साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, May 31, 2024

हर परिस्थिति में बीजेपी को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की संभावना-नन्दलाल वर्मा (सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)

  लोकतंत्र की लूट/आशंका/संभावना/हिटलरशाही पर लेख   
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी


✍️इस बार चरण दर चरण चुनाव के बाद मोदी की भाषा-शैली लड़खड़ाती और कटुतापूर्ण होती दिख रही है। चुनाव परिणाम के बाद उपजने वाले संकटपूर्ण परिदृश्य पर संविधान और लोकतंत्र के समानता, समता, धर्मनिरपेक्षता और बंधुता जैसे सिद्धांतों में गहन आस्था और विश्वास रखने वाले सामाजिक वर्ग और राजनीति की संस्थाओं से जुड़े चिंतक वर्ग संविधान और लोकतंत्र को लेकर कल्पनातीत सम्भावनाएं और आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं।चुनाव में सत्ता के शीर्ष नेतृत्व के वैमनस्यता पूर्ण वक्तव्यों विशेषकर हिन्दू मुसलमान और पाकिस्तान पर लगातार जनता को दिग्भ्रमित करने की हर सम्भव कोशिश जारी रही है। साम्प्रदायिक वैमनस्यता फैलाते और विषवमन करते भाषणों की लगातार  बौछार से देश के ईमानदार,स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया वर्ग में चार जून के बाद संविधान और लोकतंत्र के संकट को लेकर गहन विचार-विमर्श जारी है।बीजेपी को बहुमत न मिलने की स्थिति में सरकार गठन के मुद्दे पर नई तरह की तानाशाही के उभरने की आशंका ज़ाहिर कर रहे हैं।इस बार भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में वह हो सकता है जिससे देश के संविधान बनाने वाले और लोकतंत्र स्थापित करने वालों की रूह तक कांप उठेगी।बहुमत न मिलने की आशंका से भयभीत दिखते पीएम इंडिया गठबंधन के घोषणा पत्र को साम्प्रदायिक रंग देकर उसकी व्याख्या कर हिंदू-मुस्लिम की दीवार लगातार ऊंची करने में लगे हैं।उनके चुनावी भाषणों,संसद पर अचानक बढ़ाई गयी सुरक्षा व्यवस्था सन्निकट संभावित आशंकाओं और घटनाक्रम को लेकर संवैधानिक-लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था रखने वाला बौद्धिक वर्ग यथासंभव वैचारिक-विमर्श कर टीवी चैनलों के माध्यम से लोगों को संभावित खतरों से लगातार आगाह कर रहा है। 
✍️मोदी काल में नियुक्त राष्ट्रपतियों और उपराष्ट्रपतियों के आचरण से संवैधानिक और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का लगातार हरण-क्षरण हुआ है। देश-विदेश में सार्वजनिक मंचों पर इन प्रमुखों का आचरण कैसा रहेगा,उसे पीएमओ तय करता है जिसके कुछ उदाहरण बतौर सबूत देखे जा सकते हैं। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने पूरे कार्य काल में मोदी के सामने समर्पण और कृतज्ञता भाव से आचरण करते दिखाई देते रहे और वर्तमान राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू उन्हीं की विरासत को आगे बढ़ाते हुए पीएमओ से मिले दिशा-निर्देशों की अनुरूपता और अनुकूलता के हिसाब से आचरण करने की हर सम्भव कोशिश करती दिखाई देती हैं।उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की राष्ट्रपति बनने की चाहत ने मोदी के सामने उनकी शारीरिक भाव-भंगिमा,भाषा और समर्पण मुद्रा से संविधान और लोकतंत्र की व्यवस्थाएं-मर्यादाएं मौके-बेमौके विगत लंबे अरसे से शर्मसार और बेनक़ाब होती रही हैं। द्रोपदी मुर्मू की लोकतंत्र और देश की महिला पहलवानों,मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई शर्मनाक घटनाओं पर उनके मुंह से एक लफ्ज़ न निकलना मोदी के सामने उनका निरीह दिखता चरित्र और व्यक्तित्व उनकी संवैधानिक शक्ति के निष्पक्ष और विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में बहुत कुछ संशय पैदा करता दिखाई देता है।राष्ट्रपति मुर्मू को नई संसद के शिलान्यास से लेकर उद्घाटन और राम मंदिर के शिलान्यास व प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल न होने या न करने के बावजूद मोदी के प्रति उनके कृतज्ञता भाव में कोई कमी नही आयी है।इन विषयों पर सवाल होने पर मोदी की कार्य-संस्कृति से उन्हें कोई शिकवा शिकायत नहीं है।वो मानती हैं कि मोदी जी जो कर रहे हैं या करेंगे वो सब ठीक ही होगा। मुर्मू की भूमिका के बारे में यह धारणा सी बन चुकी है कि वह संविधान प्रदत्त शक्तियों का विवेकपूर्ण प्रयोग न कर पीएमओ से मिले दिशा-निर्देशों को शीर्ष सत्ता की मर्ज़ी और मंशा के अनुरूप और अनुकूल ही आचरण करती हैं,अर्थात वह पीएमओ की राय के बिना एक शब्द तक नहीं बोल सकती हैं। महिला पहलवान और मणिपुर की महिलाओं की अस्मिता पर उनकी चुप्पी को देखते हुए लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सरकार गठन के मुद्दे को लेकर संभावित वीभत्स परिस्थितियों प का सामना करने की कई तरह की आशंकाएं प्रकट की जा रही हैं।2024 के चुनावी परिणाम मोदी और शाह के लिए राजनीतिक रूप से जीवन-मरण और प्रतिष्ठा की लड़ाई दिखाई देती है।बीजेपी यानि कि मोदी-शाह किसी भी परिस्थिति में विपक्ष की विशेष रूप से कांग्रेस नेतृत्व की सरकार न बनने की कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते हैं,भले ही उन्हें संविधान-लोकतंत्र की सारी हदें पार करनी पड़े और इसमें राष्ट्रपति से पूर्ण सहयोग मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
✍️संविधान-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं,मर्यादाओं,परंपराओं का तकाज़ा है कि चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रपति को सांविधानिक व्यवस्था के साथ खड़ा होना चाहिए,किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष के पक्ष या विपक्षी दलों के विपक्ष में नहीं। इस बार चुनाव परिणाम आने के बाद पैदा होने वाली परिस्थिति से निपटने के लिए भारतीय संसदीय लोकतंत्र में कल्पनातीत ऐतिहासिक उथल-पुथल होने की संभावना जताई जा रही है। मोदी के तानाशाही रवैये के चलते राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और प्रदत्त शक्तियों के कसौटी पर कसने का समय आने वाला है। देखना है कि चुनाव परिणाम में यदि एनडीए को स्पष्ट पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्ति और विवेक निष्पक्ष होकर काम करती है या फिर शीर्ष सत्ता संस्थान से मिले संकेतों और दिशा-निर्देशोँ के अनुरूप और अनुकूल निर्णय लेने के लिए मजबूर होती हैं।एनडीए को पूर्ण बहुमत नही मिलने पर मुर्मू विपक्षी इंडिया गठबंधन को गठबंधन की मान्यता देती हैं या नहीं,यह एक बड़ा सवाल उठता दिखाई दे रहा है।ऐसी परिस्थिति में वह संविधान और लोकतंत्र के साथ खडी दिखाई देंगी या पार्टी/व्यक्ति विशेष के साथ जिसने उन्हें राष्ट्रपति जैसे गौरवशाली पद तक पहुंचाया है!संविधान-लोकतंत्र के जानकारों का मानना है कि इस चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी के प्रतिकूल बनीं परिस्थितियों में सरकार के गठन पर राष्ट्रपति की निर्णय बेहद महत्त्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

