साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, July 19, 2016

चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई




चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई

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हम आप सभी जानतें हैं कि धरती पर ईश्वर का रूप डॉक्टर होता है. जिस पर आँखें बंद कर विश्वास करना लाज़िमी ही है. न चाहते हुए भी करना पड़ता है जब कोई अपना सगा-संबंद्धि हो तब तो शत-प्रतिशत की बात हो जाती है. पुराने समय से ही डॉक्टरी के पेशा को परम-पुण्य के पेशा का दर्ज़ा प्राप्त है. व्यक्ति को अपने इस चार दिन के जीवन में कभी न कभी चिकित्सक के दर जाना ही पड़ता है, लेकिन अब के समय में जीवन के दो दिन डॉक्टर्स के ही शरण में गुजारना है और यही सार्वभौमिक सत्य है. डॉक्टर्स हैं तो जीवन है नहीं तो कुछ भी नहीं ‘जीवन का लंबा साथ चाहिए तो चिकित्शालय आईये’ बशर्ते आप पर कुबेर का आशीर्वाद बना रहे. तभी तो बड़े लोग अब अपने दिल तक को बदल देतें हैं नहीं तो मजाल कोई अपने दिल के साथ ये गुस्ताखी कर गुजरने की हिकारत करता. सब कुछ बदल जाता था लेकिन दिल नहीं. कंहा उलझ गए महोदय आज का मुद्दा है चिकत्सकीय पेशा हाँ यह वही पेशा है जो लोगों को धर्म से जोड़ कर रखे हुए था मजाल था कोई इस पेशे से घिनौनी हरकत करता मरते दम तक अपने कर्म को धर्म से जोड़े रखता और अपने अडिग अंगद के पैर को विचलित न होने देता.
परन्तु आज का समय बदल गया है. चिकित्सक कुबेर देवता की पूजा में स्वंय को सौंप चुका है जाने-अनजाने पल-प्रतिपल ऐसे घिनौनें कार्य कर बैठता है जो चिकित्सक के लिए कहीं से भी उचित नहीं है.सामन्य व्यक्ति शर्म से डूब मरता है. चिकित्सालय के बाहर साफ़-साफ़ अक्षरों में फलां-फलां कार्य करवाना गैरकानूनी है और बाद रुपये की आडं में वही सब होता है. अर्थात रूपये कमाने का पेशा बन चुका है कोई मरे या जिए इससे मतलब नहीं है. चिकित्सक मरीज के जीतेजी तो कमाता ही है परन्तु मरीज का मरना भी उसके लिए कुबेर का दबा धन मिलने के बराबर है. मरीज के सगे सम्बन्धी हर हालत में उसे जीवित देखना चाहतें हैं और चिकित्सक पूरा भरोसा दिलाता है. यही सबसे बड़ी कमी है दोनों की जिसका पूरा फायदा उठा ले जाता है एक चिकित्सक हफ़्ते भर तक बर्फ़ पर लिटाये अत्याधुनिक मशीनों यथा आई.सी.यु.सी.,वेंटीलेटर और न जाने क्या-क्या एक दुधमुंहें बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सबके लिए लाजिम है. जिसका प्रयोग कर कुछ ही दिनों में लाखों ऐंठ लेता है और हम ठगे से मुंह बाए खड़े रह जाते है जब-तक जानकारी होती है तब तक सर्वस्व लुट चुका होता है और अपने प्रिय को पाने की चाहत में मिलती है दरिद्रता, दर-दर की खाने को ठोकरें और उसकी लाश पर बहानें को आंसू मन मसोसकर अस्पताल से लाते हैं और उसकी काया को फूंक-तापकर पश्चाताप के आंसू बहाकर जिन्दा रहते हैं. उसके गम में नहीं हुए धन की बर्बादी पर कि डाक्टरों ने कंही का नहीं छोड़ा आखिर कब चेतेंगे चिकित्सक की उनका अपाद-धर्म क्या है, लोगों के विश्वाश की मूरत पर पुते हुए कालिख़ के नकाब हैं.
                                                                   -ए०के०’अरुण’

