साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, January 12, 2016

मल्टीमिडिया के आगोश में कौन ?



मल्टीमिडिया के आगोश में कौन ?


आज के वर्तमान समय में गौर किया जाय तो एक विकट समस्या से भारत का कोई गाँव या खास प्रदेश  ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा संसार प्रभावित है। जिससे निपटना कठीन ही नहीं बल्कि बड़ा ही दुष्कर है। इस विषम परिस्थिति में किस प्रकार की और कैसी युक्ति अपनायी जाये जिससे सर्वत्र सुख शान्ति का आलम हो ।

वर्तमान परिवेश में अनेक प्रकार की नवीन वैज्ञानिक तकनीकी, पद्दतियों आदि का अविष्कार हुआ है जहाँ मानव जीवन के लिये लाभदायक भी रहा है तथा उसका दुरपयोग घातक। आज का युग पूर्णतः वैज्ञानिक हो चुका है इसमें कोई संदेह नहीं, परन्तु इन तकनीकीयों से कोई प्रभावित रहा है एक-आध को छोड़ दें तो उनसे केवेल नए उम्र लड़के और लड़कियाँ ही क्योंकि भारत नवयुवको का देश है, यहाँ के नवयुवक किस काम के नहीं हैं. यह कहना भी व्यर्थ है,यर्थाथता तो यह है कि उन्हे सही मार्गदर्शन,सहयोग और उचित परिवेश नहीं मिल पाता है जिसके फलस्वरूप वे अपने मार्ग से भटक कर अप्रत्यासित कार्य कर बैठते हैं।

भारत देश का ग्रामीण परिवेश हो या शहरी वह मल्टीमिडिया के क्षेत्र में जितना विकास किया है,उतना किसी अन्य क्षेत्र में नहीं वह चाहे गरीब व्यक्ति हो या अमीर सभी के पास औसत मल्टीमिडिया का आकड़ा दर्ज किया जाय तो 10 लोगो में से 3 के पास अनिवार्य रूप से प्राप्त होगा उसमे भी नवयुवको से लेकर 12 वर्ष के बच्चों की संख्या ज्यादा है और यह वर्ग उसका सदुपयोग कम दुरपयोग ज्यादा करता है। अगर सही कहा जाये तो मल्टीमिडिया मोबाईल या अन्य उपकरण  जिस उपयोग के लिये लिया गया है उसके लिये किया ही नहीं जाता काल के नाम पर तो कई-कई दिन गुजर जाते होंगे 99 प्रतिशत ऐसे छात्र-छात्रायें हैं जो उपयोगी साईटों को जानते ही नहीं वहीं सोसल नेटवर्क से जुड़कर ज्यादा से ज्यादा अश्लिल मूवी और चित्रों को ही देखते हैं जिसके चलते बाल उम्र में ही काम प्रवृत्ति भड़क उठती है जिसकी यथार्थ पूर्ति हेतु आस-पास की नासमझ बच्चियाँ शिकार हो जाती हैं जिसे हम आज के समय में बलात्कार,यौन हिंसा,दुष्कर्म आदि का नाम दे चुके हैं और इस प्रकार के कुकृत्य में ज्यादातर हमारे सगे सम्बन्धी ही होते हैं चाहे वह रिस्तेदार हों या घर का नौकर इस प्रकार की गलती अगर लड़की ही करती है तो उसे दोष निषिध्द कर उससे सम्बन्धित आस पास के लड़के या घर के नौकर को ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

