साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, October 10, 2022

चौथे स्तम्भ पर भाजपा क्यों हुई हमलावर-सुरेश सौरभ

   अपराध   

उस दिन दुनिया गांधी जयंती मना रही थी। सत्य अहिंसा के पुजारी गांधी जी को नमन कर रही थी। लखीमपुर नगर के पत्रकार विकास सहाय अपने विज्ञापन व्यवस्थापक दिनेश शुक्ला के  साथ लाल बहादुर शास्त्री पार्क में समाचार संकलन के लिए गये थे। ब
ताते हैं कि वहां लखीमपुर नगर  पालिकाध्यक्षा निरूपमा बजपेई  जेई संजय कुमार, सर्वेयर अमित सोनी के साथ पालिकाध्यक्षा का प्रतिनिधि रिश्तेदार शोभितम मिश्रा भी मौजूद था। भाजपा की चेअरमैन साहिबा की, शास्त्री जी पर माल्यार्पण करते हुए विकास फोटो खींचना चाह रहे थे, तभी गुस्से में चेअरमैन साहिबा ने कहा-मेरे खिलाफ खबर लिखते हो, यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो विकास?  तभी उनका रिश्तेदार  खुद को भाजपा कार्यकर्ता बताने वाला शोभितम मिश्रा अपने मोबाइल की स्क्रीन विकास को दिखाते हुए रोब में बोला-नगर पालिका के बारे में फेसबुक पर अनाप-शनाप कविता लिखते हो? यह कहते-कहते शोभितम ने विकास को जोर से धक्का दे दिया। चटाक....विकास सिर के बल जमीन पर गिर गये,  फिर वह फौरन विकास के सीने पर चढ़, विकास की गर्दन अपने गमछे से कसने लगा, साथ ही विकास को गालियां देने लगा। चंद सेकेंडों में हुए जानलेवा हमले को विकास के साथ आए दिनेश समझ न पाए.. फौरन वह विकास को छुटाने की गरज से शोभितम की ओर दौड़े। इधर धींगामुश्ती  चल रही थी, विकास की जिंदगी बचाने की, उधर चेअर मैन साहिबा और ईओ विकास को तड़पते हुए देखकर मजे ले रहे थे। अहिंसा के पुजारी गांधी जी जयंती पर चेअरमैन के उकसाने पर हिंसक हुए शोभितम के चंगुल से विकास को, दिनेश, बड़ी मुश्किल से छुटा पाए। तब शोभितम वहां से फौरन भाग लिया। इधर विकास की गर्दन कसने  से उन्हें मूर्छा आने लगी, सांसें फूलने लगी, जोर-जोर से खांसी आने लगी। उधर कुटिल मुस्कान चेअरमैन साहिबा  और ईओ के चेहरे पर बिखरती जा रही थी, इधर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जमीन पर पड़ा दर्द से छटपटा रहा था। इतनी क्रूर भाजपा की चेयरमैन हो सकती है, यह चिंतनीय है। पिछले वर्ष तीन अक्टूबर को तिकुनियां में केद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्र टैनी के सुपुत्र अशीष मिश्र  ने कई किसानों को रौदते कर मारते हुए एक पत्रकार रमन कश्यप को भी  मार डाला था। भाजपा के द्वारा पत्रकारों पर यह दूसरा हमला है।  
पीड़ित पत्रकार/लेखक विकास सहाय, लखीमपुर-खीरी
       विकास पर आत्मघाती हमले के बाद तमात पत्रकार सदर कोतवाली के लामबंद हुए, तब घटना के करीब के घंटे बाद प्रभारी निरीक्षक चन्द्रशेखर की त्वरित कार्यवाही के बाद आरोपी शोभितम गिरफ्तार हुआ।आई पीसी की धारा'323/504/506/151 सीआरपीसी जैसी धाराएं लगा कर आरोपी को जेल भेज दिया गया। बताते भाजपा के रसूख के दम पर शोभितम दो दिन बाद छूट गया और आजकल अपने गांव में  मस्ती से विचरण कर रहा है।      बकौल विकास, उन्होंने नगरपालिका के बंदरबांट पर कुछ समीक्षात्मक खबरें छापीं थीं जिससे चेअर मैन साहिबा और उनका रिश्तेदार पिछलग्गू शोभितम नाराज चल रहा था। उसके जानलेवा हमले से मैं और मेरा पूरा परिवार काफी भय के साये में जी रहा हैं, मै किस भय और मानसिक पीड़ा में खबर लिख रहा हूं यह बता नहीं सकता। तिस पर चेअर मैन साहिबा के पति तथाकथित समाजसेवी डा. सतीश कौशल बाजपेयी, मुलायम सिंह का सा संवाद  दोहराते हुए मुझसे कहते हैं शोभितम बच्चा है, जाने दो, माफ कर के किस्सा खत्म करो। बच्चों से गलतियां हो जाती हैं। वे कैसे डाक्टर हैं पता नहीं? उन्हें मेरे घाव पर मरहम लगाना चाहिए जबकि वे नमक लगा रहे है। इस संदर्भ में वंचित, शोषित, सामाजिक संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, चन्दन लाल वाल्मीकि कहते हैं मैं पत्रकार विकास सहाय को, विगत 18 सालों से जानता हूं, विकास जी जन समस्याओं को  निर्भीक, निडर, सच्चाई के साथ छापते हैं। एक जनप्रतिनिधि के सामने उनके साथी का, विकास पर घातक जानलेवा हमले की सभी ने निंदा की है, घटना की जानकारी होते ही कोतवाली में न्याय के लिए तमाम पत्रकारों के अलावा संभ्रांत व्यक्तियों  का हुजूम, विकास की कलम की लोकप्रियता को दर्शाता है। बरेली के वरिष्ठ पत्रकार गणेश पथिक का कहना है, यह अति निंदनीय, स्तब्धकारी और सर्वथा अस्वीकार्य है हमला है। ऐसे अवांछित व्यक्ति को  लखीमपुर खीरी समेत यूपी के सभी पत्रकारों, पत्रकार संगठनों को संत पुरुष  विकास के विरुद्ध अशिष्ट बर्ताव करने वाले शोभितम पर कठोरतम कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लि‌ए सभी पत्रकारों को लामबंद होकर आंदोलन करने की जरूरत है।
शोध छात्र युवा कवि विजय बादल, विकास पर हुए हमले की निंदा करते हुए कहते हैं, "पत्रकार एवं साहित्यकार जनता की आवाज़ होते हैं, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार विकास चन्द्र सहाय जी के साथ हुई अभद्रता जनता  की आवाज़ दबाने का कुत्सित प्रयास लगती है,  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करते हुए इस असंवैधानिक कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाये कम है‌।
   