Tuesday, June 28, 2016

मेरे देश के भावी भविष्य



                                       मेरे देश के भावी भविष्य

                                                                   अखिलेश कुमार अरुण

Image result for CHILD LABOURअपने देश के लोग भरतीय संविधान और उसकी धाराओं से बखूबी परिचित है, गुजरे ज़माने की अपेक्षा अब कहीं लोग ज्यादा पढ़े लिखे भी हैं घर से लेकर ससंद तक अपने तथा दुसरे के अधिकारों को भी जानते हैं, कब कहाँ अपना और दुसरे के अधिकारों का हनन हो रहा है. इसके लिए ढेर सारी सामाजिक संस्थाएं राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर बनायीं गयी हैं. जो समय-समय पर जागरूक करती रहती हैं जिसमें सर्वप्रमुख unicef है जो बच्चे और महिलाओं को उनके सर्वांगीण विकाश के लिए प्रेरित करता है एवं अनुदान भी देता है. भारत में इन सब के सरंक्षण हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय एक केन्द्रीय मंत्रालय का निर्माण किया गया है. इसके इतर अन्य भी ढेर सारे सरकारी उपक्रम किये गए हैं उन सबको दरकिनार करते हुए हम अपने लिए एक विषय का चुनाव करते हैं, वह है “बचपन बचाओ अभियान” क्योंकि यह वह राष्ट्रीय सम्पति है. जिस पर देश के भावी विकाश की नीव रक्खी जाती है. जिस देश के बच्चे जितने स्वस्थ और होनहार होंगे उतने ही देश के दुरुस्त कर्णधार बनेंगे चीन, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देश विकास की दौड़ में सबसे आगे क्यों हैं क्योंकि वहां बच्चों के भविष्य के प्रति अभिवावक से लेकर सरकार तक सभी सतर्क हैं. कदम कदम पर उन्हें परामर्श दिया जाता है और तो और उनकी अच्छी देखभाल के लिए बच्चों को पैदा किये जाने सम्बन्धी भी क़ानून बना हुआ है. केवल कानून ही नहीं उसका पालन भी किया जाता है पारितोषिक और दंड दोनों का प्रावधान है. भारत जैसे अपने सुन्दर से देश में क्या है? -दूधो नहाओ पूतो फलो, का कहावत प्रचलित है. कानून बनाने वाले कानून बना देते हैं, और पालन करने वाले उसे काल कोठारी में डाल देते हैं, दोनों ही अपने फर्ज को पूरा करने का अच्छा खासा ढिंढोरा बरसाती मेढक की तरह टर्र-टर्र करके पूरा कर लेते हैं. काम की जगह यहाँ दिखावा को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है स्वच्छता अभियान हो, पर्यावरण बचाओ या फिर बचपन बचाओ आन्दोलन हो करेगा कोइ एक उसके लिए हजारों लाखों की कौन बात करे करोडों का कर्च हो जाता है. फोटो खीचवाने के लिए दस खड़े हो जाते है बाद उनके न साफ़-सफाई, न पौधे की देखभाल और न ही बच्चे की कोई खोज खबर लेने आता है और फिर सब अव्यवस्थाओं का शिकार होकर अपने आस्तित्व को खो देते हैं. हमें अपने सार्थकता को सिद्ध करना है तो कोई एक पेड़ लगाये दस उसकी देखभाल करें, साफ़-सफाई व्यक्ति अपने आस-पास की रखने लगे, बच्चे उतने ही पैदा करो जितने की परिवरिस की जा सके इस प्रकार की सोच समाज में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन ला देगी, और देखते ही देखते सब कुछ दुरुस्त हो जाएगा. हम अपने एक छोटे से शहर लखीमपुर-खीरी की बात करे तो यहाँ 2011 की जनगणना के अनुसार 40,21,243 लाख के आस-पास जनता  निवास करती है. जिसमें बच्चों की कुल संख्या 0 से 6 वर्ष- 6,62,296 जिसमें संभवतः 20 या 25 % वह संख्या है जो दुकानों, ढाबों, गैराजों,
Image result for CHILD LABOURआदि जगहों पर बैठे अपने भविष्य का मातम मनाते हैं. स्कूल जाते बच्चों को निहारते रहतें हैं. अपनी कम उम्र में ही जीवन रूपी बोझ उठाने का अथक प्रयास कर रहे होते हैं और वही बाद में देश की लाचार जनता का तमगा पहनेंगे मकान,रोटी,दवा, दारु आदि के लिए सरकार की तरफ टकटकी लगाये बैठे रहेंगे की कब कोई मेहरबान हो जाये और..........  शहर के मुख्य मार्गों पर चार दुकान छोड़कर पाचवीं दूकान टाट-पट्टी से लेकर होटल तक हैं जहाँ जयादा से ज्यादा १० से १४ वर्ष के बिच काम करने वाले बच्चे मिल जायेंगे न उनको पढ़ने लिखने से मतलब है और न ही देश दुनिया के किसी युक्ति से मतलब है. उन्हें तो बात-बेबात होटल मालिकों के गाली सुनने और थाली,गिलास प्लेट साफ़ करने से ही मतलब है सब के सब सामाजिक संस्थाओं सरकारी नियमों कानूनों का पता ही नहीं किस जामने की कालेपानी की सजा हुयी हैं. यहाँ मुएँ सपने में भी नहीं आते की किसी अबोध बालक का भला हो सके वह भी अपना बचपन जी सके, देश दुनिया के विषय में जान सके, गुजरे ज़माने में कभी कैलाश शत्यार्थी जी खीरी की धरती पर पधारे थे जिस दिन उन्हें शांति का नावेल पुरस्कार मिला उसके दुसरे दिन अखबार पूरा का पूरा रंगा हुआ था, “सत्यार्थी जी खीरी भी हैं आ चुके ......” और न जाने क्या-क्या जिसको जैसी बन पड़ी उसने वैसा ख़ूब छपा था. उसके बाद से आज तक कहीं कुछ नहीं सुनने और पढ़ने को मिला की फलां-फलां ढाबे होटल आदि से बच्चे को किया गया मुक्त.....!

