साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 01, 2021

अब लक्षद्वीप में बवाल खड़ा करने का क्या मकसद ?

अब लक्षद्वीप में बवाल खड़ा करने का क्या मकसद ?


अजय बोकिल


अरब सागर का हीराकहे जाने वाले शांत लक्षद्वीप में भी अब सियासी तूफान उठने लगा है। वजह है ‍वहां के प्रशासक प्रफुल्ल भाई पटेल द्वारा नए नियमों को लागू करना। विरोधी इसे लक्षद्वीप की संस्कृति में अनावश्यक सरकारी दखल और आरएसएस एजेंडे को लागू करना मानते हैं तो प्रशासक पटेल के अनुसार यह सब द्वीप समूह के विकास  के लिए किया जा रहा है। केरल विधानसभा ने तो बाकायदा सर्वसम्मत  प्रस्ताव पारित कर प्रशासक पटेल के कदमों का विरोध करते हुए केन्द्र से उन्हें वापस बुलाने की मांग की है। उधर पश्चिम बंगाल में मुख्य सचिव के तबादले को लेकर मोदी- ममता पंगा चल ही रहा है। वहां राजनीतिक खुन्नसें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। जिस तरह देश में केन्द्र सरकार और गैर भाजपा शासित राज्यों के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव बढ़ रहा है, उससे लगता है कि इन सरकारों की दिलचस्पी कोविड संकट से जूझने से ज्यादा राजनीतिक बवाल के नए मोर्चे खोलने में है। इसका क्या अर्थ निकाला जाए, अपनी नाकामियों से ध्यान हटाना या फिर किसी भी कीमत पर अपना एजेंडा लागू करना? इसका अंजाम क्या होगा, यह सोचने की बात है।

देश के इतिहास में यह पहली बार है, जब एक राज्य की विधानसभा ने किसी केन्द्र शासित प्रदेश के प्रशासन में राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए, वहां प्रशासक की वापसी की मांग का प्रस्ताव पारित किया हो। यही नहीं सभी विरोधी पार्टियों ने राष्ट्रपति को एक संयुक्त याचिका भेजकर प्रशासक प्रफुल भाई पटेल को वापस बुलाने की मांग की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र कर लिख कर कहा कि प्रशासक द्वारा लाए गए लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण नियमन अधिनियमका मसौदा इस बात का सबूत है कि लक्षद्वीप की पारिस्थितिकीय शुचिता को कमतर करने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इस मामले को लेकर राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है। उधर लक्षद्वीप में मोदी सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासक प्रफुल पटेल के खिलाफ भाजपा के ही एक धड़े ने मोर्चा खोल दिया है, तो दूसरा उनके समर्थन में है।

