साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 28, 2016

मेरे देश के भावी भविष्य



                                       मेरे देश के भावी भविष्य

                                                                   अखिलेश कुमार अरुण

Image result for CHILD LABOURअपने देश के लोग भरतीय संविधान और उसकी धाराओं से बखूबी परिचित है, गुजरे ज़माने की अपेक्षा अब कहीं लोग ज्यादा पढ़े लिखे भी हैं घर से लेकर ससंद तक अपने तथा दुसरे के अधिकारों को भी जानते हैं, कब कहाँ अपना और दुसरे के अधिकारों का हनन हो रहा है. इसके लिए ढेर सारी सामाजिक संस्थाएं राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर बनायीं गयी हैं. जो समय-समय पर जागरूक करती रहती हैं जिसमें सर्वप्रमुख unicef है जो बच्चे और महिलाओं को उनके सर्वांगीण विकाश के लिए प्रेरित करता है एवं अनुदान भी देता है. भारत में इन सब के सरंक्षण हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय एक केन्द्रीय मंत्रालय का निर्माण किया गया है. इसके इतर अन्य भी ढेर सारे सरकारी उपक्रम किये गए हैं उन सबको दरकिनार करते हुए हम अपने लिए एक विषय का चुनाव करते हैं, वह है “बचपन बचाओ अभियान” क्योंकि यह वह राष्ट्रीय सम्पति है. जिस पर देश के भावी विकाश की नीव रक्खी जाती है. जिस देश के बच्चे जितने स्वस्थ और होनहार होंगे उतने ही देश के दुरुस्त कर्णधार बनेंगे चीन, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देश विकास की दौड़ में सबसे आगे क्यों हैं क्योंकि वहां बच्चों के भविष्य के प्रति अभिवावक से लेकर सरकार तक सभी सतर्क हैं. कदम कदम पर उन्हें परामर्श दिया जाता है और तो और उनकी अच्छी देखभाल के लिए बच्चों को पैदा किये जाने सम्बन्धी भी क़ानून बना हुआ है. केवल कानून ही नहीं उसका पालन भी किया जाता है पारितोषिक और दंड दोनों का प्रावधान है. भारत जैसे अपने सुन्दर से देश में क्या है? -दूधो नहाओ पूतो फलो, का कहावत प्रचलित है. कानून बनाने वाले कानून बना देते हैं, और पालन करने वाले उसे काल कोठारी में डाल देते हैं, दोनों ही अपने फर्ज को पूरा करने का अच्छा खासा ढिंढोरा बरसाती मेढक की तरह टर्र-टर्र करके पूरा कर लेते हैं. काम की जगह यहाँ दिखावा को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है स्वच्छता अभियान हो, पर्यावरण बचाओ या फिर बचपन बचाओ आन्दोलन हो करेगा कोइ एक उसके लिए हजारों लाखों की कौन बात करे करोडों का कर्च हो जाता है. फोटो खीचवाने के लिए दस खड़े हो जाते है बाद उनके न साफ़-सफाई, न पौधे की देखभाल और न ही बच्चे की कोई खोज खबर लेने आता है और फिर सब अव्यवस्थाओं का शिकार होकर अपने आस्तित्व को खो देते हैं. हमें अपने सार्थकता को सिद्ध करना है तो कोई एक पेड़ लगाये दस उसकी देखभाल करें, साफ़-सफाई व्यक्ति अपने आस-पास की रखने लगे, बच्चे उतने ही पैदा करो जितने की परिवरिस की जा सके इस प्रकार की सोच समाज में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन ला देगी, और देखते ही देखते सब कुछ दुरुस्त हो जाएगा. हम अपने एक छोटे से शहर लखीमपुर-खीरी की बात करे तो यहाँ 2011 की जनगणना के अनुसार 40,21,243 लाख के आस-पास जनता  निवास करती है. जिसमें बच्चों की कुल संख्या 0 से 6 वर्ष- 6,62,296 जिसमें संभवतः 20 या 25 % वह संख्या है जो दुकानों, ढाबों, गैराजों,
Image result for CHILD LABOURआदि जगहों पर बैठे अपने भविष्य का मातम मनाते हैं. स्कूल जाते बच्चों को निहारते रहतें हैं. अपनी कम उम्र में ही जीवन रूपी बोझ उठाने का अथक प्रयास कर रहे होते हैं और वही बाद में देश की लाचार जनता का तमगा पहनेंगे मकान,रोटी,दवा, दारु आदि के लिए सरकार की तरफ टकटकी लगाये बैठे रहेंगे की कब कोई मेहरबान हो जाये और..........  शहर के मुख्य मार्गों पर चार दुकान छोड़कर पाचवीं दूकान टाट-पट्टी से लेकर होटल तक हैं जहाँ जयादा से ज्यादा १० से १४ वर्ष के बिच काम करने वाले बच्चे मिल जायेंगे न उनको पढ़ने लिखने से मतलब है और न ही देश दुनिया के किसी युक्ति से मतलब है. उन्हें तो बात-बेबात होटल मालिकों के गाली सुनने और थाली,गिलास प्लेट साफ़ करने से ही मतलब है सब के सब सामाजिक संस्थाओं सरकारी नियमों कानूनों का पता ही नहीं किस जामने की कालेपानी की सजा हुयी हैं. यहाँ मुएँ सपने में भी नहीं आते की किसी अबोध बालक का भला हो सके वह भी अपना बचपन जी सके, देश दुनिया के विषय में जान सके, गुजरे ज़माने में कभी कैलाश शत्यार्थी जी खीरी की धरती पर पधारे थे जिस दिन उन्हें शांति का नावेल पुरस्कार मिला उसके दुसरे दिन अखबार पूरा का पूरा रंगा हुआ था, “सत्यार्थी जी खीरी भी हैं आ चुके ......” और न जाने क्या-क्या जिसको जैसी बन पड़ी उसने वैसा ख़ूब छपा था. उसके बाद से आज तक कहीं कुछ नहीं सुनने और पढ़ने को मिला की फलां-फलां ढाबे होटल आदि से बच्चे को किया गया मुक्त.....!