ये परिस्थितियां पैदा होने की संभावना जताई जा रही है:
1️⃣यदि एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलता है तो सरकार बनाने के आमंत्रण देने में राष्ट्रपति को कोई दुविधा नहीं होगी। बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना निश्चित। यह स्थित उनके लिए बेहद सुखद और सुविधाजनक साबित होगी।
2️⃣यदि एनडीए का पूर्ण बहुमत नहीं आता है तो राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाएगी।बहुमत पाए विपक्ष इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता नहीं भेजेंगी,ऐसी सम्भावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि मोदी  के इशारे पर इंडिया गठबंधन की प्री पोल गठबंधन की मान्यता न मानते हुए उसे सरकार बनाने का न्योता नहीं देंगी। यदि एनडीए पूर्ण बहुमत की संख्या से थोड़ा पीछे रह जाती है जो मैनेज की जा सकती है तो राष्ट्रपति मुर्मू एनडीए को पूर्ण बहुमत  के लिए समर्थन जुटाने के लिए सरकार गठन में विलंब कर सकती हैं जिसकी पूरी सम्भावना जताई जा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसी बीच बीजेपी अर्थात मोदी को हीरा मंडी से हीरे खरीदने का वक्त मिल जायेगा अर्थात हॉर्स ट्रेडिंग हो जाएगी। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विपक्ष के छोटे-छोटे दलों के सांसदों को अच्छी खासी रकम और मंत्री का आकर्षण दिखाकर बहुमत के लिए न्यूनतम आबश्यक संख्या जुटा ली जाएगी। इस तरह की परिस्थिति की ज्यादा संभावना जताई जा रही है।
3️⃣यदि विपक्ष के इंडिया गठबंधन अर्थात विपक्ष को पूर्ण बहुमत का संख्या बल हासिल हो जाता है तो क्या राष्ट्रपति मुर्मू इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने और बहुमत सिद्ध करने का न्योता देंगी? जानकारों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति विपक्ष को सरकार बनाने का न्योता नही देंगी। माना जा रहा है कि ऐसा शीर्ष सत्ता संस्थान से फरमान जारी हो चुका है। लोगों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति विपक्षी दलों को गठबंधन की मान्यता इस आधार पर नहीं देंगी कि एनडीए गठबंधन की तरह विपक्ष का इंडिया गठबंधन प्री-पोल गठबंधन ही नहीं है और इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने का मौका नहीं दिया जाएगा,ऐसा प्लान मोदी बना चुके हैं।
4️⃣यदि एनडीए गठबंधन बहुमत से थोड़ी दूर अर्थात बहुमत सिद्ध करने के काफी नजदीक संख्या पर आकर टिकती है तो राजनीतिक विश्लेषकों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि इस परिस्थिति में मोदी की इच्छानुसार/संकेतानुसार राष्ट्रपति द्वारा बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता देते हुए अपना सदन में बहुमत साबित करने के लिए अनुकूल और सुविधापूर्ण अवसर प्रदान किया जा सकता है। संसद पर बढ़ाई गई सुरक्षा का इसी संदर्भ में अवलोकन और आंकलन किया जा रहा है। उनका मानना है कि सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिए कुछ विपक्षी सांसदों को सुरक्षा के कतिपय अदृश्य कारणों का हवाला देते हुए संसद में प्रवेश करने से रोक दिया जाएगा और एनडीए को पूर्ण बहुमत न मिलने पर भी बीजेपी/मोदी के लिए सरकार बनाने की अनुकूल परिस्थिति पैदा की जाएगी।
5️⃣हंग पार्लियामेंट की दशा में राष्ट्रपति द्वारा जानबूझकर ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाएंगी जिससे एनडीए गठबंधन की हर हाल में सरकार बन सके। अपरिहार्य परिस्थिति जैसे अपवाद को छोड़कर राष्ट्रपति मुर्मू की यही मंशा और प्रयास रहेगा कि किसी तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की ही सरकार बनने का रास्ता साफ हो सके,भले ही उन्हें इसके लिए संवैधानिक-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और परंपराओं को थोड़े समय के लिए दरकिनार करना पड़े।
6️⃣ बीजेपी सरकार बनने की कोई गुंजाइश न दिखने पर पीएम मोदी आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।

Monday, May 27, 2024

भारत का संविधान और नक्शा सब बदल जाएगा और जनता इसको समझ या पहचान भी नहीं पाएगी-नन्दलाल वर्मा (सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)


(भारत फिर कभी दूसरी चुनाव प्रक्रिया नहीं देख सकेगा)
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी


✍️वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पति परकला प्रभाकर ने कहा है कि अगर बीजेपी 2024 का लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता में फिर से वापस आती है तो "भारत का संविधान और नक्शा सब बदल जाएगा और जनता इसको समझ या पहचान या जान भी नहीं पाएगी।" उन्होंने कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में अगर नरेंद्र मोदी फिर से पीएम चुने गए तो पूरे देश में लद्दाख और मणिपुर जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।
✍️प्रभाकर का अपनी अंतर्दृष्टि साझा करने वाला वीडियो कांग्रेस द्वारा माइक्रोब्लॉगिंग साइट " एक्स" पर साझा किया गया है।वीडियो में परकला प्रभाकर को यह कहते हुए सुना जाता है कि मोदी के 2024 में फिर से प्रधान मंत्री बनने पर,भारत फिर कभी दूसरी चुनाव प्रक्रिया नहीं देख सकेगा अर्थात भविष्य में और चुनाव होने की कोई उम्मीद नहीं दिखती है। उन्होंने कहा है कि "अगर मोदी नेतृत्व बीजेपी सरकार 2024 में फिर बनती है तो उसके बाद कोई चुनाव नहीं होगा अर्थात 2024 का चुनाव अंतिम चुनाव हो सकता है। मोदी एक तानाशाह हैं,उनकी वापसी देश के लिए एक आपदा साबित हो सकती है।"
✍️बीजेपी नेताओं और मोदी के "जिसको पाकिस्तान जाना है,जाने दो" जैसे बयानों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने आगाह किया है कि ये नफरत भरे भाषण अब दिल्ली के लाल किले से उठेंगे। साक्षात्कार में प्रभाकर ने कहा कि "मोदी ख़ुद लाल किले से नफरत भरा भाषण देंगे।" उन्होंने कहा है कि यह चुपचाप या सूक्ष्मता से नहीं किया जाएगा। उनके मुताबिक,नफरत भरे भाषण अब "खुला खेल" होंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर पीएम मोदी सत्ता में लौटते हैं तो कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय संघर्ष के कारण मणिपुर में जो अशांति फैली हुई है,वह पूरे भारत में फैल सकती है। इससे पहले मार्च में, प्रभाकर ने एक टीवी समाचार चैनल से बात करते हुए कहा था कि “चुनावी बांड घोटाला सिर्फ़ भारत का सबसे बड़ा घोटाला नहीं है,बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है। चुनावी बांड भ्रष्टाचार सार्वजनिक होने के बाद,अब लड़ाई दो गठबंधनों के बीच नहीं रही है बल्कि,भाजपा और भारत के लोगों के बीच है।"
✍️प्रभाकर का कहना है कि भारत में असमानता, बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है। 16 अप्रैल को चेन्नई में "चेन्नई थिंकर्स फोरम" द्वारा वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर "द वैल्यूज़ एट स्टेक" शीर्षक से आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोलते हुए " द क्रुक्ड टिम्बर ऑफ न्यू इंडिया "(नए भारत की दीमक लगी शहतीरें) पुस्तक के लेखक श्री प्रभाकर ने कहा कि भारत में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है,विशेषकर 20 से 25 आयु वर्ग के युवाओं में। “उनके बीच बेरोजगारी का प्रतिशत लगभग चालीस है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत में लगभग 60-65% शिक्षित बेरोजगार हैं।" उन्होंने कहा कि देश में असमानता, युवाओं के बीच बेरोजगारी, विभिन्न वस्तुओं की मुद्रास्फीति और घरेलू ऋण अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं।