यह भी पहली बार ही है कि बाकी देश सुदूर लक्षद्वीप और वहां की राजनीति के बारे में जान रहा है कि समुद्र से घिरे इस द्वीप समूह में क्या और क्यों हो रहा है? गौरतलब है कि लक्षद्वीप देश के दक्षिण-पश्चिम में मलाबार तट के पास स्थित 36 द्वीपों का समूह है। इनमें से एक लक्षद्वीप भी है। पूरे द्वीप समूह को लक्षद्वीप नाम 1973 में दिया गया। लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती द्वीप है। लक्षद्वीप देश की सबसे छोटी केन्द्र शासित प्रदेश इकाई भी है। मध्यम पूर्व की दृष्टि से द्वीपों का सामरिक महत्व है। यहां हमारी नौसेना का बड़ा अड्डा भी है। लक्षद्वीप के 96 फीसदी लोग मुसलमान हैं और वे मलयाली या धिवेही भाषा बोलते हैं। किसी जमाने में यहां बौद्ध धर्म प्रचलित था, लेकिन बाद में ज्यादातर ने सुन्नी इस्लाम अपना‍ लिया। यहां हिंदुअों की आबादी तीन फीसदी से भी कम है। इतिहास में लक्षद्वीप पर कुछ समय पुर्तगालियों का शासन भी रहा। फिर यह मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। बाद में इस पर ‍अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। देश की आजादी के बाद 1956 में लक्षद्वीप को केन्द्रशासित प्रदेश बना दिया गया। प्रशासनिक दृष्टि से पूरा लक्षद्वीप एक ही जिला है, जिसकी आबादी करीब 65 हजार है। नारियल और मछलीपालन यहां के मुख्यए उद्योग हैं। लक्षद्वीप सुंदर पर्यटन केन्द्र भी है। यहां केन्द्र सरकार प्रशासक की नियुक्ति करती है, जो अमूमन वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ही होते थे। लेकिन पहली बार मोदी सरकार ने लक्षद्वीप के प्रशासक की कमान ऐसे राजनेता प्रफुल भाई खोड़ा भाई पटेल को सौंपी, जो गुजरात में उनके मंत्रिमंडल में मंत्री रहे हैं। आरएसएस से उनका पुराना नाता है। दरअसल विवाद की जड़ प्रशासक द्वारा लाए गए दो एक्ट हैं। ये हैं लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण नियमन एक्ट तथा लक्षद्वीप असामाजिक गतिविधि निरोधक एक्ट। इन कानूनों को लेकर लक्षद्वीप वासियों में कई आशंकाएं हैं। उनमें पहला तो लक्षद्वीप विकास के नाम पर उनकी कथित रूप से उनकी जमीनें हड़पने और गोमांस प्रतिबंधित करने को लेकर है। कहा जा रहा है ‍कि जब भाजपा शासित राज्य गोवा में बीफ पर रोक नहीं है, तो लक्षद्वीप में गोमांस व गोहत्या विरोधी कानून क्यों लागू किया जा रहा है? दूसरे, प्रशासक पटेल ने लक्षद्वीप का समुद्री परिवहन सम्बन्ध केरल की जगह कर्नाटक से जोड़ने की पहल की है। इसका राजनीतिक एंगल यह है कि केरल में वाम मोर्चे की सरकार है, तो कर्नाटक में भाजपा की। तीसरा है, द्वीप के कई अंचलों  से शराब पर प्रतिबंध हटाना ताकि सभी को शराब सुलभ हो सके। बताया जाता है कि अभी इस दवीप समूह के केवल बंगरम द्वीप में ही शराब मिलती  है, लेकिन वहां कोई स्थानीय आबादी नहीं है। चौथा, इस द्वीप समूह में आपराधिक गतिविधियां रोकने के लिए गुंडा एक्ट लागू करना है। जबकि नए कानून के मुताबिक पुलिस किसी को भी बिना कारण बताए 1 साल के लिए बंद कर सकती है। पांचवां, प्रदेश में दो बच्चों से ज्यादा वालों को पंचायत चुनाव की उम्मीदवारी से बाहर करना है। छठा, क्षेत्र के स्कूलों के मिड डे मील और होस्टल मेस में मांसाहारी व्यंजनों पर प्रतिबंध लगाना। उधर लक्षद्वीप सांसद व एनसीपी नेता मोहम्मद फैजल ने प्रशासक के कदमों का विरोध करते हुए कहा है कि नए अधिनियम के तहत वह यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मुझे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? वो मेरा संवैधानिक अधिकार छीन रहे हैं।हालांकि  इस बारे में प्रशासक प्रफुल पटेल का कहना है कि जो ‍कुछ भी हो रहा है, सब नियमों के मुताबिक ही है। उनके मुताबिक विरोध के स्वर लक्षद्वीप से ज्यादा केरल से उठ रहे हैं। हमने पंचायतों में महिलाअों को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया है। उस पर कोई नहीं बोल रहा है। पटेल के अनुसार हमारा मकसद द्वीप को स्मार्ट सिटी बनाना है। गुंडा एक्ट लागू करने के पीछे पटेल का कहना है कि इस क्षेत्र से ड्रग्स की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है, जिसे रोकने के लिए ही यह एक्ट लाया गया है। निर्दोष लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन भाजपा इस मामले को लेकर दो फाड़ में दिखाई देती है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ए. पी. अब्दुल्लाकुट्टी ने आरोप लगाया कि विपक्षी नेता प्रशासक पटेल का विरोध इसलिए ,कर रहे हैं,  क्योंकि उन्होंने द्वीपसमूह में नेताओं के भ्रष्ट चलनको खत्म करने के लिए कुछ खास कदम उठाए हैं। अब्दुल्लाकुट्टी लक्षद्वीप में भाजपा के प्रभारी भी हैं। जब कि लक्षद्वीप बीजेपी के महासचिव मोहम्मद कासिम का कहना है कि यह तानाशाही है। उन्होंने इसके‍ खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी भी लिखी है। उनका कहना है कि पटेल के प्रस्तावों  से स्थानीय लोगों के हाथ से नौकरियां चली जाएंगी। यह भी कहा जा रहा है कि पटेल प्रशासन के फैसलों के विरूद्ध कई भाजपा कार्यकर्ताअोंने पार्टी छो़ड़ दी है। हालांकि लक्षद्वीप भाजपा अध्यक्ष हाजी पटेल इसे गलत बताते हैं। वो मानते हैं कि नए प्रस्तावों से लक्षद्वीप का विकास होगा। केरल के. सुरेन्द्रन भी हाजी पटेल की बात का समर्थन करते हैं। 