Saturday, February 20, 2016

क्या है? देशभक्ति

                              क्या है? देशभक्ति   

मैं चाहता हूँ कि मुझे भी राष्ट्र द्रोही करार दिया जाय मेरे पर भी मुकदमा चलाया जाय मैं आप सब  से खुश होऊंगा. अच्छा होता कि लोग देशभक्ति का मतलब समझ पाते एक सम्प्रदाय विशेष  के लोग ही देशभक्ति का दम्भ क्यों भरते है, हम तो कहते हैं इसे देशभक्ति नहीं धर्मभक्ति की संज्ञा दे दी जाय देशभक्ति की  बात तब की जाती है जब देश के सभी धर्मों के लोग एक मंच पर आ कर देशहित के लिए अपना सर्वस्व लुटा दें चूँकि हमारा देश धर्मों का देश है उनका सरंक्षक और पोषक भी है सभी समान रूप से देशभक्ति का दावा करते हैं. देशभक्ति हम उसे कहते हैं जब देश की आजादी के लिए सब लोग एकजुट हो गए थे  चाहे वह किसी भी धर्म विशेष का क्यों न हो. जिसमे सर्वप्रमुख थे जवाहर, गाँधी ,अम्बेडकर,जिन्ना ,भगत ,आजाद, अबुल कलाम, गफ्फार, आदि-आदि और अन्य  भी जो अनाम ही देश के लिए मर मिटे उसमें उस देश के भी लोग थे जो आज हमारा पड़ोसी देश के नाम से जाना जाता है. देश आजाद कराने में जितना योगदान जवाहर गाँधी का है उतना हक़ जिन्ना ,कलाम, गफ्फार का भी है .जिन्ना जिन्दा थे तो पाकिस्तानी हो गए अब उनका जय घोष किया जाना भारत में देशद्रोह है और वहीं भगत सिंह भारत के आजाद होने से पहले ही शहीद हो गए नहीं तो वह भी कहीं जिन्दा होते तो पाकिस्तान चले जाते और उनका भी नाम लिया जाना भारत में देशद्रोह हो जाता जिसके नाम का माला राष्ट्र्पर्वों पर बड़े गर्व से लिया जाता है क्या है देशद्रोह किसी दूसरे देश का नाम लिया जाना देश द्रोह है. ये कैसी देशभक्ति है जो पूरे जीवन देश में रह कर पढ़ा लिखा काबिल बना जब देश को उस से कुछ चाहिए था तो दुसरे वतन में जाकर वहीँ का हो गया क्या यह देशद्रोह नहीं है कुछ समय अंतराल पर अपन वतन लौटे तो उसके मुख से निकालता है छि -छिः स्याला ....कंजरों का देश यह देश द्रोह नहीं है. और जो लोग भारत में पढ़ लिख कर अपने अधिकार की लडाई लड़ते हैं वह देशद्रोह है अपने बाप से अपना हक़ मांगना देशद्रोह है ...तो ऐसा देश द्रोह हमें भी करना है. देश के नेत्रत्वकर्ता देश से भावनात्मक खेल खेल रहें हैं मूल समस्याओं पर मिटटी डालने का काम कर रहे हैं. उनके एजंडे से बेरोजगारी, बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, कुपोषण, किसानों की आत्महत्या, नारी सुरक्षा आदि-आदि  गायब है. इस पर कहीं कोई बहस नही होता अमीर-गरीब के बीच दिनों -दिन  दूरी बढ़ती जा रही है. वह चाहे शिक्षा में हो रुपये पैसे में हो ,सुख-सुविधा में हो या उनके जीवन में हो रहे विकाश की बात की जाय कुछ लोग खा -खा के मर रहें हैं तो कुछ बिना खाए ही मर रहें हैं.