सामूहिक चित्र, लाल घेरे में आरोपी शोभितम

 बुजुर्ग शिक्षाविद्  सत्य प्रकाश 'शिक्षक' कहते हैं,मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। एक मीडिया ही है, जिसके माध्यम से सबको सच्चाई का पता चलता है, अतः मीडिया से जुड़े हर व्यक्ति का सम्मान करना हर नागरिक का प्रथम कर्तव्य है‌।  दैनिक जागरण के लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार एवं शायर विकास सहाय, जो निहायत सीधे और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं, हमेशा अपने कर्तव्यों पर अडिग रहने वाले जुझारू व्यक्तित्व हैं। ऐसे व्यक्ति पर 'वार्ड नामा' स्तंभ के कारण हाथ उठाना, मारपीट करना ,गला दबाना, शोभितम की कायराना हरकत है।  आरोपी को ऐसा दंड मिले  जो पूरे देश में  मिसाल बने। 
           शिक्षक  राजकिशोर गौतम और कवि रमाकांत चौधरी ऐसी घटनाओं को बाबा साहब के संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी पर किया हमला बताते हैं। खीरी के वरिष्ठ पत्रकार सत्य कथा लेखक साजिद अली चंचल इस मामले में  कहते हैं ,लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की स्वतंत्रता पर प्रहार करने का घिनौना खेल खेलने से बाज नहीं आ रहें हैं भ्रष्टाचारी। लखीमपुर खीरी के निडर निर्भीक पत्रकार विकास सहाय के साथ, जो जुल्म की होली खेलकर उनकी (पत्रकारिता की) आवाज को दबाने का प्रयास नगर पालिकाध्यक्ष के प्रतिनिधि द्वारा किया गया, घोर निंदनीय एवं अक्षम्य हैं,  ऐसे बेहद संवेदनशील मामले में योगी जी ठोस कदम उठाएं ताकि अभिव्यक्ति की आजादी बची रही।
रिपोर्ट
सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
मो-7376236066

Friday, September 23, 2022

ईडब्ल्यूएस आरक्षण की संवैधानिक परख: सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में याचिकाकर्ताओं और सरकार द्वारा क्रमशःपेश किए गए महत्वपूर्ण विधिक तर्क और कठदलीलें : एक गहन विश्लेषणात्मक अवलोकन

ईडब्ल्यूएस  मुद्दा 
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी


ओबीसी,एससी और एसटी के बुद्धिजीवियों को  मोदी नेतृत्व की बीजेपी सरकार द्वारा अपनायी जा रही पिछड़ा वर्ग विरोधी नीतियों - रीतियों और उनकी मंशा को समझना होगा और समाज को समझाना होगा कि आरएसएस नियंत्रित मनुवादी सरकार हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए कितना खतरनाक और षड्यंत्रकारी है और सुप्रीम कोर्ट में इस केस की सुनवाई कर रही बेंच और केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल के रुझान और कठदलीलों से आने वाले निर्णय का पक्ष सहज ही अनुमान लगाया जा सकता  है
         ईडब्ल्यूएस के लिए 10% आरक्षण के मामले में केंद्र में मोदी नेतृत्व की सरकार अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि ओबीसी,एससी और एसटी की जातियों को पहले से ही आरक्षण मिल रहा है। ऐसे में यह आरक्षण केवल सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को ही दिया जा सकता है। कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने मंगलवार को कहा कि पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग पहले से ही आरक्षण का फायदा ले रहे हैं। इस 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर केवल सामान्य वर्ग की जातियों के लोगों का ही अधिकार बनता है। सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को इस कानून या व्यवस्था के तहत लाभ मिलेगा जो एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।
          केंद्र में बीजेपी सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत सवर्ण जातियों के आर्थिक रूप से गरीबों के लिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू किया गया था। तीन साल से मिल रहे इस आरक्षण की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट में अब सुनवाई शुरू हुई है। पांच जजों की संवैधानिक बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि एससी,एसटी और ओबीसी में भी आर्थिक रूप से गरीब लोग होते हैं तो फिर यह आरक्षण केवल सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को ही क्यों दिया जा रहा है? आर्थिक रूप से गरीब तो हर वर्ग और जाति में होते हैं। इसलिए 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण की परिधि में हर वर्ग और जाति के गरीब लोगों को रखना चाहिए। ईडब्ल्यूएस आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंद्रा साहनी केस के निर्णय में लगाई गई 50% की आरक्षण सीमा का खुला उल्लंघन होता है। वर्तमान में ओबीसी को 27%, एससी को 15% और एसटी के लिए 7.5% आरक्षण की व्यवस्था है। ऐसे में 10% का ईडब्लूएस आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई 50% आरक्षण की सीमा को तोड़ता है और आरक्षण का एकमात्र मानक या आधार आर्थिक नहीं हो सकता है।
           " वेणुगोपाल ने कहा है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण का कानून आर्टिकल 15 (6) और 16 (6) के मुताबिक ही है। यह पिछड़ों और वंचितों को सरकारी शिक्षण संस्थाओं और नौकरियों में आरक्षण देता है और 50% की आरक्षण सीमा को पार नहीं करता है। केके वेणुगोपाल ने कहा कि संविधान में एससी और एसटी के लिए आरक्षण अलग से दर्ज़ है। इसके मुताबिक संसद, विधानसभा,पंचायत और स्थानीय नगर निकायों के साथ प्रमोशन में भी उन्हें आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था है। अगर उनके पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए हर तरह का फायदा उन्हें दिया जा रहा है तो ईडब्ल्यूएस कोटा पाने के लिए वे ये सारे फायदे छोड़ने को तैयार होंगे?"
          अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि पहली बार सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को 10% आरक्षण दिया गया है और यह एक क्रांतिकारी पहल है। यह एससी, एसटी और ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण से अलग है और यह उनको दिए जाने वाले आरक्षण को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करता है। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले को बुधवार तक के लिए टाल दिया है।
           " वेणुगोपाल ने दलील दी है कि 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। ईडब्ल्यूएस आरक्षण शेष 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह शेष 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है। उन्होंने कहा कि केवल सामान्य वर्ग के ही लोग आकर यह कह सकते हैं कि उन्हें 10% ही आरक्षण क्यों दिया जा रहा है? वेणुगोपाल शायद यह भूल रहे हैं कि ओबीसी,एससी और एसटी को अधिकतम 50% आरक्षण की सीमा का यह कतई मायने नही हैं कि शेष 50% सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। यदि इसकी व्याख्या वेणुगोपाल के हिसाब से की जाएगी तो सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय के हिसाब से तो शत-प्रतिशत आरक्षण हो जाता है। शेष 50% सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित नही है बल्कि,वो 50% अनारक्षित होता है जिसमें उच्च मेरिट के आधार पर आरक्षित और सामान्य वर्ग का कोई भी अभ्यर्थी जगह पा सकता है। कानूनविद वेणुगोपाल तो 50% आरक्षण की सीमा को उल्टे पैर खड़े करते हुए नज़र आ रहे हैं। इसे कहते हैं कठदलीली और आरक्षण व्यवस्था का शीर्षासन करवाना।"
           याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया था कि संविधान में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों को ही जातिगत आरक्षण की व्यवस्था है और इसी आधार पर  संसद,विधानसभा, पंचायत,नगर निकायों और प्रोमोशन में आरक्षण व्यवस्था लागू है। भविष्य में आर्थिक गरीबी के आधार पर संसद,विधानसभा, पंचायत,नगर निकाय और प्रोमोशन में भी आरक्षण की वकालत किया जाना कितना न्याय संगत और व्यावहारिक होगा? सुप्रीम कोर्ट 1992 में ही फैसला सुना चुकी है कि आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा नहीं हो सकती। ऐसे में केवल सामान्य वर्ग में आने वाली जातियों के गरीब लोगों को आर्थिक सूचकांक के आधार पर आरक्षण कैसे दिया जा सकता है? कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो कि पीढ़ियों से गरीब हैं। उनका परिवार मुख्यधारा में नहीं जुड़ पाया है। गरीबी की वजह से उन्हें रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते। हमने इस केस को उसी ऐंगल से देखा है। हम उस क्राइटीरिया को नहीं देख रहे हैं कि ईडब्लूएस कैसे निर्धारित किया जाएगा बल्कि, यह देखेंगे कि ईडब्लूएस को एक वर्ग बनाकर आरक्षण देना ठीक है या नहीं लेकिन, न्यायपालिका स्तर पर शायद इस तथ्य पर जानबूझकर या इनोसेंटली भूल या चूक हो रही है कि देश में आर्थिक सूचकांक के आधार पर हर वर्ग/जाति में बहुसंख्यक गरीब लोग हैं। हमारे देश की सामाजिक - जातीय व्यवस्था में आज भी कई पूरी की पूरी जातियां ही आर्थिक रूप से गरीबी और कंगाली का जीवन जीने को अभिशप्त हैं,अर्थात जातियों में गरीबी है। क्या ऐसी जातियों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण की परिधि से बाहर रखना समान अवसर की संवैधानिक अवधारणा या सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल नहीं होगा? मेरे विचार से ईडब्ल्यूएस आरक्षण केवल सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को ही देने की व्यवस्था स्पष्ट रूप से संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ दिखाई देती है।