लेकिन मामला इतना आसान नहीं है, जितना बताया जा रहा है। लक्षद्वीप के प्रशासक की कार्यशैली को  सेक्युलरवाद बनाम राष्ट्रवादकी लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश की जा रही है। यही कारण है कि केरल राज्य ने दूसरे केन्द्रशासित प्रदेश के प्रशासक के खिलाफ प्रस्ताव पास किया। विधानसभा में इसे पेश करते हुए मुख्यमंत्री पी. विजयन ने केरल और लक्षद्वीप के लोगों के बीच ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को याद किया और वहां स्वाभाविक लोकतंत्रको नष्ट करने की कथित कोशिश के लिए केंद्र की निंदा की। इस प्रस्ताव का सत्तारूढ़ वाम मोर्चे के साथ कांग्रेसनीत यूडीएफ ने भी समर्थन किया। प्रस्ताव में कहा गया कि लक्षद्वीप में भगवा एजेंडा और कारपोरेट हितों को थोपने की कोशिश की जा रही है। इसकी शुरूआत लक्षद्वीप में नारियल वृक्षों को भगवा रंगने से हुई। यह लक्षद्वीप की संस्कृति व पहचान को नष्ट करने की कोशिश है। बता दें कि केरल विधानसभा में यह प्रस्ताव पारित करने का मुख्य कारण यह है कि लक्षद्वीप की ज्यादातर निर्भरता केरल पर ही है। 

वैसे भी प्रशासक प्रफुल पटेल विवादित शख्सियत रहें हैं। दमन दीव के निर्दलीय सांसद मोहन भाई डेलकर की आत्महत्या के सिलसिले में उनका नाम आया था। मुंबई पुलिस की एफआईअार में भी उनका नाम है। डेलकर के बेटे ने पटेल पर 25 करोड़ की वसूली के लिए धमकाने का आरोप भी लगाया था। लेकिन उसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई, जब कि देलकर पूर्व में भाजपा से भी सांसद रह चुके थे। इससे भी बड़ा सवाल यह भी है कि जब समूचा देश कोरोना से जूझ रहा है ( जिसमें लक्षद्वीप भी शामिल है, वहां अब तक कोरोना से 25 मौतें हो चुकी हैं) तब नए विवाद खड़े करने का असल मकसद क्या है? अगर लक्षद्वीप के निवासियों को विश्वास में न लेकर कोई काम किया जा रहा है तो उसका दूरगामी अंजाम क्या होगा? और इसकी हमे कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी ?

(लेखक भोपाल, इंदौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में वरिष्ठ संपादक हैं)

Monday, May 31, 2021

ये कैसी हवा चली-जसवंत कुमार

साहित्य के नवांकुर 

उज्ज्वल भविष्य की कामनाओं के साथ पहली कविता प्रकाशित है.