शिक्षा व्यवस्था की हालत ढचर-मचर हो चुकी है लाखो युवा हाई स्कूल-इंटर किये छात्र नाकामी के शिकार हैं ज्ञान के नाम पर जीरो, स्नातक बेरोजगारी की पराकाष्ठा पर है चपरासी के पद पर जूतम-पैजार हो रहें हैं . नेताओं-राजनेताओं को चीखना चिल्लाना है तो इन  समस्याओं पर चीखे-चिल्लाएं जिससे देश और समाज का भला हो लोग देशभक्ति के असली महत्व को समझ सकें. देशभक्ति का गुण तभी गया जा सकेगा जब देश उसके हित की भी बात करे अन्यथा .... जिस घर (देश) में सुख-शांति, अमन- चैन,सुरक्षा नहीं वः देश काहे का देश और उसकी देशभक्ति किस काम की यहाँ तो अंधेर नगरी चौपट राजा की दसा हो गयी है विना किसी साक्ष्य के देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जा रहा है क़ानून के रक्षक ही कानून के भक्षक बी बैठे है .
 रुपये पैसे और मान-सम्मान  के लिए तो लोग क्या से क्या कर जाते है और वही जब लोगों को न मिले तब तो उसकी भक्ति किस काम की देश के खेवनहारों  से अपील है देश की भावना नहीं संभावना से खेलो, देश तुम्हारा ही नहीं सबका है और सबकी सोच अलग अलग है और इसी के साथ देशभक्ति का नजरिया भी अलग है. जहाँ तुम्हारे  देशभक्ति हमारी देशभक्ति से इतर......
आज के समय में चंद लोगों से देशभक्ति की परिभाषा गढ़ने को दे दिया जाय तो लिखेंगे देशभक्ति अर्थात - जब धार्मिक छुआ-छूत, ऊँच-नींच, स्त्रियों और शूद्रों का मंदिर प्रवेश वर्जित तथा शिक्षा से वंचित  इत्यादि को ही देशभक्ति कहते हैं और इसे न मानने वालों को देशद्रोही.
प्रिय पाठकों सच्चे दिल से कह रहा हूँ देशभक्ति की कोई परिभाषा नहीं हो सकती स्वतंत्र रूप से जो जैसे चाहे वैसे देश से प्यार करे यही सच्ची देश भक्ति है. और देशद्रोह की लाखो परिभाषाएं हैं.
                                                        ......एक देशभक्त
                                                                                                                           अखिलेश कुमार अरुण 

Tuesday, January 12, 2016

मल्टीमिडिया के आगोश में कौन ?



मल्टीमिडिया के आगोश में कौन ?


आज के वर्तमान समय में गौर किया जाय तो एक विकट समस्या से भारत का कोई गाँव या खास प्रदेश  ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा संसार प्रभावित है। जिससे निपटना कठीन ही नहीं बल्कि बड़ा ही दुष्कर है। इस विषम परिस्थिति में किस प्रकार की और कैसी युक्ति अपनायी जाये जिससे सर्वत्र सुख शान्ति का आलम हो ।

वर्तमान परिवेश में अनेक प्रकार की नवीन वैज्ञानिक तकनीकी, पद्दतियों आदि का अविष्कार हुआ है जहाँ मानव जीवन के लिये लाभदायक भी रहा है तथा उसका दुरपयोग घातक। आज का युग पूर्णतः वैज्ञानिक हो चुका है इसमें कोई संदेह नहीं, परन्तु इन तकनीकीयों से कोई प्रभावित रहा है एक-आध को छोड़ दें तो उनसे केवेल नए उम्र लड़के और लड़कियाँ ही क्योंकि भारत नवयुवको का देश है, यहाँ के नवयुवक किस काम के नहीं हैं. यह कहना भी व्यर्थ है,यर्थाथता तो यह है कि उन्हे सही मार्गदर्शन,सहयोग और उचित परिवेश नहीं मिल पाता है जिसके फलस्वरूप वे अपने मार्ग से भटक कर अप्रत्यासित कार्य कर बैठते हैं।

भारत देश का ग्रामीण परिवेश हो या शहरी वह मल्टीमिडिया के क्षेत्र में जितना विकास किया है,उतना किसी अन्य क्षेत्र में नहीं वह चाहे गरीब व्यक्ति हो या अमीर सभी के पास औसत मल्टीमिडिया का आकड़ा दर्ज किया जाय तो 10 लोगो में से 3 के पास अनिवार्य रूप से प्राप्त होगा उसमे भी नवयुवको से लेकर 12 वर्ष के बच्चों की संख्या ज्यादा है और यह वर्ग उसका सदुपयोग कम दुरपयोग ज्यादा करता है। अगर सही कहा जाये तो मल्टीमिडिया मोबाईल या अन्य उपकरण  जिस उपयोग के लिये लिया गया है उसके लिये किया ही नहीं जाता काल के नाम पर तो कई-कई दिन गुजर जाते होंगे 99 प्रतिशत ऐसे छात्र-छात्रायें हैं जो उपयोगी साईटों को जानते ही नहीं वहीं सोसल नेटवर्क से जुड़कर ज्यादा से ज्यादा अश्लिल मूवी और चित्रों को ही देखते हैं जिसके चलते बाल उम्र में ही काम प्रवृत्ति भड़क उठती है जिसकी यथार्थ पूर्ति हेतु आस-पास की नासमझ बच्चियाँ शिकार हो जाती हैं जिसे हम आज के समय में बलात्कार,यौन हिंसा,दुष्कर्म आदि का नाम दे चुके हैं और इस प्रकार के कुकृत्य में ज्यादातर हमारे सगे सम्बन्धी ही होते हैं चाहे वह रिस्तेदार हों या घर का नौकर इस प्रकार की गलती अगर लड़की ही करती है तो उसे दोष निषिध्द कर उससे सम्बन्धित आस पास के लड़के या घर के नौकर को ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

 हम गौर करे तो हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों से ज्यादा ही इस प्रकार के घिनौने कार्यों की पुनरावृत्ति हुई है। जिसके कारण आज कोई व्यक्ति कितना ही सक्षम क्यों नहीं हो परन्तु वह एक लड़की का बाप या भाई है तो उसके मन में एक डर सा सदैव बना रहता है वह आतंकित है चोरी डकैती तो बात अलग है परन्तु गैंगवार बलात्कार की घटना जरूर होती है मुझे अमर उजाला, हिन्दुस्तान के दैनिक अंक में पढ़ने को मिला कि तीन नकाबपोशों ने कमरे में सो रही बच्ची को गनप्वाईटं पर लेकर सास और बहू दोनो के साथ गैंग्वार बलात्कार की घटना को अंजाम दिया इससे साफ है कि व्यक्ति अब धन-दौलत नही अपने घर की महिलाओ से सुरक्षित नही है। मेरे अपने विचार से मनन करता हूँ तो पता हूँ कि कहीं न कहीं इसमें शोसलमीडिया की बड़ी भागीदारी है जो इसका जिम्मेदार है सोशल नेटवर्क पर इस प्रकार के अश्लील विडियो,चित्रों को पूर्णतः प्रतिबन्धित कर पाना असंभव सा प्रतीत होता है क्योंकि उसमें सलीप्त व्यक्ति भी जनसामान्य से नहीं है। एक से एक बड़े देश-विदेश के घाघ है। जिससे उन्हे मोटी रकम प्राप्त होती है इस प्रकार के साईटों को नेट से हटा दिया जाय तो स्वतः 60 या 70 प्रतिशत नेट उपयोग कर्ताओं की संख्या में कमी आ जायेगी क्योकिं आज का युवा वर्ग सबसे ज्यादा साइबर कैफे या फिर अपने मल्टीमिडिया मोबाईल पर अश्लील साईटों का ही प्रयोग करते हैं और चरित्रहीनता की सीमा का उलंघन कर जाते हैं । इस विषम परिस्थितियों में पूरी जिम्मेदारी माता-पिता की है परन्तु यह भी संभव नहीं है, आज के वर्तमान परिवेश में माता-पिता अक्सर घर से बाहर ही रहते हैं उनका घर केवल उनके लिये एक रैनवसेरा के समान है उनकी अनुपस्थिति में उनके लड़के या लड़कियाँ किस प्रकार के साथियों के बिच में रहते हैं ,इसका उन्हे कुछ भी पता नहीं रहता। पर इतना तो जरूरी है कि बच्चों की अच्छी परिवरिश के लिये कुछ तो समय निकालना ही जाय नही तो आगे आने वाली पीढ़ी किस गर्त तक जायेगी कुछ कहा नहीं जा सकता, पर कुछ सावधानियाँ वरती जा सकती है -



