साहित्य

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Tuesday, April 12, 2022

शोषितों- वंचितों के लिए निर्भीकता की मिसाल और मसाल हैं और विद्यार्थियों के लिए बेमिसाल आदर्श/प्रेरक व्यक्तित्व हैं डॉ.आंबेडकर:नन्द लाल वर्मा

"उनकी जीवन संघर्ष की गाथा संजीदगी और ईमानदारी के साथ जो पढ़ेगा, उसकी आंखें एक बार भीगती या डबडबाती जरूर नज़र आएंगी.....आंबेडकरवादी बनने की इस मिथ्या परंपरा या पहचान से बाहर निकलकर डॉ.आंबेडकर की तरह अपने को शिक्षा की भट्ठी में तपाना होगा।"
एन०एल० वर्मा
एसोसियेट प्रोफ़ेसर
(युवराज दत्त महाविद्यालय)
         डॉ.भीम राव आंबेडकर एक ऐसा महान व्यक्तित्व है जो हर निराश,हताश और परेशान व्यक्ति की सामाजिक,धार्मिक,आर्थिक और राजनीतिक मुक्ति का मार्ग तैयार करते हुए आजीवन संघर्ष करते हुए नजर आते हैं। डॉ.भीमराव आंबेडकर को यदि 20 वीं सदी का महानतम व्यक्ति की संज्ञा दी जाए तो अतिशयोक्ति नही होनी चाहिए। जय भीम जय हिंद की तरह ही एक ऐसा नारा या उदघोष है जो हर वंचित- शोषित व्यक्ति के अंदर सतत संघर्ष के लिए एक अद्भुत ऊर्जा और शक्ति का संचार करता है। भीषण विषम परिस्थितियों से गुजर कर उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है,वह दुनिया की ऐतिहासिक में एक अद्भुत मिसाल है। उनकी जीवन संघर्ष की गाथा संजीदगी और ईमानदारी के साथ जो पड़ेगा, उसकी आंखें एक बार भीगती या डबडबाती जरूर नज़र आएंगी।
 
           आज कथित आंबेडकरवादी यह कहते हुए सुनाई पड़ते हैं कि सवर्ण दलितों को घोड़ी पर बैठने और बारात चढ़ाने नहीं देते हैं, चारपाई पर बैठे नहीं देते हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि डॉ. आंबेडकर साहब को क्या वे ऐसा करने से रोक पाए थे? बिल्कुल नहीं। डॉ.आंबेडकर की तरह अपने को तपाकर जिस दिन समाज के बीच जाओगे, घोड़ी और खटिया पर बैठने की तो बात दूर , पूरा सवर्ण समाज आपको पूरे सम्मान के साथ अपने सिर पर बैठाने के लिए उतावला दिखेगा। पहले आंबेडकर की तरह बनने का ईमानदारी से प्रयास और संघर्ष तो करके देखो! जो भी आंबेडकर की विचारधारा पर चलकर शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं, वे आज घोड़ी- चारपाई तो छोड़ो पूरी दुनिया मे हवाई जहाज से उड़ रहे हैं। सबसे पहले शिक्षित होकर आंबेडकर की तरह ज्ञानी बनो, फिर बताना देश के ब्राम्हण या सवर्ण तुम्हारे साथ कैसा सलूक करते हैं? केवल जय भीम बोलने या नीला कपड़ा पहनने या मूंछ ऐंठने से कोई आंबेडकरवादी नही हो जाता है। आंबेडकरवादी बनने की इस मिथ्या परंपरा या पहचान से बाहर निकलकर डॉ.आंबेडकर की तरह अपने को शिक्षा की भट्ठी में तपाना होगा। जय भीम का नारा तभी बुलंद और सार्थक होगा जब बहुजन समाज के लोग आंबेडकर जी की वैचारिकी या दर्शन को व्यावहारिक जीवन में अर्थात आचरण में उतारेंगे। डॉ.भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा के सामने दीपक,मोमबत्ती और अगरबत्ती जलाकर केवल उनका उपासक ही नहीं बनना है, बल्कि उनकी विचारधारा का संवाहक बनना होगा अर्थात उनकी वैचारिकी को खड़ा करना होगा। आंबेडकर जी खुद कहा करते थे कि मैं मूर्तियों और प्रतिमाओं में नहीं ,बल्कि क़िताबों में रहता हूँ। इसलिए आंबेडकरवादी बनने वाले हर इंसान को उनकी वैचारिकी-दर्शन को आत्मसात करना होगा और आंबेडकर जैसा विचारक - दार्शनिक बनकर उस पर आचरण करना होगा। बहुजनों को आंबेडकर जी  सवर्णों के सिर पर बैठने का ऐसा अद्भुत  सिद्धांत या हथियार (संविधान) देकर गए हैं जिसकी अकूत ताकत के साथ वह शान से सिर उठाकर चल सकता है। वह कहते थे "शिक्षा शेरनी का वह दूध है जिसे जो पिएगा वह दहाड़ेगा" और हम लोग अभी भी घोड़ी,बारात और चारपाई तक सिमटे हुए हैं। ऐसा वही कहते हैं जो दलित अशिक्षित और अज्ञानी हैं। ब्राह्मण जैसा बनने का प्रयास करिए और जैसे ही कोई सवर्ण या ब्राह्मण आपके सामने आए तो उसके सामने संस्कृत और मंत्रों का तेज-तेज उच्चारण कर पानी छिड़ककर ऐसे चिल्लाओ जिसे देखकर ब्राह्मण या सवर्ण देखकर भौचक रह जाए। ऐसा करने के लिए दलित समाज को तैयार करना होगा और फिर देखो तुम्हारी इस दशा को देखकर ब्राह्मण खुद न चिल्लाने लग जाए ,कि बाप रे बाप!


           एक शिक्षक बुद्ध जी थे जिनके किसी राज दरबार में प्रवेश करने पर राजा खुद सिंहासन से उतरकर नीचे मिलने आता था। ज्ञान या शिक्षा ऐसी शक्ति है जिसके सामने बड़ी-बड़ी हस्तियां झुकती हैं। इसलिए डॉ आंबेडकर की तरह शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करने के लिए सतत प्रयास और अभ्यास करने की जरूरत है।

          आंबेडकर एक बात अच्छी तरह जान गए थे कि आखिर ब्राह्मण इतना शक्तिशाली और सम्मानित क्यों है अर्थात उनकी शक्ति का आधार क्या है? शक्ति का आधार है ज्ञान और ज्ञान का मतलब सूचना नहीं होता है बल्कि, तार्किकता के आधार पर विषय को कसौटी पर कसने की क्षमता और इसीलिए आंबेडकर ने शिक्षा के माध्यम से ज्ञान अर्जित करने में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। दुनिया के नामी- गिरामी  विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में गहन अध्ययन और शोध कार्य किए। सारे धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन करने के पश्चात उनकी सच्चाई जानी और उसके बाद ही मनुस्मृति को जलाने का साहस जुटा पाए थे। जाति व्यवस्था में ऊंच-नीच का भाव गलत होता है। हम किसी भी चर्मकार या जुलाहे को उतने सम्मान की दृष्टि से नहीं देख पाते हैं जितना बाटा या वुडलैंड या अन्य किसी चमड़े के शोरूम के मालिक को या कपड़े बेचने वाले पूंजीपति को सम्मान देते हैं। ब्राह्मण केवल शिक्षा या ज्ञान की बदौलत ही श्रेष्ठ नहीं बन जाता है, बल्कि ज्ञान का दान करने से श्रेष्ठ बनता है। मान लीजिए कि किसी के पास अपार ज्ञान है और उसके ज्ञान से समाज के किसी व्यक्ति को कोई लाभ नहीं होता है,तो समाज उसका सम्मान क्यों करेगा और उसे श्रेष्ठ क्यों समझेगा? ऐसा करने से ही धीरे-धीरे वह व्यक्ति या समाज श्रेष्ठ बनता चला जाता है। ब्राह्मणों को एक भ्रम हो गया कि ज्ञान की वजह से ही वे श्रेष्ठ है,ऐसा नहीं है।