Monday, August 22, 2022

इंद्र कुमार मेघवाल की हत्या : जातीय दुराग्रह की पराकाष्ठा: दाह संस्कार में यूपी के हाथरस मॉडल की पुनरावृत्ति:प्रो.नन्द लाल वर्मा

ज्वलंत मुद्दा, जातियदंस
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी


           राजस्थान के सुराणा गाँव के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल की तीसरी कक्षा का नौ वर्षीय दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल भारत के अमिट घिनौने जातिवाद की भेंट चढ़ गया। एक सवर्ण शिक्षक छैल सिंह की पिटाई से घायल मासूम की इलाज के दौरान मौत हो गई। अंतिम संस्कार से पूर्व मानवीय और कानूनी इंसाफ माँग रहे लोगों को राज्य की दमनकारी शक्तियों का कोपभाजन बनना पड़ा। सवर्णों के लिए शायद इंद्र कुमार का खून कम पड़ गया हो,इसलिए और भी दलितों का खून बहाया गया। यहाँ तक कि शोकाकुल परिवार को भी पुलिस की लाठियों का शिकार होना पड़ा। इससे यह पता चलता है कि हमारा सिस्टम कितना असंवेदनशील और क्रूर है। आरोपी शिक्षक के गिरफ़्तार होते ही उसकी जाति के लोग यह कहते हुए संगठित और सक्रिय हुए कि "पानी की मटकी छूने और मारपीट करने की बात झूठ है।"आरोपी का बचाव करते हुए बेहद सुनियोजित और व्यवस्थित काउंटर जातिगत नेरेटिव सेट किया गया और पूरा जातिवादी ईकोसिस्टम सक्रिय होते देर नही लगी। कैसे एक विशुद्ध मानवाधिकार उल्लंघन का मामला जातिगत राजनीति का हिस्सा और शिकार हो जाता है?
             जातिवादी संगठन सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि उस विद्यालय में कोई मटकी थी ही नहीं,सब लोग पानी टंकी से पीते थे। पानी की बात,मटकी की बात, छुआछूत की बात और यहाँ तक कि मारपीट की बात भी सच नहीं है। छात्र पहले से ही बीमार था,बच्चे आपस में झगड़े होंगे,जिससे चोट लग गई होगी। सुनियोजित तरीके से उसी स्कूल के एक अध्यापक गटाराम मेघवाल और कुछ विद्यार्थियों को मीडिया के समक्ष पेश किया गया कि पानी की मटकी की बात सही नहीं है। इस स्कूल में कोई भेदभाव नहीं है और न ही बच्चे के साथ मारपीट की गई। जालोर भाजपा विधायक योगेश्वर गर्ग ने भी इन्हीं सुरों में अपना सुर मिलाया और खुलेआम आरोपी शिक्षक को बचाने की कोशिश करते हुए एक वीडियो भी जारी किया। स्थानीय पुलिस ने भी जांच पूरी किये बिना ही मीडिया में बयान दे डाला कि इस घटना में मटकी का एंगल कहीं नहीं दिखाई दे रहा है।
           इस प्रकरण में राज्य का सिस्टम जातिवादी शक्तियों के सामने घुटने टेकते नज़र आया और मुआवज़ा देने तक में जातीय भेदभाव साफ़-साफ़ नज़र आया। इस सूबे में अजब सी रिवाज़ क़ायम होती दिखी कि किसी ग़ैरदलित की हत्या हो तो उसे 50 लाख का मुआवज़ा और परिजन को नौकरी,लेकिन दलित की हत्या पर सिर्फ मुआवज़ा वह भी 5 लाख। अर्थात शासन की नज़र में गैरदलित की जान की कीमत,दलित की जान की कीमत के दस गुने के बराबर और नौकरी अलग। किसी भी लोकतांत्रिक राज्य को इतना संवेदनहीन और जातिभेदी नहीं होना चाहिये। संविधान के अनुसार उसकी नज़र में हर नागरिक बराबर होना चाहिये। इस भेदभाव के ख़िलाफ़ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी भयंकर आक्रोश व्याप्त है। इस घटना से मानवीय संवेदनाएं इस कदर आहत होती नज़र आई कि सत्तारूढ़ दल के एक विधायक पाना चंद मेघवाल ने अपनी विधायकी अपने पास रखना अनैतिक समझा और इस्तीफा दे डाला जिससे उत्प्रेरित होकर अन्य विधायक भी इस्तीफ़े देने के मूड में दिखाई पड़ रहे हैं।
         