ये कैसी हवा चली, सुनसान हो गया-

सारा शहर और गली ।

कुछ तो बात है इस राज में,

जो उम्मीद की हमने वह व्यवस्था न मिली ।।

पानी बिन सूख गए-

खिलने से पहले, कितने फूल और कली ।

जो लोगों की जान बचाते थे,

वही दे रहे हैं- इंसानों की बली ।।

कोई दवी -देवताओं से उम्मीद लगाये बैठा है,

तो कोई कहता है-ठीक कर देगा मेरा अली ।

ये कैसी हवा चली  सुनसान हो गया,

सारा शहर और गली ।



जसवन्त कुमार (बी०ए० द्वितीय वर्ष)

ग्राम-सरवा पोस्ट-पिपरागूम

जिला-लखीमपुर

गाँधी के सहयोगी बद्री अहीर का इतिहास

इतिहास का पन्ना

इतिहास के पन्नों में चंपारण नायक के सबसे बड़े सहयोगी बद्री अहीर कहीं खो गए

धनन्जय सिंह


"खुद गांधी जी ने बद्री जी के बारे में अपने लेखों और संस्मरणों में जम कर तारीफ की. एक तरह से शुरू के दौर में बद्री जी ने गांधी के लिए वही काम किया जो भामाशाह ने प्रताप के लिए किया थामगर खेद है कि इतिहास में उनको असली मुकाम नहीं मिला.महात्मा गांधी के साथ अफ्रीका में उन्होंने पहली गिरफ्तारी दी थी.बद्री जी अपनी पूरी नकदी लेकर पहुंच गए. ये और बात है कि गांधी जी ने उनमें से 10,000 पाउंड ही लिये जिसका उल्लेख खुद गांधी जी अपनी आत्मकथा में किया है."

बद्री अहीर हमारे सगे परनाना थे. उनका जन्म गाँव-हेतमपुर, थाना-जगदीशपुर, जिला-भोजपुर, आरा, बिहार में हुआ था. वे उस गाँव के एक जमींदार ठाकुर लाल सिंह की धोखाघड़ी का शिकार होकर अपनी सारी जोत उसके यहाँ गिरवी रखकर उसी के यहाँ खेत मजदूरी का काम करने लगे थे. एक बार ठाकुर ने अपनी लड़की की शादी में उनको पगड़ी बांधने पर सरेआम अपमानित कर दिया. फिर क्या अपमान से बागी होकर वे पैदल आरा शहर आ गये. 6 फीच की ऊँचाई, गठीला बदन, रौबदार मूंछें, गजब का आकर्षक व्यक्तित्त्व था उनका. उसी समय आरा का सुपरिटेंडेंट मिस्टर डॉल का ट्रांसफर दक्षिण अफ्रीका के नेटाल में हो रहा था. रेलवे स्टेशन पर जब वे अंग्रेज ऑफिसर का सामान उठा कर ट्रेन में रखवा रहे थे तब ऑफिसर ने उनको दक्षिण अफ्रीका ले जाने का प्रस्ताव दे डाला. मरता क्या न करता ? वे 60 वर्षीय मिस्टर डॉल के साथ डरबन, नेटाल, दक्षिण अफ्रीका चले गये. कुछ समय बाद उस ऑफिसर की मृत्यु हो गयी और उसकी 30 वर्षीय पत्नी ने 35 वर्षीय बद्री अहीर से विवाह कर लिया. लगभग दस वर्षों के बाद उनकी नई पत्नी का देहांत हो गया और वे अपनी काबिलियत के दम पर बद्री पैलेस के मालिक बन चुके थे. फिर उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों का संगठन बनाया ओर गांधी जी को 10,000 पौंड की बड़ी रकम भारतीयों का केस लड़ने के लिए दिया. फिर वे गांधी जी को लेकर अपने गांव हेतमपुर से होते हुए चम्पारण तक ले गये. यही नहीं चम्पारण यात्रा सफल बनाने के लिए उन्होंने हेतमपुर से जगदीशपुर तक के समस्त लोगों को इकट्ठा किया और यात्रा को एक सफल आंदोलन का रूप दिया. अचानक उनके दिमाग में अपनी पैतृक जमीन और बीबी बच्चों का खयाल आया और हेतमपुर में आकर लालसिंह की जमींदारी को नीलामी में खरीदा. उनके तीन बेटे शिव प्रसाद बद्री, शिवदयाल बद्री और रामनरेश बद्री थे. सबसे छोटे बेटे रामनरेश बद्री के हवाले जमीन जायदाद करके बाकी दोनों बेटों के साथ वे पुनः बद्री पैलेस डरबन, नेटाल, दक्षिण अफ्रीका चले गये. क्या आप बद्री अहीर को जानते हैं ? बद्री अहीर गांधी जी के साथ जेल जाने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने गांधी जी के शरुआती दिनों में काफी आर्थिक मदद की थी और चम्पारण आन्दोलन को कामयाब बनाने के लिये भारत भी आये थे. हां हां, वही बद्री अहीर, जिसे कुछ लोग 'बदरिया अहिरा' भी कहते हैं.