Saturday, February 20, 2016

क्या है? देशभक्ति

                              क्या है? देशभक्ति   

मैं चाहता हूँ कि मुझे भी राष्ट्र द्रोही करार दिया जाय मेरे पर भी मुकदमा चलाया जाय मैं आप सब  से खुश होऊंगा. अच्छा होता कि लोग देशभक्ति का मतलब समझ पाते एक सम्प्रदाय विशेष  के लोग ही देशभक्ति का दम्भ क्यों भरते है, हम तो कहते हैं इसे देशभक्ति नहीं धर्मभक्ति की संज्ञा दे दी जाय देशभक्ति की  बात तब की जाती है जब देश के सभी धर्मों के लोग एक मंच पर आ कर देशहित के लिए अपना सर्वस्व लुटा दें चूँकि हमारा देश धर्मों का देश है उनका सरंक्षक और पोषक भी है सभी समान रूप से देशभक्ति का दावा करते हैं. देशभक्ति हम उसे कहते हैं जब देश की आजादी के लिए सब लोग एकजुट हो गए थे  चाहे वह किसी भी धर्म विशेष का क्यों न हो. जिसमे सर्वप्रमुख थे जवाहर, गाँधी ,अम्बेडकर,जिन्ना ,भगत ,आजाद, अबुल कलाम, गफ्फार, आदि-आदि और अन्य  भी जो अनाम ही देश के लिए मर मिटे उसमें उस देश के भी लोग थे जो आज हमारा पड़ोसी देश के नाम से जाना जाता है. देश आजाद कराने में जितना योगदान जवाहर गाँधी का है उतना हक़ जिन्ना ,कलाम, गफ्फार का भी है .जिन्ना जिन्दा थे तो पाकिस्तानी हो गए अब उनका जय घोष किया जाना भारत में देशद्रोह है और वहीं भगत सिंह भारत के आजाद होने से पहले ही शहीद हो गए नहीं तो वह भी कहीं जिन्दा होते तो पाकिस्तान चले जाते और उनका भी नाम लिया जाना भारत में देशद्रोह हो जाता जिसके नाम का माला राष्ट्र्पर्वों पर बड़े गर्व से लिया जाता है क्या है देशद्रोह किसी दूसरे देश का नाम लिया जाना देश द्रोह है. ये कैसी देशभक्ति है जो पूरे जीवन देश में रह कर पढ़ा लिखा काबिल बना जब देश को उस से कुछ चाहिए था तो दुसरे वतन में जाकर वहीँ का हो गया क्या यह देशद्रोह नहीं है कुछ समय अंतराल पर अपन वतन लौटे तो उसके मुख से निकालता है छि -छिः स्याला ....कंजरों का देश यह देश द्रोह नहीं है. और जो लोग भारत में पढ़ लिख कर अपने अधिकार की लडाई लड़ते हैं वह देशद्रोह है अपने बाप से अपना हक़ मांगना देशद्रोह है ...तो ऐसा देश द्रोह हमें भी करना है. देश के नेत्रत्वकर्ता देश से भावनात्मक खेल खेल रहें हैं मूल समस्याओं पर मिटटी डालने का काम कर रहे हैं. उनके एजंडे से बेरोजगारी, बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, कुपोषण, किसानों की आत्महत्या, नारी सुरक्षा आदि-आदि  गायब है. इस पर कहीं कोई बहस नही होता अमीर-गरीब के बीच दिनों -दिन  दूरी बढ़ती जा रही है. वह चाहे शिक्षा में हो रुपये पैसे में हो ,सुख-सुविधा में हो या उनके जीवन में हो रहे विकाश की बात की जाय कुछ लोग खा -खा के मर रहें हैं तो कुछ बिना खाए ही मर रहें हैं.