 हम गौर करे तो हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों से ज्यादा ही इस प्रकार के घिनौने कार्यों की पुनरावृत्ति हुई है। जिसके कारण आज कोई व्यक्ति कितना ही सक्षम क्यों नहीं हो परन्तु वह एक लड़की का बाप या भाई है तो उसके मन में एक डर सा सदैव बना रहता है वह आतंकित है चोरी डकैती तो बात अलग है परन्तु गैंगवार बलात्कार की घटना जरूर होती है मुझे अमर उजाला, हिन्दुस्तान के दैनिक अंक में पढ़ने को मिला कि तीन नकाबपोशों ने कमरे में सो रही बच्ची को गनप्वाईटं पर लेकर सास और बहू दोनो के साथ गैंग्वार बलात्कार की घटना को अंजाम दिया इससे साफ है कि व्यक्ति अब धन-दौलत नही अपने घर की महिलाओ से सुरक्षित नही है। मेरे अपने विचार से मनन करता हूँ तो पता हूँ कि कहीं न कहीं इसमें शोसलमीडिया की बड़ी भागीदारी है जो इसका जिम्मेदार है सोशल नेटवर्क पर इस प्रकार के अश्लील विडियो,चित्रों को पूर्णतः प्रतिबन्धित कर पाना असंभव सा प्रतीत होता है क्योंकि उसमें सलीप्त व्यक्ति भी जनसामान्य से नहीं है। एक से एक बड़े देश-विदेश के घाघ है। जिससे उन्हे मोटी रकम प्राप्त होती है इस प्रकार के साईटों को नेट से हटा दिया जाय तो स्वतः 60 या 70 प्रतिशत नेट उपयोग कर्ताओं की संख्या में कमी आ जायेगी क्योकिं आज का युवा वर्ग सबसे ज्यादा साइबर कैफे या फिर अपने मल्टीमिडिया मोबाईल पर अश्लील साईटों का ही प्रयोग करते हैं और चरित्रहीनता की सीमा का उलंघन कर जाते हैं । इस विषम परिस्थितियों में पूरी जिम्मेदारी माता-पिता की है परन्तु यह भी संभव नहीं है, आज के वर्तमान परिवेश में माता-पिता अक्सर घर से बाहर ही रहते हैं उनका घर केवल उनके लिये एक रैनवसेरा के समान है उनकी अनुपस्थिति में उनके लड़के या लड़कियाँ किस प्रकार के साथियों के बिच में रहते हैं ,इसका उन्हे कुछ भी पता नहीं रहता। पर इतना तो जरूरी है कि बच्चों की अच्छी परिवरिश के लिये कुछ तो समय निकालना ही जाय नही तो आगे आने वाली पीढ़ी किस गर्त तक जायेगी कुछ कहा नहीं जा सकता, पर कुछ सावधानियाँ वरती जा सकती है -



परिवारिक स्तर पर बरती जाने वाली सावधानियाँ-


  •  बच्चों को मल्टीमिडिया मोबाइल न देकर सादे सामान्य मोबाइल फोन दें।
  •   बच्चों को मोबाइल फोन देने का निर्धारण उनकी आवश्यकता, उम्र को देखकर करैं।
  •   बच्चों पर रोज संभव न हो सके तो हफ्ते महीने की गतिविधियों का अवलोकन करें।
  •  उनके साथियो, दोस्तो से बात करें उनके परिवार आदि के विषय में जांच पड़ताल करैं।
  •  बच्चों में आने वाली अनावश्यक व्यवहारिक परिवर्तनों पर नजर रखें, संका की स्थिति में उचित समाधान प्राप्त करैं, पर ध्यान रहे उनके आत्म-सम्मान को ठेस न पँहुचे।
  • बच्चों को प्राप्त होने वाली कीमती वस्तुओं उपहारों के विषय में अपने स्तर से जानकारी हासिल करैं।
  • बच्चों को नैतिक शिक्षा प्रदान करैं अपने स्तर से समझाने का प्रयास करैं।
  • बच्चों को मल्टीमिडिया फोन दिया जाना अनिवार्य है तो मोबाइल फोन दें पर यकायक औचक निरीक्षण करैं परन्तु ध्यान रखें उनके सम्मान को ठेस न पहुँचे और न ही उनको इस बात की भनक लगे, अश्लील सामग्री के प्राप्त होने पर डाँटे-फटकारे ,मारे-पीटे नहीं प्यार से समझायें या फिर अपने स्तर से समस्या का समाधान करैं।


सरकारी स्तर पर बरती जाने वाली सावधानियाँ-


  •   कम्प्यूटर आदि की दुकानों का औचक निरीक्षण कर अश्लील सामग्रीयों को प्रतिबन्धित करैं।
  •   बच्चों को विद्यालय स्तर पर नये वैज्ञानिक क्रिया कलापों के प्रति रूचि उत्पन करे तथा उन्हे व्यस्त रखें ।
  •   सोसल साइटो से अश्लील सामग्रीयों को प्रतिबन्धित किया जाय।
  •  राज्य और केन्द्र सरकारें इसके प्रति सजग,सचेत हों।
  • पत्र-पत्रिकाओं आदि के विज्ञापन प्रचार में प्रयुक्त की जाने वाली अश्लील चित्रों पर पूर्णतः प्रतिबन्ध हो क्योंकि प्रचार सामग्री के साथ अश्लील चित्रों की मात्र इतनी ही भूमिका है कि कामुकतावश व्यक्ति एक नजर डालेगा, खरीदेगा आवष्यकता पड़ने पर ही ना समझ उसका गलत मतलब लगायेगें। 
इसके अतिरक्ति अन्य ढेर सारी बाते हैं जो बच्चो की उचित परिवरिश हेतु आवष्यक हैं मेरे द्वारा लिखा जाना संभव नहीं है.

पढ़िये आज की रचना

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