परिवारिक स्तर पर बरती जाने वाली सावधानियाँ-


  •  बच्चों को मल्टीमिडिया मोबाइल न देकर सादे सामान्य मोबाइल फोन दें।
  •   बच्चों को मोबाइल फोन देने का निर्धारण उनकी आवश्यकता, उम्र को देखकर करैं।
  •   बच्चों पर रोज संभव न हो सके तो हफ्ते महीने की गतिविधियों का अवलोकन करें।
  •  उनके साथियो, दोस्तो से बात करें उनके परिवार आदि के विषय में जांच पड़ताल करैं।
  •  बच्चों में आने वाली अनावश्यक व्यवहारिक परिवर्तनों पर नजर रखें, संका की स्थिति में उचित समाधान प्राप्त करैं, पर ध्यान रहे उनके आत्म-सम्मान को ठेस न पँहुचे।
  • बच्चों को प्राप्त होने वाली कीमती वस्तुओं उपहारों के विषय में अपने स्तर से जानकारी हासिल करैं।
  • बच्चों को नैतिक शिक्षा प्रदान करैं अपने स्तर से समझाने का प्रयास करैं।
  • बच्चों को मल्टीमिडिया फोन दिया जाना अनिवार्य है तो मोबाइल फोन दें पर यकायक औचक निरीक्षण करैं परन्तु ध्यान रखें उनके सम्मान को ठेस न पहुँचे और न ही उनको इस बात की भनक लगे, अश्लील सामग्री के प्राप्त होने पर डाँटे-फटकारे ,मारे-पीटे नहीं प्यार से समझायें या फिर अपने स्तर से समस्या का समाधान करैं।


सरकारी स्तर पर बरती जाने वाली सावधानियाँ-


  •   कम्प्यूटर आदि की दुकानों का औचक निरीक्षण कर अश्लील सामग्रीयों को प्रतिबन्धित करैं।
  •   बच्चों को विद्यालय स्तर पर नये वैज्ञानिक क्रिया कलापों के प्रति रूचि उत्पन करे तथा उन्हे व्यस्त रखें ।
  •   सोसल साइटो से अश्लील सामग्रीयों को प्रतिबन्धित किया जाय।
  •  राज्य और केन्द्र सरकारें इसके प्रति सजग,सचेत हों।
  • पत्र-पत्रिकाओं आदि के विज्ञापन प्रचार में प्रयुक्त की जाने वाली अश्लील चित्रों पर पूर्णतः प्रतिबन्ध हो क्योंकि प्रचार सामग्री के साथ अश्लील चित्रों की मात्र इतनी ही भूमिका है कि कामुकतावश व्यक्ति एक नजर डालेगा, खरीदेगा आवष्यकता पड़ने पर ही ना समझ उसका गलत मतलब लगायेगें। 
इसके अतिरक्ति अन्य ढेर सारी बाते हैं जो बच्चो की उचित परिवरिश हेतु आवष्यक हैं मेरे द्वारा लिखा जाना संभव नहीं है.

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चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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