कितने ही मूढ़ ,भले ही ज्ञानी हो
गुमनाम थपेड़ों में खुशियों की लहरों में
जन होते हैं जो पहरों में होते हैं परिवार...
युगों से होती आयीं प्राकृतिक विपदायें सब पर आनी हैं
इस काल मृत्यु लोक में नवाचार नहीं हुआ जन्मदाताओं में
धर्म की सूक्तियो को जीवन में प्रशस्त किया
करते हैं जो अभिनेता संचरित करते हैं प्रेरणा
जीवन की बौछारों में लिख देते हैं अधिकारों में
कई गुना बढ़कर शीर्ष नेतृत्व जीवन के
मन के संग्रहालयों में . ..
फूलों की खुश्बुदार ,नव लताओं में सजी
प्रेम की बसन्ती हवाऐं ,हिलोरें लेती हैं
पितृत्व की अनुभूतियों से,पूरित कच्चे धागों से बंधक
मर्यादित,अनुभवों के उपरांत परमानन्द
स्नेह के चुंबकीय भाव ममता के थपकियाँ
सिहरन भी महसूस कर लेती हैं परिवार में..
इकाई को दहाई की व्याख्या में पिरोती है
यदि हम बंधे हैं आज के युग मेंप्रेम के कच्चे धागो से
जब कुहासा(अंधेरा) प्रतीत होता हैं जब गली चैबारों
में चांदनी बिखरी लगती हैं
आंगन की उपमाओं में नहीं है नौ रत्नों में
पावन, नीर, पयोधि से पूरित प्रेम में...
निजता को परिभाषित जिस आभा से पूरित
उपमान हैं हम जिनके सौभाग्यशाली हैं मनुज
श्रष्टा को भी प्राप्त नहीं जो अमर तत्व पालनहार.
प्रेम फुलवारी से खिली रिश्तों की बगिया है परिवार
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश