साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Tuesday, August 16, 2022
लघुकथाएं-सुरेश सौरभ
युगीन दस्तावेज तालाबंदी-रंगनाथ द्विवेदी
सम्पूर्ण विपक्ष की सामाजिक - राजनीतिक भूमिका पर उठता एक बेहद स्वाभाविक सवाल-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)
![]() |
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) वाणिज्य विभाग वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी |
Wednesday, June 15, 2022
भारत गौरव सम्मान से सम्मानित अनुभूति गुप्ता खीरी जिले की एक साहित्यिक पहचान हैं-अखिलेश कुमार अरुण
सम्मान
परिचय अनुभूति गुप्ता जन्मतिथि- 05.03.1987. जन्मस्थान- हापुड़ (उ.प्र.) शिक्षा- बी.एस.सी. (होम साइन्स), एम.बी.ए., एम.एस.सी. (आई.टी.) (विद्या वाचस्पति उपाधि प्राप्त) Pursuing International cyber law and forensic sciences course from IFS, Mumbai... सम्प्रति- डायरेक्टर/प्रकाशक (उदीप्त प्रकाशन, yellow Feather publications)(लखीमपुर खीरी) प्रकाशक/एडिटर (अनुवीणा पत्रिका) प्रोफेशनल चित्रकार रेखाचित्रकार (only
rekhachitrkar from kheri, रेखाचित्र,
30000 से अधिक) स्वतंत्र लेखिका सम्पर्क सूत्र- 103 कीरत नगर निकट डी एम निवास लखीमपुर खीरी 9695083565 |
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, गांधीनगर
(बिहार) ने अनुभूति गुप्ता को भारत गौरव सम्मान 2022 से अलंकृत कर हम क्षेत्रवासियों को एक पहचान
दिया है वैसे आप किसी
परिचय की मोहताज नहीं है, लखीमपुर खीरी जैसे
पिछड़े जिले से साहित्य के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल करना अपने आप में एक
बड़ी उपलब्धि है जहाँ हिंदी साहित्य
में लेखन की बात करें तो इक्का-दुक्का साहित्यकार ही अपनी टूटी-फूटी लेखनी से
जिले-जेवार का नाम रोशन करते रहे हैं। पंडित वंशीधर शुक्ल पुराने लेखकों में सुमार
थे तब से लेकर आज तक साहित्यिक विरासत सूनापन लिए चल रहा था। आज कई लेखक साथी
साहित्यिक रचनाओं में भिन्न-भिन्न हिंदी साहित्य की विधाओं पर अपनी लेखनी चला रहे
हैं।
हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं पर आपकी
लेखनी को सरपट दौड़ाने वाली लेखिका/संपादिका अनुभूति गुप्ता ने कविता, कहानी,
लघुकथा, हाइकु, रिपोर्ताज, जीवनी आदि पर खूब
लेखन किया है। देश-विदेश की नामचीन पत्र-पत्रिकाओं हंस, दैनिक भास्कर-मधुरिमा, हिमप्रस्थ, कथाक्रम, सोच-विचार, वीणा, गर्भनाल, जनकृति, शीतल वाणी, उदंती,
पतहर, नवनिकष, दुनिया इन दिनों, शुभतारिका, गुफ्तगू, शब्द संयोजन, अनुगुंजन, नये क्षितिज, परिंदे, नव किरण, नेपाली पत्रिका आदि
अनेकों हिन्दी पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित होती रहती हैं। नवल, आधारशिला और चंपक पत्रिका में कहानी का
प्रकाशन। साहित्य साधक मंच, अमर उजाला, दैनिक नवज्योति, दैनिक जनसेवा मेल, मध्यप्रदेश जनसंदेश, ग्रामोदय विजन आदि विभिन्न समाचार पत्रों
में कविताएं एवं लघुकथाएं प्रकाशित। 300 से अधिक कविताएं प्रकाशित। ’कविता कोश’ में 60 से अधिक कविताएं संकलित।
साहित्य आपको विरासत के रूप में आपके माता
जी (बिनारानी गुप्ता) से मिला है जो लेखन में अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक सक्रीय
रही हैं जो पिछले साल करोना महामारी में कालकवलित हो गईं, जिनके साहित्यिक सपनो को
साकार करने के लिए उनकी बेटी अनुभूति गुप्ता जी ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रही
हैं अपने माता जी की स्मृति में आपने एक पुस्तक प्रकाशन की परियोजना में व्यस्त
हैं, आप अपने छात्र जीवन से ही साहित्य से आप जुड़ीं तो जुड़ती ही चली गईं, साथ ही साथ पेंटिंग करना आपकी प्रवृत्ति
में शामिल है हजारों रेखाचित्रों का एक बड़ा संग्रह आपने तैयार किया हुआ है। जिनका
प्रकाशन देश की नामचीन साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं यथा-पाखी, नया ज्ञानोदय, मधुमति, वागर्थ,
हंस, कथादेश, कथाक्रम आदि इतना ही नहीं आपके रेखा चित्रों का प्रकाशन साहित्यिक