✍️उन्होंने कहा है कि कम्पनी कर में कटौती,उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन देने और ₹25 लाख करोड़ से अधिक कॉर्पोरेट ऋण को बट्टे खाते में डालने के बावजूद,घरेलू निवेश दर 30% से गिरकर 19% रह गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनियों को उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन और चुनावी बांड के रूप में भाजपा को मिले चंदे के खेल में "कुछ के बदले कुछ"(Quid pro quo:a favour or advantage granted in return for something) जिसको भारतीय अनुबंध अधिनियम में प्रतिफल(Consideration) कहा गया है,की बाबत या नीयत से काम किया गया है। सुप्रीम कोर्ट को दिए गए इलेक्टोरल बांड की डिटेल्स से पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है।
✍️उन्होंने यह भी कहा कि तीन कृषि कानून [कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार -संवर्द्धन एवं सुविधा-अधिनियम-2020, मूल्‍य आश्‍वासन पर किसान समझौता-अधिकार प्रदान करना और सुरक्षा- अधिनियम-2020, आवश्यक वस्तु-संशोधन- अधिनियम- 2020] संसद में बिना किसी चर्चा या बहस के पारित हो गए और व्यापक स्तर पर किसानों का एक साल से अधिक आंदोलन और विरोध-प्रदर्शन के चलते मोदी को इन कानूनों को लागू करने से मजबूरन पीछे हटना पड़ा। इन कानूनों से पीछे हटने में सरकार के अहम को भारी ठेस लगी है। इसीलिए अभी हाल में किसानों को दिल्ली में दुबारा घुसने के सारे रास्ते सील कर दिए गए थे। यह चर्चा है कि इन तीन कानूनों को देश के सरकार पसंद कतिपय पूंजीपतियों को अथाह लाभ पहुंचाने के लिए पारित किया गया था। किसानों के अनवरत आंदोलन और विरोध-प्रदर्शन के चलते सरकार को मुंह की खानी पड़ी। इस घटनाक्रम से सरकार और पूंजीपति बुरी तरह से आहत हुए,राजनीतिक गलियारों और बुद्धिजीवियों में ऐसी चर्चा है। देश के किसान यह अच्छी तरह समझ लें कि ये तीनों कानून अभी पूरी तरह रद्द नहीं हुए हैं,बल्कि स्थगित मात्र हुए हैं। अनुकूल माहौल मिलते ही ये कानून कभी भी लागू हो सकते हैं। यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि 2024 में यदि मोदी नेतृत्व सरकार की पूर्ण बहुमत के साथ वापसी होती है तो ये कानून लागू हो सकते हैं। 
✍️वरिष्ठ पत्रकार एन.राम ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, राज्यपालों और विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य सरकारों के बीच खींचतान, विभिन्न लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के लोकप्रिय वोट शेयर और स्वतंत्र एजेंसियों, विशेष रूप से भारत के सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग के कामकाज पर भी चिंता व्यक्त करते हुए बात की है। उनका यह भी कहना है कि बीजेपी के शासनकाल में भारतीय संविधान के विविधता,बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे अभिन्न मूल्यों को विकृत कर दिया गया है।चुनाव शुरू होने से पहले बीजेपी की ओर से "अबकी बार-400 पार" का जो नारा दिया गया,वह महज़ एक राजनीतिक जुमला या नारा नहीं था। बीजेपी सांसद अनंत कुमार हेगड़े और लल्लू सिंह ने 400 पार सीटें हासिल करने के पीछे छिपे उद्देश्यों को बाक़ायदा बताया था कि देश का वर्तमान संविधान भारत की सामाजिक,धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के हिसाब से बिल्कुल उपयुक्त और अनुकूल नहीं रह गया है अर्थात देश की तेजी से बदलती परिस्थितियों और काल के हिसाब से वर्तमान संविधान की व्यवस्थाएं लगभग अप्रासंगिक हो चुकी हैं,विशेष रूप से संविधान में वर्णित समाजवाद,सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। इसलिए अब समय आ गया है कि संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में व्यापक स्तर पर बदलाव हो। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबराय ने तो आगे के बीस साल से अधिक समय (2047 में आज़ादी का शताब्दी वर्ष) के दृष्टिगत देश के संविधान को पूरी तरह बदलने के संदर्भ में अंग्रेजी अखबार "द मिंट" में बाक़ायदा एक लेख लिखा। जब उस पर चौतरफ़ा राजनीतिक बवाल व आलोचना शुरु हुई तो बीजेपी ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह उनका निजी विचार है। परिषद के अध्यक्ष के नाते उन्होंने देश की मुद्रास्फीति, बेरोजगारी,बेतहाशा बढ़ते घरेलू-विदेशी कर्ज़ और डॉलर के सापेक्ष तेजी से नीचे लुढ़कता भारतीय रुपया जैसे गम्भीर विषयों पर न तो कभी चर्चा करना और न ही पीएम को सलाह देना उचित समझा! परिषद के अध्यक्ष द्वारा देश की अर्थव्यवस्था और मौद्रिक नीतियों के बजाय सांविधानिक-लोकतांत्रिक संकटों पर चिंता व्यक्त करना और सरकार को सलाह देना कितना न्यायसंगत और नैतिक समझा जाए!
✍️देश के एकडेमिशियन्स और विपक्षी दलों द्वारा जब 400 पार के नारे के पीछे बीजेपी और आरएसएस की छिपी कलुषित मानसिकता और उद्देश्य पर सार्वजनिक रूप से गम्भीर चिंतन-मनन करना शुरू किया,उससे देश का ओबीसी,एससी-एसटी और सबसे बड़े अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय अच्छी तरह समझ गया कि इस नारे में तो देश के संविधान और लोकतंत्र को खत्म करने की साज़िश और षडयंत्र की बू आ रही है। संविधान खत्म तो आरक्षण खत्म होने के साथ सरकार चुनने का सशक्त हथियार "मताधिकार" भी खत्म हो जाएगा। संविधान के सामाजिक न्याय, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के खतरों की वजह से इन वर्गों का चुनावी राजनीति के हिसाब से तेज गति से होते ध्रुवीकरण से घबराए आरएसएस ने बीजेपी को इस नारे को तुरंत बंद करने की सख्त हिदायत दे डाली। उसके बाद बीजेपी के राजनीतिक मंचों से इस नारे की गूंज आनी बंद हो गयी। विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली बीजेपी शासित केंद्र से लेकर उत्तर प्रदेश,कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों के मंत्रिमंडल में भारत के सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दिन पहले बिहार में अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण, जिसमें कांग्रेस और विपक्षी दलों पर अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार करने का आरोप लगाया गया था,आदर्श आचार संहिता का खुला उल्लंघन था। उन्होंने आगे कहा कि 2014 के बाद "रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स" द्वारा जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक की रैंकिंग में देश काफी नीचे फिसल गया है।
✍️प्रभाकर परकला ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स(लंदन) से पीएचडी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय,नई दिल्ली से मास्टर ऑफ आर्ट्स और मास्टर ऑफ फिलॉसफी किया है। वह एक भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्री और सामाजिक टिप्पणीकार हैं। वह जुलाई 2014 और जून 2018 के बीच संचार सलाहकार के रूप में आंध्र प्रदेश सरकार में कैबिनेट रैंक के पद की जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं।

