साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, November 20, 2021

एक सपना जो सच नहीं था पर सच था- हर्ष अवस्थी

उस दिन तो हद् ही हो गयी भई ! मैं स्कूल से घर लौट रहा था अचानक बारिश हो गयी तो मैं भीग गया , घर आया। " अरे बेटा भीग गए ? कपड़े बदल लो नही तो ठंड लग जाएगी" आप भी समझ गए होंगे यह माँ की आवाज़ होगी । "बेटे रिजल्ट कैसा आया" यह बात तो पापा ही पूछते हैं । मैंने जवाब दिया " अरे हाँ आज तो रिजल्ट मिला था , बैग में हैं अभी देता हूं ये लीजिये "।" तुम इतने कम नंबर लाये हो कमभखत , क्या सपना है तुम्हारा, क्या करोगे जीवन में कोई नौकरी नही देगा " ।
क्या यार कल पापा ने डांट दिया " उफ ! मेरा जीवन है , मुझे कोई नही समझता मम्मी पापा भी नही "। खुद से कहा मैंने।
आज जब स्कूल की छुट्टी हुई तो घर जाते वक़्त सोच रहा था कि मेरा सपना क्या है बनने का सोचा कवि बन जाऊं , उफ ।
अगले दिन सुबह पापा बोले " बेटा क्या सपना है तेरा कुछ बनने का या बिगड़ने का'। मैंने मस्त अंदाज़ में जवाब देते हुए कहा " पापा मैंने कुछ सोचा नही हैं मेरा सपना क्या है पर हाँ रोज़ पैदल जाता हूं एक साईकल ही दिला दीजिए "। "ओके  कल दिला दूंगा , अपना सपना चुनो बेटा " पापा ने कहा ।
अगले दिन मैं स्कूल से लौट रहा था । सोचा कि आज अपना सपना बता दू पापा मम्मी को शायद  गुस्सा हो जाएंगे। अपने मुहल्ले में घुसते ही लोग मुझसे पूछने लगे " भाई बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ "। मैंने सोचा कि अभी तक तो सपना बताया नही उनको कैसे पता चल गया " क्यों क्या हो गया ? "  मैं घर मे गया और जो मैंने देखा वो बहोत खौफनाक था , मैंने दो लाशें देखी  जिनमे सफेद कपड़ा ढका था । मैं खड़ा था वही ओर बाकी परिजन मेरी ओर देख रहे थे , हवा की गूंज बुलंद थी , मोहल्ले में सन्नाटा था । तभी हवा के झोंके से सफेद कपडे उड़े और वो मेरे माता पिता थे , परिजनों ने बताया सड़क हादसे में मृतियु हो गई। 
" हे राम , हे ईश्वर , ये क्या हो गया मेरे साथ , अब मैं क्या करूँगा इनके बगैर जी के "।
  
फिर एक आवाज़ आई जैसे ट्रैन की गूंज धीमे धीमे करीब अति है " बेटा उठो ! बेटा उठो ! पौने सात बज गया है स्कूल नही जाना क्या " हाँ वो मेरी माँ ही थी जो मुझे आवाज़ लगा रही थी । " अरे ये सब सपना था ? "। हाँ ये सपना है था , एक गहरी नींद। मैं पापा मम्मी के गले लग के स्कूल गया उस दिन और अब न मुझे साईकल चाहिए थी और न हेलीकॉप्टर।
यह तो बहोत अच्छी बात है सपना सच नही होता , पर सच में सच्ची चीज़े सच में होती हैं। एक एक गहरी नींद के सपने ने मेरी आँख खोल दी। मेरा सपना जो कवि बनने का था वो अभी तक बरकरार है।  मुझे याद रहेगा यह , एक सपना ।

                                                           -हर्ष अवस्थी

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