पत्रिकाओं के आवरण पृष्ठों पर भी खूब किया गया है रेखाचित्रों के प्रकाशन की एक
झलक देखिये पाखी,
नया ज्ञानोदय, मधुमती, वागर्थ,
’हंस’, ’कथादेश’, ’कथाक्रम’, विभोम
स्वर, ’प्राची’, शीतल वाणी, साहित्य अमृत, समकालीन अभिव्यक्ति, कथा समवेत, गाँव के लोग पत्रिका में रेखाचित्र प्रकाशित एवं प्रकाषित होते रहते
हैं। पत्रिका के कवर पर पेंटिग- मधुमती, शीतल वाणी, किस्सा कोताह, नूतन कहानियां, वीणा, वैजयंती, विचरण जियालोको, प्रतिबिम्ब, संवेद आदि। पत्रिका के कवर पर रेखाचित्र- अविराम साहित्यकी किताब के
कवर पर पेंटिग प्रकाशनाधीन- लेखक- सूरज उज्जैनी, मुकेश कुमार, राकेश कुमार सिंह, किताबों
में प्रकाशित रेखाचित्र- माटी कहे कुम्हार से, सुनो नदी ! किताबों में प्रकाशित कार्टून चित्र- जलनखोर प्रेमी, नटखट प्रेमिका (कात्यायनी सिंह)पत्रिका के
कवर पर खिंचा गया चित्र- शब्द संयोजन आदि।
अनुभूति गुप्ता लेखनी का एक ऐसा नाम है
जिसमें समाज की मर्मिक्ताओं का आभास होता है तथा बौखलाहट और घुटन देखने को मिलती
है प्रकाशित रचनाओं की फेहरिस्त भी काफी लम्बी है यथा- बाल सुमन (बाल-काव्य
संग्रह), कतरा भर धूप (काव्य संग्रह), अपलक (कहानी संग्रह), बाल सुमन (बाल-काव्य संग्रह) दूसरा
संस्करण, तीसरा संस्करण।प्रकाशनाधीन- मैं (काव्य
संग्रह), कोकनट में उगती स्त्रियां और 44 से अधिक पुस्तकों
का आपने सफल प्रकाशन भी किया है और यह निरंतर जारी है।
साहित्य की दुनिया में दिल खोलकर लोगों ने
आपको सम्मानित भी किया है और इस सम्मान की आप असली हक़दार भी है। एक नज़र डालते हैं
आपकी की सम्मान निधि पर तो यह भी अपने आप में एक अवर्णनीय है- शोध पत्रिका में लेख
एवं अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘अवधी भाषा‘‘ में प्रमाण पत्र प्राप्त एवं ’नारी गौरव सम्मान’ तथा ’प्रतिभाशाली रचानाकार सम्मान’, ’साहित्य-श्री सम्मान’, ’के.बी.
नवांकुर रत्न सम्मान’, नवपल्लव
पत्रिका के कुशल सम्पादन हेतु ’अमृता प्रीतम स्मृति
शेष’ सम्मान तथा प्रसिद्ध संस्था श्रीनाथ द्वारा
’सम्पादक शिरोमणि सम्मान’, शान्ति देवी अग्रवाल स्मृति सम्मान, इमराजी देवी चित्रकला रत्न, भारत गौरव से सम्मानित एवं अनेको सम्मान
प्राप्त है।
...
Monday, June 06, 2022
पर्यावरण दिवस-विकास कुमार
Tuesday, May 31, 2022
आंबेडकर बनाम गांधी-गोलवलकर वैचारिकी/सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक समरसता/जाति उन्मूलन बनाम जाति समरसता-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)
भाग एक
![]() |
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) वाणिज्य विभाग वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी |
✍️ दलित और ओबीसी की अधिकांश जातियां ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं और वे अधिकांश अपने परंपरागत पेशे से ही जीविका चलाती हैं। विज्ञान और तकनीक युक्त शिक्षा उन तक अभी पूरी तरह नहीं पहुंच पाई है और सामाजिक स्तर पर छोटी-बड़ी जातियों की मान्यता के साथ जाति व्यवस्था अच्छी तरह से अपने पैर जमाए हुए है। सामाजिक स्तर पर अनुसूचित और ओबीसी की जातियों के बीच आज के दौर में भी सामान्य रूप से आपसी खान-पान और उठने-बैठने का माहौल पैदा होता नहीं दिखता है। सामाजिक,राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलनों की वजह से दलितों की सामाजिक और धार्मिक मान्यताओंं/परंपराओं/रीति-रिवाज़ों में कुछ सीमा तक बदलाव आना स्वाभाविक है और जो दिखाई भी देता है। इन आंदोलनों से पूर्व दलित और ओबीसी हिन्दू धर्म,त्यौहारों,परम्पराओं और रीति-रिवाज़ों को एक ही तरह से मानते/मनाते थे। बौद्घ धर्म और आंबेडकरवादी विचारधारा के प्रवाह से अब अनुसूचित और ओबीसी की जातियों की धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाज़ों में काफी अंतर आया है। शिक्षा की कमी के कारण ओबीसी के उत्थान के लिए डॉ.