Friday, May 10, 2024

मेरी पहली हवाई यात्रा-नयनी डी.वर्मा

   एक यात्रा-वृत्तांत   
"नई धारा " द्वारा आयोजित "यात्रा-वृत्तांत" लेखन प्रतियोगिता:2024 में "मेरी पहली हवाई यात्रा" को वरीयता क्रम में प्रथम स्थान से पुरस्कृत रचना.
नयनी डी० वर्मा
लखीमपुर खीरी उ० प्र०
            ✍️अगर कोई मुझसे बचपन मे पूछता कि यात्रा क्या होती है,तो मेरे पास इसका जवाब नहीं होता और यदि होता भी तो कैसे? क्योंकि हम 90दशक के लोगों के बचपन से ही हम जैसे लोगों की यात्रा उनके घरवाले ही डिसाईड करते हैं, हम लोगों को नहीं बताया जाता है कि यात्रा का मतलब क्या होता है ? खुद की यात्रा तो भूल ही जाइए आप, यह तक पता नहीं होता कि घूमने जा कहां जा रहे और कैसे ? बताया जाता भी है तो बस यह कि कब और कितने बजे निकलने के लिए तैयार रहना है और घूमने के नाम पर तब बस ददिहाल-ननिहाल ही होता अपना बस, तो मेरे साथ भी ऐसा ही रहा है बचपन मेरा लेकिन बचपन से ही जब भी कहीं जाने को कहती तो पापा जी कहते अभी पढ़ाई करो,बारहवीं के बाद जहां भी जाना हो,जाना। मैंने भी बहस नहीं की। आखिर, करती भी तो कैसे और क्यों? क्योंकि यात्रा होती क्या है? यह खुद मुझे नही पता था I अपनी दुनिया घर और उस घर के एक कमरे से दूसरे कमरे टहलना ही आपकी यात्रा होती है। जब भी किसी जगह का नाम सुनती किसी का, तब कहती कब मैं भी जाऊँगी वहां? हमेशा की तरह पापा जी का जवाब होता अभी पढ़ो,उसके बाद घूमना,जहां मन हो, वहाँ जाना। घूमने वाली जगह को Exam.सेंटर फॉर्म मे भर देना,Exam. देने जाना और वहां घूम भी आना। बस, उनके कहे ये शब्द मन और दिमाग के किसी फ़ोल्डर में रह गए। शायद, रिसाईकल बिन वाले फ़ोल्डर में,वहां से डिलीट नहीं हुए। जब बड़े हुए तब याद आए उनके कहे ये शब्द,फिर से एक बार,आते भी तो कैसे नहीं, क्योंकि मन और दिमाग झट से फ्लैश बैक मे चला जाता है,मेरा आज भी। जीवन का पहला प्यार,पहली नौकरी,पहली हवाई यात्रा कैसे कोई भूल सकता है,आख़िर !! मै भी नहीं भूली अपनी पहली हवाई यात्रा,क्योंकि बचपन से हमेशा छत के ऊपर से निकलते हवाई जहाज जो देखती थी,सच बताऊँ तो कभी नहीं सोचा था कि हवाई यात्रा करेंगे,केवल देखती थी,जब हवाई जहाज की आवाज आती कमरे से बाहर निकलकर-भागकर बाहर आती, आसमान में खोजती,कई बार बादल में गुम हुए जहाज को जब नहीं देख पाती,तब बस बादल देखकर खुश हो जाती। बादल को निहारना बचपन से ही पसंद रहा है,मुझे। आज भी घण्टों अकेले मैं बादल और एक पेड़ देख,चेहरे ढूंढा करती हूँ,उसमें।  आज भी ठीक वैसे ही जैसे अभी यह यात्रा वृतांत लिखते समय सरकते बादल को सामने देखकर खो जा रही हूँ। क्या गजब का संयोग है,अभी जहां बैठकर लिख रही हूँ,वहाँ भी सामने बादल है और हर दो-तीन मिनट पर हवाई जहाज निकल रहा है और वो भी सिर के ऊपर से।
✍️साल 2019 का फरवरी का महीना,मैं घर पर ही थी। काम खोज रही थी,तभी गूगल सर्च में Geology jobs खोजते समय दिखा प्रोजेक्ट असिस्टेंट का काम National Institute of Oceanography, गोवा में। पापा जी की कही बात याद आ गई कि जहां घूमना हो उस जगह को एग्जाम या इंटरव्यू का सेंटर बना लो। बस याद आया और झट से टिकट बुक कर दी Paytm से,केवल जाने की। मेरे घर में हवाई जहाज में बैठने का अनुभव बस मेरे भैया नीशू को था। मिडिल क्लास वालों के लिए हवाई यात्रा हमेशा से ही ख़ास रहती है और हमेशा रहेगी भी। भैया को कॉल किया,मैने फोन पर कहा बता दो कि फ्लाइट का कैसे होता है, सब कुछ शार्ट में। मुझे तो यह भी नहीं पता था कि बोर्डिंग पास होता क्या है,आख़िर ? खैर, भैया ने सब बताया कैसे ,कहां क्या करना है। बताया बहुत कुछ था उन्होंने,लेकिन सब कुछ भूल गई मैं। मुझे याद रही तो बस एक लाइन कि जहां जो लिखा हो उसे देखते जाना सामने और उसको पढ़ती रहना और कान खुला रखना बस। इयर फोन तब तक मत लगाना,जब तक फ्लाइट के अंदर अपनी सीट पर न बैठ जाना। बस,फिर क्या,पहुंच गयीं लखनऊ एयर पोर्ट। बिना कोई परेशानी के बैठ गई अपनी सीट पर,सीट थी विंडो वाली नंबर 19. सच बताऊँ, तो मुझे डर बिल्कुल नहीं लग रहा था,क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि बीएचयू में पढ़ाई के दौरान अकेले रहने से और बनारस से घर (लखीमपुर-खीरी) की यात्रा ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ा दिया था। डर को भगाने मे सबसे बड़ा हाथ तो मां के हाथ के खाने का भी रहा,जो हर यात्रा में मेरे साथ रहता,हर एक कौर के साथ मेरा डर कब निकल गया, पता ही नहीं लगा और पापा जी का हैप्पी-हैप्पी कहकर सी ऑफ करना। फिर क्या सीट पर बैठकर सीट बेल्ट पहनकर फोन एयरोप्लेन मोड पर लगाकर उड़ान भरने से पहले घर और भैया को बोल दिया बैठ गई हूँ,अपनी सीट पर। अब सोचती हूँ तो अज़ीब लगता है कि वो यात्रा मेरी अकेले की तो थी नहीं ,भले ही टिकट एक लिया था,मैंने। मेरे साथ इस पहली हवाई यात्रा में मेरे घरवाले साथ थे, मेरे दिल और दिमाग में। 
नयनी डी० वर्मा अपने पिता जी के साथ 
        ✍️कितना अच्छा है न, दिल और दिमाग भौतिक रुप से बाहर नहीं दिखता वरना तो उन सब का भी टिकट लेना पड़ता, मुझे भी और आपको भी,वो भी हर एक यात्रा में। मेरी बगल वाली सीट पर थे,एक 50 साल के उम्र के पड़ाव पार कर चुके जिंदादिल इंसान.... नाम मुझे पता नहीं,क्योंकि नाम पूछा नहीं था मैंने उनका और न ही उन्होंने मेरा। खैर,जो भी हो, मैंने उन्हें सर जी बोला,क्योंकि मुझे झट से हर किसी को अंकल जी बोल देना मुझे बिल्कुल ठीक नहीं लगता। मैं हमेशा से ही अपने से उम्र मे बड़े लोगों को सर जी और मैम जी बोलकर ही संबोधित करती रहीं जोकि सामने वाले को हमेशा से अजीब ही लगा होगा, क्योंकि हमारे देश में ज़्यादातर लोगों की आदत नहीं होती सर और मैम सुनने की। 