बदरी अहीर
बद्री अहीर जी बिहार के हेतमपुर गांव के रहने वाले थे, जो आज भी भोजपुर (आरा), बिहार, में पड़ता है. 20 वीं सदी के शुरू में वे अफ्रीका में गिरमिटिया मज़दूर से सफल कारोबारी बन चुके थे। महात्मा गांधी के साथ अफ्रीका में उन्होंने पहली गिरफ्तारी दी थी. वो सन 1902 में मि. डॉल के साथ दक्षिण अफ्रीका गये थे. सन 1916 शुरू में गांधी जी को अफ्रीका में निरामिषहारी गृह बनाने की ज़रूरत हुई तो बद्री जी अपनी पूरी नकदी लेकर पहुंच गए. ये और बात है कि गांधी जी ने उनमें से 10,000 पाउंड ही लिये जिसका उल्लेख खुद गांधी जी अपनी आत्मकथा में किया है. उस वक़्त ये बहुत बड़ी रकम थी.

जुलाई, 1917 में गांधी जी भारत मे चंपारण आंदोलन चलाने आये तो बद्री अहीर जी अपनी नकद पूंजी के साथ भारत भी आ धमके. उन्होंने आंदोलन को सफल बनाने में बहुत श्रम और धन खर्च किया। वे उनके साथ बेतिया भी गए. हजारों किसानों को अपने बल बूते पर चम्पारण यात्रा से जोड़ा. चम्पारण आंदोलन में बद्री अहीर की भूमिका को देख कर उस समय के अखबारों ने उनके बारे में खूब लिखा. खुद गांधी जी ने बद्री जी के बारे में अपने लेखों और संस्मरणों में जम कर तारीफ की. एक तरह से शुरू के दौर में बद्री जी ने गांधी के लिए वही काम किया जो भामाशाह ने प्रताप के लिए किया था, मगर खेद है कि इतिहास में उनको असली मुकाम नहीं मिला. आज भी डरबन में बद्री पैलेस शान से खड़ा है.

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन क्या था | Champaran Satyagraha Movement [History  Date] Hindi - Deepawali

बद्री अहीर की पहली पत्नी से तीन बेटे थे...शिवप्रसाद बद्री, शिव दयाल बद्री और रामनरेश बद्री. दोनों बड़े बेटों का परिवार अब भी नेटाल, दक्षिण अफ्रीका में है. जबकि तीसरे बेटे रामनरेश बद्री का परिवार हेतमपुर में है. राम नरेश बद्री को एक बेटा लालबाबू बद्री (मेरे सगे मामा) और एक बेटी अनुसुईया बद्री (मेरी माँ) हैं.

शिवप्रसाद बद्री और शिवदयाल बद्री नेटाल में बैरिस्टर बने जबकि रामनरेश बद्री हेतमपुर, जगदीशपुर, बिहार में 250 एकड़ जोत के एक बड़े प्रतिष्ठित नागरिक बने. आज भी नेटाल, डरबन में बद्री प्रसाद यादव (अहीर) के वंशज केपटाऊन, जोहांसबर्ग, प्रिटोरिया, डरबन, में कई प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हैं.

हां, अब बिहार सरकार के निर्देश पर भोजपुर के डी.एम. ने उनके गाँव 'हेतमपुर' को आदर्श ग्राम घोषित करने का निर्णय जरूर लिया है. ये और बात है कि कांग्रेस ने बापू के नाम पर राजनीति तो बहुत की मगर इतिहास के इन नायकों को ठिकाने लगा दिया.

धनन्जय सिंह

प्रस्तुति,यदुकुल दर्पण अभय यादव

आगरा,  9808333344

 

मैं विद्रोही हूँ

मैं विद्रोही हूँ

 

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै आपकी हर बात में हाँ में हाँ नही मिलाता हूँ ।

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै आपके ऐब को आपका हुनर नही  बताता हूँ ।

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै आपके सामने प्रश्न बनकर खड़ा  हो जाता हूँ ।

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै आपके चेहरे से झूठ  का नकाब   हटाता हूँ ।

मै  विद्रोही  हूँ   क्योंकि  मै  आपको  आपकी  खामियां गिनाता हूँ ।

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै आपको सच का आइना दिखाता हूँ ।

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै देशवासियों में इन्कलाब जगाता हूँ ।

मै विद्रोही हूँ क्योंकि मै  सच  के  लिए  कलम चलाता हूँ ।

 

आप देश भक्त हैं क्योंकि आप झूठ को सच, सच को  झूठ  बनाते हैं ।

आप देश भक्त हैं क्योंकि आप  कहीं  भी , कभी  भी दंगा  कराते हैं ।

आप देश भक्त हैं क्योंकि आप स्वार्थहित   पुलिस पर गोली चलाते है ।

आप देश भक्त हैं क्योंकि आप भारतीय संविधान की प्रतिया जलाते हैं ।

आप देश भक्त हैं क्योंकि आप छात्रों व किसानों पर लाठियां चलाते हैं ।

आप देश भक्त हैं क्योंकि आप गुंडा रेपिया की रक्षा में खड़े हो जाते है ।

 

आप सोचते है कि यह मेरे जैसा देशभक्त क्यों नही बन जाता ।

मेरी तरह भारतीय नागरिक होने का फर्ज क्यों नहीं  निभाता ।

 

तो सुनो मुझे नही बनना आप जैसा, मै जो करता हूँ मुझे करने दो ।

तुम्हारी नजर में सच बोलना विद्रोह है  तो  मुझे  विद्रोही रहने दो ।



-रमाकान्त चौधरी

गोला गोकर्णनाथ खीरी

सम्पर्क -  9415881883

कल्पनाओं में अच्छे दिनों का इंतजार

कल्पनाओं में अच्छे दिनों का इंतजार

 

 

स्मरण होता है कि अच्छे दिनों की शुरुआत सन् 2014 में हुई थी, जब नई सरकार का पदारोहण हुआ था। क्योंकि जनता को नए प्रधानमंत्री के रूप में जैसे संकटमोचक एवं अच्छे दिन प्रदाता के रूप में कोई मसीहा मिल गया हो। लेकिन समय गुजरने के साथ ही मसीहा के शासन का तरीका, उसके कानून, व्यवहार, प्रवचन, क्रिया कलाप एवं वेश भूषा में भी महान परिवर्तन होता गया । इसे कहते हैं समय का फेर सब अंधेर ही अंधेर । असर यह कि देश की आबोहवा में भी विकट परिवर्तन होने लगा । इस सब का साक्षात् असर पड़ा आखिर जनता पर । बलि का बकरा बनी जनता। अर्थात् प्यारी जनता ने क्या सोचा था? और क्या हो गया? कहने में मैं भी भावुक हूं। हालांकि जनता ने किसी भी मायने में ग़लत नहीं सोचा क्योंकि उसको अच्छे दिनों के सपने जो इतनी मजबूती से दिखाए गए थे कि जनता उम्मीदों के पर लगाए अच्छे दिनों की कल्पनाओं के आसमान में हवाओं में, गोते लगाने लगी। अच्छे दिनों की तस्वीर हरेक व्यक्ति के जेहन में इस क़दर उतरी कि वह कल्पनाओं से बंध गया। 