 अगर शासन ने इस घटना से उपजी सामाजिक-मानवीय संवेदनाओं को अच्छी तरह नहीं समझा तो यह सत्ता प्रतिष्ठान के लिए ठीक नही होगा। जो लोग,समूह और जातियाँ इस निर्मम हत्याकांड को बेहद चतुराई से शब्दों की बाज़ीगरी कर विचलित या विषयांतर करने का दुष्कर्म और तरह तरह के उपक्रम कर रहे हैं,वे भी देर सवेर इसका ख़ामियाज़ा भुगतने के लिए तैयार रहें,क्योंकि दलितों की वर्तमान पीढ़ी अब किसी भी तरह के सामाजिक दमन या अत्याचार बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है,हर मोर्चे पर वह जवाब देने के लिए सक्षम है। कथित जातिगत श्रेष्ठता वाले किसी मुग़ालते में न रहें। शिक्षा के मंदिर में दलित छात्र के साथ जातिजन्य अत्याचार के ख़िलाफ़ देशव्यापी आक्रोश फूटना स्वाभाविक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक शिक्षक द्वारा की गई ऐसी क्रूरता और निर्दयता कैसे बर्दाश्त की जा सकती है? भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत सरकार ने मुक़दमा दर्ज कर आरोपी शिक्षक को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है।
        मृतक के पिता देवा राम द्वारा वायरल वीडियो और चाचा द्वारा पुलिस को दी गयी तहरीर के आधार पर एफआईआर दर्ज हुई। उसमें बताया कि प्यास लगने पर नौ वर्षीय इंद्र मेघवाल ने शिक्षक छैल सिंह के लिए पानी पीने हेतु रखे गए मटके से पानी पी लिया। इससे आग बबूला शिक्षक ने मासूम बच्चे के साथ मारपीट की,जिससे उसके दाहिने कान और आँख पर गम्भीर चोट आई और उसकी नस फट गई। इलाज हेतु परिजन कई अस्पतालों में भटकते रहे और अंत में एक अस्पताल में उपचार के दौरान इंद्र कुमार की मौत हो गई। इस बीच छात्र के पिता और आरोपी शिक्षक के मध्य फ़ोन पर बात हुई,जिसमें छात्र का पिता शिक्षक से यह कह रहा है कि "आपको इतनी ज़ोर से नहीं मारना चाहिये था,बच्चों को इस तरह मारने का आपको कोई अधिकार नहीं है।" शिक्षक अपना क़सूर मानते हुए इलाज में मदद करने की बात कहता सुनाई पड़ रहा है। इसके बाद गाँव स्तर पर डेढ़ लाख रुपए में समझौता करने या होने का दावा भी किया जा रहा है।
          इस वक्त वहाँ की बहुसंख्यक वर्चस्वशाली जाति के लोग, उनके जातिवादी संगठन, मीडिया, विधायक,स्कूल के विद्यार्थी और कुछ शिक्षक यह साबित करने में लगे है कि मृत छात्र के पानी का मटका छूने जैसी कोई बात ही नही हुई और न ही मारपीट। अब सवाल यह है कि अगर पानी की मटकी नहीं थी तो शिक्षक पानी कहाँ से पीते थे? इसका जवाब यह है कि विद्यार्थी हो अथवा शिक्षक, यहाँ तक कि गाँव वाले भी स्कूल में स्थित टंकी से पानी पीते थे। स्कूल में स्थित पानी की जिस टंकी का फ़ोटो टीवी चैनल्स दिखा रहे हैं,उसे देखकर तो उपरोक्त दावे में दम नहीं नज़र आता।
            अगर पानी की मटकी छूने का मामला नहीं था तो फिर वो क्या मामला था, जिसकी वजह से मासूम को शिक्षक ने इतना पीटा कि उसकी जान ही चली गई? पुलिस को यह भी पता करना चाहिये कि इस निर्दयतापूर्ण पिटाई के पीछे का कारण क्या था? यह भी दावा किया जा रहा है कि शिक्षक ने पीटा ही नहीं, फिर वह क्यों फ़ोन पर गलती स्वीकार रहा है और उसे डेढ़ लाख में समझौता करने की क्या मजबूरी थी? बिना गलती कोई इतनी मोटी रकम भी क्यों देना चाहेगा? अकारण तो कोई किसी का मुँह बंद करवाने का दबाव डालकर समझौता नहीं करता और न ही पैसा देता है! इतने बड़े कांड को तेईस दिन तक छिपाकर रखा गया। ऐसा लगता है कि अगर छात्र की मृत्यु नहीं हुई होती तो पूरा मामला मैनेज ही किया जा चुका था। क्या छात्र के साथ हुआ भेदभाव व अत्याचार भविष्य में सामने आ पाता? क्या बच्चों की कोई गरिमा नहीं है, क्या उनके कोई मानवीय अधिकार नहीं हैं, क्या शिक्षकों को इस प्रकार की क्रूर सजा देने का अधिकार हैं?
            बहुत सारे सवाल हैं जो अनुत्तरित है,जिनके जवाब जांचों की रिपोर्ट्स आने के बाद ही मिलेंगे,लेकिन इससे पहले ही घोर जातिवादी तत्व और संगठन यह साबित करने को आतुर है कि न मटकी का मामला है और न ही मारपीट का। यहाँ तक कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए ऐसे ठोस दावे किये जा रहे हैं,जैसे कि डॉक्टर ने इन्हीं के कहने पर रिपोर्ट बनाई हो और बनाते ही उसकी एक कॉपी अपर कास्ट एलिमेंट्स को पकड़ा दी गयी हो। सोशल मीडिया पर सवर्ण जातिवादी तत्वों और उनके संगठनों की तरफ़ से दलित चिन्तकों और निष्पक्ष मीडिया के लोगों को निरंतर धमकियां दी जा रही है कि निष्पक्ष लिखो,पानी की बात मत कहो और मटकी का ज़िक्र मत करो। सुराणा में जातीय भेदभाव जैसी कोई बात नहीं है, हमारा भाईचारे का ताना बाना मत बिगाड़ो। एक न एक दिन तुमको सौहार्द ख़त्म करने वाली पोस्टें डिलीट करनी होगी, तब क्या तुम सार्वजनिक रूप से गलती मानोगे और माफ़ी माँगोगे? 
         आज़ादी के 75 साल बाद भी देश में भयंकर जातिवाद है और जालोर में तो विशेष तौर पर बेहद घिनौना छुआछूत,भेदभाव तथा अन्याय-अत्याचार दिखाई देता है। वहाँ पानी की मटकी और शिक्षा में भेदभाव के मामले संभव है। मिड डे मिल,आँगन बाड़ी के पुष्टाहार व नरेगा में पानी पिलाने में नियुक्त लोगों का सामाजिक जातीय अंकेक्षण किया जाए और जिले के तमाम सरकारी व ग़ैर सरकारी विद्यालयों का एक जातिगत भेदभाव का सर्वे किया जाये तो सच्चाई सामने आ जायेगी कि वहां कौन सा सौहार्द और भाईचारा व दलित छात्रों के क्या हालात है?
       अंत में ऐसे क्रूर जातिवादी लोगों से सिर्फ़ एक छोटा सा सवाल है कि "अगर मृतक छात्र इंद्र के साथ न तो पानी पीने की मटकी में भेदभाव हुआ और न ही शिक्षक ने उसे मारा तो क्या उस मासूम ने खुद को मार डाला? अरे जातिवादियों ! कुछ तो मानवता रखो,थोड़ी तो इंसानियत बचा कर रखो और ज़रा तो पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना बरतो! क्या तुम्हारे अंदर इंसान होने की इतनी न्यूनतम अर्हता भी नहीं बची है! " जाति है कि जाती नहीं " की अंतहीन पीड़ा और बेवशी के साथ इंद्र कुमार को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि और शोकसंतप्त परिजनों को सांत्वना अर्पित करने के सिवा मैं.............!

