साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, May 28, 2021

बाल-कहानी,

      

नकलची सोनू 

 -सुरेश सौरभ

        सोनू खरगोश पूरे सुन्दर वन में नकलची बन्दर के नाम से मशहूर था। वह सारे काम निबटाने के बाद वन में निकल पड़ता, जिसे भी खाते-पीते या कोई काम करते देखता, तो वह फौरन उसकी नकल उतार कर चिढ़ाता और जब कोई उसे क्रोधित होकर रपटाता, तो वह फौरन सर्र से भाग जाता।

       एक बार सन्टू और बन्टू नाम के दो कुत्तों के बीच झगड़ा हो गया, मात्र एक बोटी को लेकर। बोटी में खूब मांस चिपटा था और ताजी भी थी।

सन्टू बोला-बन्टू मेरे आगे से हट जाओ, बड़े दिनों के बाद यह ताजी बोटी मिली है और तुम बेवजह बीच में टांग अड़ा रहे हो।

     बन्टू गुस्से में बोला-पहले बोटी मैंने देखी थी। तूने आगे आकर झपट लिया, तो इसका मतलब ये थोड़ी कि रास्ते में शेर द्वारा गिराई गई बोटी तेरे बाप की हो गई। ये सार्वजनिक माल है इस पर मेरा भी हक बनता है।

    सन्टू देखो ज्यादा बात न बढ़ाओ तो अच्छा है। मेरी जीभ इस बोटी को खाने के लिए लिए मचल रही है और तुम खामख्वाह भिड़े पड़े हो।

    उनकी तू-तू-मैं-मैं काफी देर तक चलती रही और अब नौबत लिपटा-लिपटी तक आ पहुंची। सन्टू देशी नस्ल का छका कुत्ता था और बन्टू किसी विदेशी नस्ल का कसरती बदन वाला कुत्ता था।

    दोनों में खूब दे-दनादन जारी हुई। आखिरकार देशी के दांच-पेंच के आगे विदेशी पानी मांग गया और अपनी टांगें फरकाता हुआ, पो-पो..ऽ..ऽ...ऽ..करता हुआ भागा।

    बोटी पर सन्टू ने हक पाया।

    निराश खरगोश - हिंदी विवेक 

न्टू कुत्ता पों-पों करता हुआ भागा जा रहा था। रास्ते में सोनू ने उसे देखा और फौरन उसकी नकल उतारने लगा। पों-पों करने और टांगें उचकाने की हरकत जारी की। अब तो बन्टू के पूरे तन-बदन में आग लग गई। उसने सोनू को रपटाया, सोनू बड़े फुर्तीलेपन से भागा, पर बन्टू ने लपक कर उसकी टांग पकड़

ली। अब सोनू बचाओ-बचाओ! चिल्लाने लगा। सोचा था, आज भी भाग जाऊंगा मजा लेकर, पर आज आया ऊंट पहाड़ के नीचे।

    उधर से पिंकी लोमड़ी कहीं जा रही थी। सोनू की करुण पुकार सुनकर उसे दया आ गई। वह बन्टू के पास फौरन पहुंची। बन्टू से बड़े प्यार से कहा-भैया क्यों एक छोटे से जीव की हत्या करने पर तुले हो। भगवान के लिए इस पर थोड़ी दया करो। पिंकी के बहुत समझाने पर बन्टू ने सोनू की टांग छोड़ दी, पर सोनू की टांग में बन्टू के गहरे दांत धंस गये और खून टप-टप चूने लगा।

   फिर पिंकी सोनू को रामू नाम के भालू डाक्टर के पास ले गई। रामू ने पहले सोनू की मरहम पट्टी की, फिर कहा-ये दवा बेटा तीन टाइम खा लेना। ठीक हो जाओगे, पर आइंदा ऐसी गलती न करना वर्ना जान से हाथ धो बैठोगे।

   सोनू-डाक्टर साहब यह मैं कैसे यकीन कर लूं कि इस दवा से मैं ठीक हो जाऊंगा। लोग कहतें हैं कि कुत्ता काटने के बाद चौदह इन्जेक्शन लगवाने जरूरी होते हैं और आप मुझे बस घास-फूस वाली दवाएं देकर टरका रहे हैं।

   रामू-देखो सोनू तुम्हारा सामान्य रोग है। कुत्ता पागल नहीं था इसलिए डरने की कोई बात नहीं। मैं आयुर्वेद का डाक्टर हूं। ये घास-फूस ही मेरी संजीवनी बूटियां हैं, जो अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले हजार गुना फायदेमंद हैं। तुम एक बार आजमाकर तो देखो अंग्रेजी दवाओेें का इलाज बहुत मंहगा है और इसके दुष्परिणाम भी तुम भुगत सकते हो, पर मेरी दवाओं में ऐसा कुछ नहीं मात्र चार पुड़िया दो रुपये में खाओ और दो दिन में भले-चंगे हो जाओ।

   सोनू बोला-डाक्टर साहब मुझे इन्जेक्शन लगवाना है, चाहे जो हो मैं अपने जीवन में खतरा मोल नहीं लूंगा। अगर रेबीज मुझ पर हमला कर गया तो ?

   सोनू अपनी जिद पर अड़ गया। पिंकी ने उसे बहुत समझाया, पर वह न माना। सोनू के अक्खड़पन को देखकर पिंकी सोनू को छोड़कर चली गई।

  रामू बोला-सोनू ज्यादा जिद कर रहे हो, तो इन्जेक्शन मुझे मालूम हैं, लिखे दे रहा हूं। तुम मेडिकल से ले आओ मैं लगा दूंगा।

    सोनू पर्चा लेकर दवा लेने गया। वहां मालूम पड़ा सौ रुपये का एक इन्जेक्शन है। उसके पास इतने पैसे कहां धरे ? लिहाजा उसने शेरू कुत्ते से दस प्रतिशत ब्याज की दर से चौदह सौ रुपये लिए। शेरु बड़ा पक्का महाजन था। एक-एक पैसे कर्जदार से हर हाल में वसूल कर डालता था। फिर चाहे रास्ता उसे सीधेपन का अपनाना पड़े या टेढ़ेपन का।

     सोनू बाजार गया। इन्जेक्शन और सीरेन्ज लाकर रामू को दिए।

     रामू ने सीरेन्ज में दवा भरी। फिर सोनू से कहा-जरा शर्ट अपनी ऊपर उठाओ और पूरा पेट खोलो। सोनू ने अपना मोटा पेट खोल दिया और रामू ने सटाक से इन्जेक्शन सोनू के पेट में घुसेड़ दिया। वह उचका। रामू बोला-जरा भी महाशय हिले, तो पेट में गलत जगह सुई पहुंच जायेगी और दवा बेअसर हो जायेगी, दर्द भी बढ़ जायेगा। फिर सोनू ने रोते-रोते मोटी सुई का कष्ट मजबूरन झेला।

     सोनू के चौदह इन्जेक्शन लगे। उसका पूरा पेट छलनी हो गया। वह दर्द से खूब रोता-छटपटाता। अब पूरी-पूरी रातें जाग कर काट देता।

     पेट के दर्द के कारण उसका खेती का कार्य बिलकुल चौपट हो गया। जब कई माह घर पर ही पड़ा रहा, तब शेरू सोनू के घर जा पहुंचा। उसने अपने सूद और मूल की मांग की, पर सोनू खरगोश था फटेहाल। अब शेरु ने अपना असली रुप दिखाया। उसे जबरदस्ती पकड़ कर अपने खेत पर लगा दिया कहा-जब तक काम करके मेरी एक-एक पाई नहीं उतारोगे तब तक यही रहो।

     सोनू दर्द से छटपटाता कभी फावड़ा चलाता, कभी कुदाल से लगे-लगे अपना शरीर तोड़ता, कभी मेड़बन्दी में उसकी कमर टूटती। अब क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ? अब वह अक्सर सोचता काश मैं पिकी की बात मान लेता, थोड़ा रामू की सलाह पर चला होता तो आज यूं मर-मर के न जीता। अब मेरा कर्ज इस जनम उतर पायेगा यह सम्भव नहीं और न ही मैं यह पूछने की हिम्मत कर सकता हूं। कि शेरू भैया मैं तुम्हारे यहां से कब आजाद हो जाऊंगा। जिस दिन यह पूछ बैठा उस दिन मेरी आखिरी हो जायेगी।


निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश

मो-7376236066

करें वन्दना मातृभूमि की

 

-डॉ.सतीश चन्द्र भगत

करें वन्दना मातृभूमि की  !

 

गरिमा- मंडित भारत माता,

हम सब उसकी संतान  हैं |

सब दिन गूंजे दिग्दिगंत  में,

शाश्वत सुखदायक गान हैं |

 

भरापूरा सौरभ से  सज्जित,

महके आंचल मातृभूमि की!

 

पेड़- पौधे फसलों से हर्षित

हो, झूमे धरती  का माली  |

स्नेह-घट छलके सबके मन में,

बजे खुशी से सबकी  ताली |

 

दिया गुरूओं ने समुचित शिक्षा,

करें वन्दना मातृभूमि की  !

 

हिलमिल सब मेहनत करते हैं,

किसान, जवान इसकी संतान|

ममता समता का संदेश दिया,

है वेद- ऋचा, गीता  पुराण |

 

राष्ट्रीय झंडा  आकाश चूमती,

करें वन्दना मातृभूमि की  !


(लेखक हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान के निदेशक हैं),

पता-बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

Thursday, May 27, 2021

जुगुल किशोर चौधरी की तीन गज़लें

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डॉ. जुगुल किशोर चौधरी


पैसा आते ही सब जमी को भूल जाते हैं।

ये नेता हैं अपनी अम्मी को भूल जाते हैं।

खता हुई है तो अफसोस कर, माफ़ियां मांग,

क्यों गुनाह करके अपनी कमी को भूल जाते हैं।

जमीन पे बरस रही है तुम्हारी ही लगाई आग

क्यों रिश्ते-नाते देश-वेश सभी को भूल जाते हैं।

खूब सिसकिया ले रहा है मौत का सौदा करके

साहब हमी से वादा करके हमी को भूल जाते हैं।

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सुबह से शाम तक यूं ही भूखा रहा,

तुझको देखा गोया इफ्तार हो गया।

हर पल पी रहे हैं आप यूं गरीबों का लहू,

ज़िन्दगी का खू गोया बियर बार हो गया।

सरकार आप सो रहे हैं छीन कर चैनों शुकूँ,

बेसहारों, श्रमिको का जीवन दुश्वार हो गया।

आपने देखी है हमेशा अमीरों की हवेलियाँ,

झोपडियों में बसा जीवन गोया बेकार हो गया।

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मस्जिदों में जाने की जरूरत नहीं है!

यूं मूर्खता दिखाने की जरूरत नहीं है!

वायरस से बचाने अल्हाह आएंगे न राम!

ज्यादा भक्तई निभाने की जरूरत नहीं है।

एक गलती ही काफी है मारे जाने के लिए!

यू मौत से हाथ मिलाने की जरूरत नहीं है।

सबको मिलती है जन्नत इसी जमी में!

यूं सैर-सपाटे में जाने की जरूरत नहीं है।

आधा भारत जल रहा, पेट और मुसीबत की आग में!

यूं पकवान की फोटो, सेल्फी दिखाने की जरूरत नहीं है।

डॉक्टरों को चाहिए पीपीई किट, सेनेटाइजर, सुरक्षा सभी!

हौसलों के लिए ताली-थाली, घंटा बजाने की जरूरत नहीं है।

हिन्दू मुस्लिम की आग में जल रहे हैं सभी,

यूं दिया-मोमबत्ती जलाने की जरूरत नहीं है!


 

आप स्वतंत्र साहित्यिक लेखक हैं

जिला-सागर, मध्य प्रदेश

 

कोई सुशील कुमार, कु-शील कुमार क्यों बन जाता है


लेखक-अजय बोकिल

 

शायद ही ‍किसी ने सोचा होगा कि दुनिया के सबसे बड़े खेल अनुष्ठान ओलिम्पिक के ध्येय वाक्य और तेज, और ऊंचा, और ताकतवरको हमारे देश का एक ओलम्पिक आईकान इस रूप में भी लेगा कि वह अपनी ताकत दिखाने अपने ही शिष्य की जान लेने में भी नहीं हिचकेगा। बीजिंग और लंदन ओलम्पिक में भारत को कुश्ती में क्रमश: कांस्य और रजत पदक दिलाने वाले और कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में अपने कुश्ती कौशल से प्रतिद्वंद्वी पहलवानों को धूल चटाने वाले सुशील कुमार को इस तरह हत्या के आरोप में सींखचों के पीछे और आरोप साबित हुआ तो शायद आजीवन जेल की सजा भुगतते हुए भी देखेंगे, यह कल्पना भी मुश्किल है। आखिर कोई भी ओलम्पिक पदक विजेता समूचे खेल जगत के लिए भगवानके समान होता है। एक बेहद कठिन और पवित्र भाव से आयोजित खेल आयोजन का वह सम्मानित हीरो होता है। और सुशील कुमार ने तो यह कारनामा दो बार करके दिखाया, जो किसी भी  भारतीय खिलाड़ी के विरल सपने की तरह है। ऐसे में सवाल यह है कि वही आदर्शखिलाड़ी इस तरह अंडरवर्ल्ड का पहलवानकैसे और क्यों बन गया? भरपूर मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा और पैसा क्या नहीं मिला उसे ? फिर ऐसी क्या मजबूरी थी, जिसने सुशील कुमार को कु-शील कुमारमें तब्दील कर ‍दिया।