गरीब ने कुछ स्थिति सुधरने, मजदूर ने दो वक्त की रोटी मिलने, किसान ने सही फसल बिकने तथा बेरोजगार ने नौकरी मिलने की कल्पनाएं अच्छे दिनों से पुरजोर की। उसने यह कभी नहीं सोचा था कि सब कल्पनाएं बस कल्पनाएं ही रहती हैं। हकीकत में यही हुआ ज्यों-ज्यों समय बीता कल्पनाएं बोझ बनती गईं उन्हें ढोने में ऊब होने लगी, वे सिरदर्द बन गईं, सिरदर्द से बुखार और बुखार से महामारी बन गई। जिसका निवाला निर्दोष जनता बनी। बने भी क्यों ना जब देश का प्रधानमंत्री अच्छे दिनों का सपना दिखाकर बुरे से बुरे वक्त की महामारी दिखा दे। ग़रीबी, मजदूरी, लाचारी, बेरोजगारी तथा महंगाई जैसी महामारी से जूझ रही जनता को इस प्रधामंत्री के शासन में कोरोना जैसी महामारी से भी जूझना पड़ेगा इसकी कल्पना कभी जनता ने नहीं की थी। सोचो जिस जनता के लिए अच्छे दिनों की कल्पना भी एक महामारी बन गई हो, उसे ऊपर से कोरोना जैसी भयंकर महामारी से जूझना पड़े तो वो कैसे संभल पायेगी। उसे तो बलिदान देना ही पड़ सकता है और जब देश का प्रधानमंत्री व्यवस्था को दुरुस्त करने अथवा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के बजाए प्रवचनबाजी या आंसूबाजी करके सांत्वना दे रहा हो। 

हकीकत सामने है कोरोनाकाल की। लॉकडाउन, क्वारंटाइन, मास्क, सोशल डिस्टेंस, वैक्सीन, ऑक्सीजन, पैरासिटामोल, हास्पिटल और अंत में डेथ आदि ऐसी शब्दावली से जो जिंदगी की पहेली बनी पड़ी है। जिससे हर आदमी डेढ़ साल से जूझ रहा है और अभी खत्म होने का नाम ही नहीं, जबकि आदमी खत्म हो रहा है। शायद इसे ही कहते हैं महामारी जिसमें सरकारी प्रयास होने के बावजूद बचना मुश्किल है। अब सरकारी प्रयास कितना हो रहा? कैसे हो रहा? कहां हो रहा है? यह गूढ़ विषय है पर इतना भी नहीं कि जनता को समझ न आए आखिर पब्लिक है सब जानती है, जानती ही नहीं सब देख और भुगत रही है। देश के प्रधानमंत्री और शासन के कारनामों एवं अच्छे दिनों के खेल को ऐसा खेल जिसमें फंसकर बाहर निकलना मुश्किल। अब उसके सामने खेले या झेले की स्थिति है। जिससे बाहर आने के लिए व्यक्ति छटपटा रहा है। आखिर कब तक उसके सामने ऐसी असहनीय महामारी का संकट बना रहेगा इसका अंदाजा भी मुश्किल है। बस कुर्बानी देते रहो। क्या यही समाधान बचा है? नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता हरेक को विश्वास है। इसी अपनी विश्वास शक्ति के बल पर अब वह प्रधानमंत्री द्वारा दिखाए गए अच्छे दिनों को समूल भूलकर इस संकटकाल से परे अपने उन अच्छे दिनों की कल्पना को बल दे रहा है जिसमें वह खुशी से बाहर निकलता था। अपना काम खुशी से करता था। दोस्ती एवं रिश्तेदारियां निभाता था। यात्राएं करता था तथा मिलजुलकर खुशी से रहता था। आज़ एक तुच्छ महामारी ने सर्वव्यापी मनुष्य के क़दम रोक दिए जिसने यह पृथ्वी क्या आकाश, चांद-तारे भी अपने कदमों से नाप डाले। आखिर ज्यादा दिनों तक यह नहीं चलने वाला उसके व्यक्तितग अच्छे दिनों की कल्पना अवश्य साकार होगी। इन जैसी हजारों महामारियों की हार होगी। यथार्थ यही है ।