Tuesday, August 16, 2022

एक राखी का इंतजार-सुरेश सौरभ

छोटी कहानी
       
        
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

         चार-पाँच किन्नर उसे घेर लिये थे। एक किन्नर सन्नो तैश में उसका गिरेबान खींच, बड़े गुस्से से बोली-आज बता, तू रोज-रोज मेरा पीछा क्यों करता है? मुझे घूर-घूर कर क्यों देखता है?..
       लेकिन वह युवक बेखौफ एकटक सन्नो को बस घूरे ही जा रहा था।
        ‘‘मैं पूछती हूँ, कुछ बोलता क्यों नहीं।’’
         युवक निर्विकार भाव से सन्नों को घूरता ही रहा।
       ‘‘लग रहा मार का भूखा है।..अरे! इसे तो पुलिस के हवाले कर दो। ..तालियाँ पीटते हुए उसे घेरे सब किन्नर एक स्वर में बोले।
  ‘‘क्योंकि तेरी शक्ल मेरी बहन से मिलती है।" सन्नो को बराबर घूरते हुए, उस युवक ने अपना मौन तोड़ा।
        ‘‘बहन ऽऽऽ...सन्नो का मुँह हैरत से खुला का खुला रहा है। बहन बहन बहन..दोहराते हुए, उसे घेरे सारे किन्नर, किसी अज्ञात संशय से, आपस में, एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। 
       सन्नो नेे गिरेबान छोड़ दिया उसका। सबका क्रोधावेश जाता रहा।
         सन्नो-"कुछ समझी नहीं? अरे! कैसी बहन? कौन बहन? किसकी बहन मैं? ताली पीट, उसे विस्मय और नजाकत से निहारने लगी।
       ‘‘बरसों पहले बिलकुल तुम्हारे शक्ल-ओ-सूरत जैसी मेरी भी एक बहन थीं, यह मेरी माँ  बताती हैं, बचपन में हम दोनों भाई-बहन को, मेरे माँ-बाप किसी हमें बड़े मेले में घूमाने ले गये थे। फिर वहीं कहीं हमारी बहन गुम हो गई। बहुत तलाशा, पर आज तक नहीं मिली। तब मैं बिलकुल अबोध था। मेरी बहन कुछ समझदार थी। बहन का चित्र घर में रखा है, उसे हमेशा मैं निहारा करता हूँ। और जब रक्षाबंधन आता है, उसे याद करके अपनी सूनी कलाई को देख-देख, मेरे दिल में ऐसी हूक मचती है, दिमाग में ऐसी हलचल मचती है कि बस पूछो मत? कई शहर ढूढ़ा? कहाँ-कहाँ ढूंढ़ा, बताना मुश्किल है। इस शहर में जब ट्रान्सफर होकर आया, तो तुम्हें देखा, तुम्हारी शक्ल मेरी बहन से मिलती-जुलती सी लगी। पीछा इसलिए कर रहा था, सोचा, किसी दिन मौका लगा तो आप से बात करके अपने दिल का बोझ, हल्का कर लूंगा।
      ‘‘क्या तुम्हारे पापा का जग्गू और माता का नाम शीतल है-सन्नो हैरत से बोली
   ‘हाँ।’
   ‘‘क्या तुम्हारा जिला सीतापुर तहसील बिसवाँ है।’’
   ‘‘जी हाँ।’’
   ‘‘क्या गाँव का नाम रूद्रपुर है।’’
    ‘‘जी जी।’’
      अब तो सन्नो फफक पड़ी। लपक का युवक को गले से लगा लिया.. बिल्कुल फूट पड़ी.... हाय! मेरा भाई, हाय! मेरा भैया, मेरा लाला! मेरा गोलू!
        भैया भी सुबकने लगा।...मैं किसी मेले में नहीं? किसी भीड़ में नहीं?बल्कि रूढ़ियों के मेले में, गरीबी के झमेले में, माँ-बाप की बदनामी के डर वाले बड़े सैलाब में बहकर तुझ से दूर चली गई थी।.. तुझ से बिछड़ गई थी...  अब वहाँ सबकी आँखों में समन्दर तूफान के आवेग में मचल रहा था। ....राखी का त्योहार नजदीक था। सामने दुकानों में टंगी राखियां भी अब मायूसी से उनके रुदन को देख रही थीं। और दुःखी हो, अंतर्मन से कह रहीं थीं-मैं भी बरसों से बिछड़े इस भाई-बहन का इंतजार कर रही थी।"


लघुकथाएं-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य)
सुरेश सौरभ

डीपी बदलते ही, कायाकल्प हुआ    

कल रात जैसे ही, मैंने अपनी डीपी बदली भाई! मेरी तो खड़ूस किस्मत का रंग ही एकदम से  बदल गया। फौरन खटरागी प्राइवेट नौकरी ऑटोमैटिक सरकारी में तब्दील हो गई। वाह! मिनटों में, मैं सरकारी दामाद बन गया। डीपी बदली तो बैंकों का निजीकरण फौरन बंद हो गया। डीपी बदली तो रेल की बिकवाली तुरन्त बंद हो गई। बीएसएनएल की बोली लगने वाली थी। एलआईसी की नीलामी होने वाली थी, भाईजान जैसे ही डीपी मैंने क्या बदली तमाम, सरकारी उपक्रमों की नीलामी-सीलामी सब रफा-दफा हो गई। और तो और विदेश टहलने गया नामुराद काला धन, झर-झर-झर धवल पानी जैसा आकाश से, देश में बरसने लगा। ओह! 15 लाख मेरे खाते में, एकदम से टूट पड़े। वाह! मोदी जी वाह! क्या सुझाव दिया। बिलकुल जादू हो रहा है। गजब हो गया। पूरे विश्व में गरीबी भुखमरी का ग्राफ जो रोज हमारे यहां, सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता जा रहा था। डीपी बदलने सेे उस राक्षसी का मुंह छूमंतर सा गायब हो गया। डीपी बदलने से ऐसा कमाल हुआ, भाई ऐसा कमाल हुआ कि डालर को रौंदते हुए रुपया, वीर हनुमान की तरह बढ़ता जा रहा है। फिर कहना पड़ रहा है वाह! क्या सीन है। वाह! मोदी जी वाह! सवा सौ करोड़ जनता की करोड़ों-अरबों दुवाएं तुम पर भराभरा कर निछावर। जय हो तुम्हारी! तुम हमारे भगवान, हम तुम्हारे सौ फीसदी वाले, पक्के वाले भक्त।
      डीपी बदलने से तेल-गैस के दाम आधे हो गये। जिसकी घोषणा साध्वी नेत्री स्मृति देवी ने कर डाली। आसमान छूती महंगाई को जमीन चाटनी पड़ गई। देश से पाकिस्तानी,खालिस्तानी देशद्रोही मुंह लुकाकर उड़नछू हो गये।  
     वाह! डीपी क्या बदली बिलकुल राम राज्य आ गया। लॉकडाउन के कारण ध्वस्त हुए काम-धंधे, डीपी चेन्ज करने की संजीवनी बूटी का अर्क पाकर धड़धड़ाते हुए रॉकेट की तरह दौड़ने लगे। सारी बेकारी खत्म। लक्ष्मी जी सब पर मेहरबान हो गईं। पौकड़ा बेचने वाले आत्मनिर्भर शिक्षित युवाओं के पर लग गये। लोकल ब्रॉन्ड के माल से उनका, बेहतर सुनहरा वो कल हो गया। उनके हाथ में महंगी गाड़ी, बंगला सब आ गया। कमाल हो गया। हाथरस में रात में जलाई गई बेटी की आत्मा को न्याय मिल गया। कासगंज जैसी जगहों, पर जहां दलित दूल्हे घुड़चढ़ी नहीं कर सकते, ऐसी भेदभाव वही जगहों से तो सारे भेदभावों के नामोनिशान मिट गये। डीपी क्या बदली देश की तकदीर बदल गयी। सारे चोरों को, सारे नेता राम-राम रटाने लगे, तोते जैसे। अमेरिका थरथराने लगा हमसे। पाक तो दुम दुबाकर हिमालय पर्वत की कंदराओं में छिपकर अपनी सलामती की खैर खुदा से मनाने लगा। यूं समझिए डीपी बदलने से रोज, मेरे पास पैसों की बहार आ गई। रोज मैं कपड़े बदलने लगा। अब कपड़ों से आप मेरी पहचान न कर लेना। अब कपड़े अदल-बदल कर कहीं ड्रम बजाता हूं तो कभी मोर नचाते हुए, पूरी दुनिया के चक्कर पे चक्कर काट रहा हूं। मेरी तो मौजां ही मौजां... मेरे तो अच्छे दिन आ गये, बस एक डीपी बदलने से। आप भी बदल डालिए।
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लघुकथायें