        डॉ.आंबेडकर को क्लास के बाहर बैठा दिया जाता था और वह बालक फिर भी किसी भी प्रकार की ग्लानि या अपमान महसूस न करते हुए अपने ज्ञान अर्जन के मार्ग पर पूरी हिम्मत और शिद्दत से चलता चला जाता है। कोलंबिया और लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसी दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थाओं में एक साधारण परिवार का एक असाधारण बालक स्वयं को एक सच्चा विद्यार्थी सिद्ध करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है और आज उन्हें  पूरी दुनिया में ज्ञान के प्रतीक अर्थात सिंबल ऑफ नॉलेज की संज्ञा से नवाज़ा जाता है। डॉ.आंबेडकर की शैक्षणिक ज्ञान की वजह से ही डॉ.आंबेडकर की बहुआयामी वैचारिकी -दर्शन को कोलंबिया विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल कर वहां के छात्रों को पढ़ाया और उन पर शोध कराया जा रहा है और हमारे देश में डॉ. आंबेडकर का बहुआयामी साहित्य और दर्शन लंबे समय तक आम लोगों के पास पहुंचने तक नही दिया गया। बहुजन समाज से निकले अन्य समाज सुधारकों और विचारकों की तरह डॉ. आंबेडकर को भी इतिहास के पन्नों में जानबूझकर इसलिए दबाए रखा जिससे देश का वंचित,शोषित और अशिक्षित एससी-एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग में सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक चेतना का संचार न हो सके। इसीलिए शिक्षित बनो और ज्ञानी बनो और ज्ञान को समाज में दान करो तभी आपको समाज में सम्मान मिलेगा और धीरे-धीरे श्रेष्ठता हासिल होती जाएगी।

          आज डॉ.आंबेडकर , गांधी और भगत सिंह देश के ही नहीं, बल्कि विश्व के महान आदर्श बन चुके हैं। आंबेडकर को  जिन लोगों ने क्लास के बाहर बिठाया उन्हीं के बीच या सिर पर बैठकर अपने अकूत ज्ञान के बदौलत पूरी निर्भीकता के साथ ऐसा संविधान रच दिया जिसमें कहीं भी किसी भी प्रकार का भेदभाव ,प्रतिक्रिया या बदले की भावना नहीं झलकती है। आज तक उनकी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक मानववादी संवैधानिक व्यवस्था या विचारधारा पर कोई सवालिया निशान लगाना तो दूर उसमें नुक़्ता चीनी तक लगाने का साहस नहीं जुटा  पाया है। बहुजन समाज को संविधान रूपी ऐसा अस्त्र डॉ आंबेडकर दे गए हैं जिससे वह बोल सकता है, अपने सामाजिक, राजनीतिक और अन्य हक लेने के साथ उनके लिए कानूनी और लोकतांत्रिक रूप से लड़ाई भी लड़ सकता है। डॉ.आंबेडकर की आज की हैसियत का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश की विभिन्न पार्टियों के बैनर-पोस्टर-भाषण डॉ.आंबेडकर का नाम के बिना और नारे लगाए अधूरे से माने जाते हैं। आज के दौर में राजनीतिक सत्ता के क्षितिज या कैनवस पर डॉ.आंबेडकर को इग्नोर करना असंभव सा हो गया है। ब्राह्मणवादी सोच की राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियों के आयोजन भी बिना आंबेडकर के चित्र,विचारों और भाषण के बिना पूरे नही माने जाते हैं।
 
          हम कह सकते हैं कि वर्तमान दौर की राजनीति में आंबेडकर साहब की वैचारिकी या दर्शन एक अपरिहार्य विषय बन चुका है। देश के हर नागरिक को डॉ.की सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के मोटे-मोटे सिद्धांतों को जरूर पढ़ना चाहिए। आज के वैज्ञानिक और आर्थिक युग में यह दुर्भाग्य का विषय है कि समाज मे सोशल साइंस के विषय लेकर अध्ययन और शोध करने  वाले छात्र-छात्राओं का कमतर मूल्यांकन किया जा रहा है।
         आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था पर समाज का एक ऐसा वर्ग है जो यह कहता है कि आंबेडकर ने हमारी जिंदगी बर्बाद कर दी और दूसरा वर्ग दिल ठोककर जय भीम का उदघोष करते हुए कहता है कि डॉ.आंबेडकर हमारे भगवान हैं, मसीहा हैं और मुक्तिदाता हैं। समाज के दो छोरों पर बैठे लोगों की सोच के इस भारी अंतर से डॉ.आंबेडकर की सार्थकता और प्रासंगिकता का आभास किया जा सकता है। हम कह सकते हैं कि हर परेशान इंसान के मसीहा हैं, डॉ.आंबेडकर साहब!
पता-मोतीनगर कालोनी लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश 262701

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