साहित्य

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Tuesday, January 04, 2022

ओबीसी-एससी-एसटी वर्ग को समिति की सिफारिश के निहितार्थ को बेहद सावधानी और गहनतापूर्वक अध्ययन करना और सरकार की मंशा समझना बहुत जरूरी है-नन्द लाल वर्मा (असोसिएट प्रोफेसर)

एक विमर्श जिस पर आप भी विचार कीजिये ........
"इस तरह, गरीब सवर्णों के लिए 8 लाख की पारिवारिक सालाना आय का निर्धारण टैक्स फ्री इनकम  की सीमा को दृष्टिगत किया गया है। हालांकि, इसमें परिवार के सदस्यों और कृषि आय को जोड़ते ही सारा माजरा बदल जाता है।" मकान की शर्त खत्म, 5 एकड़ जमीन की शर्त बरकरार:"
एन.एल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)
ईडब्ल्यूएस और ओबीसी आरक्षण की आय सीमा : गरीब अगड़ों (ईडब्ल्यूएस) और सामाजिक - शैक्षणिक रूप से पिछड़ा- ओबीसी, दोनों के लिए 8 लाख की सीमा, लेकिन उसकी गणना का तरीका बिल्कुल अलग। आइए,इसे विस्तार से समझते हैं:
      केंद्र की बीजेपी सरकार ने 2019 में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सवर्ण गरीबों (ईडब्ल्यूएस) के लिए भी 10% आरक्षण की व्यवस्था की थी। 8 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी वाले सवर्ण परिवार को गरीब और आरक्षण योग्य माना गया है। ओबीसी में भी क्रीमी लेयर तय करने के लिए 8 लाख रुपये तक की आमदनी का दायरा है। अब केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति ने बताया है कि दोनों के लिए 8 लाख रुपये की गणना में निम्नलिखित अंतर है:
      केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को भी आरक्षण देने का फैसला किया तो गरबी का आधार 8 लाख रुपये की सालाना आय को तय किया गया। इस नियम के तहत जिस सवर्ण "परिवार" की सालाना आमदनी 8 लाख रुपये तक है, उसके अभ्यर्थियों को ही शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण की सुविधा मिलती है। उधर, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर का निर्धारण भी 8 लाख रुपये की सालाना आय के आधार पर ही होता है। यानी, अगर ओबीसी कैंडिडेट के "माता-पिता" की विगत तीन वर्षों औसत वार्षिक आय 8 लाख रुपये से अधिक है तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
बाहर से दोनों में समानता, लेकिन वास्तविकता बिल्कुल अलग:
      इस तरह, ईडब्ल्यूएस और ओबीसी, दोनों में क्रीमी लेयर तय करने का ''समान आर्थिक मापदंड'' रखे जाने पर आपत्तियां जताई जाने लगीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछ दिया कि इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? इसका हल ढूंढने के लिए केंद्र सरकार ने एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया कि 8 लाख रुपये का मानदंड बाहर से तो दोनों वर्गों-ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए बराबर दिखता है, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है। उसने बताया  है कि दोनों के लिए भले ही मानदंड 8 लाख रुपये हो, लेकिन इसकी गणना में जमीन-आसमान का अंतर है।
आइए,पहले जानते हैं कि वह अंतर क्या-क्या हैं...
(1) ईडब्ल्यूएस के लिए 8 लाख रुपये के कट ऑफ के मानदंड ओबीसी क्रीमी लेयर की तुलना में बहुत अधिक कठोर हैं।
(2) ईडब्ल्यूएस की आय की सीमा तय करते वक्त परिवार के दायरे में उसकी "तीन पुश्तें" आती हैं जबकि ओबीसी के मामले में सिर्फ "माता-पिता" की आय को ही देखा जाता है।