✍️मेरी सीट के पीछे वाली सीट पर थी एक नव विवाहित महिला और सर की सीट के पीछे था उस महिला का पति। सही शब्दों मे कहें तो एक नव-विवाहिता जोड़ा जोकि हनीमून के लिए गोवा जा रहा था। दोनों सेल्फ़ी ले रहे थे बार-बार,फ्लाइट की उड़ान भरने से पहले ही वे 50 तो सेल्फ़ी ले ही चुके होंगे! लेते भी क्यूं नहीं!आख़िर, उस महिला की पहली हवाई यात्रा जो थी और भी हमसफर के साथ। उड़ान के दौरान जैसे ही हवाई जहाज ऊपर-नीचे होता,वह महिला एक हाथ से मेरी सीट को और दूसरे हाथ से अपने पति का हाथ कसकर पकड़ती,बार-बार तेज चिल्लाती...और मेरी सीट हिला देती। उसका पति बार-बार बोलता कि कुछ नही होगा। प्लीज धीरे बोलो न तुम...। मैं बस चुप-चाप अपनी सीट पर बैठ सुन रही थी उनकी सब बातें। मेरे बगल वाले सर भी सुन ही रहै होंगे उनकी बातें,क्योंकि सो तो वह भी नहीं रहे थे,इतना मुझे अच्छे से याद है। काफ़ी बार महिला के चिल्लाने की आवाज सुनने के बाद सर जी बोले लग रहा पहली हवाई यात्रा है,इनकी। मैं बोलती भी क्या ? आखिर मैं खुद अपनी पहली हवाई यात्रा कर रही थी। सर ने बोला और मैं मुस्कुरा दी,नहीं बोल पाई उनको तब कि सर मेरी भी तो यह पहली हवाई यात्रा है!
✍️मैं किताब पढ रही थी "आजादी मेरा ब्रांड "। हमेशा की तरह दो-तीन किताबें मेरी अकेले की हर यात्रा में मेरे साथ रहती हैं। कितना अजीब है न ,सफर में मिलने वाले लोग उन किताबों से ही आपको जज कर लेते हैं कि कैसे इंसान हैं,आप और आपकी पसंद-नापसंद भी !!! खैर,मुझे लगता है सर ने सामने टेबल पर रखी किताब से मुझे जज कर लिया होगा कि पक्का ही यह लड़की अकेले घूमती रहती होगी !!! सर ने वह किताब मांगकर कुछ देर पढ़ी,जब वह किताब पढ़ रहे थे,मेरी आँख लग गई, जब मैं जागी तो किताब की याद नहीं रही। अंकल ने तो वो किताब लौटाई ही नहीं मुझे! जैसे ही फ्लाइट गोवा में लैंड हुई , सब लोग उतरने लगे I बस और हवाई जहाज में आज भी जब सब उतर जाते हैं,सबसे आख़िरी में मैं उतरती हूँ I मुझे अच्छा लगता है कि फिर से सारी खाली सीटों को यात्रा खत्म होने से पहले देखना। पीछे वाला जोड़ा उतरने से पहले बोला सॉरी,मैंने कहा अरे!कोई बात नहीं। हवाई जहाज की यात्रा में ये सब होता है,इतना चलता है, यही सब तो यादें बनेगी जब कभी आप लोग जीवन में इस हनीमून यात्रा को याद करेंगे और कहा एंजॉय हनी मून। बस इतनी बात हुई तब मेरी उनसे,लेकिन नहीं बोल पाई उनको भी कि मेरी भी यह पहली हवाई यात्रा है और जीवन में पहली बार समुद्र देखूंगी आज...।

✍️सारे यात्रियों में सबसे आखिर में,मैं उतरकर जब लगेज काउंटर पर सामान लेने पहुँची तो देखा वो जिंदादिल इंसान अपना सामान लेने के बाद मेरा इंतजार कर रहे थे,किताब जो उन्हें रिटर्न करनी थी मुझे। वह बोले नयनी जी आपकी किताब,अभी याद आया तो मैं रुक गया कि लौटा देता हूँ आपकी किताब आपको। मैं चौक गई कि आख़िर, इस इंसान को मेरा नाम कैसे पता लग गया?! मैं बोल ही दी कि सर आपको मेरा नाम कैसे पता?वह बोले,इस किताब के पहले पन्ने पर ऊपर कोने में लिखा है न आपका नाम !! पूरी किताब तो पढ़ नहीं पाया अभी,मैंने किताब का नाम नोट कर लिया हैI मैं घर पहुँचकर ऑर्डर कर मँगाऊंगा यह किताब। आप सो रही थीं,इसलिए तब मैंने नहीँ लौटाई थी आपको,क्योंकि नींद बहुत लग्जरी चीज है मेरे हिसाब से,चाहे वह कैसी भी हो..। सच बताऊँ तो मैं कुछ बोल पाने की स्थिति मे नहीं थी,बस देख और सुन रही थी उनको। मैंने कहा कि आप रख लीजिए यह किताब। मेरे पास इस किताब का हार्ड कवर भी है। आप पढ़िएगा इसको आराम से अब और हां, सर मेरी भी यह पहली ही हवाई यात्रा थी। सर बोले,ओह ऐसा क्या! मैंने कहा जी ऐसा ही,मेरी पहली हवाई यात्रा गोवा की। वह बोले कि बेटा यह मेरा कार्ड है रखो,अगर कोई भी दिक्कत हो,यहां आ जाना। मेरे घर मैं अपनी पत्नी और तीन डॉगी के साथ जो मेरे हिसाब से हमारे बच्चे ही हैं,उनके साथ रहता हूँ Dona Paula एरिया में। 
✍️नियति देखिए समय और जगह की। जब मैं इंटरव्यू देने गई तो जो होटल मैंने बुक किया था वो Dona Paula एरिया में ही था और National institute of Oceanography के ठीक पास और वहीं वह नव विवाहित जोड़ा भी खाना खा रहा था। मैं उनके पास गई और बोली मेरी भी वो पहली ही हवाई यात्रा थी। यह सुनते ही वह महिला बहुत खुश हो गई और मैं बस मुस्करायी,ठीक वैसे ही जैसे आप इसे पढ़ते वक्त मुस्करा रहें हैं,क्योंकि मुझे लगता है कि पूरी दुनियां में लोग एक ही भाषा में एक ही तरह से मुस्कराते हैं और वह भाषा हर किसी को आती है। जब भी मैं अपनी पहली हवाई यात्रा याद करती हूँ तो बस, यही लोग आज भी याद आते हैं, मुझे। कितना अज़ीब है न, जब आप टिकट बुक करते हैं किसी यात्रा पर अकेले जाने के लिए,तभी बड़ी सी दुनिया के किसी हिस्से के बीच या किसी कोने मे कहीं कोई और भी अपनी यात्रा के लिए टिकट बुक करा रहा होता है। ट्रैन और बस की यात्रा में हम सभी अपनी यात्रा में होते हैं,सब साथ-साथ यात्रा करते हैं एक साथ और सभी को अलग-अलग जगह उतरना होता है,लेकिन हवाई यात्रा में हम सब एक जगह ही उतरते हैं,बशर्ते आपकी फ्लाइट Connecting फ्लाइट न हो। इसलिए कह सकते हैं,जैसे जीवन में भी सब मृत्यु के बाद आसमान या दूसरी दुनिया में कहीं मिलते ही होंगे, ठीक उसी तरह मैं भी मानती हूँ कि कुछ यात्राएं आप तय नहीं करते,कोई और कहीं दूर आपकी यात्रा की प्लानिंग का वेन्यू और मीटिंग पॉइंट डिसाइड करता है। आप और हम तो बस टिकट बुक करते हैं,पता होता है बस तो Arrival time of flight.भले ही आप अकेले निकलते है किसी यात्रा पर एक टिकट के साथ, लेकिन मैं नहीं मानती वह आपकी अकेले की यात्रा होती है,कहीं न कहीं उसी हवाई जहाज में आपकी किसी अनजान के साथ की यात्रा होती है,सभी ने अपना टिकट लिया हुआ है ...यात्रा साथ करते हैं सब,कुछ मिलते हैं जीवन यात्रा में फिर से कहीं और कुछ के साथ वह आपकी आख़िरी यात्रा होती है। इसलिए कह सकते हैं कि हर एक यात्रा में हर एक इंसान की अपनी एक अलग यात्रा होती है। जितने यात्री उतने ही अलग-अलग यात्रा-वृत्तांत होंगे,भले ही उन्होंने एक ही फ्लाइट में यात्रा क्यूं न की हो! 