आंबेडकर द्वारा बनाई गई संवैधानिक व्यवस्था को ओबीसी अभी भी नहीं समझ पा रहा है। जातीय श्रेष्ठता की झूठी शान और सामाजिक/धार्मिक रीति-रिवाज़ों में अंतर के कारण दोनों में सामाजिक और राजनीतिक सामंजस्य या मेलमिलाप की भी कमी दिखाई देती है। सदैव सत्ता में बने रहने वाले जाति आधारित व्यवस्था के पोषक तत्वों / मनुवादियों द्वारा आग में घी डालकर इस दूरी को बनाए रखने का कार्य बखूबी किया गया और आज भी जारी है। ओबीसी सामाजिक -जातीय दुराग्रहों से ग्रसित होने के कारण मनुवादियों की साज़िश और डॉ.आंबेडकर की बहुआयामी वैचारिकी का अपने हित में मूल्यांकन नहीं कर पाया और नहीं कर पा रहा है,क्योंकि वह डॉ.आंबेडकर के व्यक्तित्व व कृतित्व को जाति विशेष से होने के पूर्वाग्रह और कथित सामाजिक जातीय श्रेष्ठता के दम्भ के कारण उनकी लोक कल्याणकारी वैचारिकी और योगदान को पढ़ने से परहेज करता रहा और आज भी उसे पढ़ने में सामाजिक हीनभावना/संकोच महसूस होता है। यहां तक कि, डॉ.आंबेडकर की वैचारिकी के सार्वजनिक कार्यक्रमों के मंचों को साझा करने में भी उसे संकोच और शर्म आती है। देश के सत्ता प्रतिष्ठान डॉ.आंबेडकर के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को एक जाति/समाज विशेष के खांचे में बन्द कर,इस क़दर प्रचार-प्रसार करते रहे जिससे अनु.जातियों,अनु.जनजातियों, ओबीसी जातियों और अल्पसंख्यक में सामाजिक/राजनीतिक एकता कायम न हो सके। आज यदि ओबीसी का कोई व्यक्ति डॉ.आंबेडकर से घृणा करता है या कोसता है या अन्य महापुरुषों की तुलना में कमतर समझता है,तो समझ जाइए कि उसने डॉ.आंबेडकर की सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक मॉडल पर आधारित भेदभाव रहित मानववादी वैचारिकी/दर्शन को अभी तक पढ़ने/समझने का रंच मात्र भी प्रयास नहीं किया है। ओबीसी भूल जाता है कि देश की वर्णव्यवस्था में अनुसूचित और ओबीसी की समस्त जातियां "शूद्र" वर्ण में ही समाहित हैं। अशिक्षा और अज्ञानता के कारण ओबीसी जातियां अपनी सीढ़ीनुमा सामाजिक श्रेष्ठता के अहंकार में केवल अनुसूचित जाति को ही शूद्र और नीच समझकर जगह-जगह पर अपनी अज्ञानता/मूर्खता का परिचय देती नजर आती है जिससे उनमें एकता के बजाय सामाजिक व राजनीतिक वैमनस्यता की अमिट खाई 21वीं सदी में भी बनी हुई है।
आंबेडकर बनाम गांधी-गोलवलकर वैचारिकी/सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक समरसता/जाति उन्मूलन बनाम जाति समरसता-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)
भाग दो
![]() |
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) वाणिज्य विभाग वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी |
आंबेडकर बनाम गांधी-गोलवलकर वैचारिकी/सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक समरसता/जाति उन्मूलन बनाम जाति समरसता-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)
भाग तीन
![]() |
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) वाणिज्य विभाग वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी |
आंबेडकर बनाम गांधी-गोलवलकर वैचारिकी/सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक समरसता/जाति उन्मूलन बनाम जाति समरसता-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)
![]() |
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) वाणिज्य विभाग वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी |
Monday, May 30, 2022
उधारी मरीज-सुरेश सौरभ
पढ़िये आज की रचना
अछूत के सिकयित-हीरा डोम
भोजपुरी कविता अछूत के सिकयित हीरा डोम की साहित्य जगत में उपलब्ध एकमात्र रचना गुगल से साभार हमनी के रात-दिन दुखवा भोगत बानी, हमनी...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.
-
(पुस्तक समीक्षा) पुस्तक-इस दुनिया में तीसरी दुनिया (साझा लघुकथा संग्रह) संपादक -डॉ.शैलेष गुप्त 'वीर'/सुरेश सौरभ मूल्य-249 प्रकाषन-श...
-
(हास्य-व्यंग्य) सुरेश सौरभ भैया जी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह हल्के नेता नहीं है। उनके भारी-भरकम शरीर की तरह उनका ज्ञान और व...
-
मधुर कुलश्रेष्ठ हम नन्हें मुन्ने बच्चे प्यारे प्यारे कंचे गोली गिल्ली डंडा खेल हमारे भागम-भाग, छिपन छिपाई इक्कड़ दुक्कड़ हमको लगते प्यारे धौल...