साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Wednesday, April 17, 2024

सदियों से लाईलाज बीमारी का डॉक्टर-मुकेश वाळके

  कविता   
मुकेश वाळके
बंगाली कैम्प, मूल रोड, 
शांतिनगर, चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
442401


डॉक्टर
मै फिर से खोज रहा हु 
तुम्हारा राष्ट्र मन जांचनेवाला टेटस्कोप
तुमने जो इजात किया था
जाति उन्मूलन का टीका-
और उसे लगाने के लिए इस्तेमाल की थी जो सिरिंज.

डॉक्टर
आज फिर से गर्व के साथ संक्रमित हुआ है-
जाति धर्म के द्वेष का चौमुखी वायरस 
कुरेद रहा सौहार्द्र रहित 
संवेदनशील मस्तिष्क का 
मानवतावादी ढांचा 
तुम्हारे मरीज का भटक रहा ध्यान और दिशाहीन,
हो रही तुमने जो सीधी कर दी वो गर्दन 
संविधान की फार्मसी देकर 
जहां तुमने उंगली दिखा कर लिखा था आर एक्स 
उस निरामय संसद की ओर 
दूसरो के कंधो पर जा रहें तुम्हारे 
स्वार्थ भावना से लापरवाह हुए मरीज, 
कोई पागलखाने भर्ती हो रहा हो जैसे!
पढ़ो, संघर्ष करो और संगठित रहो!
यह सब तुम्हारी जालीम टैबलेट्स खोज रहा हूँ, 
मै फिर से-
आजादी, समानता, न्याय और भाईचारे के 
सद्धम्म की स्थाई आराम देनेवाली सलाईन कहा खो गई है डॉक्टर?
चिंता करते करते ही तुमने बुनियाद रख छोड़ी,
दीक्षाभूमि के ग्लोबल मेडिकल कॉलेज की.
तुम्हारा मरीज ज्यादा समय दर्द और मर्ज से तड़पता ना रहें 
इसलिए ...  
लेकिन अब फिर अस्पताल के सामने दिखने लगी है कतार 
मरीजों की किसी महामारी की तरह. 
अब तुम ही बताओ डॉक्टर!
वो तुमने खोजा हुआ टीका कहा है?
तुम्हारा वो टेटस्कोप कहा है?
वो टैबलेट्स, और सलाइन कहा है?

डॉ.आंबेडकर के संगठन और संघर्ष जैसे मन्त्रों की राजनीतिक प्रासंगिकता:प्रो.नन्द लाल वर्मा(सेवानिवृत्त)

नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी 
✍️एक जमाना था,जब न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी भारत की स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थाओं के सरकार और शक्तिशाली नेताओं के दबाव में न आने के लिए विश्व भर में भारत की प्रशंसा हुआ करती थी,लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं दिखाई दे रहा है। संवैधानिक संस्थानों को सत्त्तारुढ़ दल की सोच के अनुरूप ढालने के लिए लगातार दबाव जारी हैं। आज एक्टिविस्ट और विपक्षी नेताओं को महीनों तक बिना ज़मानत के न्यायिक हिरासत में,जेल या घरों में नज़रबंद कर रखा जा रहा है और लोकतंत्र की रक्षक न्यायपालिका की आज़ादी शंका की नज़र से देखी जाने लगी है। संवैधानिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण तंत्र आज के दौर में ग़ायब से होते दिख रहे हैं। विदेश ही नहीं देश के अंदर भी मोदी सरकार पर संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को किनारे लगाने का आरोप लग रहा है। आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन डॉ.बिबेक देबराय ने अखबार मिंट में एक लेख के माध्यम से 2047 के लिए एक नए संविधान की जोरदार तरीके से वकालत कर चुके हैं और बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े भी कई बार बयान दे चुके हैं कि संविधान बदलने के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी है। बीजेपी के नेताओं द्वारा दिया गया नारा "अबकी बार 400 पार" इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। संघ,बीजेपी और मोदी का अंतिम लक्ष्य संविधान को नष्ट कर उसके स्थान पर मनुस्मृति की व्यवस्था लागू करना है। उन्हें न्याय,समता,धर्मनिरपेक्षता,नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र से सख्त नफ़रत है।
✍️आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की है। इसलिए हमारा संविधान हमारे लोकतंत्र का रक्षक है,लेकिन आज जैसे हालात पैदा हो गए हैं और निरंतर जारी हैं,ऐसे में आंबेडकर जी की विचारधारा और अधिक प्रासंगिक हो जाती है। आज चारों तरफ सांविधानिक अभिव्यक्ति की आजादी पर आक्रामक हमले हो रहे हैं। असहमति और विपक्ष लोकतंत्र की खूबसूरती माना जाता है, लेकिन आज विपक्ष,असहमति व्यक्त करने और सवाल करने वाले लोग एक तरह की अघोषित इमरजेंसी जैसे दौर में गुजरने को मजबूर हो रहे हैं। आज प्रजातांत्रिक व्यवस्था में "अहम ब्रह्मश्मि" जैसा दम्भ भरता हुआ एक तानाशाह दिखाई दे रहा है। संवैधानिक व्यवस्था और मूल्यों का खुला हनन हो रहा है। वर्तमान सत्तारूढ़ दल की पैतृक संस्था द्वारा संविधान बदलकर सांविधानिक धर्मनिरपेक्ष देश को “हिन्दू राष्ट्र” बनाने की बात कही जा रही है। लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करने वालों को देश द्रोही करार देकर उन्हें जेल भेजा जा रहा है या उन्हें उनके घरों में नज़रबंद किया जा रहा है। चुनावी राजनीति के लिए साम्प्रदायिकता को हवा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। मॉबलिंचिंग जैसी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। जातिगत-धार्मिक भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे संक्रमण काल में डॉ.आंबेडकर की मानवतावादी विचारधारा और संवैधानिक व्यवस्था का महत्व और बढ़ जाता है। अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि संविधान और लोकतंत्र के बग़ैर भारत का कोई भविष्य नहीं है। 
संविधान सभा में दिए आख़िरी संबोधन में डॉ.आंबेडकर ने कहा था कि केवल राजनीतिक लोकतंत्र से काम नहीं चलेगा। राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र में बदलना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक लोकतंत्र भारत की धरती पर सिर्फ़ आवरण मात्र होगा। हमारा भारत राजनीतिक लोकतंत्र से सामाजिक लोकतंत्र में कितना बदला है?सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है, स्वतंत्रता, समता और बन्धुतायुक्त सामाजिक जीवन पद्धति। लगता है कि हम संवैधानिक और कानूनी माध्यमों से इस दिशा में आगे जरूर बढ़े हैं,लेकिन अभी भी हमें एक लंबा रास्ता तय करना है।
✍️ अमेरिका की एक संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि पीएम मोदी की सरकार के अंतर्गत ''भारतीय लोकतंत्र अब पूर्ण रूप से आज़ाद के बजाए केवल आंशिक रूप से आज़ाद रह गया है और यह अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहा है।" वहीं की एक मानवधिकार संस्था ने अपनी सालाना रिपोर्ट में लिखा है कि "सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों ने हाशिए के समुदायों, सरकार की आलोचना करने वालों और धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों पर अधिकाधिक दबाव डाला है।" "संघ की स्वतंत्रता" भारतीय नागरिकों के हाथों से फिसलने के साथ उनके राजनीतिक अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता भी कम हो रही है।" हम कह सकते हैं कि आंबेडकर के सपनों का लोकतंत्र बीजेपी के कार्यकाल में गायब होता दिख रहा है। चुनावी तंत्र के भ्रष्ट होने से सम्पूर्ण लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। लोकतंत्र में आने वाली हर गिरावट किसी भी देश की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साख में गिरावट लाने का संकेत देखे जा रहे हैं। 
✍️उदार लोकतंत्र के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं उसमें पहला तो यह है कि क्या सभी नागरिकों को चेतना और धर्म की स्वतंत्रता हासिल है? दूसरा, कोई धार्मिक समूह चुनावी प्रक्रिया पर अनुचित प्रभाव तो नहीं डालते? अगर देश का वर्तमान संविधान,उनकी व्यवस्थाओं और संस्थाओं को नहीं बचाया गया तो पिछड़ों और वंचितों की सामाजिक न्याय के विस्तार की बात तो दूर की कौड़ी बल्कि उस व्यवस्था को जड़ से खत्म किये जाने की साजिश के स्पष्ट संकेत दिखने लगे हैं। प्रेस की आज़ादी जो थोड़ी बहुत बची हुई है, वह पूरी तरह खत्म हो जाएगी। संविधान सभा में डॉ.आंबेडकर के कड़े संघर्ष के बाद मिला आम आदमी का वोट देने का अधिकार भी छिन सकता है, ऐसी स्थिति में तो लोकतंत्र भी ख़त्म होना निश्चित है। इसलिए सन्निकट लोकसभा चुनाव में " संविधान बचाओ-देश बचाओ " का देशव्यापी सामाजिक और राजनीतिक अभियान चलाकर और नारा लगाकर सामाजिक न्याय के दायरे में शामिल वर्गों को जाग्रत करने की जरूरत है।
✍️आंबेडकर जी की जयंती,परिनिर्वाण और संविधान दिवस पर भारत में लोकतंत्र और संविधान में आती गिरावटों पर होती बहसें इस बात का परिचायक हैं कि भारत में लोकतंत्र और आंबेडकर के संविधान के प्रति लोगों की अभी भी आस्था बनी हुई है अर्थात संविधान विरोधी शक्तियों के सतत प्रयास के बावजूद आंबेडकर का संविधान और लोकतंत्र अब भी ज़िंदा है। सबसे उल्लेखनीय पहलू यह है कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं में आ रही गिरावट की आलोचनाओं को भारत में वह समूह भी उठा रहा है जिन्हें महसूस होता है कि सत्ता संस्थाओं द्वारा उन्हें ख़ामोश किए जाने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है।

पढ़िये आज की रचना

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