38 वर्षीय सुशील कुमार की यह कहानी अपने आप में केस हिस्ट्रीहै। या यूं कहें कि बालीवुड जिस शख्सियत पर बायोपिक बना सकता था, वह अब शायद उसी पर कोई क्राइम पिक्चर बनाने पर सोचेगा। सुशील कुमार की कहानी हरियाणा के एक साधारण से परिवार में पलकर खेल की दुनिया में आकाश की ऊंचाइयों को छूने और फिर फर्श पर धड़ाम से ‍गिरने की है। बचपन से ही कुश्ती में रूचि रखने वाले सुशील कुमार को मशहूर पहलवान सतपाल ने तराशा। नतीजा यह रहा कि सुशील ने 2010 के काॅमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड दिलाया। इस उपलब्धि से ‍अभिभूत सतपाल ने सुशील को अपनी बेटी ब्याह दी। सुशील शोहरत के आसमान में चमकने लगे। उन्होंने दो ओलम्पिक मेडल और कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धाअों मे पदक जीते। रेलवे ने उन्हें बढि़या सरकारी नौकरी दी। सुशील बाद में खुद भी बड़े कुश्ती कोच बने। पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार मिले। खेल जगत का सर्वाधिक प्रतिष्ठित राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से उन्हें नवाजा  गया। और भी कई इनाम मिले। आज वो करोड़ों की दौलत के ‍मालिक हैं और कल तक युवा पहलवानों  के रोल माॅडल रहे हैं।

 

यह कहानी और नए आयामों को छूती, अगर 4 मई 2021 की तारीख सुशील कुमार की जिंदगी में न आती। सुशील पर आरोप है कि दिल्ली में अपने एक फ्लैोट का किराया न देने के कारण उन्होंने साथियों के साथ अपने ही  एक युवा शिष्य की मार-मार कर हत्या कर दी। इसके पहले एक और पहलवान प्रवीण राणा ने पूर्व में सुशील पर उसे पिटवाने का आरोप लगाया था। उसकी एफआईआर  भी हुई थी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सुशील अभी भी अपने अंडरवर्ल्ड रिश्तों को छुपा रहा है। लेकिन पूछताछ में जो उजागर हुआ है, उसके मुताबिक सुशील के संगी-साथी रियल इस्टेट, बैड लोन की वसूली और प्राॅपर्टी खाली कराने और टोल प्लाजा से वसूली का धंधा करते थे। पुलिस कुख्यात गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जेठडी से सुशील के रिश्तों को खंगाल रही है। यहां तक कि सुशील ने अपने साथी पहलवानों से भी पंगा लिया। पूरी अपराध कथा जिस दिशा में बढ़ती दिख रही है, वहां सुशील का बचना मुश्किल लगता है।

 

ऐसा नहीं है कि सुशील  कुमार ऐसे पहले अोलम्पियन हैं, जो अपराध की दुनिया से जुड़े हैं। और भी कुछ ऐसे नामी नाम हैं, जिन्होने खेल की जुझारू दुनिया से अपराध की दुनिया में कदम रखा और सजाएं भी भुगतीं। एक जुर्म ने उनके जिंदगी भर के किए कराए पर पानी फेर दिया। उदाहरण के लिए प्रोफेशनल गोताखोर ब्रूस किमबाल ने लाॅस एजेंल्स ओलम्पिक में 1984 में सिल्वर मेडल जीता था। लेकिन बाद में शराब की लत ने उन्हें अपराधी बना दिया। ब्रूस को अपनी कार से दो किशोरों को कुचलकर मारने के आरोप में 17 साल की जेल हुई। ट्रेक एंड फील्ड स्पर्द्धाओं में 1996 के अटलांटा अोलम्पिक में सिल्वर तथा 2000 के सिडनी ओलम्पिक में गोल्ड जीतने वाले टिम मांटगोमरी को बैंक फ्राॅड करने पर पांच साल की जेल की सजा हुई। रियो ओलम्पिक में अमेरिकी तैराक रायन लोचे ने स्वर्ण पदक जीता था। लेकिन बाद में खुद को लूटे जाने की फर्जी रिपोर्ट लिखाने की उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। गोल्ड मेडल तो छिना ही, बहुत सी डील और व्हाइट हाउस का प्रतिष्ठित न्यौता भी हाथ से गया। दुनिया में ब्लेड रनरके नाम से मशहूर आॅस्कर पिस्टोरियस की कहानी तो और हैरान करने वाली है। साउथ अफ्रीका के इस पैरालिम्पिक हीरो ने अपनी ही गर्ल फ्रेंड रीवा स्टीनकैम्प की हत्या कर दी। आॅस्कर को 13 साल की जेल हुई। तैराकी में एक और मशहूर नाम रहा है माइकल फेल्प्स का। इस अमेरिकी तैराक ने कई ओलम्पिक में कुल 28 मेडल अपने नाम किए थे। यह खिलाड़ी नशाखोरी और अवसाद की गिरफ्तक में चला गया। यह सूची और भी लंबी हो सकती है।

