कहता सुनाई पड़ रहा है। इसके बाद गाँव स्तर पर डेढ़ लाख रुपए में समझौता करने या होने का दावा भी किया जा रहा है।
          इस वक्त वहाँ की बहुसंख्यक वर्चस्वशाली जाति के लोग, उनके जातिवादी संगठन, मीडिया, विधायक,स्कूल के विद्यार्थी और कुछ शिक्षक यह साबित करने में लगे है कि मृत छात्र के पानी का मटका छूने जैसी कोई बात ही नही हुई और न ही मारपीट। अब सवाल यह है कि अगर पानी की मटकी नहीं थी तो शिक्षक पानी कहाँ से पीते थे? इसका जवाब यह है कि विद्यार्थी हो अथवा शिक्षक, यहाँ तक कि गाँव वाले भी स्कूल में स्थित टंकी से पानी पीते थे। स्कूल में स्थित पानी की जिस टंकी का फ़ोटो टीवी चैनल्स दिखा रहे हैं,उसे देखकर तो उपरोक्त दावे में दम नहीं नज़र आता।
            अगर पानी की मटकी छूने का मामला नहीं था तो फिर वो क्या मामला था, जिसकी वजह से मासूम को शिक्षक ने इतना पीटा कि उसकी जान ही चली गई? पुलिस को यह भी पता करना चाहिये कि इस निर्दयतापूर्ण पिटाई के पीछे का कारण क्या था? यह भी दावा किया जा रहा है कि शिक्षक ने पीटा ही नहीं, फिर वह क्यों फ़ोन पर गलती स्वीकार रहा है और उसे डेढ़ लाख में समझौता करने की क्या मजबूरी थी? बिना गलती कोई इतनी मोटी रकम भी क्यों देना चाहेगा? अकारण तो कोई किसी का मुँह बंद करवाने का दबाव डालकर समझौता नहीं करता और न ही पैसा देता है! इतने बड़े कांड को तेईस दिन तक छिपाकर रखा गया। ऐसा लगता है कि अगर छात्र की मृत्यु नहीं हुई होती तो पूरा मामला मैनेज ही किया जा चुका था। क्या छात्र के साथ हुआ भेदभाव व अत्याचार भविष्य में सामने आ पाता? क्या बच्चों की कोई गरिमा नहीं है, क्या उनके कोई मानवीय अधिकार नहीं हैं, क्या शिक्षकों को इस प्रकार की क्रूर सजा देने का अधिकार हैं?
            बहुत सारे सवाल हैं जो अनुत्तरित है,जिनके जवाब जांचों की रिपोर्ट्स आने के बाद ही मिलेंगे,लेकिन इससे पहले ही घोर जातिवादी तत्व और संगठन यह साबित करने को आतुर है कि न मटकी का मामला है और न ही मारपीट का। यहाँ तक कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए ऐसे ठोस दावे किये जा रहे हैं,जैसे कि डॉक्टर ने इन्हीं के कहने पर रिपोर्ट बनाई हो और बनाते ही उसकी एक कॉपी अपर कास्ट एलिमेंट्स को पकड़ा दी गयी हो। सोशल मीडिया पर सवर्ण जातिवादी तत्वों और उनके संगठनों की तरफ़ से दलित चिन्तकों और निष्पक्ष मीडिया के लोगों को निरंतर धमकियां दी जा रही है कि निष्पक्ष लिखो,पानी की बात मत कहो और मटकी का ज़िक्र मत करो। सुराणा में जातीय भेदभाव जैसी कोई बात नहीं है, हमारा भाईचारे का ताना बाना मत बिगाड़ो। एक न एक दिन तुमको सौहार्द ख़त्म करने वाली पोस्टें डिलीट करनी होगी, तब क्या तुम सार्वजनिक रूप से गलती मानोगे और माफ़ी माँगोगे? 
         आज़ादी के 75 साल बाद भी देश में भयंकर जातिवाद है और जालोर में तो विशेष तौर पर बेहद घिनौना छुआछूत,भेदभाव तथा अन्याय-अत्याचार दिखाई देता है। वहाँ पानी की मटकी और शिक्षा में भेदभाव के मामले संभव है। मिड डे मिल,आँगन बाड़ी के पुष्टाहार व नरेगा में पानी पिलाने में नियुक्त लोगों का सामाजिक जातीय अंकेक्षण किया जाए और जिले के तमाम सरकारी व ग़ैर सरकारी विद्यालयों का एक जातिगत भेदभाव का सर्वे किया जाये तो सच्चाई सामने आ जायेगी कि वहां कौन सा सौहार्द और भाईचारा व दलित छात्रों के क्या हालात है?
       अंत में ऐसे क्रूर जातिवादी लोगों से सिर्फ़ एक छोटा सा सवाल है कि "अगर मृतक छात्र इंद्र के साथ न तो पानी पीने की मटकी में भेदभाव हुआ और न ही शिक्षक ने उसे मारा तो क्या उस मासूम ने खुद को मार डाला? अरे जातिवादियों ! कुछ तो मानवता रखो,थोड़ी तो इंसानियत बचा कर रखो और ज़रा तो पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना बरतो! क्या तुम्हारे अंदर इंसान होने की इतनी न्यूनतम अर्हता भी नहीं बची है! " जाति है कि जाती नहीं " की अंतहीन पीड़ा और बेवशी के साथ इंद्र कुमार को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि और शोकसंतप्त परिजनों को सांत्वना अर्पित करने के सिवा मैं.............!

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