गफलत 

      डॉक्टर ने रवि की ओर रिपोर्ट बढ़ाते हुए कहा,"कमी सीमा में नहीं आप में है रवि जी।
       डॉक्टर के ये शब्द नहीं  वज्रपात था सीमा और रवि पर। हतप्रभ सीमा कांपते हुए विस्मय से रवि का मुंह ताकने लगी, रवि  भर्राये गले से बोला, 'चलो घर...
        बोझिल कदमों से घर में प्रवेश कर रहे, रवि और सीमा को देखते ही, रवि की मां ने जलता सवाल दाग दिया 'क्या हुआ? क्या निकला रिपोर्ट में?
     दोनों यंत्रवत् खामोशी से अपने कमरे में जाने लगे।
     "मैं जानती थी यह किन्नरी है। बंजर भूमि में कभी कोई बीज उगा है, जो अब यहां उगेगा, न जाने कहाँ बैठी थी, यह हिजड़ी, इस घर के नसीब में..... कर्कशा माँ का स्वर दोनों का कलेजा छीले जा रहा था। गुस्से से सीमा बाहर जाने को उद्यत हुई, तो रवि ने उसका हाथ कस कर रोक लिया। याचना भरे स्वर में बोला-जाने दो, मेरी तरफ से, मां को माफ कर दो।
  ....मैं तो कहती हूं, अरे! यह बांझ है तो दूसरी कर ला रवि! इस हिजड़ी को रखने से क्या फायदा?.. खामखा इसका खर्चा उठाने और खिलाने से क्या फायदा ?
      अब बर्दाश्त से बाहर था। सनसनाते हुए रवि बाहर आया, बोला-किन्नरी सीमा नहीं मैं हूँ..
      माँ अवाक! बुत सी बन गईं। फटी-फटी विस्फारित आंखों से एकटक रवि को देखने लगी।
      "हां हां मैं किन्नर हूं। इसलिए बच्चा नहीं पैदा कर पा रहा हूं। बोलो अब क्या बोलती हो... रवि का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। मां को सांप सूंघ गया। अंदर सीमा फूट पड़ी। चिंहुकते हुए उठी और किसी सन्न  में दौड़ते हुए आई, रवि का हाथ पकड़, अंदर खींचकर ले गई‌। अब दोनों सुबक रहे थे। बाहर बैठी मां की आंखों में आंसू न थे, पर उसका दिल अंदर ही अंदर सुलग रहा था और दिमाग में सैकड़ों सुइयां चुभ रहीं थीं।

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राखी का मोल


बहन ने अपने भाई के माथे पर रूचना लगाया, आरती उतारी फिर जब राखी बांध चुकी, तब भाई राखी देखते हुए थोड़ा हैरत से बोला- अरे वाह ! यह राखी तो बहुत चमक रही है। बहन सहजता से बोली- इसमें कुछ लड़ियां चांदी की चमक रहीं हैं।

'अच्छा तो ये बात है।' बहन की थाली में पांच सौ का नोट धरते हुए भाई बोला ।

'नहीं नहीं भैया पांच सौ काहे दे रहे हैं। वैसे भी तुम्हारा लॉकडाउन के पीछे काम धंधा मंदा चल रहा है। फालतू में पैसा न खर्च करो सौ देते थे, सौ ही दो । अगर वो भी न हो तो कोई बात नहीं। 'अरे! बहना चांदी की राखी लाई हो, इतना तो तुम्हारा हक बनता है।' 'ऐसा नहीं है भैया, इस राखी का मोल पैसे से न लगाओ। कहते-कहते परदेसी बहन " की आंखें भर आईं। तब भाई उसे अपने कंधे से लगाते हुए रूंधे गले से बोला- मुझे माफ करना बहना । तेरा दिल दुखाना मेरा मकसद न था ।

अब बहन की रूचना - रोली से सजी थाली में दीपक की रोशनी में पड़ा सौ का नोट इठलाते हुए मानो भाई - बहन को हजारों-लाखों दुआएं दे रहा हो

युगीन दस्तावेज तालाबंदी-रंगनाथ द्विवेदी

पुस्तक समीक्षा 

तालाबंदी

नई दिल्ली, श्वेत वर्णा प्रकाशन से प्रकाशित देश के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लघुकथाकारों का एक अविस्मरणीय संकलन तालाबंदी  हैं जो कोरोना काल के हर दर्द और पीड़ा की उन असंख्य सांसों पर लिखी गई हैं जिसे खुद लघुकथा लेखकों ने देखा व जिया है‌। यह कोरोना काल की वह "तालाबंदी" है जो कहीं ना कहीं सरकार की नाकामी के कालर को भी जनहित में पकड़ने और झिझोड़ने से बाज नहीं आती,शायद ऐसे ही कुछ बागी बेटे हर युग में, यह कलम पैदा करती रहती है।
     इस लघुकथाओं साझा संग्रह का संपादन खुद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित युवा लघुकथाकार सुरेश सौरभ ने किया है। ये कोरोना काल के अब तक प्रकाशित सारे पुस्तक संकलनों में ऐसा संकलन है जिसकी हर लघुकथा को आप इस विश्व-विभीषिका के उस "आंसूओं" की तरह पढ़ सकते हैं जैसे छायावाद में जय शंकर प्रसाद के आंसू को लोग पढ़ते है।
इतनी बेहतरीन प्रिटिंग और छपाई के साथ कोई अन्य प्रकाशक होता तो मेरा दावा है कि वह इस संपादित पुस्तक की कीमत कम से कम अपने पाठकों  से पांच सौ रुपए वसूलता, लेकिन संपादक और प्रकाशक की इच्छा थी कि,इस विभीषिका के दर्द और पीड़ा से कुछ कमाने से बेहतर है कि यह संकलन सर्वाधिक लोगों के द्वारा खरीदा और पढ़ा जाए इसके लिए उन्होंने इस लघुकथा संकलन की कीमत मात्र 199/ रुपए निर्धारित की है।
   आने वाली हमारी पीढ़ियां जब भी कभी लघुकथा के रुप में संकलित हमारी इस पुस्तक रुपी वसीयत के पन्ने पलटेगी, तो उन्हें लगेगा की हमारे देश ने एक ऐसा हादसा भी कभी जिया था, जब मानवीय संवेदना से भी कहीं ज्यादा  लाशें इस देश के स्वार्थ संवेदना की पड़ी थी।इस लघुकथा संकलन में कुल 68 लघुकथा लेखकों की लघुकथाएं शामिल हैं।
              सौरभ जी लिखी संपादकीय विचारोत्तेजक और भावनात्मक शैली से लबरेज है।

पुस्तक -तालाबंदी
प्रकाशन श्वेत वर्णा प्रकाशन नई दिल्ली।
 मूल्य -199

जज कॉलोनी, मियापुर
जिला--जौनपुर 222002 (U P)
mo.no.7800824758
rangnathdubey90@gmail.com

सम्पूर्ण विपक्ष की सामाजिक - राजनीतिक भूमिका पर उठता एक बेहद स्वाभाविक सवाल-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी

            सामाजिक न्याय के पक्षधर और विचारक लगभग सभी लोग यह जान चुके हैं कि देश मे जातिगत जनगणना वर्ण व्यवस्था के जातीय वर्चस्व और सामाजिक अन्याय की खड़ी सनातनी इमारत को ढहाने का एक मजबूत ढांचा मुहैया करा सकता है। जातिगत जनगणना डॉ.आंबेडकर के सामाजिक न्याय,समता,स्वतंत्रता और बंधुता आधारित लोकतांत्रिक भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित हो सकता है,एक ऐसे राष्ट्र निर्माण में कारगर सिद्ध होगा जिसकी समृद्धि और विकास में सभी नागरिकों का अधिकार और सहभाग होगा। भारत में सबके लिए न्याय और विशेष रूप से ऐतिहासिक सामाजिक अन्याय और शोषण के शिकार बहुजन समाज के एक विशेष तबके जिसे शूद्र और अछूत समझा जाता है, के सामाजिक न्याय का प्रबल समर्थक और पक्षधर देश का हर नागरिक जातिगत जनगणना के निहितार्थ को अच्छी तरह समझता है, क्योकि इससे सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में समान अवसर और संसाधनों में समान भागीदारी का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए आज़ादी के बाद सामाजिक और राजनीतिक बहुजन चिन्तक समय-समय पर जातिगत जनगणना के पक्ष में ठोस तर्क और तथ्य देते रहे हैं।