 

दरअसल सुशील की पहलवानी की चमकती जिंदगी में उतार तभी शुरू हो गया था, जब वो अपना प्रभावऔर दादागिरीजमाने के लिए अंडरवर्ल्ड के संपर्क में आए। सब कुछ अर्जित करने के बाद भी खुद को दादासाबित करने का मोह ही शायद सुशील कुमार को ले डूबा। वरना कोई कारण नहीं था कि कीर्तिमानों से रचे सुशील के हाथों को खंजर उठाना पड़ता। जो कहानी सामने आ रही है, उसके मुताबिक बकाया किराए की वसूली के लिए एक  युवा पहलवान सागर धनखड़ की जानलेवा पिटाई के बाद घबराए  सुशील ने हरिद्वार के एक बड़े बाबाजिनका सरकार में रसूख है, से बचाने की अपील की। लेकिन या तो बाबा ने मदद नहीं की या फिर उनकी नहीं चली। अंतत: दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने हत्या के आरोपी सुशील कुमार को गिरफ्ताेर कर लिया। कोर्ट ने सुशील की अग्रिम जमानत की याचिका को खारिज कर  उसे सात दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया। कभी पोडियम पर शान से तिरंगा लहराने वाले सुशील कुमार के हाथ पुलिस के घेरे में तौलिए से अपना मुंह छिपाते दिखे। अब सुशील के वकील की कोशिश है कि उस पर कमजोर धाराएं लगाई जाएं। कहा जा रहा है कि जो हुआ, गैर इरादतन था। लेकिन जो तथ्यो सामने आ रहे हैं, उससे तो लगता है कि ओलम्पिक के हीरोमें  अपराध की दुनिया का डाॅनभी बनने की तमन्ना जोर मारने लगी थी। वह छत्रसाल स्टेडियम में बतौर कोच यही बर्ताव करने लगा था। हमारे यहां लोक चर्चाओं में पहलवानी का रिश्ता सामाजिक दंबगई और अल्प बुद्धि से जोड़ा जाता रहा है। लेकिन अब देश में पहलवानी का खेल भी एक सुसंगठित अंडरवर्ल्ड में तब्दील हो रहा है या फिर उसका अंडरवर्ल्ड से गहरा रिश्ता बन गया है तो यह सभी के लिए बेहद चिंता और शर्म की बात है। इस देश में राजनीति, बाॅलीवुड और कारपोरेट के अंडरवर्ल्ड से रिश्ते तो सर्वज्ञात थे, लेकिन अब खेल के अखाड़ों का विस्तार भी अपराध की दुनिया तक हो रहा है। और इस अनैतिक दुनिया में परचम लहराने के लोभ में खिलाडि़यों को अपने चेहरे पर कालिख पुत जाने की भी चिंता नहीं है। वरना एक नामी खिलाड़ी देशवासियों के लिए किसी विजयी सेनापति की माफिक होता है। लोग उस पर जान छिड़कते हैं। लेकिन यही शोहरत कुछ लोगो को उस रास्ते पर ले जाती है, जहां हाथ आया सब गंवाना पड़ता है। सुशील से भी तमाम मान सम्मान और ओलम्पिक मेडल तक छिन सकते हैं। तब क्या बचेगा ? दरअसल महत्वाकांक्षा का मारा व्यक्ति जीतने की जिद की आराधना करते करते नैतिक मूल्यों की बलि देने लगता है। बिना यह सोचे कि इसका अंजाम क्या होगा? वह समाज को क्या मुंह दिखाएगा ? सुशील कुमार की कहानी भी यही कुछ कहती है।

(लेखक सुबह-सवेरे के वरिष्ठ संपादक हैं )

( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 27 मई 2021 को प्रकाशित)

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