(3) ओबीसी की आमदनी का आकलन करते वक्त वेतन, खेती या कृषि और पारंपरिक कारीगरी के व्यवसायों से होने वाली आय नहीं जोड़ी जाती है जबकि ईडब्ल्यूएस के लिए     कृषि या खेती सहित "सभी स्रोतों" से होने वाली आयों को शामिल किया जाता है।
(4) ओबीसी अभ्यर्थी के सिर्फ माता-पिता की विगत तीन वर्षों की औसत वार्षिक आय 8 लाख रुपये से ज्यादा की हो रही हो तब वह क्रीमी लेयर कहलाता है जबकि ईडब्ल्यूएस के तीन पुश्तों की पिछले वर्ष की कुल आय मिलाकर 8 लाख रुपये से ज्यादा हो जाए तो उसे आरक्षण नहीं मिलेगा।
आइए, अब इन सभी बिंदुओं को विस्तार से समझते हैं...
पहला बिंदु : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के निर्धारण के लिए 8 लाख रुपये आय का मापदंड ओबीसी क्रीमी लेयर की तुलना में कहीं अधिक सख्त है।
दूसरा बिंदु : गरीब सवर्णों के लिए पारिवारिक आय के तहत खुद उम्मीदवार, उसके माता-पिता, 18 वर्ष से कम उम्र के उसके भाई-बहन, उसका जीवनसाथी और 18 वर्ष से कम उम्र के उसके बच्चों की आय, सभी शामिल हैं। मतलब, आर्थिक पिछड़ों (ईडब्ल्यूएस) की पारिवारिक आय में तीन पुश्तों की समस्त स्रोतों की आमदनी शामिल है। इसमें खेती-किसानी से होने वाली आयकर मुक्त आमदनी भी जोड़ी जाती है। इनकम टैक्स स्लैब्स के नजरिए से आर्थिक पिछड़े वर्ग की आय की गणना करते वक्त इनका ध्यान रखना ही होगा। वहीं, ओबीसी के पारिवारिक आय की गणना में सिर्फ कैंडिडेट के माता-पिता की आमदनी शामिल होती है। उसमें भी माता-पिता की सैलरी, खेती और परंपरागत व्यवसाय से हुई आमदनी को नहीं जोड़ा जाता है। खुद कैंडिडेट, उसके भाई-बहन, जीवन साथी और बच्चों की आमदनी को तो जोड़ने की चर्चा तक नहीं है।
तीसरा बिंदु : सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सबसे पहले ईडब्ल्यूएस की शर्त आवेदन के वर्ष से पहले के वित्तीय वर्ष से संबंधित है जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर के लिए आय मानकों की शर्तें विगत तीन वर्षों के लिए औसत सकल वार्षिक आय (Average Gross Annual Income) पर लागू होती है।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल क्या है..........
     दरअसल, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 7 अक्टूबर, 2021 को कहा था कि "आर्थिक पिछड़ापन एक सच्चाई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि लोगों के पास किताबें खरीदने और यहां तक कि खाने के पैसे भी नहीं हैं। लेकिन, जहां तक बात आर्थिक पिछड़ों का है तो वह अगड़ा वर्ग हैं और उनमें सामाजिक या शैक्षणिक पिछड़ापन नहीं है। तो क्या आप क्रीमी लेयर तय करने के लिए 8 लाख रुपये की सालाना आय का पैमाना आर्थिक पिछड़ों के लिए भी रख सकते हैं? याद रखिए कि जहां तक बात आर्थिक पिछड़ों की है तो हम सामाजिक या शैक्षणिक पिछड़ों की बात नहीं कर रहे हैं। सीमा तय करने का आधार क्या है या आपने आर्थिक पिछड़ों (ईडब्ल्यूएस) के लिए भी बस क्रीमी लेयर का पैमाना उठाकर रख दिया।"
केंद्र सरकार ने मानी समिति की सिफारिश:
     सुप्रीम कोर्ट की उपर्युक्त टिप्पणी पर सरकार ने 30 नवंबर, 2021 को पूर्व वित्त सचिव अजय भूषण पाण्डेय, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के प्रोफेसर वीके मल्होत्रा और केंद्र सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल की एक समिति बना दी थी। इस समिति को गरीब सवर्णों की आय सीमा निर्धारित करने के लिए 2019 में बनाए गए नियमों की समीक्षा और "मेरे हिसाब से उसमें ढिलाई वरतने का दायित्व सौंपा गया था।" इस समिति ने 31 दिसंबर ,2021 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी  है जिसे स्वीकार भी कर लिया गया है।