            देश मे यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि देश में ओबीसी की जातिगत जनगणना की मांग की जा रही है,जबकि ऐसा नही है। सच्चाई यह है कि जो जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, वे देश मे सभी जातियों की जनगणना की मांग कर रहे हैं जिसमें कथित उच्च जातियों के साथ मुस्लिम, ईसाई और अन्य सभी धर्मावलंबियों के बीच की जातियों की जनगणना भी शामिल है। वर्तमान राजनीतिक सत्ता पर काबिज एक विशेष संस्कृति से संचालित और नियंत्रित केंद्र सरकार ने देश की सबसे बड़ी अदालत में शपथपत्र देकर जातिगत जनगणना कराने से साफ मना कर दिया है। इसमें केंद्र सरकार ने जानबूझकर जातिगत जनगणना के सवाल को ओबीसी की जातिगत जनगणना तक सीमित करते हुए  ओबीसी की जातिगत जनगणना कराने को एक लंबा और कठिन काम बताते हुए जातिगत जनगणना के अहम और आबश्यक मुद्दे से छुटकारा पाने का प्रयास किया है। हर दस साल बाद देश मे जनगणना की व्यवस्था है और आज की डिजिटल इंडिया में तो उसमें केवल जाति का एक अतिरिक्त कॉलम ही तो जोड़ना होगा। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी जी की डिजिटल इंडिया और युग में जातिगत जनगणना कठिन कार्य कैसे हो गया और देश का यदि कोई कार्य कठिन है तो क्या वह कठिनाइयों की वजह से किया ही नही जाएगा? यह तो बड़ी विडंबना का विषय है। यह देश विभिन्न जातियों और समाजों से भरा देश है और देश के आंतरिक ढाँचे को समझने और उनके अनुकूल नीतियों के निर्माण के लिए जातिगत जनगणना एक अपरिहार्य विषय या मुद्दा है।

             वर्तमान राजनीतिक सत्ता के दौर में बीजेपी को छोड़कर अन्य कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय राजनीतिक दल जातिगत जनगणना के खिलाफ दिखाई नही दे रहा है।इसके बावजूद जातिगत जनगणना के पक्ष में सड़क पर उतरकर एक बड़ा जनांदोलन करने की हिम्मत किसी भी विपक्षी दल में दिखाई नहीं दे रही है। उन्हें मुट्ठीभर कथित उच्च जातियों के नाराज़ होने का राजनीतिक भय सदैव सताता रहता है। इस देश मे शासक वर्ग सदैव उच्च जातियों से ही रहा है और आज भी है। 2014 के बाद एक बड़ा बदलाव जरूर देखने को मिल रहा है कि मुस्लिम समाज की उच्च जातियों को शासन सत्ता या व्यवस्था से लगभग बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। आज के दौर के शासक वर्ग में केवल उच्च जाति और उच्च वर्ग के ज्यादातर हिन्दू पुरूष ही दिखाई देते हैं।

             आज अधिकांश लिबरल बुद्धिजीवी वर्ग छिपे तौर पर और हाँ -हूँ-ना के साथ जातिगत जनगणना के विरोध में दिखाई देते हैं। वाममपंथी राजनीतिक विचारधारा के दल औपचारिक तौर पर तो जातिगत जनगणना के पक्ष में दिखाई देते हैं ,लेकिन वे भी इसे इतना बड़ा सामाजिक- राजनीतिक मुद्दा नही मानते हैं जिसके लिए जनांदोलन या जनसंघर्ष का रास्ता चुना जाए!इनमें भी कुछ तो भीतर ही भीतर मन से जातिगत जनगणना के खिलाफ ही हैं,भले ही उसे सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर नही कर पाएं। कांग्रेस तो सैद्धांतिक रूप से जातिगत जनगणना के पक्ष में दिखती है, लेकिन वह भी अदृश्य राजनीतिक नुकसान की बजह से इसे एक व्यापक और राष्ट्रीय सामाजिक- राजनीतिक मुद्दा बनाने का साहस नही जुटा पा रही है।

              उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज के सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दो प्रमुख दल हैं। ये दोनों दल भी  सवर्णों में मुट्ठीभर ब्राम्हणों को पटाने में ही अपनी पूरी राजनीतिक शक्ति झोंकते हुए दिखाई देते हैं। ये दोनों दल जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरकर जनांदोलन करने के लिए शायद सोच भी नही रहे हैं।

             इन परिस्थितियों में एक विकल्प यह दिखाई देता है कि सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी वर्ग और सामाजिक न्याय या लोकतंत्र के लिए कार्य करने वाले सामाजिक संगठन एक बैनर तले राष्ट्रव्यापी एकजुटता कायम कर एक बड़ा जनांदोलन और संघर्ष खड़ा कर सकते हैं और सरकार पर जातिगत जनगणना का सामाजिक - राजनीतिक दबाव बनाने की दिशा में सार्थक प्रयास किए जा सकते हैं। इससे देश के राजनीतिक दलों पर सकारात्मक या अनुकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो सकती है। हो सकता है कि इससे राजनीतिक पार्टियां भी साथ आने के लिए सोचने के लिए विवश हों। अब यही एकमात्र रास्ता दिखाई देता है। यदि डॉ.आंबेडकर के संवैधानिक लोकतांत्रिक देश में देश का पचासी प्रतिशत बहुजन समाज जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सफलता प्राप्त करने में सक्षम नही हो पाता है तो बहुजन समाज की एक और बहुत बड़ी ऐतिहासिक सामाजिक - राजनीतिक पराजय मानी जाएगी।


Wednesday, June 15, 2022

भारत गौरव सम्मान से सम्मानित अनुभूति गुप्ता खीरी जिले की एक साहित्यिक पहचान हैं-अखिलेश कुमार अरुण

   सम्मान   

परिचय

 

अनुभूति गुप्ता

जन्मतिथि- 05.03.1987.

जन्मस्थान- हापुड़ (उ.प्र.)

शिक्षा- बी.एस.सी. (होम साइन्स), एम.बी.ए., एम.एस.सी. (आई.टी.)

(विद्या वाचस्पति उपाधि प्राप्त) Pursuing International cyber law and forensic sciences course from IFS, Mumbai...