सन्तोष कुमार 'अंजस'

ग्रा. देवमनिया कलां

लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश

नन्दी लाल की दो गज़लें

लिखे जाएँ हमारे इश्क पर    यूँ ही रिसाले फिर।

मोहब्बत से कोई आकर गले में हाथ डाले फिर।।

अदा अंदाज से आकर हमारा दिल चुरा ले फिर,

बहारों में चमन की घूम कर ताजी हवा ले फिर।।

 

समझ जाएँगे उनको इश्क हमसे हो गया है जो,

झुकाकर नैन अँगुली यार होठों पर लगा ले फिर।।

 

बड़ा चालाक आशिक जो कहीं मिलने से डरता है,

बहाना कर कहीं कल की तरह से अब न टाले फिर।।

 

कहीं जो बढ़ गया     बर्बाद कर देगा तेरी हस्ती,

पुराना रोग है जाकर उन्हीं से अब दवा ले फिर।।

 

बड़ी मुश्किल से कुछ आशा जगी थी सिर छुपाने की

बड़े होने से  पहले पेड़ सारे       काट डाले फिर।।

 

सभी अब काटने को दौड़ते    फुफकारते हैं जो,

यही तो बात उसने  आस्तीं मे नाग  पाले  फिर।।

 

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मानता हूँ  आपका       अपना बहाना ठीक है।

क्या किसी की मौत पर हँसना हँसाना ठीक है।।

 

यह बड़े लोगों के घर की बात है झूठी सही,

यार इनका रोज का खाना खजाना ठीक है।।

 

मौत से लड़कर अकेला आज अपनों के लिए,

गा रहा सुनसान में      बैठा तराना  ठीक है।।

 

ठीक है जो भी हुआ अच्छा हुआ इस मुल्क में,

आपका क्या इस तरह से मुँह छुपाना ठीक है।।

 

माँगकर लाई पड़ोसी से सही    अपने लिए,

लीजिए खा लीजिए बासी है खाना ठीक है।।

 

यार तू पाबंदियों से अब जरा बाहर निकल ,

दिन बहुत अच्छे लगे अब तो जमाना ठीक है।।

 

दर्द के दो घूँट पीकर बैठ जा सिर पीट अब,

आँख में ऑंसू लम्हों का थरथरना ठीक है।।

 

आज के इस दौर में   बेदर्द हाकिम के लिए ,

यार दुखते घाव पर  मरहम लगाना ठीक है।।

 

चार दाने की जरूरत है  अगर इस पेट को,

मिल गया मेहनत से तुझको एक दाना ठीक है।।

 


नन्दी लाल

गोला गोकर्णनाथ खीरी

कबूतर बोले

 कबूतर बोले

गूटुरू गूं कबूतर बोले,

हुआ सबेरा तुम क्यों सोए ।

 

सूरज की किरणें खिड़की पर,

तुम क्यों अब सपने में खोए ।

 

सुबह- सबेरे जो उठ जाए,

आलस भी उससे डर जाए ।

 

बड़े लगन से दिनभर अपने,

कामों में भी वे जुड़  जाए ।

 

प्रतिदिन आगे बढ़ते हुए,

अपना जीवन सफल बनाए ।

 

-डॉ. सतीश चन्द्र भगत


निदेशक-- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, बनौली, दरभंगा (बिहार) -847428

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