Thursday, May 09, 2024

लोकतंत्र में वोटर्स पर " चार दिन की चांदनी,फिर अंधियारी रात" वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही-प्रो.नन्द लाल वर्मा (सेवानिवृत्त)

नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी
            ✍️बजाज ग्रुप की गोला-गोकर्णनाथ,पलिया और खम्भार खेड़ा चीनी मिलों के क्षेत्र के जागरूक गन्ना किसानों को वर्तमान लोकसभा चुनाव प्रचार-प्रसार में वोट मांगने के लिए गांवों में पधारने वाले सभी स्थानीय सत्ताधारी माननीय जनप्रतिनिधियों अर्थात सत्ताधारी गठबंधन के सभी दलों के माननीय विधायकों,सांसदों और पदाधिकारियों से गन्ना मूल्य भुगतान के लिए निर्धारित क़ानूनी समय सीमा के भीतर भुगतान न होने पर सवाल करना न भूलें। यदि स्थानीय नेतागण संतोषजनक जवाब नहीं दे पाते हैं या गोलमोल जबाव देते हैं या जबाव देने से कतराते हैं तो उन्हें किसानों से वोट माँगने का कोई राजनैतिक अधिकार नहीं रह जाता है और न ही जनता को ऐसे जनप्रतिनिधियों को दुबारा अपना मत और समर्थन देना चाहिए अर्थात ऐसे लोगों को फिर से चुनने की गलती नहीं करनी चाहिए। यूपी के मुख्यमंत्री की अतिमहत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत जिले में अलग-अलग जगहों पर कथित पर्याप्त गौशालाओं की व्यवस्था होने के बावजूद बेतहाशा घूमते आवारा पशुओं से किसानों की बर्बाद होती फसल के लिए उन्होंने और उनकी सरकार की ओर से अब तक कौन-कौन से सार्थक प्रयास किए हैं और किये जा रहे हैं? इन आवारा पशुओं से कई किसानों की मौतें तक हो जाने के बावजूद यूपी की असंवेदनशील सरकार इस मुद्दे पर अपेक्षित मुद्दे पर खरी नहीं उतरी। किसान भाइयों! यही समय है जब आप इनसे अपनी दुश्वारियों या दिक्कतों पर सवाल-जबाव कर सकते हैं,उसके बाद अगले चुनाव तक फिर आप इनसे मिलने और सवाल करने की स्थिति में नहीं रह पाएंगे। चुनाव में नेताओं की भूमिका याचक या भिखारी जैसी होती है और जनता की मालिक या राजा जैसी। चुनाव खत्म हो जाने के बाद जनता की भूमिका याचक या भिखारी जैसी हो जाती है और नेता की मालिक या राजा जैसी। यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि चुनावी लोकतंत्र में नेताओं को चुनाव के दौरान कुछ दिनों के लिए नकली भिखारी बनकर पांच साल के लिए असली राजा बन जाने के भरपूर अवसर प्रदान करता है और जनता चुनाव दौरान के कुछ दिनों के लिए राजा जैसा अनुभव कराकर या बनकर बाकी समय के लिए नेता के सामने असली याचक या भिखारी जैसा ही बनकर रहने के अवसर देता है। प्रत्येक मतदान से पहले देश के हर जिम्मेदार नागरिक मतदाता का राजनीतिक उत्तरदायित्व हो जाता है कि अगले चुनाव में वोट अपने नेता की कारगुजारियों या दलीय सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन का अवलोकन-आंकलन करने के बाद निकले निष्कर्ष के आधार पर ही दे। 
✍️देश के सामाजिक और सांस्कृतिक मंचों से जुड़े एक्टिविस्ट,बुद्धिजीवियों,स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों एवं चिंतकों,जन सरोकारों से जुड़े मीडिया वर्ग और अकादमिक संस्थाओं से जुड़े बुद्धिजीवियों द्वारा पिछले कई वर्षों से लगातार यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि संविधान और लोकतंत्र भयंकर खतरे की चपेट में है और 2024 का लोकसभा चुनाव देश के संविधान और लोकतंत्र का भविष्य तय होने के संदर्भ में देखा जा रहा है। पिछले कुछ समय से संविधान - लोकतंत्र और उनसे जुड़ी स्वायत्त संस्थाओं की कार्य-संस्कृति पर उमड़ते संकटों को देखते हुए एक अजीब सा माहौल बनता हुआ दिखाई दे रहा है जिससे देश के सामाजिक घटकों में एक तरह की असमंजस,अदृश्य भय,बेचैनी या अनगिनत आशंकाएं पनपती हुई महसूस की जा रही हैं। समता,समानता,न्याय और बन्धुतायुक्त हमारे संविधान और लोकतंत्र ने देश के हर नागरिक और हर वर्ग को बहुत कुछ दिया है,लेकिन देश के हज़ारों साल से सामाजिक-राजनीतिक-शैक्षणिक-आर्थिक रूप से वंचित,शोषित व पिछड़े वर्गों को कुछ अतिरिक्त सकारात्मक व्यवस्था प्रदान की गई है जिससे उन्हें भी समान और सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अवसर मिल सकें। इसके लिए संविधान में बाक़ायदा अनुच्छेद दर अनुच्छेद उचित व्यवस्था के साथ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत भी बनाए गए हैं। संवैधानिक व्यवस्था की निगरानी करने के लिए कुछ विशिष्ट स्वायत्तशासी संस्थानों की भी स्थापित की गयी। एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के सम्मान,विकास और सुरक्षा हेतु बनी संवैधानिक व्यवस्था के माध्यम से मिले आरक्षण से ही एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों को देश की व्यवस्था में उनकी जनसंख्या के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व मिलने की प्रक्रिया शुरू हुई। भले ही यह प्रक्रिया बे-मन,अधूरे मन,देर से और दूषित मानसिकता की वजह से सुस्ती से लागू हो पाई है,लेकिन जैसे-जैसे इन वर्गों में सामाजिक और शैक्षणिक चेतना से पिछड़ापन दूर होता गया उसके अनुरूप उनकी भागीदारी बढ़ने या मिलने का मार्ग प्रशस्त होता गया। आज़ादी के 75 सालों में संवैधानिक व्यवस्था के हिसाब से भले ही इन वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है,लेकिन आरक्षण की वजह से मिली भागीदारी से इन वर्गों से सामाजिक,शैक्षणिक,राजनीतिक व आर्थिक रूप से एक विशाल और सशक्त मध्यम वर्ग के रूप में जरूर उभरा है जो यहां की वर्णवादी व्यवस्था के पोषकों की आंखों में सुई की तरह चुभ रहा है और इनको जब भी कोई मौका मिलता है तो वे ऐसी साजिश या षडयंत्र रचने का अवसर हाथ से जाने नहीं देते जिससे इन पिछड़े वर्गों को मिलने वाले समान अवसरों में यथासंभव कटौतियां की जा सके। 
✍️आरक्षण में ओवरलेपिंग व्यवस्था का खात्मा,एक ही स्तर पर आरक्षण देना,शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की रोस्टर व्यवस्था,आयु सीमा और शैक्षणिक योग्यता में मिलने वाली छूट के आधार पर आरक्षण खत्म करना,ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करना,वर्ग आधारित जिसे लोग जाति आधारित आरक्षण कहते हैं,उसकी 50% अधिकतम सीमा तय होना,ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण देते समय आरक्षण की निर्धारित अधिकतम सीमा को जानबूझकर ओवरलुक करना,आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता होने पर सामान्य/अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की भर्ती करने की पुरानी व्यवस्था के स्थान पर एन.एफ.एस. की व्यवस्था लांच कर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की योग्यता पूर्ण होने के बावजूद उन्हें नॉट फाउंड सूटेबल घोषित कर बाहर का रास्ता दिखाना और ऐसा तीन बार होने पर आरक्षित सीट पर सवर्ण की नियुक्ति करने का नियम और सबसे बड़ी साजिश तो लेटरल एंट्री(चोर दरवाजे) से विषय विशेषज्ञता के नाम पर 450 से अधिक जॉइंट सेक्रेटरी (यूपीएससी के माध्यम से चयनित और नियुक्त एक आईएएस को लगभग 17 साल लगते हैं, इस पोस्ट पर पहुंचने में अर्थात जिसके अधीन लगभग सत्तरह बैच के आईएएस ऑफिसर् काम करते हैं) की आरक्षण लागू किये बिना भर्ती करना,बेतहाशा निजीकरण करना आदि आरक्षित वर्ग की खुलेआम हकमारी के जीते-जागते उदाहरण देखे और पढ़े जा सकते हैं। सबसे बड़ी विडंबना और दुखद पहलू यह है कि इस तरह की हकमारी पर विधायिका (लेजिस्लेटिव)और कार्यपालिका (एग्जीक्यूटिव) में उसी वर्ग के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों में किसी भी तरह की बेचैनी या हलचल नहीं दिखती है। ये सभी लोग डॉ.आंबेडकर जी के "पे बैक टू द सोसाइटी " के दर्शन या सिद्धांत को भूल गए हैं जिनकी बदौलत इन्हें राजनीतिक और सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलने से एक सम्मान पूर्वक खुशहाल और विलासिता पूर्ण जीवन जीने का अवसर मिला है। चुनाव में ऐसे छद्म आंबेडकरवादियों और सामाजवादियों को परखने का अच्छा वक़्त होता है। असली और नकली लोगों की जानकारी हासिल करने के बाद ही डॉ.आंबेडकर के द्वारा दिये गए बहुमूल्य मताधिकार का प्रयोग करना ही उनके प्रति असली सम्मान और सच्ची श्रद्धांजलि मानी जाएगी। मुंह से जय भीम का नारा लगाने या नीले कपड़े पहनने या नीला झंडा पकड़ने से डॉ.आंबेडकर का मिशन/सपना/ पूरा नहीं होने वाला है,इसके लिए प्रदर्शन के स्थान पर उनके दर्शन या वैचारिकी और चित्र की जगह उनके चरित्र और आवरण को हटाकर आचरण में लाना होगा। वह पूंजी परस्त सरकारों के विरोधी थे। आजकल की सरकार पूरी तरह क्रोनी कैपिटलिज़्म की पोषक बनी हुई है। 
✍️पिछड़े और वंचित वर्ग को इस लोकसभा चुनाव में संविधान और लोकतंत्र के ख़ातिर वोट करना है और वह भी चातुर्यपूर्ण तरीके (टैक्टिकली) से। चुनावी राजनीति के लिए आज सरकार जो मुफ़्त सुविधा,सामग्री या सम्मान दे रही है,वह सब संविधान की वजह से ही सम्भव हुआ है। जब संविधान ही नहीं रहेगा तो यह सब जो आज मिल रहा है,वो सब बंद होने में देर नहीं लगेगी। सरकार किसी भी दल की हो,सांविधानिक रूप से जिसे जो मिल रहा है,उसे खत्म करने का साहस नहीं है और यह तभी सम्भव है जब देश में संविधान और लोकतंत्र मजबूती के साथ क़ायम रहेगा। संविधान और लोकतंत्र को बचाना एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों की " चातुर्यपूर्ण चुनावी राजनीतिक एकजुटता और विवेकशील निर्णय" से ही सम्भव है। विगत चुनावों की तरह इस बार किसी भी तरह के लालच/चुनावी प्रलोभन/मीठे भाषण में यदि फंसे तो यह तय मानिए कि आने वाले भविष्य में न तो संविधान बचेगा और न ही लोकतंत्र बचेगा और ऐसी स्थिति में आपको अपने मताधिकार जैसे एक मजबूत हथियार से भी वंचित होना पड़ सकता है जिसे डॉ.आंबेडकर ने कड़ी मेहनत और त्याग- तपस्या से सामाज और राजनीति के भयंकर विरोधों और संघर्षों को झेलते हुए पिछड़े-वंचित वर्ग के लोगों के लिए हासिल कर पाए थे। 
✍️एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों को इस लोकसभा चुनाव में बेहद चातुर्यपूर्ण तरीके से वोट देने की जरूरत है जिससे संविधान और लोकतंत्र बदलने और खत्म करने की बात करने का दुस्साहस करने वाले राजनीतिक दल,उनके नेताओं और उसके परामर्शदाताओं की संविधान और लोकतंत्र विरोधी सोच पर एक-एक वोट की करारी चोट कर उनके मंशूबों को चकनाचूर और धराशायी किया जा सके। संविधान है तो लोकतंत्र कायम रहेगा और यदि लोकतंत्र कायम रहेगा तो सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक विविधताओं से युक्त हमारा खूबसूरत भारत भी वैश्विक स्तर पर मजबूती के साथ खड़ा रहेगा। 