सम्प्रति-

डायरेक्टर/प्रकाशक (उदीप्त प्रकाशन, yellow Feather publications)(लखीमपुर खीरी)

प्रकाशक/एडिटर (अनुवीणा पत्रिका)

प्रोफेशनल चित्रकार

रेखाचित्रकार (only rekhachitrkar from kheri, रेखाचित्र, 30000 से अधिक)

स्वतंत्र लेखिका

सम्पर्क सूत्र-

103 कीरत नगर

निकट डी एम निवास

लखीमपुर खीरी

9695083565

 

विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, गांधीनगर (बिहार) ने अनुभूति गुप्ता को भारत गौरव सम्मान 2022 से अलंकृत कर हम क्षेत्रवासियों को एक पहचान दिया है वैसे आप किसी परिचय की मोहताज नहीं है, लखीमपुर खीरी जैसे पिछड़े जिले से साहित्य के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है जहाँ हिंदी साहित्य में लेखन की बात करें तो इक्का-दुक्का साहित्यकार ही अपनी टूटी-फूटी लेखनी से जिले-जेवार का नाम रोशन करते रहे हैं। पंडित वंशीधर शुक्ल पुराने लेखकों में सुमार थे तब से लेकर आज तक साहित्यिक विरासत सूनापन लिए चल रहा था। आज कई लेखक साथी साहित्यिक रचनाओं में भिन्न-भिन्न हिंदी साहित्य की विधाओं पर अपनी लेखनी चला रहे हैं।

 

हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं पर आपकी लेखनी को सरपट दौड़ाने वाली लेखिका/संपादिका अनुभूति गुप्ता ने  कविता, कहानी, लघुकथा, हाइकु, रिपोर्ताज, जीवनी आदि पर खूब लेखन किया है। देश-विदेश की नामचीन पत्र-पत्रिकाओं हंस, दैनिक भास्कर-मधुरिमा, हिमप्रस्थ, कथाक्रम, सोच-विचार, वीणा, गर्भनाल, जनकृति, शीतल वाणी, उदंती, पतहर, नवनिकष, दुनिया इन दिनों, शुभतारिका, गुफ्तगू, शब्द संयोजन, अनुगुंजन, नये क्षितिज, परिंदे, नव किरण, नेपाली पत्रिका आदि अनेकों हिन्दी पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित होती रहती हैं। नवल, आधारशिला और चंपक पत्रिका में कहानी का प्रकाशन। साहित्य साधक मंच, अमर उजाला, दैनिक नवज्योति, दैनिक जनसेवा मेल, मध्यप्रदेश जनसंदेश, ग्रामोदय विजन आदि विभिन्न समाचार पत्रों में कविताएं एवं लघुकथाएं प्रकाशित। 300 से अधिक कविताएं प्रकाशित। कविता कोशमें 60 से अधिक कविताएं संकलित।

 

साहित्य आपको विरासत के रूप में आपके माता जी (बिनारानी गुप्ता) से मिला है जो लेखन में अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक सक्रीय रही हैं जो पिछले साल करोना महामारी में कालकवलित हो गईं, जिनके साहित्यिक सपनो को साकार करने के लिए उनकी बेटी अनुभूति गुप्ता जी ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रही हैं अपने माता जी की स्मृति में आपने एक पुस्तक प्रकाशन की परियोजना में व्यस्त हैं, आप अपने छात्र जीवन से ही साहित्य से आप जुड़ीं तो जुड़ती ही चली गईं, साथ ही साथ पेंटिंग करना आपकी प्रवृत्ति में शामिल है हजारों रेखाचित्रों का एक बड़ा संग्रह आपने तैयार किया हुआ है। जिनका प्रकाशन देश की नामचीन साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं यथा-पाखी, नया ज्ञानोदय, मधुमति, वागर्थ, हंस, कथादेश, कथाक्रम आदि इतना ही नहीं आपके रेखा चित्रों का प्रकाशन साहित्यिक पत्रिकाओं के आवरण पृष्ठों पर भी खूब किया गया है रेखाचित्रों के प्रकाशन की एक झलक देखिये पाखी, नया ज्ञानोदय, मधुमती, वागर्थ, ’हंस’, ’कथादेश’, ’कथाक्रम’, विभोम स्वर, ’प्राची’, शीतल वाणी, साहित्य अमृत, समकालीन अभिव्यक्ति, कथा समवेत, गाँव के लोग पत्रिका में रेखाचित्र प्रकाशित एवं प्रकाषित होते रहते हैं। पत्रिका के कवर पर पेंटिग- मधुमती, शीतल वाणी, किस्सा कोताह, नूतन कहानियां, वीणा, वैजयंती, विचरण जियालोको, प्रतिबिम्ब, संवेद आदि। पत्रिका के कवर पर रेखाचित्र- अविराम साहित्यकी किताब के कवर पर पेंटिग प्रकाशनाधीन- लेखक- सूरज उज्जैनी, मुकेश कुमार, राकेश कुमार सिंह, किताबों में प्रकाशित रेखाचित्र- माटी कहे कुम्हार से, सुनो नदी ! किताबों में प्रकाशित कार्टून चित्र- जलनखोर प्रेमी, नटखट प्रेमिका (कात्यायनी सिंह)पत्रिका के कवर पर खिंचा गया चित्र- शब्द संयोजन आदि।

 

अनुभूति गुप्ता लेखनी का एक ऐसा नाम है जिसमें समाज की मर्मिक्ताओं का आभास होता है तथा बौखलाहट और घुटन देखने को मिलती है प्रकाशित रचनाओं की फेहरिस्त भी काफी लम्बी है यथा- बाल सुमन (बाल-काव्य संग्रह), कतरा भर धूप (काव्य संग्रह), अपलक (कहानी संग्रह), बाल सुमन (बाल-काव्य संग्रह) दूसरा संस्करण, तीसरा संस्करण।प्रकाशनाधीन- मैं (काव्य संग्रह), कोकनट में उगती स्त्रियां और 44 से अधिक पुस्तकों का आपने सफल प्रकाशन भी किया है और यह निरंतर जारी है

 

साहित्य की दुनिया में दिल खोलकर लोगों ने आपको सम्मानित भी किया है और इस सम्मान की आप असली हक़दार भी है। एक नज़र डालते हैं आपकी की सम्मान निधि पर तो यह भी अपने आप में एक अवर्णनीय है- शोध पत्रिका में लेख एवं अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘अवधी भाषा‘‘ में प्रमाण पत्र प्राप्त एवं नारी गौरव सम्मानतथा प्रतिभाशाली रचानाकार सम्मान’, ’साहित्य-श्री सम्मान’, ’के.बी. नवांकुर रत्न सम्मान’, नवपल्लव पत्रिका के कुशल सम्पादन हेतु अमृता प्रीतम स्मृति शेषसम्मान तथा प्रसिद्ध संस्था श्रीनाथ द्वारा सम्पादक शिरोमणि सम्मान’, शान्ति देवी अग्रवाल स्मृति सम्मान, इमराजी देवी चित्रकला रत्न, भारत गौरव से सम्मानित एवं अनेको सम्मान प्राप्त है।

...

Monday, June 06, 2022

पर्यावरण दिवस-विकास कुमार

विकास कुमार 
अन्छा दाऊदनगर 
औरंगाबाद बिहार
     
ऑक्सीजन के बिना हम लोगो को जीवन जीना कैसे सिखाए,
इतना प्रदूषित वातावरण को हम पर्यावरण दिवस कैसे मनाए।

अब किसको, कब और कैसे हम उनको क्या समझाए,
कुछ पैसे की लालच में अपने ही घर के जो पेड़ कटवाए।

दो–चार लोग जो आए थे पेड़ को काटने हमारे गांव में,
धूप से परेशान होकर बैठ गए उस पेड़ के ही छांव में।

ऑक्सीजन के बिना हम लोगो को जीवन जीना कैसे सिखाए,
इतना प्रदूषित वातावरण को हम पर्यावरण दिवस कैसे मनाए।

अपने जीवन के बचाव में आइए मिलकर हम पेड़ लगाए,
कुछ लोग तो समझ चुके है, कुछ लोग को आप समझाए।


शुद्ध हवा न मिल पाता है ऑक्सीजन खरीदने पर विवस है,
कितना खुशी की बात है आज शुद्ध पर्यावरण की दिवस है।

ऑक्सीजन के बिना हम लोगो को जीवन जीना कैसे सिखाए,
इतना प्रदूषित वातावरण को हम पर्यावरण दिवस कैसे मनाए।

 

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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