साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, November 26, 2021

मैं भी एक वादी हूं-कपिलेश प्रसाद

कपिलेश प्रसाद
मेरी भी एक हसरत थी 
विचारों की श्रंखला में ,
मेरा भी " वाद " चले 
मैं महज़ मेरे नाम के 
" ज़िन्दाबाद " से कुछ अलग
लक़ीरे ख़ीचना चाहता था ।
सो खिच गई , 
ऐसा लगता है ... । 

दुनिया की सैर पर ,
मैं निरन्तर यों नहीं निकल पड़ा था ।
कई -कई " वाद " देखे हैं मैने ,
मैं भी तो एक " वादी " हूँ ... 
एक अपने " वाद " का होना 
ही कुछ अलग बात है , 
यह दिगर बात है कि 
मैं जनवादी नहीं ।
अभिलाषाओं , महत्वाकाँक्षाओं की वादी मेरी , 
निर्विवाद नहीं , 
शून्य से शिखर तक का 
यह सफर मेरा ,
सदा-सदा आबाद रहे ।
मैं रहूँ , ना रहूँ ...
मेरा " वाद " रहे ।
यों ही कोई सिकंदर महान 
और एडोल्फ हिटलर नहीं बन जाता !

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