इस समिति ने समझाया कि आय की गणना में कितना अंतर है:
     समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सुनने में भले ही ओबीसी और आर्थिक पिछड़े, दोनों के लिए 8 लाख रुपये की सीमा में समानता जान पड़ती हो, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है। ओबीसी का क्रीमी लेयर सिर्फ उम्मीदवार की आय के आधार पर तय होता है जबकि आर्थिक पिछड़ों की आय सीमा में उम्मीदवार के साथ-साथ उसकी पारिवारिक और कृषि आय भी भी शामिल हैं। समिति ने कहा कि सिर्फ उन्हीं परिवारों के उम्मीदवारों को आर्थिक पिछड़ा श्रेणी के आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख रुपये तक है। उसने कहा कि 17 जनवरी, 2019 को जारी ऑफिस मेमोरेंडम में दर्ज आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण परिवार की परिभाषा को ही आगे भी लागू रखा जाए।
     समिति ने इसे और भी स्पष्ट करते हुए कहा कि " मौजूदा आयकर नियमों के तहत पांच लाख रुपये तक की करयोग्य आय पर कोई टैक्स नहीं लगता है। फिर कटौतियों,बचत, बीमा आदि सभी का लाभ उठा लिया जाए तो 7-8 लाख रुपये तक की सालाना आय टैक्स फ्री हो जाती है। इस तरह, गरीब सवर्णों के लिए 8 लाख की पारिवारिक सालाना आय का निर्धारण टैक्स फ्री इनकम  की सीमा को दृष्टिगत किया गया है। हालांकि, इसमें परिवार के सदस्यों और कृषि आय को जोड़ते ही सारा माजरा बदल जाता है।"
मकान की शर्त खत्म, 5 एकड़ जमीन की शर्त बरकरार:
      वर्ष 2019 में बने नियमों के तहत मकान को आय सीमा से बाहर रखने की सिफारिश की गई है। समिति ने कहा है कि आय सीमा की गणना को सरल बनाए रखने के लिए आवासीय संपत्ति क्षेत्र यानी मकान के पैमाने को बाहर ही रखा जाए, क्योंकि इससे किसी की असल आर्थिक स्थिति का जायजा नहीं मिलता है। ऊपर से गरीब सवर्ण परिवारों पर इसका गंभीर दुष्परिणाम और बेवजह बोझ देखने को मिलेगा। हालांकि, परिवार के पास 5 एकड़ कृषि योग्य भूमि होने पर आर्थिक पिछड़ा नहीं माने जाने का पैमाना बरकरार रखे जाने की सिफारिश की गई है।
      रिपोर्ट में कहा गया है कि " विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों- ग्रामीण, शहरी, मेट्रो या राज्यों के लिए अलग-अलग आय सीमाएं होने से जटिलताएं पैदा होंगी, विशेष रूप से यह देखते हुए कि लोग नौकरियों, पढ़ाई, बिजनस आदि के लिए देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में तेजी से बढ़ रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के लिए आय की भिन्न-भिन्न सीमाएं सरकारी अधिकारियों और आवेदकों दोनों के लिए एक दु:स्वप्न के समान होगा।" मकान वाली पूर्व में लगाई गई शर्त को खत्म करने के पीछे सरकार और सवर्ण अधिकारियों की मानसिकता के निहितार्थ को ओबीसी- एससी-एसटी वर्ग के शिक्षित-चिंतकों-राजनीतिज्ञों को समझना- चिंतन-विश्लेषण करना बहुत जरूरी है )

      सुप्रीम कोर्ट ने भी आर्थिक पिछड़े उम्मीदवारों (ईडब्ल्यूएस) की आय सीमा में आवासीय संपत्तियों को जोड़ने पर घोर आपत्ति जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि शहरी और ग्रामीण इलाकों के आधार पर आवासीय संपत्ति की कीमत में भारी अंतर हो जाता है। ऐसे में यदि इस संपत्ति को भी आय के दायरे में ला दिया गया तो गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ उठाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ेंगे।

पता-लखीमपुर-खीरी (यूपी )

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