शिक्षा व्यवस्था की हालत ढचर-मचर हो चुकी है लाखो युवा हाई स्कूल-इंटर किये छात्र नाकामी के शिकार हैं ज्ञान के नाम पर जीरो, स्नातक बेरोजगारी की पराकाष्ठा पर है चपरासी के पद पर जूतम-पैजार हो रहें हैं . नेताओं-राजनेताओं को चीखना चिल्लाना है तो इन  समस्याओं पर चीखे-चिल्लाएं जिससे देश और समाज का भला हो लोग देशभक्ति के असली महत्व को समझ सकें. देशभक्ति का गुण तभी गया जा सकेगा जब देश उसके हित की भी बात करे अन्यथा .... जिस घर (देश) में सुख-शांति, अमन- चैन,सुरक्षा नहीं वः देश काहे का देश और उसकी देशभक्ति किस काम की यहाँ तो अंधेर नगरी चौपट राजा की दसा हो गयी है विना किसी साक्ष्य के देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जा रहा है क़ानून के रक्षक ही कानून के भक्षक बी बैठे है .
 रुपये पैसे और मान-सम्मान  के लिए तो लोग क्या से क्या कर जाते है और वही जब लोगों को न मिले तब तो उसकी भक्ति किस काम की देश के खेवनहारों  से अपील है देश की भावना नहीं संभावना से खेलो, देश तुम्हारा ही नहीं सबका है और सबकी सोच अलग अलग है और इसी के साथ देशभक्ति का नजरिया भी अलग है. जहाँ तुम्हारे  देशभक्ति हमारी देशभक्ति से इतर......
आज के समय में चंद लोगों से देशभक्ति की परिभाषा गढ़ने को दे दिया जाय तो लिखेंगे देशभक्ति अर्थात - जब धार्मिक छुआ-छूत, ऊँच-नींच, स्त्रियों और शूद्रों का मंदिर प्रवेश वर्जित तथा शिक्षा से वंचित  इत्यादि को ही देशभक्ति कहते हैं और इसे न मानने वालों को देशद्रोही.
प्रिय पाठकों सच्चे दिल से कह रहा हूँ देशभक्ति की कोई परिभाषा नहीं हो सकती स्वतंत्र रूप से जो जैसे चाहे वैसे देश से प्यार करे यही सच्ची देश भक्ति है. और देशद्रोह की लाखो परिभाषाएं हैं.
                                                        ......एक देशभक्त
                                                                                                                           अखिलेश कुमार अरुण 

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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