Sunday, May 05, 2024

यूपी के विशेष संदर्भ में: टैक्टिकल वोटिंग से चुनावी राजनीति के पंडितों के सारे पूर्वानुमान और आंकड़े धराशायी होने के साथ बीजेपी का भारी भरकम चुनावी तंत्र भी बौना साबित हो सकता है-प्रो.नन्द लाल वर्मा (सेवानिवृत्त)


   चुनावी चर्चा 2024   
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी
✍️2019 लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बहुजन समाज पार्टी के निजी चुनावी विश्लेषण में यह निष्कर्ष निकाला गया था  कि इस लोकसभा चुनाव में उसे समाजवादी पार्टी का कोर वोट बैंक ट्रांसफर नहीं हुआ, लेकिन चुनाव आयोग के अंतरिम आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बसपा को सपा के साथ हुए गठबंधन से उसके परंपरागत सामाजिक वोट का आंशिक लाभ तो मिला ही है। इसके इतर सपा को बसपा का कथित ट्रांस्फरेबल कोर वोट बैंक पूरी तरह ट्रांसफर होता नहीं दिखाई देता है। विश्लेषण से निष्कर्ष निकलता है कि उसके कोर वोट बैंक में बीजेपी एक लाभार्थी वर्ग पैदाकर उसमें अच्छी खासी सेंधमारी करने में सफल हुई है।
✍️यूपी में 2019 लोकसभा चुनाव बसपा-सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन अपेक्षित नतीजे नहीं मिलने की वजह से बीएसपी द्वारा परिणाम घोषित होते ही यह आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ दिया था कि सपा का कोर वोट बैंक उसे ट्रांसफर नहीं हुआ। 2014 में बसपा ने अकेले दम पर 80 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 19.77% वोट मिले थे और एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी। 2019 में उसने सपा के साथ गठबंधन कर 36 सीटों पर चुनाव लड़कर उसे 19.36% वोट मिले। सिर्फ 36 सीटों पर लड़ने के बावजूद बसपा को लगभग पिछले चुनाव के बराबर ही वोट प्रतिशत हासिल हुआ। इससे साबित होता है कि बसपा को सपा का कुछ न कुछ वोट अबश्य ट्रांसफर हुआ है। वहीं, सपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में 80 सीटों पर लड़कर 22.35% वोट मिला था ,लेकिन 2019 में बसपा से गठबंधन कर 36 सीटों पर लड़कर मत प्रतिशत 18% के करीब रहा। साफ है कि सपा को बसपा का वोट बैंक कम ट्रांसफर हुआ वरना उसके मतों का प्रतिशत और कम हो जाता। गठबंधन के बावजूद सपा का वोट प्रतिशत गिरा है।
✍️2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 80 सीटों में से 62 सीटें जीती थी,बसपा ने 10,सपा ने पांच,अपना दल(एस) ने दो और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी। वहीं, नतीजों के चंद दिनों बाद ही सपा-बसपा गठबंधन को लेकर मायावती ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर सपा से गठबंधन के बारे कहा था कि हमारे और अखिलेश-डिंपल के रिश्ते बने रहेंगे। मायावती ने कहा था कि लोकसभा चुनाव 2019 के गठबंधन में यादव वोट बसपा को शिफ्ट नहीं हुए और अभी वर्तमान स्थिति में हम उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर होने वाले उपचुनाव अब अकेले लड़ेंगे। सपा-बसपा गठबंधन तोड़ने पर मायावती ने कहा कि यह कोई हमेशा के लिए ब्रेक नहीं है। अगर हमें लगा कि भविष्य में सपा अध्यक्ष अपने राजनीतिक काम में सफल होते हैं तो हम फिर से साथ मिल सकते हैं,लेकिन अगर वह सफल नहीं होते हैं तो फिर हमारे लिए अकेले ही चुनाव लड़ना बेहतर होगा। लगता है कि बीएसपी सुप्रीमो की नज़र में सपा मुखिया सफल नहीं हुए हैं। इसलिए बीएसपी ने उपचुनाव अकेले ही लड़ना तय किया। आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीएसपी ने मुस्लिम समाज के गुड्डू जमाली को प्रत्याशी बनाया जिससे मुस्लिम समुदाय का वोट बंटने से न सपा जीत सकी और न ही बसपा। मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव का लाभ बीजेपी को मिल गया। 
✍️2024 लोकसभा चुनाव में भी बसपा यदि इसी पैटर्न पर प्रत्याशियों का चयन करती है तो इसका लाभ सपा और बसपा की बजाय सीधे बीजेपी को मिलने की पूरी सम्भावना लगती है,क्योंकि भारत का कोई भी समाज अभी तक टैक्टिकल वोटिंग (चातुर्यपूर्ण मतदान) करने का निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो पाया है,लेकिन यदि मुस्लिम और दलित समाज टैक्टिकल वोटिंग प्रबन्धन में सफल होता है तो चुनावी राजनीतिक पंडितों के सारे पूर्वानुमान और आंकड़े धराशायी होते देर नहीं लगेगी। यदि मुस्लिम और दलित समाज सपा,बसपा और कांग्रेस के क्षेत्रवार प्रत्याशियों के पक्ष में किसी भी तरह टैक्टिकल वोटिंग प्रबन्धन में सफल हो जाता है तो विपक्ष को अधिकतम लाभ मिलने से कोई रोक नहीं पायेगा और एनडीए को सर्वाधिक चुनावी क्षति होने से उनका भारी भरकम चुनावी तंत्र भी बचाने में सफल नहीं हो सकता। टैक्टिकल वोटिंग प्रबन्धन की कुशलता से सपा,बसपा और कांग्रेस को अपेक्षा से कई गुना चुनावी लाभ मिल सकता है, लेकिन सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक,धार्मिक,भौगोलिक,सांस्कृतिक और शैक्षणिक रूप से विविधता युक्त भारत के विशाल लोकतंत्र में डिफरेंट,रिएक्शनरी और पारस्परिक विरोधी वोटिंग मानसिकता की वजह से टैक्टिकल वोटिंग एक असंभव और बेहद जटिल और अव्यावहारिक स्थिति मानी जाती है।
✍️2024 लोकसभा चुनाव में बीएसपी के अकेले चुनाव लड़ने की राजनीति से सीट के हिसाब से भले ही उसे अतिरिक्त लाभ न मिले,लेकिन उसकी चुनावी बिसात से बीजेपी और समाजवादी पार्टी की राजनीति के लिए वोट विभाजन या बिखराव से अनिश्चितता की स्थिति जरूर पैदा होती दिख रही है। बीएसपी के अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय और टिकट वितरण में प्रयोग की गई सामाजिक केमिस्ट्री से बीजेपी को (कम) और सपा को (अधिक) जितना नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है, उतना लाभ बसपा को भले ही न मिले,लेकिन दोनों पार्टियों के लिए एक असमंजस या अनिश्चितता की स्थिति पैदा करती हुई जरूर दिख रही है। बसपा के 2014 में अकेले चुनाव लड़ने और 2019 में सपा के साथ गठबंधन से निकले चुनावी परिणामों के विश्लेषण से 2024 के चुनाव में बसपा को अधिकतम नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है। सपा के साथ चुनावी गठबंधन की वजह से 2019 में बीएसपी शून्य से दस सीट हासिल करने में सफल हो गयी थी और समाजवादी पार्टी अपनई पुरानी संख्या को बमुश्किल बचा पाई थी। राजनीतिक गलियारों में अवसरवादी कही जाने वाली बीएसपी को गठबंधन का समाजवादी पार्टी से कई गुना चुनावी लाभ मिलने के तुरंत बाद बीएसपी सुप्रीमो द्वारा यह कहते हुए गठबंधन तोड़ना कि बसपा को समाजवादी पार्टी का वोट बैंक ट्रांसफर नहीं हुआ,उनकी किस तरह की सियासत का हिस्सा है, यह आज तक राजनीतिक विशेषज्ञों और विश्लेषकों के लिए एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। चुनावी राजनीति की मोटी-मोटी समझ रखने वाला भी जान गया था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में किसका वोट किसको ट्रांसफर हुआ था अथवा नहीं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मायावती द्वारा एकतरफा तोड़े गए गठबंधन पर बेहद राजनीतिक सौम्यता और शालीनता का परिचय देते हुए न तो तात्कालिक कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और तब से लेकर आज तक चुनाव घोषित होने के बावजूद बीएसपी सुप्रीमो मायावती के उस एकतरफा निर्णय पर किसी भी तरह की टिप्पणी से दूर रहना, उनकी चुनावी राजनीतिक परिपक्वता और दूरदर्शिता को दर्शाती है और बहुजन समाज(एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक) की भावी गठबंधन की राजनीति के लिए एक सुखद संकेत के रूप में परिभाषित और देखी जा रही है।
✍️2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण में विश्लेषकों द्वारा यह अनुमान और आंकलन किया गया था कि दलित समाज का एक हिस्सा मुफ़्त राशन और किसान सम्मान निधि से आकर्षित होकर बीजेपी के साथ गया था। विगत 2019 की तुलना में 2024 लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है जिससे बीएसपी कुछ बेहतर स्थिति में लग रही हो। 2019 में सपा से गठबंधन होने की वजह से बीएसपी को ओबीसी की कुछ जातियों का थोड़ा बहुत वोट मिल गया था, ऐसा विश्लेषकों का अनुमान और आंकलन बताता है। कांग्रेस के साथ सपा का चुनावी गठबंधन होने के बावजूद 2019 की तुलना में वोट बैंक में इज़ाफ़ा होता हुआ नहीं दिखाई देता है,क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं और संगठन के मामले में जमीनी स्तर पर बीएसपी से तो बहुत गरीब हीहै। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीएसपी जहाँ मुस्लिम प्रत्याशी उतारेगी वहां बीजेपी को सीधा लाभ मिलने की पूरी सम्भावना है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के दस साल के कामकाज से उपजी नाराजगी(एन्टी इनकंबेंसी) से जो थोड़ा बहुत नुकसान होने की संभावना प्रतीत होती है,उसकी तुलना में सपा और बसपा का अलग-अलग चुनाव लड़ना बीजेपी के लिए ज्यादा फायदेमंद होता दिख रहा है।
✍️हो सकता है कि 2024 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 2014 की तरह अपनी परंपरागत सीटों के साथ कुछ अतिरिक्त सीटें हासिल करने में सफल हो जाए, लेकिन बीएसपी द्वारा अपनी चुनावी विरासत को बचाना मुश्किल क्या असंभव जैसी स्थिति बनती हुई दिख रही है।सांविधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की खुली धज्जियां उड़ाकर काम करने वाली आरएसएस पोषित सत्तारूढ़ पार्टी के गठबंधन के खिलाफ बीएसपी का अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय से संविधान और लोकतंत्र के खतरों को लेकर बहुजन चिंतकों,बुद्धिजीवियों,सामाजिक एक्टिविस्ट और एकैडमिक संस्थाओं से जुड़े लोगों में चिंता और भय की गहरी लकीरें साफ तौर पर देखी जा सकती हैं और सांविधानिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए वे यथासंभव वैचारिक विमर्श, धरना-प्रदर्शन के माध्यम सामाजिक जनजागरण और जनांदोलन करने के साथ न्यायिक कार्यवाही भी कर रहे हैं। इसके बावजूद संघ परिवार, सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के चहेते लोग संविधान को अप्रासंगिक और विसंगतिपूर्ण बताने से बाज नहीं आ रहे हैं और समय समय पर उसे बदलने की बात करते रहते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट मानना है कि ऐसी स्थिति में विपक्ष का अलग-अलग चुनाव लड़ना बीजेपी और उसके गठबंधन के लिए एक तरह का अप्रत्यक्ष रूप से वॉकओवर देने जैसा ही है। इसी वजह से चुनावी माहौल में बीएसपी और सपा दोनों दल भिन्न-भिन्न समय पर बीजेपी की "बी" टीम होने के अलंकार या उपाधि से नवाज़े जाते रहते हैं। 

Thursday, May 02, 2024

संविधान और लोकतंत्र को खत्म करना संघ और बीजेपी का प्रमुख एजेंडा:प्रो.नन्द लाल वर्मा (सेवानिवृत्त)

नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी
   चुनावी चर्चा 2024   
✍️सत्ताधारी भाजपा के नेता इस लोकसभा चुनाव के शुरूआती दौर में ‘चार सौ पार’ की बात कर रहे थे जिस पर बीजेपी की मातृ संस्था के मुख्यालय से विराम लगाने की सख्त हिदायत दिए जाने के बाद "अबकी बार -चार सौ पार" का नारा लगना बंद हो गया है। उनका मानना है कि इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी 370 से ज्यादा सीटें जीतेगी और उसके गठबंधन साथी 30 से ज्यादा। इस प्रकार एनडीए 400 पार हो जायेगा। यह संख्या किसी चुनाव विशेषज्ञ की राय या किसी वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर आधारित नहीं है। अचानक यह यह प्रचार अदृश्य तरीकों और तकनीकों से उनके गुप्त एजेंडे का चुनावी राजनीतिक हित साधने की नीयत से किया जा रहा था ।
✍️आख़िर,एनडीए को चार सौ पार करने की जरूरत क्यों है? इसका स्पष्टीकरण देते हुए भाजपा के कर्नाटक से सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार हेगड़े ने बताया कि संविधान को बदलने के लिए पार्टी को 400 सीटों की जरूरत होगी। उनका कहना है कि ‘‘कांग्रेस ने संविधान को विकृत कर दिया है,उसका मूल स्वरूप ही बदल दिया है,उसने संविधान में अनावश्यक चीजें (शायद उनका मतलब धर्मनिरेपक्षेता व समाजवाद से है) ठूंस दी हैं। उनका यह भी कहना है कि बहुत से ऐसे कानून बनाए गए हैं जो हिन्दू समुदाय का दमन करते हैं। ऐसे में अगर इस स्थिति को बदलना है अर्थात संविधान को बदलना है,तो वह उतनी सीटों से संभव नहीं है जितनी अभी बीजेपी के पास हैं।’’ यह तभी सम्भव हो सकता है जब बीजेपी को अकेले न्यूनतम दो तिहाई बहुमत हासिल होगा। भाजपा ने शातिराना अंदाज़ में हेगड़े के इस बयान से दूरी बना ली। उसने कहा कि वह अपने सांसद के वक्तव्य का अनुमोदन नहीं करती। ऐसी खबरें भी हैं कि यह बयान देने के कारण हेगड़े को पार्टी के टिकट से भी वंचित किया जा सकता है। ऐसा होता है या नहीं यह तो समय बतायेगा,लेकिन एक बात पक्की है,वह यह है कि भाजपा के लिए इस तरह के बयान और दावे कोई नई बात नहीं हैं। अनंत कुमार हेगड़े ने यही बात 2017 में भी कही थी जब वह एनडीए की केन्द्र सरकार में मंत्री थे,किंतु फिर भी उन्हें 2019 के चुनाव में टिकट दिया गया था।
✍️सांसद राहुल गांधी और कई अन्य का मानना है कि भाजपा को 400 सीटें उसी उद्देश्य के लिए चाहिए जिसकी बात अनंत हेगड़े कर रहे हैं। राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा ‘‘भाजपा सांसद का यह बयान कि पार्टी को संविधान बदलने के लिए 400 सीटों की जरूरत होगी। दरअसल,यह मोदी और उनके संघ परिवार के गुप्त एजेण्डा का अप्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक उदघोष है। मोदी और बीजेपी का अंतिम लक्ष्य येनकेन संविधान को खत्म करना है। आरएसएस सामाजिक न्याय,समानता,नागरिक अधिकार,धर्मनिरपेक्षता,समाजवाद और लोकतंत्र जैसी संवैधानिक संकल्पनाओं से शुरू से ही नफरत करता आ रहा है।’’
✍️राहुल गांधी ने यह आरोप भी लगाया कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ‘‘समाज को बांटकर,अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक लगाकर और स्वतंत्र-स्वायत्त संस्थाओं को पंगु या सरकार की कठपुतली बनाकर संघ परिवार भारत के महान लोकतंत्र को अप्रत्यक्ष रूप से एक लोकतांत्रिक तानाशाही व्यवस्था में बदलना चाहता है और कथित भ्रष्टाचार के नाम पर ईडी,सीबीआई,आयकर जैसी एजेंसियों  के माध्यम से जांच के नाम पर विपक्ष को लगातार कमजोर और समाप्त किये जाने की अनवरत प्रक्रिया जारी रखना उसके षड़यंत्र और साजिश का हिस्सा है।’’ जब भी किसी विपक्षी दल के नेता से राजनीतिक नुकसान या लाभ होने की आशंका या संभावना दिखती है,उसी क्षण किसी जांच एजेंसी की कार्रवाई का डर दिखाकर उसे कमल पुष्प की शीतल छाया में आने के लिए मजबूर कर दिया जाता है और पवित्र कमल के स्पर्श मात्र से वह सभी प्रकार के पापों,विकारों,भ्रष्टाचार और दोषों से मुक्त हो जाता है।
✍️लोकतांत्रिक मूल्यों जिनमें समानता,समता और भाईचारा शामिल है,को कमजोर करने के लिए भाजपा की रणनीति दो स्तर पर है।उसका पितृ/मातृ संगठन आरएसएस संविधान बनने की तारीख से ही सख्त खिलाफत करता रहा है। संविधान लागू होने के बाद उसके गैर-आधिकारिक मुखपत्र ‘द आर्गनाईज़र’ ने लिखा था… ‘‘हमारे संविधान में प्राचीन भारत में हुए अनूठे सांस्कृतिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। मनुस्मृति की व्यवस्था आज की तारीख में भी दुनिया भर के लिए विशेष सम्मान का विषय है। वे लोगों को स्वाभाविक रूप से उनका पालन करने और उनके अनुरूप आचरण करने के लिए प्रेरित करते हैं,लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है।’’
✍️भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने 1998 में सत्ता में आने के बाद संविधान की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन करने का काम किया था। इस वेंकटचलैया आयोग की रिपोर्ट लागू नहीं की जा सकी, क्योंकि संविधान के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ का जबरदस्त विरोध हुआ था। भाजपा अपने बल पर 2014 से सत्ता में है और तब से उसने कई बार संविधान की मूल उद्देशिका का प्रयोग,उसमें से धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी शब्द हटाकर किया है।
✍️सन 2000 में सुदर्शन के आरएसएस का प्रमुख बनने के बाद बिना किसी लागलपेट के कहा था कि "भारत का संविधान पश्चिमी मूल्यों पर आधारित है और उसके स्थान पर एक ऐसा संविधान बनाया जाना चाहिए जो भारतीय पवित्र ग्रन्थों पर आधारित हो। सुदर्शन ने कहा कि वर्तमान संविधान भारत के लोगों के लिए किसी काम का नहीं है,क्योंकि वह गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट-1935 पर आधारित औपनिवेशिकता की निशानी है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें संविधान को पूरी तरह से बदल डालने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।"
✍️अभी पिछले साल अगस्त में ‘द मिंट’ में प्रकाशित अपने लेख में पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देब रॉय ने भी संविधान को बदलने की जरूरत बताई थी,लेकिन उन्होंने देश के पीएम को कभी यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि देश की अर्थव्यवस्था कैसे सुधारी जा सकती है,बेरोजगारी दूर कैसे हो सकती है,विदेशी मुद्रा के सापेक्ष रुपया क्यों गिरता जा रहा है?जबकि 2014 से पहले मोदी मंचों पर भारतीय रुपये के गिरने की चिंता में सदैव डूबे दिखाई देते थे। बीजेपी संगठन,संघ परिवार और सरकार का शीर्ष नेतृत्व समय-समय पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संविधान को बदलने की बात करते रहें हैं,लेकिन भाजपा और सरकार एक कूटनीति के तहत आधिकारिक रूप से कहती रहती है कि वह इन विचारों का कभी अनुमोदन नहीं करती।
✍️बीते एक दशक के शासनकाल में बीजेपी ने संविधान के मूलभूत मूल्यों को अनवरत नुकसान पहुंचाने का यथासंभव प्रयास किए हैं।लोकतांत्रिक राज्य के सभी स्तम्भों,संवैधानिक स्वायत्त संस्थाओं,जांच एजेंसियों और चुनाव आयोग पर सरकार का नियंत्रण दिखाई देता है। बीजेपी सरकार का मतलब है,एक व्यक्ति। ईडी हो,सीबीआई हो,आयकर विभाग या चुनाव आयोग हो,सभी एक ही व्यक्ति के नियंत्रण और निर्देशन में काम करते दिख रहे हैं। जहां तक न्यायपालिका का सवाल है उसे भी अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग तरीकों से कमजोर करते हुए देखा जा सकता है। आखिर,क्या कारण है कि विपक्ष के नेताओं और सरकार की आलोचना करने वाले बुद्धिजीवियों के वर्षों से जेल में होने के बावजूद कोई अदालत उनकी जमानत की अर्जी पर विचार करने को तैयार नहीं है!
✍️जहां तक अभिव्यक्ति की आज़ादी का सवाल है बीजेपी के शासन काल में वह लगभग खत्म सी हो गयी है। मुख्यधारा का मीडिया सरकार का प्रशंसक,चाटुकार,प्रचार एजेंसी और सरकार पोषित कार्पोरेट घरानों के नियंत्रण में है और लगभग सभी नामीगिरामी टीवी चैनल और अखबार सरकार के भोंपू बन चुके हैं। स्वतंत्र रूप से सोचने वाले और आज़ादी से बोलने वालों के लिए बहुत कम जगह बची है अर्थात आज के दौर में असहमति या आलोचना के लिए कोई जगह नहीं बची है और यह तब जब हम सब जानते हैं कि बोलने की हमारी आज़ादी संवैधानिक लोकतंत्र का हिस्सा है।
✍️अंतर्राष्ट्रीय सूचकांकों के अनुसार भारत में धार्मिक स्वतंत्रता लगातार कमज़ोर होती जा रही है। अमरीका के धार्मिक स्वतंत्रता "वॉचडॉग" के अनुसार भारत ‘‘विशेष चिंता’’ का विषय है। "वी-डेम" के अनुसार प्रजातंत्र के सूचकांक पर भारत का नंबर 104 है। यह गिरावट पिछले दस सालों में ही आई है। वर्तमान सरकार अपनी जांच एजेंसियों और अपने निर्णयों के जरिये सांविधानिक लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का लगातार गला घोंटती जा रही है।
✍️बहुत ज्यादा समय नहीं गुजरा है जब लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि भारत में अघोषित आपातकाल लागू है। देश में हिन्दू राष्ट्रवाद के लड़ाके हर तरह की आज़ादी को कुचल रहे हैं और सरकारी तंत्र भी यही कर रहा है।सरकार दर्शक दीर्घा में है और इन तत्वों को उसका साफ संदेश है कि वे अल्पसंख्यकों और समाज के कमजोर वर्गों के लोकतांत्रिक नागरिक अधिकारों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन और दमन कर सकते हैं और उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा।
✍️ हम अपने आसपास देखते हैं तो मालूम होता है कि प्रत्येक धार्मिक राष्ट्रवादी संस्थाओं को लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं से एलर्जी है। वे सभी संविधान को बदलना चाहते हैं और उनके कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर बाँटने और दमन करने वाली राजनीति करते हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका में यही होता आया है। अब भारत भी लोकतंत्र को कुचलने वाले देशों के उस क्लब में शामिल होने की कोशिश में है। संघ और भाजपा की रणनीति एकदम साफ दिखती है कि " एक तरफ संविधान को बदलने की बात करो और दूसरी तरफ जो वर्तमान संविधान है उसे लगातार यथासंभव कमज़ोर और निष्प्रभावी करने के प्रयास जारी रखो।"

पढ़िये आज की रचना

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